Contents कवि परिचयजीवन परिचय– प्रयोगवादी काव्यधारा के प्रतिनिधि कवि गजानन माधव ‘मुक्तिबोध’ का
जन्म मध्य प्रदेश के ग्वालियर जिले के श्योपुर नामक स्थान पर 1917 ई० में हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग में थे। अत: निरंतर होने वाले स्थानांतरण के कारण इनकी पढ़ाई नियमित व व्यवस्थित रूप से नहीं हो पाई। 1954 ई. में इन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय से एम०ए० (हिंदी) करने के बाद राजनाद गाँव के डिग्री कॉलेज में अध्यापन कार्य आरंभ किया। इन्होंने अध्यापन, लेखन एवं पत्रकारिता सभी क्षेत्रों में अपनी योग्यता, प्रतिभा एवं कार्यक्षमता का परिचय दिया। मुक्तिबोध को जीवनपर्यत संघर्ष करना पड़ा और संघर्षशीलता ने इन्हें
चिंतनशील एवं जीवन को नए दृष्टिकोण से देखने को प्रेरित किया। 1964 ई० में यह महान चिंतक, दार्शनिक, पत्रकार एवं सजग लेखक तथा कवि इस संसार से चल बसा। कविता का प्रतिपादय एवं सारप्रतिपादय- मुक्तिबोध की
कविताएँ आमतौर पर लंबी होती हैं। इन्होंने जो भी छोटी कविताएँ लिखी हैं उनमें एक है ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ जो ‘भूरी-भूरी खाक-धूल‘ काव्य-संग्रह से ली गई है। एक होता है-‘स्वीकारना’ और दूसरा होता है-‘सहर्ष स्वीकारना’ यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष-अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है। कवि को जहाँ से यह प्रेरणा मिली, कविता प्रेरणा के उस उत्स तक भी हमको ले जाती है। मुस्काता चाँद ज्यों धरती पर रात-भर सार- कवि कहता है कि मेरे जीवन में जो कुछ भी है, वह मुझे सहर्ष स्वीकार है। मुझे जो कुछ भी मिला है, वह तुम्हारा दिया हुआ है तथा तुम्हें प्यारा है। मेरी गवली गरीबी, विचार-वैभव, गंभीर अनुभव, दृढ़ता, भावनाएँ आदि सब पर तुम्हारा प्रभाव है। तुम्हारे साथ मेरा न
जाने कौन-सा नाता है कि मैं जितनी भी भावनाएँ बाहर निकालने का प्रयास करता हूँ, वे भावनाएँ उतनी ही अधिक उमड़ती रहती हैं। तुम्हारा चेहरा मेरी ऊपरी धरती पर चाँद के समान अपनी कांति बिखेरता रहता है। व्याख्या एवं अर्थग्रहण संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित काव्यांशों को ध्यानपूर्वक पढ़कर सप्रसंग व्याख्या कीजिए और नीचे दिए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. जिंदगी में जो कुछ हैं, जो भी है द्वढ़ता यह, भीतर की सरिता यह अभिनव सब शब्दार्थ – सहर्ष- खुशी के
साथ। स्वीकारा- मन से माना। गरबीली– स्वाभिमानिनी। गांभीर– गहरा। अनुभव– व्यावहारिक ज्ञान। विचार-वैभव– भरे-पूरे विचार। दूढ़ता– मजबूती। सरिता– नदी। भीतर की सरिता – भावनाओं की नदी।
अभिनव– नया। मौलिक– वास्तविक। जाग्रत– जागा हुआ। अयलक–निरंतर। संवेदन– अनुभूति। (i) कवि अपनी हर उपलब्धि का श्रेय उसको (माँ या प्रिया) देता है। प्रश्न (क) कवि जीवन की प्रत्यक परिस्थिति को सहर्ष स्वीकार क्यों करता हैं? उत्तर- (क) कवि को अपने जीवन की हर उपलब्धि व स्थिति इसलिए सहर्ष स्वीकार है क्योंकि यह सब कुछ उसकी माँ या प्रेयसी को प्रिय लगता है; क्योंकि उसे कवि की हर उपलब्धि पसंद है। 2. जाने क्या रिश्ता हैं, जाने क्या नाता हैं भीतर वह, ऊपर तुम शब्दार्थ-रिश्ता–
