नर हो न निराश करो मन की कविता का मूल भाव क्या है? - nar ho na niraash karo man kee kavita ka mool bhaav kya hai?

कुछ काम करो कविता, कुछ काम करो कविता का भावार्थ, कुछ काम करो कविता का शब्दार्थ, कुछ काम करो कविता के कवि कौन है ? कुछ काम करो कुछ काम करो का भाव क्या है ? जग में रहकर नाम कैसे किया जाता है ? राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की प्रसिद्ध कविता कुछ काम करो 

प्रिय पाठकों ! मैथिलीशरण गुप्त जी द्वारा रचित" कुछ काम करो "कविता बहुत पुरानी कविता है। हमारे शिक्षक , माता पिता इसे सुनाकर हमारे मन को उत्साहित करते थे। और आज भी यह कविता पढ़कर हमारा मन उत्साह से भर उठता है। यहां वही कविता' कुछ काम करो 'की पंक्तियां, भावार्थ और प्रश्न उत्तर के साथ आपके स्मृति को तरोताजा करने के लिए दिया गया है।

नर हो न निराश करो  मन को।
कुछ काम करो कुछ काम करो।
जग में रहकर कुछ नाम करो।
यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो
समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो।
कुछ तो उपयुक्त करो तन को
नर हो न निराश करो मन को।
कुछ काम करो कुछ काम करो
जग में रहकर कुछ नाम करो।।


संभालो कि सुयोग न जाए चला,
कब व्यर्थ हुआ सदुपाय भला।
समझो जग को न निरा सपना
 पथ आप प्रशस्त करो अपना ।
अखिलेश्वर है अवलंबन को।
नर हो न निराश करो मन को।।


निज गौरव का नित ध्यान रहे
हम भी कुछ हैं,यह ध्यान रहे।
सब जाय अभी पर मान रहे,
मरने पर गुंजित गान रहे।
कुछ हो , न  तजो निज साधन को,
नर हो, न निराश करो मन को।।


प्रभु ने तुमको कर दान किए।
सब वांछित वस्तु विधान किये,
तुम प्राप्त करो उनको न कहो,
फिर है किसका यह दोष कहो।
समझो न अलभ्य किसी धन को।
नर हो न निराश करो मन को।


किस गौरव के तुम योग्य नहीं?
कब कौन तुम्हें सुख भोग्य नहीं ?
जन हो तुम भी जगदीश्वर के।
सब हैं जिसके अपने घर के।
फिर दुर्लभ क्या उसके जन को?
नर हो न निराश करो मन को।।

करके विधि वाद न खेद करो
निज लक्ष्य निरंतर भेद क्यों
बनता बस उद्यम ही विधि है
मिलती जिससे सुख की निधि है।
समझो धिक् निष्क्रिय जीवन को,
नर हो न निराश करो मन को।।

 शब्दार्थ, कठिन शब्दों के अर्थ 

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उद्बोधन कविता , मैथिलीशरण गुप्त पढ़ें  



नर  -मनुष्य, व्यर्थ - बेकार, प्रशस्त - अच्छा, उत्तम,अलभ्य -जो प्राप्त न हो। जगदीश्वर -- भगवान, भोग्य -- भोगने योग्य।कर - हाथ।


कुछ काम करो कविता का भावार्थ 


राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी कहते हैं -- आपका जन्म मनुष्य में हुआ है। आप नर हैं, निराश मत हो। काम करो, कुछ भी करो। संसार में नाम करो। आप के जन्म का कुछ उद्देश्य है, इसे साकार करो। देखो, आप के जन्म का उद्देश्य विफल न हो जाए। काम करो और मानव जीवन को सफल बनाओ।

यह सुंदर संयोग है। काम शुरू करो, सफलता अवश्य मिलेगी।अपने मेहनत से अपने रास्ते को सुंदर और चमकदार बनाओ।

एक बात और है, अपने गौरवशाली इतिहास का हमेशा ध्यान रखना। हम भी कुछ हैं, इसका भी ख्याल रखना। अपने मान सम्मान से कभी समझौता नहीं करना।


देखो, भगवान ने तुम्हें कितना सुन्दर शरीर प्रदान किया है। सुन्दर सुन्दर दो हाथें दी है। सभी सामग्री प्रदान की हैं। अपना जीवन उत्तम बनाओं। ईश्वर तुम्हारे साथ हैं।


