ख क्षमा करो गाँठ खुल गई भरम की पंक्ति के आधार पर स्पष्ट कीजिए कि किसने किससे कब तथा क्यों क्षमा माँगी? - kh kshama karo gaanth khul gaee bharam kee pankti ke aadhaar par spasht keejie ki kisane kisase kab tatha kyon kshama maangee?

पाठ-परिचय – पाठ में सर्वेश्वरजी की ‘मेघ आए’ शीर्षक कविता संकलित है। इसमें उन्होंने मेघों के आने की तुलना सजकर आये प्रवासी अतिथि (दामाद) से की है। ग्रामीण परिवेश में मेघों के आने से सर्वत्र उल्लास छा जाता है, इसी प्रकार वहाँ के परिवेश में दामाद के आने से आनन्दमय अनुभूति होती है। कवि ने इसी भाव का सजीव एवं आकर्षक वर्णन किया है।

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भावार्थ एवं अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न

मेघ आए

1. मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के!
आगे-आगे नाचती-गाती बयार चली,
दरवाजे खिड़कियाँ खुलने लगीं गली-गली,
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
पेड़ झुक झाँकने लगे गरदन उचकाए,
आँधी चली, धूल भागी घाघरा उठाए,
बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, घूघट सरके।
मेघ आए, बड़े बन-ठन के सँवर के।

कठिन-शब्दार्थ :

  • मेघ = बादल।
  • बयार = हवा।
  • पाहुन = मेहमान, दामाद।
  • घाघरा = लहँगा।
  • बाँकी = टेढ़ी।
  • चितवन = दृष्टि।
  • उचकाए = ऊपर उठाये।
  • ठिठकी = रुक गई।

भावार्थ : कवि सर्वेश्वर वर्णन करते हुए कहते हैं कि बादल रूपी प्रवासी मेहमान बड़े सज-धजकर आ गए हैं। उन बादलों की सूचना देने वाली हवा उनके आगे नाचती-गाती चली आ रही है। उसके आने से मकानों के बन्द दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगी हैं। ऐसा लगता है कि शहर से आये मेहमान (दामाद) को देखने के लिए गली-गली में बन्द दरवाजे एवं खिड़कियाँ खोली जा रही हैं, ताकि घरों के लोग इस शहरी मेहमान को देख सकें। इस तरह मेघ गाँव में मेहमान की तरह सज-धजकर आ गया है।

कवि कहता है कि बादलों के आने की सूचना हवा से मिल जाने पर पेड़ भी खुशी से झूम रहे हैं और सिर झुकाकर देखते हुए फिर गर्दन ऊँची कर रहे हैं । अर्थात् हवा के चलने से पेड़ कुछ झुक रहे हैं, फिर सीधे हो रहे हैं। इस तरह वे व्याकुलता से बार-बार अपनी गर्दन उचकाकर देख रहे हैं । आँधी चलने से गलियों की धूल उठकर अन्यत्र जाने लगी, इससे ऐसा लग रहा है कि जैसे गाँव की कोई लड़की अपना घाघरा उठाये भागी जा रही है। नदी कुछ रुककर बादलों को उसी प्रकार देखने लगी, जिस प्रकार गाँव की कोई स्त्री मेहमान को देखने के लिए अपने पूंघट को थोड़ा-सा हटाकर और लज्जा सहित नेत्रों को कुछ तिरछा करके देखने लगी हो। इस प्रकार बादल मेहमान के रूप में सज-धजकर गाँव में आ गये हैं।

प्रश्न 1. मेघों की तुलना पाहुन से क्यों की गई है? बताइये।
प्रश्न 2. ‘पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
प्रश्न 3. गली-गली में दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने को लेकर कवि ने क्या कल्पना की है?
प्रश्न 4. हवा किस प्रकार चली?
उत्तर :
1. गाँवों में कृषक-समाज वर्षा के लिए मेघों के आने की बेचैनी से प्रतीक्षा करता है और जब दूर से आकाश में मेघ-घटाएँ दिखाई देती हैं, तो गाँव में प्रसन्नता का संचार होने लगता है। इसी प्रकार जब प्रवासी दामाद – ससुराल में आता है, तो सभी को प्रसन्नता होती है और सब उसके आगमन को महत्त्वपूर्ण मानते हैं। इसी कारण मेघों की तुलना पाहुन से की गई है।

