कबीर के अनुसार जीवन में गुरु का क्या महत्व है? - kabeer ke anusaar jeevan mein guru ka kya mahatv hai?

“कबीर जी के गुरु कौन थे?” इसके बारे में कई लेखक, कबीरपंथी तथा ब्राह्मणों की अलग-अलग विचारधाराएं हैं। लेकिन वास्तव में “कबीर जी के गुरु कौन थे?” इस ब्लॉग के माध्यम से कबीर साहेब जी के गुरु के बारे में कई प्रमाणों के साथ विस्तृत जानकारी जानेंगे। 

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कबीर साहेब जी बचपन से ही आश्चर्यचकित करने वाली लीलाएं, चमत्कार करते रहते थे। कबीर साहेब जी अपनी वाणियों के माध्यम से लोगों को तत्वज्ञान बताया करते थे। जिस कारण से कबीर साहेब जी को एक प्रसिद्ध महान कवि, संत भी माना जाता हैं। कबीर साहेब जी की विचारधारा भक्तियुक्त थी। अगर हम कबीर साहेब जी के बारे में और उनके ज्ञान के बारे में वर्णन करें तो वह अवर्णनीय हैं क्योंकि वह महान शक्ति है। उनके अंदर अपार ज्ञान भरा हुआ है। उनके ज्ञान के आगे बड़े से बड़े विद्वान, गोरखनाथ जैसे सिद्ध पुरुष भी टिक नहीं सकते। कबीर साहेब जी अनेकों लीलाएं किया करते थे और अनेकों चमत्कार करते रहते थे। जिस कारण से कबीर साहेब जी को महापुरुष के रूप में भी जाना जाता हैं। 

  • कबीर जी ने गुरु क्यों बनाया?
  • कबीर जी के गुरु कौन थे?
  • कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाने के लिए कौन-सी लीला की?
  • आदरणीय सन्त गरीबदास जी महाराज के अमर ग्रंथ में पारख के अंग की वाणी में प्रमाण है :- 
  • क्या कबीर साहेब जी भगवान हैं? 
  • पवित्र वेदों में प्रमाण:
    • आदरणीय सन्त गरीब दास साहेब जी की वाणी में प्रमाण:-
    • आदरणीय मलूक दास साहेब जी की वाणी में प्रमाण:-
    • संत दादू जी द्वारा बोली कबीर परमेश्वर की महिमा की वाणी :-
    • गुरु नानक जी की वाणियों में प्रमाण:- 
  • कबीर साहेब की भक्ति कैसे पाई जा सकती है?
    • About the author

कबीर जी ने गुरु क्यों बनाया?

कबीर साहेब जी के गुरु के विषय में लोगों का अलग-अलग अपना-अपना विचार हैं। कुछ लोग कहते हैं कि कबीर साहेब जी ज्ञान से परिपूर्ण थे उनको गुरु बनाने की क्या आवश्यकता थी, उन्होंने कोई गुरु नहीं बनाया था, उनके कोई गुरु नहीं थे। जबकि यह ग़लत विचार हैं। इसका कोई ठोस प्रमाण नहीं है।

कबीर साहेब जी ने संसार में गुरु और शिष्य की परंपरा बनाए रखने के लिए गुरु बनाया था। क्योंकि इस संसार में प्राणी का मोक्ष गुरु बना कर ही संभव हैं। बिना गुरु बनाएं जीव का मोक्ष संभव नहीं है। इसलिए उन्होने गुरु और शिष्य की परंपरा बनाए रखने के लिए गुरु बना कर गुरु और शिष्य का अभिनय किया। कबीर साहेब जी ने अपने वाणियों के माध्यम से भी गुरु और शिष्य के महत्व का वर्णन किया है। मनुष्य के जीवन में गुरु का क्या महत्व हैं। कबीर साहेब जी की वाणी है-

गुरु गोबिंद दोनो खड़े का के लागू पाय,

बलिहारी गुरु अपना जिन गोबिंद दिया मिलाए।

कबीर जी के गुरु कौन थे?

