हम में से जाने कितने लोग हैं, जिन्होंने अपने कमजोर पलों में खुद के हौंसले को समेट कर मुट्ठियां तान कर संकल्प दोहाराते हुए गुनगुनाया होगा- ‘होंगे कामयाब, होंगे कामयाब, हम होंगे कामयाब एक दिन/मन में है विश्वास, पूरा है विश्वास...’ बहुत कम लोगों को पता होगा कि यह गीत गिरिजा कुमार माथुर ने लिखा है. शुरुआत में अपने छायावादी गीतों और फिर नई कविताओं के लिए समान रूप से पहचाने जाने वाले वरिष्ठ कवि गिरिजा कुमार माथुर का यह गीत एक लोक गीत की तरह है, जिसे लोगों ने उसके रचनाकार को भुलाते हुए याद रखा है. Show 10 जनवरी रविवार को इन्हीं गिरिजा कुमार माथुर की पुण्यतिथि है. 10 जनवरी 1994 को देह त्यागने वाले कवि, नाटककार और समालोचक गिरिजा कुमार माथुर का जन्म 22 अगस्त 1919 को मध्य प्रदेश के अशोक नगर में हुआ था. सन् 1940 में उनका विवाह शकुंत माथुर से हुआ. गिरिजा कुमार माथुर तार सप्तक के पहले सात कवियों में शामिल थे, जबकि उनकी पत्नी शकुंत माथुर अज्ञेय द्वारा सम्पादित सप्तक परम्परा ('दूसरा सप्तक') की पहली कवयित्री रहीं. 1943 में 'ऑल इंडिया रेडियो' की नौकरी आरंभ करने वाले गिरिजा कुमार माथुर दूरदर्शन के उप-महानिदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए थे. आकाशवाणी का लोकप्रिय चैनल 'विविध भारती' उन्हीं की कल्पना है. गिरिजा कुमार माथुर का साहित्य कर्म 1934 में ब्रज भाषा के कवित्त-सवैया लेखन से हुई. 1941 में प्रकाशित प्रथम काव्य संग्रह 'मंजीर' की भूमिका महाकवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने लिखते हुए उनके भविष्य के प्रति आश्वस्त किया था. भारतीय सांस्कृतिक सम्बन्ध परिषद की साहित्यिक पत्रिका 'गगनांचल' का संपादन करने के अलावा उन्होंने कहानी, नाटक और आलोचनाएँ भी लिखी हैं. उन्हें 1991 में कविता-संग्रह "मै वक्त के हूँ सामने" के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार प्रदान किया गया था. इसी काव्य संग्रह के लिए 1993 में केके बिरला फ़ाउंडेशन द्वारा प्रतिष्ठित व्यास सम्मान प्रदान किया गया. उन्हें शलाका सम्मान से भी सम्मानित किया जा चुका है. मेरे युवा-आम में नया बौर आया है ख़ुशबू बहुत है क्योंकि तुमने लगाया है. आएगी फूल-हवा अलबेली मानिनी छाएगी कसी-कसी अँबियों की चाँदनी चमकीले, मँजे अंग चेहरा हँसता मयंक खनकदार स्वर में तेज गमक-ताल फागुनी मेरा जिस्म फिर से नया रूप धर आया है ताज़गी बहुत है क्योंकि तुमने सजाया है. या छाया मत छूना मन होता है दुख दूना मन जीवन में हैं सुरंग सुधियाँ सुहावनी छवियों की चित्र-गंध फैली मनभावनी; तन-सुगंध शेष रही, बीत गई यामिनी, कुंतल के फूलों की याद बनी चाँदनी. जैसे रूमानी गीत लिखने वाले गिरिजा कुमार माथुर के लेखन की उत्तरोत्तर यात्रा ही है कि वे गीत से नई कविता तक पहुंचे. हालांकि, आलोचकों ने भी माना है कि अपने समय को देखने, परिवर्तन को महसूसने वाले कवि गिरिजा कुमार माथुर की रचनाओं का केंद्र इस बदलाव से उपजी प्रतिक्रिया ही रहा है. जैसे, पन्द्रह अगस्त कविता में वे लिखते हैं: आज जीत की रात पहरुए! सावधान रहना खुले देश के द्वार अचल दीपक समान रहना प्रथम चरण है नए स्वर्ग का है मंज़िल का छोर इस जनमंथन से उठ आई पहली रत्न-हिलोर अभी शेष है पूरी होना जीवन-मुक्ता-डोर क्योंकि नहीं मिट पाई दुख की विगत साँवली कोर ले युग की पतवार. कभी छायावाद के प्रभाव में रहे गिरिजा कुमार माथुर ने स्वयं स्वीकारा है कि उन पर कार्ल मार्क्स का प्रभाव रहा है. 