गांधीजी ने आश्रम की स्थापना क्यों की थी? - gaandheejee ne aashram kee sthaapana kyon kee thee?

साबरमती आश्रम एक ऐसा ऐतिहासिक स्थल है, जिसने देश की आजादी के पीछे की लड़ाई को करीब से देखा है. राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी द्वारा निर्मित साबरमती आश्रम गाँधी अनुयायियों के लिए किसी तीर्थ स्थान से कम नहीं है. गाँधी जी एवं उनके साथी स्वतंत्रता संग्रामी देश की आजादी के लिए, ब्रिटिश सरकार के खिलाफ यही बैठकर योजना बनाते थे. 1917 से 1930 तक इस ऐतिहासिक स्मारक में गाँधी जी ने अपना जीवन बिताया था. यहाँ से जाने के बाद वे अपनी पत्नी एवं करीबी लोगों के साथ महाराष्ट्र में स्थित सेवाग्राम आश्रम में रहने लगे थे.

गांधीजी ने आश्रम की स्थापना क्यों की थी? - gaandheejee ne aashram kee sthaapana kyon kee thee?

आश्रम का नाम (Aashram name)साबरमती आश्रमसाबरमती आश्रम का वास्तविक नाम क्या है

 

सत्यागृह आश्रमसत्यागृह आश्रम की स्थापनामई 1915साबरमती आश्रम की स्थापना कब हुई थी17 जून  1917साबरमती आश्रम किसने बनाया था (Architect)

 

चाल्स कोरिया (Charles Correa)साबरमती आश्रम की स्थापना किसने कीमोहनदास करम चंद्र गाँधीस्थानगुजरात, अहमदाबादसाबरमती आश्रम घूमने का समय (Sabarmati Ashram Timings)8:30 AM – 6:30 PMसाबरमती आश्रम एंट्री फीस (Sabarmati Ashram entry fee, tickets)कुछ नहीं (No entry fee)

साबरमती आश्रम/सत्यागृह आश्रम का इतिहास (Sabarmati Ashram history)

1915 में गोपाल कृष्ण गोखले के कहने पर गाँधी जी अफ्रीका से भारत वापस आ गए थे, यहाँ आने के बाद उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ज्वाइन की थी. इस समय गाँधी अपनी पत्नी के साथ गुजरात में रहना चाहते थे, जिसके लिए उन्होंने अपने मित्र जीवनलाल देसाई के कहने पर उनके कोचरब बंगला में सत्याग्रह आश्रम का निर्माण करवाया।

25 मई 1915 से गाँधी जी अपनी पत्नी और कुछ करीबियों के साथ यहाँ रहने लगे. यह बंगलो जिसे आश्रम में बदला गया था, रहने के हिसाब से अच्छा था, लेकिन यहाँ खेतवाड़ी, पशु पालन, गैशाला, ग्रामोउद्योग का निर्माण जैसी गतिविधियां करना संभव नहीं था. गाँधी जी अपने निवास स्थल के आस पास ये सभी चीजें चाहते थे. इसके लिए वे अपने आश्रम के लिए दूसरी बड़ी जगह देखने लगे.

17 जून 1917 को साबरमती नदी के किनारे 36 एकड़ के लगभग बड़ी जगह में सत्याग्रह आश्रम फिर से स्थापित किया गया. बाद में इस आश्रम को नदी के नाम से साबरमती आश्रम कहा जाने लगा. यह आश्रम तीन अद्भुत स्थल से ढका हुआ है, एक ओर विशाल पवित्र साबरमती नदी, अगली तरफ इंसान के शरीर को मुक्ति देने का स्थान “श्मशान घाट” तो इसके दूसरी ओर इंसानों को सुधारने के लिए, उनके कृत की सजा के लिए बनाई गई जेल. गाँधी जी यहाँ रहने वालों को सत्याग्रही कहते थे. उनका मानना था सत्याग्रही के पास जीवन में दो ही विकल्प होते है, जेल जाना या जीवन समाप्त करके श्मशान जाना।

इस जगह से जुडी एक और घटना ऐतिहासिक एवं विश्व प्रसिद्ध है. कहते है इस जगह पर महृषि दधीचि का आश्रम हुआ करता था. महृषि दधीचि उन महान ऋषियों में से है जिन्होंने धर्म की रक्षा के लिए अपने शरीर का त्याग कर, अपनी अस्थियों को देवताओं को सौंप दिया था और समाधी ले ली थी. वैसे महृषि दधीचि का मुख्य आश्रम एवं समाधी स्थल उत्तर प्रदेश के लखनऊ के पास सीतापुर नामक छोटे से ग्राम में आज भी स्थित है.