2. गाँव के रहन-सहन और शहर के रहन-सहन में अन्तर होता है। गाँवों के लोगों में शहरों के प्रति अधिक उत्सुकता रहती है। इसीलिए जब पहली बार बादल आये, तो गाँव के लोगों में उनके प्रति ऐसी उत्सुकता जागी, जैसे शहरी मेहमान के आने पर जगती है।

3. मनोरम मेघों को देखने के लिए गली-गली में दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं। इस सम्बन्ध में कवि ने यह कल्पना की है कि प्रवासी बादल रूपी मेहमान (दामाद) के आने की सचना मिलने से गाँव के लोगों में उत्सकता जागी। मेहमान को देखकर उससे स्वागत-सत्कार की बातें कर सकें, इस दृष्टि से लोगों ने दरवाजे-खिड़कियाँ खोल दीं।

4. हवा मेघ रूपी पाहुन के आगे-आगे नाचती-गाती हुई चली।

2. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की,
‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’ –
बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की,
हरसाया ताल लाया पानी परात भर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवरे के।
क्षितिज अटारी गहराई दामिनि दमकी,
‘क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की’,
बाँध टूटा झर-झर मिलन के अश्रु ढरके।
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।

कठिन-शब्दार्थ :

  • जुहार की = प्रणाम किया।
  • सुधि लीन्हीं = याद किया।
  • अकुलाई = व्याकुल।
  • हरसाया = खुश हुआ।
  • परात = थाल जैसा बड़ा बर्तन।
  • क्षितिज = धरती और आकाश के मिलन-बिन्दु का भाग।
  • अटारी = छत पर बना कमरा।
  • दामिनि = बिजली।
  • दमकी = चमकी।
  • गाँठ खुल गई = भ्रम या रहस्य समाप्त हुआ।
  • अश्रु = आँसू।
  • ढरके = बह गए।

भावार्थ : कवि कहता है कि सजे-धजे मेहमान के रूप में बादल को आया देखकर बढे पीपल ने पीपल ने गाँव के बजर्ग.. सम्मानित व्यक्ति के रूप में इस मेहमान का अभिवादन या स्वागत किया। गर्मी से व्याकुल लता ने दरवाजे की ओट में होकर उलाहना देते हुए कहा कि तुम्हें पूरे एक साल बाद मेरी याद आयी। मेघ को सज-धजकर आये मेहमान रूप में देखकर तालाब प्रसन्न हो उठा और वह परात में पानी भरकर (मेहमान के पैर धोने हेतु) लाया।

आकाश में उमड़ते हुए बादलों को देखकर कवि कहता है कि उसी समय क्षितिज रूपी अटारी पर मेघ छाने लगे मध्य में बिजली चमकने लगी। अब तक लोगों को भ्रम था कि पता नहीं बादल आयेंगे या नहीं, अबकी बार बरसेंगे या नहीं। परन्तु बिजली चमकने से अब वह भ्रम दूर हो गया। साथ ही प्रवासी मेहमान (दामाद) के अटारी पर पहुंचते ही उसकी नायिका का भी भ्रम समाप्त हो गया। तब उसने मेहमान से कहा कि ‘आपके आगमन को लेकर मेरे मन में जो भ्रम था, अब वह मिट गया है। आप मुझे माफ कर दें।’ यह सुनते ही मेहमान (बादल) के सब्र का बाँध टूट गया और उस मिलन-वेला में प्रिया-प्रिय के नेत्रों से अश्रुपात होने लगा, अर्थात् मूसलाधार वर्षा होने लगी। इस प्रकार मेघ बन-ठनकर मेहमान की तरह गाँव में आये।