रक्त संबंध। नाता– संबंध। ऊँड़ेलना- बाहर निकालना। सोता–झरना। (i) कवि अपने प्रिय के स्नेह से पूर्णत: आच्छादित है। प्रश्न (क) कवि अपने उस प्रिय सबधी के साथ अपने संबध कैसे बताता हैं? उत्तर- (क) कवि का अपने उस प्रिय के साथ
गहरा संबंध है। उसके स्नेह से वह अंदर व बाहर से पूर्णत: आच्छादित है और उसका स्नेह उसे भिगोता रहता है। 3. सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ मैं भूलूँ मैं शब्दार्थ- दंड– सजा। दक्षिण ध्रुवी अंधकार-दक्षिण ध्रुव पर छाने वाला गहरा औधेरा। अमावस्या-चंद्रमाविहीन काली रात। अंतर-हृदय, अंत:करण। परिवेटित-चारों ओर से घिरा हुआ।
आच्छादित-छाया हुआ, ढका हुआ। रमणीय- मनोरम। उजेला- प्रकाश। ममता- अपनापन, स्नेह। माँडराती- छाई हुई। पिराता- दर्द करना। अक्षम-अशक्त। भवितव्यता- भविष्य की आशंका। बहलाती- मन को प्रसन्न करती। सहलाती- दर्द को कम करती हुई। आत्मीयता-
अपनापन। (i) कवि अत्यधिक मोह से अलग होना चाहता है। प्रश्न (क) कवि क्या दंड चाहता हैं और
क्यों ? उत्तर- (क) कवि अपनी प्रियतमा (सबसे प्यारी स्त्री)को भूलने का दंड चाहता है क्योंकि उसके अत्यधिक स्नेह के कारण उसकी आत्मा कमजोर हो गई है। उसका अपराधबोध से दबा मन यह प्रेम सहन नहीं कर पा रहा है।
उसका मन आत्मग्लानि से भर उठता है। 4. सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ शब्दार्थ–पाताली आँधेरा- धरती की गहराई में पाई जाने वाली
धुंध। गुहा- गुफा। विवर-बिल। लापता-गायब। कारण-मूल प्रेरणा। घेरा- फैलाव। वैभव-समृद्ध। (i) कवि ने अपने व्यक्तित्व के निर्माण में प्रियतमा के योगदान
को स्वीकार किया है। प्रश्न (क) कवि दड पाने की इच्छा क्यों रखता हैं? उत्तर- (क) कवि अपनी प्रियतमा के बिना अकेला रहना सीखना चाहता है। वह गुमनामी के अँधेरे में खोना चाहता है। प्रिया के अत्यधिक स्नेह ने कवि को भीतर से कमजोर बना दिया है। कवि स्वयं को अपनी प्रियतमा का दोषी मानता है, अत: वह दंड पाना चाहता है। काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्ननिम्नलिखित काव्यांशों को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए- 1. गरबीली गरीबी यह, ये गंभीर अनुभव सब प्रश्न (क) ‘गरीबी‘
के लिए ‘गरबीली‘ विशेषण के प्रयोग से कवि का क्या आशय है ? स्पष्ट कीजिए ? उत्तर- (क) कवि ने ‘गरीबी’ के लिए ‘गरबीली’ विशेषण का प्रयोग किया है। ‘गरबीली’ से तात्पर्य ‘स्वाभिमान’ से है। वह गरीबी को महिमामंडित करना चाहता है। उसे अपनी
गरीबी भी प्रिय है। 2. जाने क्या रिश्ता हैं, जाने क्या नाता हैं प्रश्न (क) भाव–संदर्य स्पष्ट कीजिए। उत्तर- (क) इन पंक्तियों द्वारा कवि के भावना प्रधान व्यक्तित्व का पता चलता है। वह अपने हृदय को मीठे जल के स्रोत के समान मानता है, जिसमें प्रेम जल कभी समाप्त नहीं होता। वह अपनी प्रियतमा से असीम प्रेम करता है। वह जितना प्रेम व्यक्त करता है, उतना ही वह बढ़ता जाता है। वह अपनी प्रियतमा की तुलना चाँद से करता है। ● सरल, सहज, भावानुकूल साहित्यिक खड़ी बोली है जो भावाभिव्यक्ति में समर्थ है। 3. सचमुच मुझे दंड दो कि भूलूँ में