कबीर साहेब जी के “गुरु” स्वामी रामानंद जी थे। इस विषय में कुछ लोगों का मानना है कि स्वामी रामानंद जी और कबीर साहिब जी के विचार और शिक्षाएं अलग-अलग थे जिस कारण से स्वामी रामानंद जी उनके गुरु नहीं हो सकते हैं। जबकि कबीर साहेब जी ने स्वयं अपने गुरु के बारे में अपनी वाणियों में वर्णन किया है। आदरणीय संत गरीबदास जी ने भी अपनी वाणियों में विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। कबीर साहेब जी के गुरु स्वामी रामानंद जी थे यह कई जगह प्रमाणित हैं।

कबीर के अनुसार जीवन में गुरु का क्या महत्व है? - kabeer ke anusaar jeevan mein guru ka kya mahatv hai?

आदरणीय स्वामी रामानंद जी कबीर साहेब जी के लोक दिखावा गुरू तथा वास्तव में शिष्य थे। कबीर साहेब जी के समय में छूआछात चरम सीमा पर थी। आदरणीय स्वामी रामानंद जी छोटी जाति (जुलाहा आदि) के व्यक्तियों को अपने निकट भी नहीं आने देते थे। जिस कारण से गुरू-शिष्य की परंपरा बनाए रखने के लिए कबीर साहेब जी ने एक लीला करके उनका शिष्यत्व ग्रहण किया था। उसके बाद अन्य लीला करके उन्हें अपना तत्वज्ञान समझाकर अपनी शरण में लिया। (यही कारण है कि गुरू-शिष्य होने के बावजूद कबीर साहेब जी तथा स्वामी रामानंद जी की प्रचलित शिक्षाओं में भिन्नता है। क्योंकि स्वामी जी का 104वर्ष का जीवन बीतने के बाद कबीर साहेब जी उन्हें मिले तथा अपना तत्वज्ञान समझाया। उससे पहले की स्वामी जी की शिक्षाएं भी समाज में आज तक प्रचलित रही जो तत्वज्ञान से दूर थीं।) तब स्वामी रामानंद जी आचार्य जी का कल्याण हुआ। 

कबीर साहेब जी ने स्वामी रामानंद जी को अपना गुरु बनाने के लिए कौन-सी लीला की?

स्वामी रामानन्द जी अपने समय के सुप्रसिद्ध विद्वान कहे जाते थे। वे द्राविड़ से काशी नगर में वेद व गीता ज्ञान के प्रचार के लिए आये थे। स्वामी रामानन्द जी की आयु 104 वर्ष थी। उस समय कबीर देव जी के लीलामय शरीर की आयु 5 (पांच) वर्ष थी। स्वामी रामानन्द जी का आश्रम गंगा दरिया से आधा किलोमीटर दूर स्थित था। स्वामी रामानंद जी प्रतिदिन सूर्योदय से पूर्व गंगा नदी के तट पर बने पंचगंगा घाट पर स्नान करने जाते थे। पांच वर्षीय कबीर देव ने अढ़ाई वर्ष (2 वर्ष छः माह) के बच्चे का रूप धारण किया तथा पंच गंगाघाट की पौड़ियों (सीढ़ियों) में लेट गए। स्वामी रामानन्द जी प्रतिदिन की भांति स्नान करने गंगा दरिया के घाट पर गए। अंधेरा होने के कारण स्वामी रामानन्द जी बालक कबीर देव को नहीं देख सके। स्वामी रामानन्द जी के पैर की खड़ाऊ (लकड़ी का जूता) सीढ़ियों में लेटे बालक कबीर देव के सिर में लगी। 

बालक कबीर देव लीला करते हुए रोने लगे जैसे बच्चा रोता है। स्वामी रामानन्द जी को ज्ञान हुआ कि उनका पैर किसी बच्चे को लगा है जिस कारण से बच्चा पीड़ा से रोने लगा है। स्वामी जी बालक को उठाने तथा चुप करने के लिए शीघ्रता से झुके तो उनके गले की माला (एक रुद्राक्ष की कंठी माला जो वैष्णव पंथ से दीक्षित साधक ही पहनता था। जो एक पहचान थी कि यह वैष्णव पंथ से दीक्षित है।) बालक कबीर देव के गले में डल गयी। जिसे स्वामी रामानंद जी नहीं देख सके। 