गाँधी जी का कहना था कि यह एक सही जगह है, जहाँ हम अपने कामों को लेकर योजना बना सकते है सत्य की पहचान कर सकते है.  इसके साथ ही अपने अंदर निडरता को बढ़ाने के लिए ये जगह कार्यकारी सिद्ध होगी क्यूंकि यहाँ एक ओर विदेशियों द्वारा बनाई गई लोहे की दीवार है, तो दूसरी तरफ प्राकृतिक माँ हमसे गरजते हुए बातें कर रही है.

आश्रम में शुरुवाती दिनों में कुछ भी सुविधा नहीं थी. वहां रहने वाले 40 लोगों का गुजारा मुश्किल से होता था. लेकिन समय के साथ यहाँ स्तिथि बेहतर होती गई और लोगों की संख्या के साथ सुख सुविधा बढ़ती गई.

गाँधी जी ने इस आश्रम में लोगों को विभिन्न तरह की शिक्षा देने के लिए एक अलग पाठशाला का निर्माण भी करवाया। यहाँ वे कृषि से जुड़ी बातें, मानव श्रम की महत्ता से लोगों को अवगत कराते थे. इसके साथ ही गाँधी जी ग्रामोद्योग और खादी से विशेष प्रेम रखते थे, उनका मानना था कि चरखा और खादी के वस्त्र से गांव अपनी आर्थिक स्थति में सुधार ला सकता है, और साथ ही ये स्वदेशी वस्त्र के प्रयोग से ब्रिटिश सरकार को करारा जबाब दिया जा सकता था. इस आश्रम में गाँधी जी चरखा चलाकर खादी के वस्त्र बनाते थे, साथ ही दूसरों को सिखाते भी थे.

साबरमती आश्रम से उत्पन्न हुई आंदोलन की नयी चिंगारी (Sabarmati Ashram role in Independence)

स्वतंत्रता के समय कई ऐसे आंदोलन और प्रदर्शन हुए थे, जो आज तक हम याद करते और विश्व प्रख्यात है. उसमें से ही एक है गाँधी जी द्वारा की दांडी पैदल यात्रा। सन 1930 वो समय था जब गाँधी जी ही द्वारा कुछ समय पहले असहयोग आंदोलन को खत्म किया गया था, लेकिन इसका असर ब्रिटिश सरकार के बीच में अब भी था. इस आंदोलन ने अंग्रेज सरकार की अर्थव्यवस्था को गड़बड़ा दिया था. इन सभी बातों को ध्यान में रखते हुए ब्रिटिश सरकार ने 1930 में भारतीय नमक पर टैक्स बढ़ा दिया था, साथ ही भारतीयों से समुद्र किनारे नमक का अधिकार भी छीन लिया था, जिससे भारत देश में विदेशी नमक की मांग बढ़ जाये और वह की अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचें।

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12 मार्च 1930 को गाँधी जी ने साबरमती आश्रम से 78 लोगों के साथ दांडी यात्रा की शुरुवात की थी. 241 किलोमीटर की यह यात्रा गाँधी जी एवं उनके अनुयायियों ने 24 दिन में पूरी की थी. इस ऐतिहासिक घटना को “नमक सत्याग्रह” भी कहते है. 5 अप्रैल 1931 को गाँधी जी समुद्र के किनारे बसे दांडी नामक शहर में पहुचें और वहां पहुंचकर उन्होंने नमक हाथ में लेकर अग्रेजों के बनाये इस गलत कानून को तोड़ा और खुले में इसका विरोध किया। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार पूरी तरह हिल गई थी, गाँधी जी ने उनकी नाक में दम कर रखा था. इस सत्याग्रही आंदोलन से जुड़े अनेकों बड़े नेताओं को जेल की सलाखों में डाल दिया गया था. 60 हजार के लगभग सत्याग्रहीयों को इस बीच ब्रिटिश सरकार ने जेल में दाल दिया था. इसके साथ ही साबरमती आश्रम को ब्रिटिश सरकार ने अपने कब्जे में लेते हुए सील कर दिया था. उनका मानना था, यह आंदोलन की रुपरेखा यह बनी थी, साथ ही इसकी जड़ इसी आश्रम में थी.