भूलूँ मैं प्रश्न (क) अमावस्या के लिए प्रयुक्त विशेषणों से काव्यार्थ में
क्या विशेषता आई हैं? उत्तर- (क) कवि ने ‘अमावस्या’ के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी अंधकार’ विशेषण का प्रयोग किया है। इससे कवि का अपराध बोध व्यक्त होता है। वह दक्षिणी ध्रुव के अंधकार में स्वयं को विलीन करना चाहता है ताकि प्रियतमा से अलग
रह सके। ० कवि ने खड़ी बोली में सहज अभिव्यक्ति की है। 4. सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ प्रश्न (क) काव्याश का भाव-संदर्य स्पष्ट कीजिए। उत्तर- (क) कवि अपनी प्रियतमा के स्नेह से आच्छादित है। वह मानता है कि पाताल के गहन अंधकार में एकांतवास की अवधि में भी उसे प्रिया का ही सहारा मिलेगा। वहाँ भी उसकी यादें उसके साथ होंगी, जिनके सहारे वह जीवन बिताएगा। इससे उसके प्रेम की गहराई का पता चलता है। ० कवि ने संबोधन शैली का प्रयोग किया है। पाठ्यपुस्तक से हल प्रश्नकविता के साथ 1. टिपण्णी कीजिए : गरबीली गरबी, भीतर की सरिता, बहलाती – सहलाती आत्मीयता, ममता के बादल। [CBSE (Outside), 2011] (C)] उत्तर- 2.इस कविता में और भी टिप्पणी-योग्य पद-प्रयोग है। एसे किसी एक प्रयोग का अपनी ओर से उल्लेख करके उस पर टिप्पणी करें। उत्तर- इस कविता में अनेक पद टिप्पणी योग्य हैं। ऐसा ही एक पद है-दिल में क्या झरना है?-इसका अर्थ यह है कि जिस प्रकार झरने में चारों तरफ की पहाड़ियों से पानी इकट्ठा हो जाता है, उसे आप जितना चाहे खाली करने का प्रयास करें, वह खाली नहीं होता यह झरना पर्वत या पहाड़ी के दिल के पानी से बनता है, उसी प्रकार कवि के हृदय में भी प्रियतमा के प्रति स्नेह उमड़ता है। वह बार-बार अपनी भावनाएँ व्यक्त करता है, परंतु भावनाएँ कम होने की बजाय और अधिक उमड़कर आ जाती हैं। कवि कहना चाहता है कि उसके मन में प्रियतमा के प्रति अत्यधिक प्रेम है। वह झरने के समान है, जो कभी समाप्त नहीं होता। 3. व्याख्या कीजिए : जाने क्या रिश्ता है, जाने क्या नाता है उपर्युक्त पंक्तियों की व्याख्या करते हुए यह बताइए कि यहाँ चाँद की तरह आत्मा पर झुका चेहरा भूलकर अंधकार- अमावस्या में नहाने की बात क्यों की गई है ? उत्तर- 4. तुम्हें भूल जाने की
उत्तर- (क) यहाँ ‘अंधकार-अमावस्या’
के लिए ‘दक्षिण ध्रुवी’ विशेषण का इस्तेमाल किया गया है। इसके प्रयोग से अंधकार का घनत्व और अधिक बढ़ जाता है। 5. ‘बहलाती-सहलाती आत्मीयता बरदाश्ता नहीं होती है‘ और कविता के’ शीर्षक ‘सहर्ष स्वीकारा है ‘ में आप कैसे अंतर्विरोध पाते हैं। चर्चा कीजिए। उत्तर- कविता के आस-पास 1. अतिशय मोह भी क्या त्रास का कारक हैं? माँ का दूध छूटने का कष्ट जैसे एक जरूरी कष्ट हैं, वैसे ही कुछ और जरूरी कष्टों की सूची बनाएँ।
2. ‘प्रेरणा’ शब्द पर सोचिए और उसके महत्व पर प्रकाश डालते हुए जीवन के वे प्रसंग