देखो, संसार की सारी वस्तुएं तुम्हारे लिए है। सभी माननीय पद तुम्हारे लिए है। बस प्रयास करो और उसे पा लो। कोशिश करने वाले के साथ भगवान भी होते हैं। थको नहीं , हार न मानो, आगे बढ़ कर सफलता की सीढ़ियां चढ़ो।


भाग्य वाली न बनो मित्रों! भाग्य में यही लिखा है, ऐसा कहकर हार मान लेना ठीक नहीं है। मेहनत ही सफलता की कुंजी है। प्रति दिन अपने लक्ष्य की एक एक सीढ़ियां चढ़ो। अरे भाई ! निष्क्रिय जीवन भी कोई जीवन है। निराश न हों, काम करें।


1.मनुष्य होने के कारण निराश नहीं होना चाहिए । क्यों ?

उत्तर - हम मनुष्य हैं। भगवान ने हमें सभी जीवों से सुन्दर बनाया है। हमें काम करने के लिए दो सुन्दर हाथ दिए हैं। हमारे पास बुद्धि है। मेहनत करके हम अपना जीवन सुखमय बना सकते हैं।


2. मनुष्य का जन्म सार्थक कैसे होगा ?

उत्तर - मेहनत करके मनुष्य का जन्म सार्थक हो सकता है।


3. सुयोग पाकर क्या किया जाए ?

उत्तर -- सुयोग का सदुपयोग करना चाहिए। उसे सफलता में बदल देना चाहिए।


4. मनुष्य का सहारा क्या है ?

उत्तर - मेहनत ही मनुष्य का सहारा है।


5. मरने पर गुंजित गान रहे का क्या भाव है ?

उत्तर - मरने पर गुंजित गान रहे का भाव है कि हमें ऐसा काम करना चाहिए जिससे लोग मरने पर भी हमारी कृति को युगों युगों तक याद करें।


यह कविता कैसा लगा , कामेंट बाक्स में लिखें,जरूर लिखें ।

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नर हो न निराश करो मन की कविता का मूल भाव क्या है? - nar ho na niraash karo man kee kavita ka mool bhaav kya hai?
लेखक परिचय

डॉ उमेश कुमार सिंह हिन्दी में पी-एच.डी हैं और आजकल धनबाद , झारखण्ड में रहकर विभिन्न कक्षाओं के छात्र छात्राओं को मार्गदर्शन करते हैं। You tube channel educational dr Umesh 277, face book, Instagram, khabri app पर भी follow कर मार्गदर्शन ले सकते हैं। Class 9 Hindi Elective Chapter 12 नर हो, न निराश करो मन को, The answer to each chapter is provided in the list so that you can easily browse throughout different chapter Assam Board Class 9 Hindi Elective Chapter 12 नर हो, न निराश करो मन को and select needs one.Join Telegram channelClass 9 Hindi Elective Chapter 12 नर हो, न निराश करो मन को

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नर हो, न निराश करो मन को

पाठ – 12

बोध एवं विचार

अभ्यासमाला

(अ) सही विकल्प का चयन करो :  

 1. कवि ने हमें प्रेरणा दी है– 

(क) कर्म की। 

(ख) आशा की।

(ग) गौरव की।

(घ) साधना की।

 उतर : (क) कर्म की ।

2. कवि के अनुसार मनुष्य को अमरत्व प्राप्त हो सकता है―

(क) अपने नाम से। 

(ख) धन से।

(ग) भाग्य से। 

(घ) अपने व्यक्तित्व से।

उत्तर : (क) अपने नाम से ।

3. कवि के अनुसार ‘न निराश करो मन को’ क्या आशय है―

(क) सफलता प्राप्त करने के लिए आशावान होना ।

(ख) मन में निराशा तो हमेशा बनी रहती है ।

(ग) मनुष्य अपने प्रयत्न से असफलता को भी सफलता में बदल सकता है ।

(घ) आदमी को अपने गौरव का ध्यान हमेशा रहता है ।

उत्तर : (क) सफलता प्राप्त करने के लिए आशावान होना ।

(आ) निम्नलिखित प्रश्नों का उत्तर लिखो :

1. तन को उपयुक्त बनाए रखने के क्या उपाय है ? 