1991 में भारतीय ज्ञानपीठ द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘मुझे और अभी कहना है’ में स्वयं गिरिजा कुमार माथुर लिखते हैं – “कविता लिखना कवि की विवशता है. जिन्दगी को जितनी अधिक गहरी और विस्तारपूर्ण दृष्टि से देखने पर वह आन्दोलित होता है, उतना ही मन से लेकर शरीर के रोम रोम तक वह अनुभव उसको झंकृत कर देता है. यही स्थिति उसकी रचनात्मकता को जन्म देती है. यथार्थ और अंतरंग कोई सर्वथा पृथक वस्तुएँ नहीं है. विचारधारा के बिना कोई भी स्पष्ट जीवन-दृष्टि नहीं बन सकती, बशर्ते कि वह विचारधारा समानता और जन-मुक्ति के लिये हो. व्यक्तिगत जीवन नितांत निजी बात, प्रेम, ममता, दाम्पत्य, जीवन, दिनचर्या, आपसी सबंध, व्यवहार, परिवार, घर बाहर की घटना दुःख रोग, संताप, संघर्ष, जीवन के आर्थिक और कर्म के क्षेत्र के उतार-चढ़ाव, समाज, इतिहास, परंपरा, राजनीति, राष्ट्रीय, अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएँ समकालीन घटना चक्र का बहुत बड़ा अनुभव फलक किस प्रकार उसके व्यक्तित्व को पूरी तरह झिंझोड़ कर कवि की अंतरंग भाव सत्ता बन जाता है, यह बड़ी जटिल प्रक्रिया है. जब भी मैं अपनी कविता के बारे में सोचता हूँ तो मैं यानी पूरा मैं, मेरा समय और मेरी कविता की रचना यात्रा का समस्त वातावरण आंखों के सामने से एक साथ पलक झपकते गुजर जाता है. उसके पीछे एक पूरा मनो-सामाजिक भावात्मक संसार है जो जिस तेजी से बदला है, उससे टकराने की प्रतिध्वनियाँ मेरी कविता में व्यक्त हुई है.” उनके ये विचार कविता ‘इतिहास की कालहीन कसौटी’ में बखूबी प्रकट हुए हैं. इस कविता में गिरिजा कुमार माथुर लिखते हैं- सत्ता के मन में जब-जब पाप भर जाएगा झूठ और सच का सब अन्तर मिट जाएगा न्याय असहाय, ज़ोर-जब्र खिलखिलाएगा जब प्रचार ही लोक-मंगल कहलाएगा तब हर अपमान क्रान्ति-राग बन जाएगा बन्द अगर होगा मन आग बन जाएगा. घटना हो चाहे नई बात यह पुरानी है भय पर उठाया भवन रेत की कहानी है सहमति नहीं है मौन, विरोध की निशानी है सन्नाटा बहुत बड़े अंधड़ की वाणी है टूटा विश्वास अगर गाज बन जाएगा बन्द अगर होगा मन आग बन जाएगा. तारसप्तक के कवियों के बारे में अज्ञेय ने लिखा है कि इन कवियों ने अपनी रचनाओं से सिद्ध किया है कि वे राही नहीं हैं, राहों के अन्वेषी हैं. पुस्तक ‘हमारे लोकप्रिय गीतकार’ के संपादक शेरजंग गर्ग ने अपनी टिप्पणी में लिखा है कि कवि गिरिजा कुमार माथुर प्रत्येक शैली और रंग की अपनी कविताओं के साथ साहित्य की मुख्यधारा में ससम्मान मौजूद रहे हैं. हिंदी के प्रख्यात आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी के अनुसार गिरिजा कुमार