स्वामी रामानन्द जी ने बच्चे को प्यार से कहा बेटा राम-राम बोल राम नाम से सर्व कष्ट दूर हो जाता है। ऐसा कह कर बच्चे के सिर को सहलाया। आशीवार्द देते हुए सिर पर हाथ रखा। बालक कबीर देव जी अपना उद्देश्य पूरा होने पर पौड़ियों (सीढ़ियों) पर चुप होकर बैठ गए तथा एक शब्द गाया और चले गए। स्वामी रामानन्द जी ने विचार किया कि वह बच्चा रात्रि में रास्ता भूल जाने के कारण यहां आकर सो गया होगा। इसे अपने आश्रम में ले जाऊंगा। वहां से इसे इनके घर भिजवा दूंगा ऐसा विचार करके स्नान करने लगे। कबीर देव जी वहां से अंतर्ध्यान हुए तथा अपनी झोंपड़ी में सो गए। कबीर साहेब जी ने इस प्रकार स्वामी रामानन्द जी को गुरु धारण किया। वास्तव में ये सिर्फ एक लीला थी बाद में सत ज्ञान से परिचित होकर रामानंद जी ने कबीर साहेब को गुरु बनाया था। तब उनका कल्याण हुआ था। 

आदरणीय सन्त गरीबदास जी महाराज के अमर ग्रंथ में पारख के अंग की वाणी में प्रमाण है :- 

रामानंद अधिकार सुन, जुलहा अक जगदीश। 

दास गरीब बिलंब ना, ताहि नवावत शीश।।

रामानंद कूं गुरु कहै, तनसैं नहीं मिलात। 

दास गरीब दशर्न भये, पैडे़ लगी जूं लात।।

पंथ चलत ठोकर लगी, रामनाम कह दीन। 

दास गरीब कसर नहीं, सीख लई प्रबीन।।

इससे यह सिद्ध होता हैं कि कबीर साहेब जी के गुरु स्वामी रामानंद जी थे। बाद में कबीर साहेब जी के तत्वज्ञान को समझ कर स्वामी रामानंद जी ने कबीर साहेब जी को गुरु बना कर अपना कल्याण करवाया। कबीर साहेब जी की लीलाओं को देखकर यह भी स्पष्ट होता हैं कि कबीर साहेब जी महान शक्ति थें।

क्या कबीर साहेब जी भगवान हैं? 

कबीर साहेब जी मात्र एक कवि या संत रूप में जाने जाते हैं। लेकिन वो कोई साधारण संत नहीं हैं। वे स्वयं पूर्ण ब्रह्म परमेश्वर हैं जो समय-समय पर हम भूली-भटकी आत्माओं को सतमार्ग तथा सतभक्ति  का ज्ञान कराने आते हैं। इसका प्रमाण पवित्र वेदों व कुछ सुप्रसिद्ध संतों की अमृतवाणियों में इस प्रकार है:

पवित्र वेदों में प्रमाण:

वेदों में प्रमाण है कि कबीर साहेब प्रत्येक युग में आते हैं। परमेश्वर कबीर का माता के गर्भ से जन्म नहीं होता है तथा उनका पोषण कुंवारी गायों के दूध से होता है। अपने तत्वज्ञान को अपनी प्यारी आत्माओं तक वाणियों के माध्यम से कहने के कारण परमात्मा एक कवि की उपाधि भी धारण करता है। कुछ वेद मंत्रों से प्रमाण जानें-

1. यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25

2. ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17

3. ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18

4. ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 1 मन्त्र 9

  1. यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25 :-

यजुर्वेद में स्पष्ट प्रमाण है कि कबीर परमेश्वर अपने तत्वज्ञान के प्रचार के लिए पृथ्वी पर स्वयं अवतरित होते हैं। वेदों में परमेश्वर कबीर का नाम कविर्देव वर्णित है।

समिद्धोऽअद्य मनुषो दुरोणे देवो देवान्यजसि जातवेदः।

आ च वह मित्रामहश्रिकित्वान्त्वं दूतः कविरसि प्रचेताः।।

भावार्थ:- जिस समय भक्त समाज को शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण (पूजा) कराया जा रहा होता है। उस समय कविर्देव कबीर परमेश्वर) तत्वज्ञान को प्रकट करता है।

  1. ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17 :-

यह सबके सामने है कि पूर्ण परमेश्वर शिशु रूप में प्रकट होकर अपनी प्यारी आत्माओं को अपना तत्वज्ञान प्रचार कविगीर्भि: यानी कबीर वाणी से पूर्ण परमेश्वर करते हैं।