12 मार्च 1931 को जब गाँधी जी ने दांडी यात्रा की शुरुवात साबरमती आश्रम से की थी, उस समय उन्होंने कसम खाई थी कि जब तक भारत देश को आजादी नहीं मिल जाएगी वे इस आश्रम में पैर नहीं रखेंगें। कुछ समय बाद गाँधी जी ने ब्रिटिश सरकार से इस आश्रम से सरकारी कब्ज़ा हटाने और उन्हें वापस करने का आग्रह किया था, लेकिन ब्रिटिश सरकार ने उनकी यह मांग नहीं मानी और साबरमती आश्रम को अपने कब्जे में ही रखा. 1947 में आजादी के बाद भी गाँधी जी इस आश्रम में वापस नहीं आ पाए, 1948 में उनकी मौत के साथ यह सपना भी खत्म हो गया.

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1933 में गाँधी जी स्वयं इस आश्रम को तोडना चाह रहे थे, क्यूंकि उनका मानना था कि हजारों लोगों के यहाँ से चले जाने और ब्रिटिश सरकार की हिरासत में रहने से यह जगह वीरान हो गई थी, जिसका नष्ट होना ही सही था. मगर उस जगह के आस पास रहने वाले लोग एवं गाँधी जी के अनुयायी यह नहीं चाहते थे, उनका मानना था ये गाँधी जी की धरोहर है जिसे हमें बचाकर रखना चाहिए। इसके बाद वहां के स्थानीय नागरिकों ने ही इस आश्रम की देखभाल की थी.

गाँधी द्वारा शुरू हुआ यह आंदोलन मार्च 1931 तक चला था, जिसके चलते ब्रिटिश सरकार को भी गाँधी जी की मांग को मानना पड़ रहा था. लेकिन मार्च 1931 में गाँधी-इरविन समझौते के बाद गाँधी जी को यह आंदोलन को समाप्त करना पड़ा था.

गाँधी स्मारक संग्रहालय (Gandhi Smarak Sangrahalaya)

1963 में गाँधी जी के करीबी जवाहर लाल नेहरू ने इस आश्रम को एक संग्रहालय में बदलने का विचार किया। इसके लिए प्रधानमंत्री नेहरू जी ने उस समय एक अच्छे वास्तुकार चाल्स कोरिया को इस कार्य के लिए चुना। चाल्स कोरिया ने इस आश्रम को गाँधी स्मारक संग्रहालय में बदलने में महत्पूर्ण भूमिका निभाई। चाल्स कोरिया ने इसके अलावा भोपाल विधानसभा, जयपुर में जवाहर कला केंद्र सहित कई ऐतिहासिक स्मारक को भी बनाया था. नवी मुंबई को भी डिजाइन करने में भी इनका नाम आता है.

गाँधी स्मारक संग्रहालय को कई लोगों की मेहनत से नई तरीके से डिजाइन किया गया और अच्छे से सजाया गया, जहाँ बापू महात्मा गाँधी के जीवन को कोई भी इंसान करीब और गहराई से समझ सके. आश्रम का मुख्य स्थल हृदय कुंज था, जहाँ बापू रहा करते थे. यहीं पर संग्रहालय का मुख्य स्थान बनाया गया. 1963 में यह पूरी तरह से बन कर तैयार हो गया, जिसके बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने स्वयं इस स्मारक संग्रहालय का उद्घाटन किया था.

साबरमती आश्रम में उपस्थित दार्शनिक स्थल (Sabarmati Ashram Tourist Place)