उत्तर : तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिये―हमे (मनुष्य) अपने कर्म में मन को निहित करना चाहिये क्योंकि कर्म करके हि हम हमारे शरीर को उपयुक्त बनाए रख सकते है ।

2. कवि के अनुसार जग को निरा सपना क्यों नहीं समझना चाहिए ?

उत्तर : कवि के अनुसार इस संसार को हमें केवल निरा सपना नहीं समझाना चाहिए। हमें इस संसार को वास्तव के रूप में देखना

चाहिए। उनके अनुसार मनुष्य को अनुकूल अवसर हाथ से जाने देना नहीं चाहिए । 

3. अमरत्व विधान से कवि का क्या तात्पर्य है ।

उत्तर : पृथ्वी में मनुष्य अपने किये हुए महत्वपूर्ण काम से अपना नाम हमेशा के लिये रोशन कर सकते है । इसि तरह मनुष्य अमरत्व प्राप्त कर सकता है ।

4. अपने गौरव का किस प्रकार ध्यान रखना चाहिए ?

उत्तर : कभी किसी के आगे नतसिर न होकर समझना चाहिए की “हम भी कुछ है”। हमे अपने पर ध्यान रखना चाहिए ।

5. कविता का प्रतिपाद्य अपने शब्द में लिखो । 

उत्तर : कविता का सारांश : कवि कहते है कि इस दुनिया में हमे अपने जीवन को व्यार्थ न होने दे। अपने को उपयुक्त बनाकर ऐसा काम करना चाहिए जिससे अपने नाम प्रसिद्ध बने। इसलिए काम करने को कहा है ।

निराश न होकर हाथ में आए हुए सूयोग को अपनाना चाहिए। कवि कभी व्यर्थ का भाव मन में लेने में माना किया है। दुनिया में काम करके अपना पथ प्रसस्त करना चाहिए। क्योंकि इस दुनिया में सब प्राप्त है तो हमारे अधिकार कहाँ जाएगा ? यह प्रश्न कवि का है। अपने कामों में सूधा पान करने को भी वह कहते है। अपने गौरव  को अपने अनुभवों में लेने को कवि याद दिलाते है। हम भी मनुष्य है यह हमेशा याद रखना चाहिए। एक दिन सब चला जाएगा लेकिन मान-सम्मान अक्षत रहेगा। यह मरने के बाद में ही गुंजित रहेगा। इसलिए हमे अपने साधना को कभी त्याग करना नहीं चाहिए, निराश न होना चाहिए। अपना काम करना चाहिए। जिसमें एकदिन जीत होगा ।

(इ) सप्रसंग व्याख्या करो :

1. संभालो कि सु–योग……..सदुपाय भला ?

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी की “नर हो न निराश करो मन को” नामक कविता से ली गई है । 

कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने मनुष्य को कर्मठता का संदेश दिया है। इस संसार में मनुष्य को हमेशा कर्म में व्यस्त रहना चाहिए ।

कवि गुप्त जी कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा कर्म में व्यस्त रहना चाहिए। क्योंकि वह कर्म के द्वारा ही अपनी पहचान बना सकता है। हर मनुष्य के लिए अनुकूल अवसर आता है। अतः हमें इसका कर्म से लाभ उठाना चाहिए। अगर हम इसका लाभ उठा न सके तो बाद में पछताना पड़ेगा। अतः हमें हमेशा कर्मठ रहना चाहिए ।

2. जब प्राप्त तुम्हें……..वह सत्व कहाँ ?

उत्तर : प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि मैथिलीशरण गुप्त जी रचित ‘नर हो न निराश करो मन को’ नामक कविता से उद्धृत है । 

कवि कहते है, यह संसार सभी तत्वों से परिपूर्ण हैं। यह संसार उपलब्धियों का भंडार है ।

यह संसार सभी तत्वो अर्थात यथार्थता से परिपूर्ण है। यह संसार साधना क्षेत्र है। क्या नहीं है यहाँ, तुम अपनी पहचान बनाओ, इन्ही तत्वों से अमृत पान करो। उद्यम करने से ही कार्य सफल होते है ।

Sl. No.ContentsChapter 1हिम्मत और जिंदगीChapter 2परीक्षाChapter 3आप भोले तो जग भलाChapter 4बिंदु बिंदु विचारChapter 5चिड़िया की बच्चीChapter 6चिकित्सा का चक्करChapter 7अपराजिताChapter 8मणि-कांचन संयोगChapter 9कृष्ण- महिमाChapter 10दोहा दशकChapter 11चरैवेतीChapter 12नर हो, न निराश करो मन कोChapter 13मुरझाया फुलChapter 14गाँँव से शहर की ओरChapter 15साबरमती के संत (सधु)Chapter 16टूटा पहिया