शिशुम् जज्ञानम् हयर् तम् मृजन्तिष्शुम्भन्ति वह्निमरूतः गणेन।

कविगीर्भिर् काव्येना कविर् सन्त् सोमः पवित्राम् अत्येति रेभन।।

भावार्थ:- वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि विलक्षण मनुष्य के बच्चे के रूप में प्रकट होकर पूर्ण परमात्मा कविर्देव अपने वास्तविक ज्ञान को अपनी कविगिर्भिः अथार्त कबीर वाणी द्वारा निर्मल ज्ञान अपने हंसात्माओं अर्थात पुण्यात्मा अनुयाईयों को कवि रूप में कविताओं, लोकोक्तियों के द्वारा सम्बोधन करके अर्थात उच्चारण करके वणर्न करता है। वह स्वयं सतपुरुष कबीर ही होता है।

  1. ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 96 मन्त्र 18 :-

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहेब जब तक पृथ्वी पर रहे उन्होंने ढेरों वाणियां अपने मुख कमल से उच्चारित की जिन्हें उनके शिष्य आदरणीय धमर्दास जी ने लिपिबद्ध किया। आज ये हमारे समक्ष कबीर सागर और कबीर बीजक के रूप में मौजूद हैं जिनमें कबीर परमेश्वर की वाणियों का संकलन है। आम जन के बीच कबीर साहेब एक साधारण कवि के रूप में प्रचलित थे जबकि वे स्वयं सारी सृष्टि के रचनहार है। कबीर परमेश्वर पूर्ण ब्रह्म हैं।

परमात्मा की इस लीला का वणर्न हमें ऋग्वेद में भी मिलता है।

ऋषिमना य ऋषिकृत् स्वषार्ः सहस्त्राणीथः पदवीः कवीनाम।

तृतीयम् धाम महिषः सिषा सन्त् सोमः विराजमानु राजति स्टुप।।

भावार्थ:-  वेद बोलने वाला ब्रह्म कह रहा है कि जो पूर्ण परमात्मा विलक्षण बच्चे के रूप में आकर प्रसिद्ध कवियों की उपाधि प्राप्त करके अर्थात एक संत या ऋषि की भूमिका करता है उस संत रूप में प्रकट हुए प्रभु द्वारा रची हजारों वाणी संत स्वभाव वाले व्यक्तियों अथार्त् भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य आनन्ददायक होती हैं। वह अमर पुरुष अर्थात सतपुरुष तीसरे मुक्तिलोक अर्थात सत्यलोक पर सुदृढ़ पृथ्वी को स्थापित करने के पश्चात् गुबंद अर्थात गुम्बज में ऊंचे टीले रूपी सिंहासन पर उज्जवल स्थूल आकार में अर्थात मानव सदृश तेजोमय शरीर में विराजमान है।

  1. ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 :-

अभी इमं अध्न्या उत श्रीणन्ति धेनवः शिशुम्। सोममिन्द्राय पातवे।।

भावार्थ:- पूर्ण परमात्मा अमर पुरुष जब लीला करता हुआ बालक रूप धारण करके स्वयं प्रकट होता है उस समय कुंवारी गाय अपने आप दूध देती है जिससे उस पूर्ण प्रभु की परवरिश होती है। ऋग्वेद मंडल 9 सूक्त 94 मन्त्र 1 में परमात्मा की अन्य लीलाओं का भी वर्णन है कि पूर्ण परमेश्वर भ्रमण करते हुए अपने तत्वज्ञान का प्रचार करते हैं और कवि की उपाधि धारण करते हैं।