  • हृदय कुंज – जैसा की नाम से समझ आता है, हृदय कुंज मतलब इस संग्रहालय का दिल, जो मुख्य स्थान है. जहाँ गाँधी जी स्वयं अपना समय बिताया करते थे. यह सबसे मुख्य और विशेष स्थान है. इसे बहुत ही सूंदर ढंग से सजाया गया है, जहाँ गाँधी जी की प्रयोग की जाने वस्तुओं को आज भी सहेज कर रखा गया है. यहाँ गाँधी जी द्वारा उपयोग की गई पढ़ने लिखने वाली टेबल, उनके द्वारा चलाया गया चरखा, उनका खादी का कुर्ता एवं स्वयं गाँधी जी द्वारा लिखी गई कुछ चिट्टियां को सुन्दर ढंग से सहेज कर रखा गया है।
  • मगन निवास – साबरमती आश्रम की देखभाल करने वाले मगनलाल गाँधी का यह निवास स्थान था. उन्हें इस आश्रम का मैनेजर कहा जाता था, जो आश्रम में रहते थे और यहाँ की हर जरूरत और काम को देखते थे. मगनलाल बापू महात्मा गाँधी के कजिन थे. गाँधी जी कहते थे, मगनलाल साबरमती आश्रम की दिल और आत्मा है, जिसके बिना यह आश्रम अधूरा है. इसलिए इस स्थान को मगन निवास नाम से सम्बोधित किया गया. यहाँ अलग अलग तरह के चरखा रखे गए है
  • विनोबा कुटीर/मीरा कुटीर – आचार्य विनोबा भावे जिनके नाम पर इस आश्रम में यह स्थान बनाया गया, गाँधी जी के राष्ट्रीय शिक्षक और आध्यात्मिक उत्तराधिकारी कहलाते है. गाँधी जी के अत्यंत करीबी विनोबा भावे इसी स्थान में बैठकर गाँधी जी के साथ चर्चा किया करते थे. विनोबा कुटीर को मीरा कुटीर नाम से भी सम्बोधित किया जाता है. मीराबेन एक ब्रिटिश महिला थी, लेकिन वे गाँधी जी के विचारों से बहुत अधिक प्रभावित थी. ब्रिटैन में अपने परिवार को छोड़ वे गाँधी जी की अनुयायी बन गई थी. साबरमती आश्रम के इस स्थान में आगे चलकर मीराबेन ने समय बिताया था, इसलिए इसे मीरा कुटीर भी कहते है.
  • नंदिनी – यह आश्रम का वह स्थान है जब गाँधी जी एवं उनके साथी यहाँ रहा करते थे, तो बाहर से जो भी व्यक्ति आता था, उसे इस जगह रुकवाया जाता था, इसे गेस्ट हाउस कहा जा सकता है. यह गाँधी जी के निवास थल हृदय कुंज के बिलकुल बाजु में स्थित था.
  • उपासना मंदिर – आश्रम में प्राथना के लिए गाँधी जी ने मुख्य रूप से मगन निवास एवं हृदय कुंज के बीच उपासना मंदिर नाम का स्थान बनवाया था, जहाँ रोज गाँधी जी सभी के साथ प्राथना किया करते थे. यह मंदिर खुले आसमान के नीचे बनाया गया था. गाँधी जी प्राथना के बाद सभी के साथ बैठकर उपदेश भी दिया करते थे, फिर वो उससे जुड़े सवाल-जबाब भी किया करते थे.

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गाँधी संग्रहालय के दार्शनिक स्थल –

गाँधी संग्रहालय को पांच इकाइयां में बांटा गया है, यहाँ एक पुस्तकालय, दो फोटो गैलरी और एक सभागृह  है. संग्रहालय का क्षेत्र 24,000 वर्ग फुट का है जिसमें 20 ‘x 20’ के 54 ब्लॉक हैं.

फोटो गैलरी

  • माय लाइफ इज माय मेसेज गैलरी – इस संग्रहालय में एक स्थान है जिसे “माय लाइफ इज माय मेसेज गैलरी” कहते है. यहाँ गाँधी जी के जीवन से जुड़ी बड़ी-2 विशाल 8 पेंटिंग्स है, जिसमें गाँधी जी के जीवन की कहानी करीब से देखी जा सकती है. इसके अलावा गांधी के जीवन से जुड़ी कुछ स्पष्ट रूप से दिखाई देनी वाली और ऐतिहासिक घटनाओं को संगृहीत करके, फोटो में बदलकर विस्तार से प्रस्तुत किया गया है.
  • गाँधी इन अहमदाबाद गैलरी – गाँधी जी ने 15 साल का लम्बा समय अहमदाबाद, गुजरात में बिताया था. साबरमती आश्रम में एक विशेष स्थान बनाया गया है जहाँ गाँधी जी के इन 15 सालों को विस्तार से आम जनता के सामने रखा गया था. इस फोटो गैलरी में गाँधी जी की 15 साल की गुजरात यात्रा को दिखाया गया है.
  • आयल पेंटिंग गैलरी – महान कलाकारों ने गाँधी जी को अपने हाथों की सुन्दर कलाकृति के द्वारा इस जगह को सजाया है. इन पेटिंग्स को देखकर लगता है कि गाँधी जी स्वयं सामने खड़े है और हमसे बातें कर रहे है.