प्रश्न 1. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर किसका स्वागत किया और क्यों?
प्रश्न 2. ‘बरस बाद सुधि लीन्हीं’-किवाड़ की ओट लिए लता ने ऐसा क्यों कहा?
प्रश्न 3. ताल पानी की परात लेकर क्यों आया?
प्रश्न 4. भ्रम की कौन-सी गाँठ खुल गई है, जिसके लिए क्षमा मांगी गई है?
उत्तर :
1. बढे पीपल ने गाँव का बजर्ग और सम्मानित व्यक्ति होने के नाते. मेहमान रूप में पधारे मेघ का स्वागत किया। क्योंकि बादल ऐसा प्रवासी मेहमान था, जो एक वर्ष बाद आया था। सब लोग उसके आगमन की प्रतीक्षा में थे। जब वह आया तो सम्मान की दृष्टि से उसका स्वागत किया गया।

2. वर्षा ऋतु या बरसात साल में एक बार आती है। लता रूपी नायिका कुछ लजित होकर, किवाड़ की ओट लिए अपने प्रवासी मेहमान (नायक) से बोली कि तुम्हें पूरे एक वर्ष बाद हमारी याद आयी है। लता रूपी युवती ने बादल रूपी प्रिय से हृदयगत शिकायत या उलाहने के रूप में ऐसा कहा।

3. भारत की प्राचीन संस्कृति में घर आये मेहमान के पैर धोने की परम्परा प्रचलित रही। आज भी देश के कुछ भागों में मेहमान के पैर धोए जाते हैं, मेहमान यदि दामाद हो, तो फिर उसे पूज्य माना जाता है। तालाब भी प्रसन्न होकर मेहमान रूप में आये मेघ के पैर धोने के लिए पानी की परात लेकर आया।

4. गाँव के लोगों को मेहमान रूपी बादलों के समय पर आने और बरसने को लेकर भ्रम था, परन्तु बादल ठीक समय पर आ गये। इस कारण गाँव वालों की और लता रूपी नायिका की यह भ्रान्ति मिट गई, उनका भ्रम समाप्त हो गया। इसी निमित्त मेहमान से मिलने पर क्षमायाचना की गई है।

RBSE Class 9 Hindi मेघ आए Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
बादलों के आने पर प्रकृति में जिन गतिशील क्रियाओं को कवि ने चित्रित किया है, उन्हें लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में प्रकृति की निम्न गतिशील क्रियाओं का चित्रण हुआ है

  1. हवा का तेज चलना
  2. पेड़ों का झुकना व उचकना
  3. दरवाजे-खिड़कियां खुलना
  4. आँधी चलना, धूल उड़ना
  5. पीपल का डोलना
  6. तालाब में लहरें उठना।
  7. नदी का मानो बाँकी नजर उठा कर ठिठक जाना
  8. क्षितिज पर बिजली चमकना
  9. लताओं का छिपना
  10. जल का बरसना, बाँधों का टूट जाना।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित किसके प्रतीक हैं? (धूल, पेड़, नदी, लता, ताल)
उत्तर :
धूल-किशोरी लड़कियों की प्रतीक है, जो भाग-भागकर मेहमान के आने की खबर दे रही हैं। पेड़-गाँव के पुरुषों के। नदी-गाँव की युवती की। लता-नवविवाहिता, जिसका प्रवासी पति शहर से गाँव आया है। ताल-घर का अन्तरंग सदस्य। मेहमान का स्वागतकर्ता।

प्रश्न 3.
लता ने बादल रूपी. मेहमान को किस तरह देखा और क्यों?
उत्तर :
बादल रूपी मेहमान एक वर्ष बाद आया था इसलिए लता रूपी नव विवाहिता ने पेड़ रूपी किवाड़ की ओट में छिपकर देखा, क्योंकि बादल रूपी प्रियतम की दीर्घ प्रतीक्षा करने के बाद आने पर वह व्याकुल भी है और उन्हें बिना देखे रह भी नहीं पा रही है।