याद कीजिए जब माता-पिता, दीदी-भैया, शिक्षक या कोई 3. ‘ भय ‘ शब्द पर सोचिए । सोचिए की मन में किन-किन चीज़ों का भय बैठ है । उससे निपटने के लिए आप क्या करते हैं और कवि की मनःस्थिति से अपनी मनःस्थिति की तुलना कीजिए। उन्हें किसी न किसी तरीके से इस शोषण से मुक्ति दिलाने का प्रयास करता हूँ। कवि की मन:स्थिति मेरी ही मन:स्थिति है। जो कुछ कवि सोचता है ठीक मैं भी वैसा ही सोचता हूँ। कवि कहता है कि किसी तरह सर्वहारा वर्ग के कष्ट दूर हो जाएँ, वे भी अपने कष्टों से मुक्त हो जाएँ। उन्हें पूँजीपति तंग न करें। मेरी सोच भी कवि की तरह है। अन्य हल प्रश्नलघूत्तरात्मक प्रश्न 1.कवि के जीवन में ऐसा क्या-क्या है जिसे उसने सहर्ष स्वीकारा है? [CBSE (Delhi), 2009] 2. मुक्तिबोध की कविता के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि कवि ने किसे सहर्ष स्वीकार था। आगे चलकर वह उसी को क्यों भूलना चाहता था? [CBSE (Outside), 2009] 3.‘सहर्ष स्वीकारा हैं’ के कवि ने जिस चाँदनी को सहर्ष स्वीकारा था, उससे मुक्ति पाने के लिए वह अंग-अंग में अमावस की चाह क्यों कर रहा है? [CBSE (Foreign), 2009] 4. ‘सहर्ष स्वीकारा है‘ कविता का प्रतिपाद्य बतायिए। स्वयं करें
(अ) जिंदगी में जो कुछ है, जो भी है (ब) सचमुच मुझे दंड दो कि हो जाऊँ More Resources for CBSE Class 12:
NCERT SolutionsHindiEnglishMathsHumanitiesCommerceScience कवि अपनी प्रेयसी से दूर क्यों जाना चाहता है?उत्तर कवि अपनी प्रेमिका से इसलिए दूर होना चाहता है क्योंकि वह अपने प्रिय की बहलाती सहलाती आत्मीयता अब बर्दाश्त नहीं कर सकता क्योंकि इससे उसकी विरह वेदना और अधिक बढ़ जाती है। अतः कवि अपनी प्रेयसी को भूल कर अपना स्वाभाविक जीवन जीना चाहता है। उत्तर कवि ने अमावस्या का प्रयोग व्यक्तिगत जीवन के संदर्भ में किया है।
कवि जीवन के सुख दुख को प्रसन्नता से क्यों स्वीकार करना चाहता है *?उत्तर: कविता के प्रारंभ में कवि जीवन के हर सुख दुख को सहर्ष स्वीकार करता है क्योंकि यह सब उसकी प्रियतमा को प्यारा है। हर घटना तथा परिणाम को वह अपनी प्रियतमा की ही देन बताता है दूसरी तरफ वह प्रिया की आत्मीयता को बर्दाश्त भी नहीं कर पा रहा है। एक की स्वीकृति और दूसरे की अस्वीकृति दोनों में अंतर्विरोध है।
सहर्ष स्वीकार है कविता से आपको क्या प्रेरणा मिलती है?एक होता है-'स्वीकारना' और दूसरा होता है- 'सहर्ष स्वीकारना' यानी खुशी-खुशी स्वीकार करना। यह कविता जीवन के सब सुख-दुख, संघर्ष अवसाद, उठा-पटक को सम्यक भाव से अंगीकार करने की प्रेरणा देती है ।
कवि ने अपने जीवन में संघर्ष क्यों स्वीकारा है?कवि ने इस कविता में अपने जीवन के समस्त खट्टे-मीठे अनुभवों, कोमल-तीखी अनुभूतियों और सुख-दुख की स्थितियों को इसलिए स्वीकारा है क्योंकि वह अपने किसी भी क्षण को अपने प्रिय से न केवल जुड़ा हुआ अनुभव करता है, अपितु हर स्थिति को उसी की देन मानता है। प्रश्न 2. कवि अपनी प्रेमिका से अलग क्यों होना चाहता है?
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