माथुर की रचनाओं में प्रगति और प्रयोग, छन्दबद्धता और छन्द मुक्तता, कल्पना एवं यथार्थ इन सभी का अद्भुत सम्मिलन विद्यमान है. हिंदी के आलोचक, उपन्यासकार मुद्रा राक्षस ने पुस्तक ‘कालातीत’ में दिल्ली की अपनी साहित्यिक बैठकों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि गिरिजा कुमार अपनी बातचीत का केंद्र हमेशा कविता ही रखते थे. वे कविता की जिस नई परंपरा के कवि थे, उसके बिल्कुल बरअक्स वे अक्सर कवि सम्मेलन के गीतकारों के साथ बैठे मिलते थे. इसका जिक्र आकाशवाणी के बाहर साहित्य की दुनिया में और लोगों ने भी किया और हम लोग बात छिड़ने पर इसका मजाक भी उड़ाया करते थे. यह निश्चय ही उनके लिए बहुत कड़वा अनुभव होता होगा. मुद्रा राक्षस से अपनी आखिरी मुलाकात में गिरिजा कुमार माथुर ने शिकायत की थी कि वे बहुत लिख रहे हैं पर उनके लेखन की उपेक्षा होती है. मुद्रा राक्षस लिखते हैं, कि मुलाकात में गिरिजा कुमार खिली मुस्कुराहट और पत्नी शकुंत की कविताओं के उत्साहित जिक्र के साथ मिले. और फिर उनके बारे में चर्चा न होने की शिकायत भी की. मुद्रा राक्षस लिखते हैं कि आज सोचता हूं, साहित्य की दुनिया में एक विचित्र क्रूरता होती है कि अक्सर किसी के बारे में एक आम फैसला हो जाता है- इस पर ध्यान न दो. अपने लंबे रचनाकाल में मंजीर, 'तार सप्तक' में संगृहीत कविताएँ, नाश और निर्माण, धूप के धान, शिलापंख चमकीले, जो बँध नहीं सका, भीतरी नदी की यात्रा, छाया छूना मन, साक्षी रहे वर्तमान, पृथ्वीकल्प, मैं वक्त के हूँ सामने, मुझे और अभी कहना है, नई कविता: सीमाएँ और संभावनाएँ जैसी काव्य संग्रहों और आलोचना पुस्तकों के लेखक के लिए उपेक्षा का यह अंतहीन सिलसिला कष्टप्रद है. ऐसे गीतकार-कवि जिनके लिए राय किशोर द्विवेदी ने टिप्पणी की है कि गिरिजा कुमार माथुर निरंतर अपने आपको पुराने से नया और नए से नया बनाने का प्रयत्न करते हैं. (डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.) हम होंगे कामयाब पाठ के कवि कौन है?'हम होंगे कामयाब' के रचनाकार गिरिजा कुमार माथुर...
हम होंगे कामयाब कविता से आपको कौनसी प्रेरणा मिलती है अपने शब्दों में लिखिए?हम होंगे कामयाब नामक पाठ से हमें यह प्रेरणा मिलती हैं कि हमें अपने जीवन में अपने लक्ष्य की ओर सदैव निरंतर प्रयास करते रहना चाहिए। हमे अपने छोटी छोटी खराब परिस्थित से डरना नहीं चाहिए बल्कि उनका डट कर मुकाबला करना चाहिए।
गिरिजाकुमार माथुर ने कौन सा गीत लिखा है?उनका ही लिखा एक भावान्तर गीत "हम होंगे कामयाब" समूह गान के रूप में अत्यंत लोकप्रिय है।
कवि की जगह अगर तुम होते तो कामयाब होने के लिए क्या उपाय बताते अपने शब्दों में लिखो TB?कवि की जगह अगर तुम होते तो कामयाब होने के लिए क्या उपाय बताते? उत्तर: कवि की जगह अगर मैं होता तो कामयाब होने के लिए ये उपाय बताता हूँ।. सदा मिलजुलकर एकता से रहना चाहिए।. निरंतर परिश्रमी होकर आगे बढ़ना चाहिए।. बडों की बातें मानना चाहिए। आलसीपन छोडकर निडर रहना चाहिए।. मन में पूर्ण विश्वास के साथ काम करना चाहिए।. |