प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए-
(क) क्षमा करो गाँठ खुल गई अब भरम की।
उत्तर :
विरहिणी नायिका को भ्रम था कि उसका नायक एक वर्ष से उसकी सुध नहीं ले रहा है, वह उसे भूल गया है। पर साल भर बाद जब शहर से प्रवासी नायक लौट आया, तो नायिका ने उससे क्षमायाचना की कि मेरे मन में आपके बारे में जो गाँठ थी, वह खुल गई है। अतएव आप मुझे क्षमा करें।

ग्रामीणों को भ्रम था कि बादल आयेंगे या नहीं, बरसेंगे या नहीं, परन्तु बादल समय पर आ गये। इसलिए ग्रामीणों के मन की गाँठें खुल गईं और वे उससे क्षमा-याचना करने लगे। बादल के नियत समय पर आने से ग्रामीणों का भ्रम समाप्त हो गया।

(ख) बाँकी चितवन उठा, नदी ठिठकी, चूंघट सरके।
उत्तर :
गाँवों की युवा वधुएँ पूंघट करती हैं। जब उन्हें मेहमान के आने की सूचना मिली, तो उनके मन में उसे देखने की उत्सुकता होने लगी। वे अपनी जगह ठिठक गईं और चूंघट सरका कर तिरछी नजर से उसे देखने लगीं। नदी भी मेघ रूपी मेहमान को देखने के लिए उत्सुक थी। हवा के चलने से उसकी लहरों में परिवर्तन होने लगा, तब ऐसा लग रहा था कि मानो उसने अपना पूंघट कुछ सरका दिया और तिरछी नजरों से मेहमान (मेघ) को देख रही है।

प्रश्न 5.
मेघ रूपी मेहमान के आने से वातावरण में क्या परिवर्तन हुए?
उत्तर :
मेष रूपी मेहमान के आने से

  1. सनसनाती हवा चलने लगी
  2. हवा से दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं
  3. पेड़ झुकने लगे, पीपल जैसे बड़े पेड़ डोलने लगे
  4. बेलें हर्षित हुईं
  5. तालाब में लहरें उठने लगीं
  6. क्षितिज पर बादल उमड़ने और गरजने लगे
  7. बिजली चमकने लगी
  8. रिमझिम वर्षा होने लगी और
  9. नदी में लहरें उठने लगीं।

प्रश्न 6.
मेघों के लिए ‘बन-ठन के, सँवर के’ आने की बात क्यों कहीं गई है?
उत्तर :
मेघों के लिए बन-ठन के, सँवर के आने की बात इसलिए कही गयी है, क्योंकि उनके आने से गांव वालों के मन में ठीक वैसा ही उल्लास छा जाता है जैसे किसी सजे-सँवरे दामाद के गाँव में आने पर छा जाता है।

प्रश्न 7.
कविता में आये मानवीकरण तथा रूपक अलंकार के उदाहरण खोजकर लिखिए।
उत्तर :
मानवीकरण के उदाहरण

  1. मेघ आए बड़े बन-ठन के, संवर के।
  2. नाचती-गाती बयार चली।
  3. पेड़ झुकने लगे गरदन उचकाए।
  4. धूल भागी घाघरा उठाए, नदी ठिठकी।
  5. बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की।
  6. बोली अकुलाई लता ओट हो किवार की।
  7. ताल लाया पानी परात भर के।

रूपक के उदाहरण
1. क्षितिज अटारी गहराई।

प्रश्न 8.
कविता में जिन रीति-रिवाजों का मार्मिक चित्रण हुआ है, उनका वर्णन कीजिए।
उत्तर :
कविता में ग्रामीण परिवेश में प्रचलित रीति-रिवाजों का सुन्दर चित्रण हुआ है। इसमें दर्शाया गया है कि दामाद अपनी ससुराल बन-ठनकर जाता है। दामाद का स्वागत सभी करते हैं। विवाहिता युवतियाँ प्रायः चूंघट निकालकर पुरुषों के सामने आती हैं। मेहमान के पैर धोने के लिए परात में पानी लाया जाता है। नवविवाहिता अपने पति से सबके सामने नहीं मिलती है और चूंघट की ओट में बात करती है। राजस्थान में ऐसे अतिथि का सत्कार पलक-पाँवड़े बिछाकर किया जाता है।