कबीर साहेब जी ने स्वयं अपनी वाणी में कहा है:-

सतयुग में सत सुकृत कह टेरा, त्रोता नाम मुनिन्द्र मेरा। 

द्वापर में करूणामय कहाया, कलयुग नाम कबीर धराया।।

आदरणीय सन्त गरीब दास साहेब जी की वाणी में प्रमाण:-

अनन्त कोटि ब्रह्माण्ड का, एक रति नहीं भार। 

सतगुरू पुरूष कबीर है, ये कुल के सिरजनहार।। 

हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया। 

जाति जुलाहा भेद न पाया, काशी मांही कबीर हुआ।।

आदरणीय मलूक दास साहेब जी की वाणी में प्रमाण:-

जपो रे मन सतगुरु नाम कबीर।। 

जपो रे मन परमेश्वर नाम कबीर। 

संत दादू जी द्वारा बोली कबीर परमेश्वर की महिमा की वाणी :-

जिन मोकूं निज नाम दिया सोई सतगुरू हमार। 

दादू दूसरा कोई नहीं कबीर सिरजनहार।।

गुरु नानक जी की वाणियों में प्रमाण:- 

तेरा एक नाम तारे संसार, मैं येही आश ये ही आधार।

फाई सुरति मलूकी वेश, ये ठगवाड़ा ठग्गी देश।

खरा सियाणा बहुता भार, धाणक रूप रहा करतार।। 

                          (गुरू ग्रंथ साहेब पृष्ठ 24 पर)

हक्का कबीर करीम तूए बे एब परवरदिगार। 

                        (गुरू ग्रंथ साहेब पृष्ठ 721 पर) 

इसके अलावा अन्य धर्म के पवित्र सद्ग्रंथों कुरान शरीफ़, बाइबल में भी कबीर साहेब जी परमेश्वर है इसका प्रमाण हैं। जो कि वर्तमान में जगतगुरु तत्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज जी ने प्रमाणित किया है।

कबीर साहेब की भक्ति कैसे पाई जा सकती है?

संत रामपाल जी महाराज कबीर साहेब जी के स्वरूप में वर्तमान में उपस्थित हैं। संत रामपाल जी महाराज कबीर साहेब जी की तरह तत्वज्ञान को फिर से उजागर कर रहे हैं। सभी धर्मों के पवित्र सद्ग्रंथों से प्रमाणित करके बता रहे हैं कि कबीर साहेब जी ही पूर्ण ब्रह्म कबीर देव हैं। यही सारी सृष्टि के रचनहार हैं। सबका पालन-पोषण करने वाला समर्थ कबीर परमेश्वर हैं। संत रामपाल जी महाराज जी से सतभक्ति ज्ञान लेकर मर्यादा में रहते हुए कबीर परमात्मा की पूजा करने से जीव का मोक्ष संभव हैं। अतः सभी से निवेदन हैं कि देर न करते हुए पूर्ण गुरु संत रामपाल जी महाराज जी से सतभक्ति ग्रहण करके अपने मनुष्य जीवन का कल्याण करवाएं।  अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए पढ़ें पवित्र पुस्तक ज्ञान गंगा

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कबीर के जीवन में गुरु का महत्व?

कबीर ने ऐसा इसलिए कहा है क्योंकि गुरु सदैव शिष्य के हित की ही बात करते हैं । वह अपने ज्ञान द्वारा शिष्य को इतना सशक्त बना देते हैं कि कोई भी उस पर उंगली नहीं उठा पाता। प्रस्तुत दोहे से हमें यह शिक्षा मिली है कि गुरु की आज्ञा मानकर चलने वाले का तीनों लोगों में आदर होता है । अतः कभी गुरु की अवज्ञा नहीं करनी चाहिए।

कबीर के अनुसार गुरु महिमा का वर्णन कीजिए?

१॥ व्याख्या: अपने सिर की भेंट देकर गुरु से ज्ञान प्राप्त करो | परन्तु यह सीख न मानकर और तन, धनादि का अभिमान धारण कर कितने ही मूर्ख संसार से बह गये, गुरुपद - पोत में न लगे। गुरु की आज्ञा आवै, गुरु की आज्ञा जाय। कहैं कबीर सो संत हैं, आवागमन नशाय॥

गुरु की महिमा क्या है?

गुरु, विष्णु भी है क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है गुरु, साक्षात महेश्वर भी है क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है। संत कबीर कहते हैं-'हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहिं ठौर॥' सतगुरु की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार लोचन अनंत, अनंत दिखावण हार- अर्थात सद्गुरु की महिमा अपरंपार है।

संत कबीर के दोहे गुरु?

गुरु कुम्हार शिष कुंभ है, गढ़ि-गढ़ि काढ़ै खोट। अन्तर हाथ सहार दै, बाहर बाहै चोट॥ भावार्थ:- गुरु कुम्हार है और शिष्य घड़ा है। गुरु ही हैं जो भीतर से हाथ का सहारा देकर, बाहर से चोट मार-मारकर और गढ़-गढ़ कर शिष्य की बुराई को निकालते हैं।