पुस्तकालय – पुस्तकालय में गांधीजी के जीवन से जुडी बातें, उनके द्वारा किये गए काम, उनकी शिक्षायें, भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में उनका योगदान  और गाँधी जी जुडी हर छोटी बड़ी बातों के विषय में यहाँ लगभग 35,000 किताबें रखी गई हैं, जिसके तीन भाषा में अंग्रेजी, गुजराती और हिंदी प्रकाशन हुआ है. पुस्तकालय में लोगों के बैठने की भी व्यवस्था है, जहाँ आराम से शांति में वे गाँधी जी के जीवन की पुस्तक पढ़ ज्ञान अर्जित कर सकते है.

पुरालेख (स्मृति चिन्ह) – यहाँ गाँधी जी के द्वारा लिखी गई एवं जो लोगों ने गाँधी जी को लिखी है, उन पत्रों का विशाल संग्रह यहाँ देखने को मिलता है. 34 हजार के लगभग इन पत्रों का संग्रह यहाँ देखा जा सकता है, कुछ मूल प्रति है तो कुछ की फोटोकॉपी रखी गई है. इसके साथ ही गाँधी जी एवं उनके साथीयों की फोटो का संग्रह भी रखा गया है. गाँधी जी के द्वारा लिखी गई 8 हजार के लगभग लिपियाँ भी यहाँ रखी है. इन लेखों के कुछ हिस्से हरिजन, हरिजनसेवक एवं हरिजानबन्धु नामक किताब में भी पढ़े जा है. इसके साथ ही सिक्कों एवं डाक टिकटों का भी विविध संग्रह यहाँ है.

बुक स्टोर – यहाँ एक बुक स्टोर है, जो गाँधी जी एवं उनके जीवन में किये गए काम और उनकी शिक्षा है साहित्य संग्रहालय है. इसे आम लोगों के खरीदने के लिए रखा गया है, जिससे स्थानीय कलाकारों को सहायता भी मिल जाती है.

आश्रम खुलने का समय (Sabarmati Ashram Timings)

साबरमती आश्रम 365 दिन खुला रहता है, जहाँ लोग सुबह 8:30 बजे से शाम 7:30 बजे के बीच कभी भी जा सकते है. आश्रम का उद्देश्य है कि युवाओं और छात्रों के साथ संपर्क बनाए रखना और गांधीवादी विचारों का अध्ययन करने के लिए उनके लिए सभी लोगों को सुविधाएं प्रदान करना है

अहमदाबाद अगर कोई जाता है तो वह साबरमती आश्रम देखने जरूर जाता है. यहाँ लोगों को बहुत शांति महसूस होती है. लोग कहते है जब यहाँ के प्रांगण में लोग चलते है, आश्रम में घूमते है तो ऐसा लगता है मानों बापू महात्मा गाँधी हमारे आस पास है, चल रहे है. इस सूंदर और ऐतेहासिक जगह में आप भी एक बार जरूर जाएँ।

गांधी जी ने आश्रम की स्थापना क्यों की?

इसका नाम साबरमती आश्रम रखा गया क्योंकि साबरमती नदी पर स्थित था और इसका निर्माण दोहरे मिशन द्वारा एक ऐसे संस्थान के रूप में करवाया गया जो सत्य की खोज जारी रखे और अहिंसा को समर्पित कार्यकर्ताओं के ऐसे समूह को जो भारत को स्वतंत्रता दिलवा सकें, के लिए एक साथ लाने वाले मंच का कार्य कर सके।

गांधी जी के आश्रम का उद्देश्य क्या था?

गांधीजी अक्सर यह टिप्पणी किया करते थे कि "यह स्थल हमारी सत्य की खोज जारी रखने और एक तरफ विदेशियों की गोलियां और दूसरी तरफ मां प्रकृति की बिजलियों से निर्भरता का विकास करने के लिए उपयुक्त है।" कुछ आवश्यक संरचना बनाने के बाद 1917 में आश्रम में सभी गतिविधियां जोर-शोर से शुरू हो गई।

साबरमती आश्रम की स्थापना के पीछे गांधीजी का क्या उद्देश्य था?

इस आश्रम में गांधीजी चरखा चलाकर खादी के वस्त्र बनाते थे, साथ ही दूसरों को सिखाते भी थे। 12 मार्च 1930 को गांधीजी ने साबरमती आश्रम से लगभग 78 लोगों के साथ दांडी यात्रा की शुरुवात की थी। इस आंदोलन को 'नमक सत्याग्रह' कहा गया।