प्रश्न 9.
कविता में कवि ने आकाश में बादल और गाँव में मेहमान (दामाद) के आने का जो रोचक वर्णन किया है, उसे लिखिए।
उत्तर :
आकाश में बादल का वर्णन-आकाश में नये बादल बन-ठन कर आ गये। उनके आने पर हवा सनसनाती हुई बहने लगी, तो गलियों में उसके वेग से दरवाजे-खिड़कियाँ खुलने लगीं। धूल उड़ने लगी, पेड़ हिलने-डुलने लगे। तालाब में प्रसन्नता की लहरें उठने लगीं। नदी भी प्रसन्न हो गई। लताएँ बहुत व्याकुल थीं, उन्हें बादल के आने या न आने में सन्देह था, वह सन्देह दूर हुआ। क्षितिज पर बादलों की घटा छायी, बिजली चमकने लगी और रिमझिम वर्षा होने लगी।

गाँव में मेहमान का वर्णन-शहर से दामाद बन-ठनकर गाँव पहुँचा। उसके आने की खबर हवा की तरह फैली। पुरुष उसे झुककर देखने लगे तो स्त्रियाँ भी घूघट सरकाकर तिरछी नजर से देखने लगीं। किसी ने आगे बढ़कर उसका स्वागत किया, तो कोई पैर धोने के लिए पानी की परात ले आया। उसकी विरहिणी प्रियतमा को भ्रम था कि वह न जाने कब आयेगा। इसलिए वह आकुलता से सबके सामने नहीं अपितु किवाड़ की ओट में मिली। तब उसने प्रियतम से क्षमा माँगी और दोनों के मधुर-मिलन की बेला में उनके आँसू बहने लगे।

प्रश्न 10.
काव्य-सौन्दर्य लिखिए
पाहुन ज्यों आए हों गाँव में शहर के,
मेघ आए बड़े बन-ठन के सँवर के।
उत्तर :
भाव-सौन्दर्य – गाँव में मेहमान (दामाद) के आने की तुलना बादलों से की गई है। दामाद शहर से बन ठनकर आया है। इसमें बादलों के सौन्दर्य की कवि ने सुन्दर अभिव्यक्ति दी है।

शिल्प-सौन्दर्य – इसमें उत्प्रेक्षा अलंकार अनुप्रास अलंकार ‘बड़े बन-ठन’ के तथा मानवीकरण अलंकार बादलों पर मेहमान का आरोप करने में है। भाषा सरल, भावानुकूल एवं छन्द तुकान्त है।

रचना और अभिव्यक्ति –

प्रश्न 11.
वर्षा के आने पर अपने आसपास के वातावरण में हुए परिवर्तनों को ध्यान से देखकर एक अनुच्छेद लिखिए।
उत्तर :
वर्षा के आने से पहले धरती पर तपन, लू और शुष्कता थी, जो कि वर्षा आते ही एकदम समाप्त हो गई। पहली वर्षा होने से खेतों से मिट्टी की अनोखी गन्ध आने लगी। अमराइयों एवं वनावलियों में मोर की ऊँची केका सुनाई देने लगी। जो पेड़-पौधे, खेत-बगीचे पहले मुरझा रहे थे, वे अब लहलहाने लगे और उनमें नया जीवन आने लगा।

दो-चार दिन की बरसात के बाद तो सारी धरती हरी-भरी हो गई, जगह-जगह तृण-राशि उगकर आँखों को प्रिय लगने लगी। पेड़ों के पत्ते एकदम धुल गये, बेलें ऊपर की ओर उठने लगीं। बादल कभी सघन छा जाते, गर्जते एवं बिजली चमकाते और कभी शान्त होकर आकाश में सैर करते रहते। इस कारण सूर्य कभी चमकता और कभी बादलों के पीछे छिप जाता। बरसात होने से गाँव के तालाबों एवं कुओं का जलस्तर बढ़ गया, पास में बहने वाली सूखी नदी में भी पानी का वेग चढ़ने लगा। इस तरह वर्षा के आने पर आसपास के वातावरण में अनेक परिवर्तन दिखाई दिये।