भाषा एवं व्याकरण ज्ञान

1. कविता के आधार पर इन शब्दों के तुकांत शब्द लखो ।

उतर : अर्थ          ―         व्यर्थ।

          तन          ―          मन।

          तत्व         ―          सत्व।

          ज्ञान         ―          ध्यान।

          चला        ―           भला।

          सपना      ―           अपना।

          यहाँ         ―           कहाँ।

          मान         ―           पान।

 2. इन शब्दों में से उपसर्ग अलग करो ।

उतर : व्यर्थ      ―       व।

         उपयुक्त     ―      उप।

        अवलम्बन   ―     अब। 

         सु―योग     ―      सु।

         प्रशस्त       ―      प्र।

         सदुपाय     ―      उ।

         निराश       ―      नि।

3. इन शब्दों के विलोम शब्द लिखो :

उतर : नज ― पर। 

         उपयुक्त ― अनुपयुक्त।

         निराश ― आशावादी।

         अपना ― पराया।

          सुधा ― विष/गरল। 

          ज्ञान ― अज्ञान। 

          मान ― अपमान।

          जन्म ― मृत्यु ।

4. इन शब्दों के तीन तीन पर्यायवासी शब्द लिखो :

उत्तर : नर ― मनुष्य, मानव , आदमी ।

           जग ― पृत्थी, धरती , धरनी ।

           अर्थ ― धन, रुपया , सम्पत्ति ।

           पथ ― रास्ता, मार्ग , बाट । 

           अखिलेश्वर ― ईश्यर, परमात्मा, भगवान ।

5. ‘अमरत्व’ शब्द में ‘त्व’ प्रत्यय लगा है। भाववाचक ‘त्व’ प्रत्यय खासकर भाववाचक संज्ञा का घोतक है। ‘त्व’ प्रत्यवाले किन्हीं दस शब्द लिखो ।

उत्तर : स्वत्व, बंधुत्व, पुरुषत्व, देवत्व, ईश्वरत्व, गुरुत्व, व्यक्तित्व, मातृत्व, नेतृत्व, भ्रातृत्व ।

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Dev Kirtonia

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नर हो न निराश करो मन को कविता का मूल भाव क्या है?

उत्तरः राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने हमारे तन को उपयुक्त बनाए रखने के लिए कर्मठ रखने का संदेश दिया है। क्योंकि कर्म करके ही हम हमारे शरीर का उपयुक्त बनाए रख सकते है । हर व्य़क्ति अपना काम करके अपने शरीर को स्वस्थ बनाए रख सकते है । अतः हमे निराश न होकर कर्म व्य़स्त रहना चाहिए ।

नर हो न निराश करो मन को कविता में कवि ने क्या संदेश दिया है?

कवि मैथिलीशरण गुप्त जी ने मनुष्य को कर्मठता का संदेश दिया है। इस संसार में मनुष्य को हमेशा कर्म में व्यस्त रहना चाहिए । कवि गुप्त जी कहते हैं कि मनुष्य को हमेशा कर्म में व्यस्त रहना चाहिए। क्योंकि वह कर्म के द्वारा ही अपनी पहचान बना सकता है।

नर हो न निराश करो मन को पंक्ति में कौन सा अलंकार है?

✎... 'नर हो ना निराश करो मन को, कुछ काम करो, कुछ काम करो। ' इस काव्य पंक्ति में अनुप्रास अलंकार प्रकट हो रहा है, क्योंकि इस काव्य की पंक्ति में '' एवं 'क' वर्ण की एक से अधिक बार आवृत्ति हुई है।

नर को क्यों निराश नहीं होना चाहिए?

संसार में मनुष्य ही सबसे समर्थ प्राणी है, और सब कुछ पाने की क्षमता रखता है। यदि वह किसी कारणवश निराशा में डूब जाता है, तब उसके सोचने-समझने की शक्ति भी धीमी पड़ जाती है। सफलता-विफलता तो जीवन के दो बिंदु है, लेकिन निराशा के कारण विफलताओं को आधार मान मनुष्य हीनता और दुर्बलता का शिकार हो जाता है।