प्रश्न 12.
कवि ने पीपल को ही बड़ा बुजुर्ग क्यों कहा है? पता लगाइए।
उत्तर :
पीपल का पेड़ आकार में बड़ा तथा लम्बी आयु वाला होता है। वह गांव में सभी के लिए पूज्य होता है, क्योंकि पीपल के पेड़ में सभी देवता निवास करते हैं। वह हजारों पक्षियों, कीट-पतंगों एवं अन्य जीव-जन्तुओं को आश्रय देता है और उनका पोषण करता है। इन्हीं सब विशेषताओं के कारण कवि ने पीपल को बुजुर्ग कहा है।

प्रश्न 13.
कविता में मेघ को ‘पाहुन’ के रूप में चित्रित किया गया है। हमारे यहाँ अतिथि (दामाद) को विशेष महत्त्व प्राप्त है, लेकिन आज इस परम्परा में परिवर्तन आया है। आपको इसके क्या कारण नजर आते हैं? लिखिए।
उत्तर :
हमारे समाज में आये इस परिवर्तन के कारण निम्नलिखित हैं

  1. अब पुरानी मान्यताओं को लोग कम महत्त्व देने लगे हैं।
  2. अब दामाद को पाहुन न मानकर घर का ही एक सदस्य मानते हैं।
  3. वर्तमान अर्थ-प्रधान युग है। खर्चे बढ़ने से न तो दामाद का इतना आकर्षण रह गया है और न ही उसकी मेहमाननवाजी करने में लोगों को ऐसी लगन रह गई है।
  4. व्यस्त जीवनचर्या के कारण सेवा-सत्कार करने का अवसर अब कम ही मिलता है।
  5. शिक्षा के प्रसार से दामाद और बेटी का पक्ष बराबर हो गया है।
  6. संयुक्त परिवार-परम्परा टूटने से अब व्यक्ति आत्मकेन्द्रित हो गया है।
  7. अब गाँवों में अतिथि सत्कार की पुरानी परम्परा का निरन्तर ह्रास हो रहा है।

भाषा अध्ययन –

प्रश्न 14.
कविता में आये मुहावरों को छाँटकर अपने वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए।
उत्तर :
सुधि लेना-अरे रमेश, कभी तो रिश्तेदारी में जाकर उनकी सुधि लेते रहो। गाँठ खुलना-दोनों मित्रों में कुछ दिनों से जो गाँठ पड़ गई थी वह अब खुल गई। बाँध टूटना-परीक्षाफल सुनने के लिए तो मेरी सब्र का बांध टूट गया। गरदन उचकाना-बार-बार खिड़की से दूसरों के घर में गरदन उचकाना ठीक नहीं है। तिरछी नजरों से देखना-नवेली दुलहन ने तिरछी नजरों से पति को देखकर मन्द-मन्द मुस्काने लगी।

प्रश्न 15.
कविता में प्रयुक्त आँचलिक शब्दों की सूची बनाइए।
उत्तर :
बयार, पाहुन, घाघरा, बाँकी, जुहार, किवार, ओट, हरसाया, परात, भरम, बरस बाद सुधि लीन्हीं।

प्रश्न 16.
‘मेघ आए’ कविता की भाषा सरल और सहज है-उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
प्रस्तुत कविता में तीन-चार तत्सम शब्द आये हैं-दामिनी, मिलन, क्षितिज और अश्रु। इसमें सामासिक शब्दों का अभाव है। अति प्रचलित एवं तद्भव शब्दों का प्रयोग भावानुरूप हुआ है। इसमें देशज शब्द भी हैं। इस तरह प्रस्तुत कविता की भाषा सरल और सहज है। यथा मेघ आए बड़े बन-ठन के संवर के। बूढ़े पीपल ने आगे बढ़कर जुहार की। हरसाया ताल लाया पानी परात भर के। पाठेतर सक्रियता

वसन्त ऋतु के आगमन का शब्द-चित्र प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर :
वसन्त ऋतु-वसन्त को ऋतुराज कहा जाता है। इस ऋतु के आगमन से शीत का प्रकोप शान्त हो जाता है; पेड़-पौधों में नव-जीवन का संचार होने लगता है। वसन्त-काल में न तो गर्मी रहती है, न सर्दी। मौसम एकदम गुलाबी हो जाता है। पेड़-पौधों में कोपलें आती हैं, कलियाँ एवं फूल खिल उठते हैं, पर्वतीय भूमि पर तो हजारों किस्म के फूल स्वयं ही खिल उठते हैं। रंगों का त्योहार होली, वसन्त पञ्चमी आदि के कारण जन-मानस में उल्लास छा जाता है। खेतों में चना-मटर पकने लगता है, गेहूँ-जौ की बालें पकने लगती हैं और सरसों के खेतों की पीली चादर सर्वत्र फैल जाती है।

बागों में आम पर बौर आ जाता है। वृक्ष नवीन पत्ते धारण कर शोभा को बिखेरने लगते हैं तो वनों में महुआ महकने लगता है। सारा वातावरण वासन्ती सुषमा से व्याप्त हो जाता है। दक्षिण की हवा मन्द-सुगन्ध बहती है, तो पूर्वा हवा का रुख भी मन्द रहता है। सभी जीवों, पशु-पक्षियों को भी वसन्त-ऋतु की मादकता का आभास हो जाता है और सभी के मानस में उल्लास, उमंग, मस्ती एवं मचलने की इच्छा समाई रहती है। वसन्त के आगमन से सब कुछ बदलकर नया हो जाता है।

प्रस्तुत अपठित कविता के आधार पर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

धिन-धिन-धा धमक-धमक मेघ बजे दामिनि यह गई दमक मेघ बजे दादुर का कण्ठ खुला मेघ बजे धरती का हृदय खुला मेघ बजे पंक बना हरिचन्दन मेघ बजे हल का है अभिनन्दन मेघ बजे धिन-धिन-धा
प्रश्न 1. ‘हल का है अभिनन्दन’ में किसके अभिनन्दन की बात हो रही है और क्यों?
प्रश्न 2. प्रस्तुत कविता के आधार पर बताइये कि मेघों के आने पर प्रकृति में क्या-क्या परिवर्तन हुए?
प्रश्न 3. ‘पंक बना हरिचन्दन’ से क्या आशय है?
प्रश्न 4. पहली पंक्ति में कौन-सा अलंकार है?
प्रश्न 5. ‘मेघ आए’ और ‘मेघ बजे’ किस इन्द्रिय-बोध की ओर संकेत है?
उत्तर :
1. इसमें वर्षा और हल का अभिनन्दन की बात हो रही है। वर्षा का अभिनन्दन सभी प्राणी एवं समस्त प्रकृति करती है। वर्षा होते ही किसान हल लेकर खेतों में चला जाता है, इसलिए हल का अभिनन्दन भी किया जाता है।

2. मेघों के आने पर बिजली चमकने लगी, मेंढक बोलने लगे, धरती धुली-धुली-सी लगने लगी। चारों ओर कीचड़ दिखाई देने लगा तथा कृषक अपने हल आदि कृषि उपकरणों को ठीक करने लगे। इस तरह प्रकृति में परिवर्तन होने लगे।

3. हरिचन्दन पवित्र होता है, यह देवताओं को लगाया जाता है। प्रसाद रूप में इसे मस्तक पर लगाते हैं तथा शरीर पर लेपते हैं। वर्षा आने से खेतों में मिट्टी गीली होकर कीचड़ बन गई जो कि कृषक के शरीर पर हरिचन्दन के समान लग गई। उस उपजाऊ मिट्टी के कीचड़ से उसका तन-मन पवित्र हो गया।