एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म संयुक्त राज्य अमेरिका में हुआ 18वीं शताब्दी के अंत में प्रकाशित विषय विश्वकोश "फैडरलिस्ट" के 72 वे परिछेद में अमेरिका के प्रथम वित्त मंत्री अलेक्जेंडर हैमिल्टन ने लोक प्रशासन का अर्थ और क्षेत्र की स्पष्ट व्याख्या की और इसके बाद फ्रेंच लेखक चार्ल्स जीन बैनीन ने इस विषय पर Theory of public Administration नामक प्रथम पुस्तक लिखी। Show परंतु इस शास्त्र के जनक होने का श्रेय प्रिंसटन यूनिवर्सिटी के राजनीति शास्त्र के प्राध्यापक वुडरो विल्सन को प्राप्त है जिन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख The Study Of Administration में इस शास्त्र के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया। लोक प्रशासन के इतिहास या विकास को निम्न चरणों में बांटा जा सकता है 1. पहला चरण (1887-1926) एक विषय के रूप में लोक प्रशासन का जन्म 1887 से माना जाता है। अमेरिका के प्रिंसटन यूनिवर्सिटी में राजनीति शास्त्र के तत्कालीन प्राध्यापक वुडरो विल्सन को इस शास्त्र का जनक माना जाता है। उन्होंने 1887 में प्रकाशित अपने लेख "The Study of Administration" में प्रशासन के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने पर बल दिया तथा राजनीति और प्रशासन को अलग-अलग बताते हुए कहा "एक संविधान का निर्माण सरल है परंतु इसे चलाना या लागू करना कठिन है" उन्होंने इस चलाने के क्षेत्र के अध्ययन पर बल दिया जो प्रशासन है। उन्होंने राजनीति और प्रशासन में भेद कर इसका अध्ययन किया। इस चरण के अन्य विचारको में फ्रैंक गुडनाउ हैं जिन्होंने 1900 में प्रकाशित अपनी पुस्तक "Public Administration" में तर्क प्रस्तुत किया की राजनीति और प्रशासन अलग-अलग हैं क्योंकि राजनीति राज्य की नीतियों का निर्माण है तथा प्रशासन उन नीतियों का क्रियान्वन है। सन 1926 में एल डी वाइट की पुस्तक "Introduction to the study of Public Administration" प्रकाशित हुई वह लोक प्रशासन की पहली पाठ्य पुस्तक थी जिसने राजनीति प्रप्रशास के अलगाव में विश्वास व्यक्त किया अर्थात राजनीति व प्रशासन का अलग-अलग अध्ययन किया। 2. दूसरा चरण (1927-1937) लोक प्रशासन के इतिहास में द्वितीय चरण का प्रारंभ हम डब्लू एफ़ विलोबी की पुस्तक "Principles of Public Administration" से मान सकते हैं। विलोबी के अनुसार लोक प्रशासन में अनेक सिद्धांत ऐसे हैं जिनको क्रियांवित करने में लोक प्रशासन को सुधारा जा सकता है।इस चरण को लोक प्रशासन का सिद्धांतों का काल कहा जाता है। विलोबी की पुस्तक के बाद अनेक विद्वानों ने लोक प्रशासन पर पुस्तकें लिखनी शुरू की जिनमे- मेरी पार्कर, फोलेट, हेनरी फेयोल, मुने, रायली आदि शामिल है। 1937 में लूथर गुलिक तथा उर्विक ने मिलकर लोक प्रशासन पर एक महत्वपूर्ण पुस्तक का संपादन किया जिसका नाम "Papers on the Science of Administration" है। इसमें उन सभी सामान्य समस्याओं का अध्ययन किया गया है जिजिन्हे POSDCORB शब्द में समाहित किया गया हैं। द्वितीय चरण के इन सभी विद्वानों की यह मान्यता रही कि प्रशासन में सिद्धांत होने के कारण यह एक विज्ञान है और इसलिए इसके आगे लोक शब्द लगाना उचित नहीं है। सिद्धांत तो सभी जगह लागू होते हैं चाहे वह लोग क्षेत्र हो या निजी क्षेत्र। 3. तीसरा चरण (1938-1947) लोक प्रशासन के विकास का तीसरा चरण चुनोतियों का काल कहा जाता है। इस समय में लोक प्रशासन के सिद्धांतों को चुनोतियां दी गई मुख्यता अमेरिकी विद्वान हर्बर्ट साइमन द्वारा लोक प्रशासन के सिद्धांतों को कहावतें कहा गया। सन 1946 में हर्बर्ट साइमन ने अपने एक लेख में तथाकथित सिद्धांतों की हंसी उड़ाई। उन्होंने 1947 में "Administrative Behavior" पुस्तक के अंतर्गत सिद्धांतों की उपेक्षा की। इस विषय के चिंतन को आगे बढ़ाने में साइमन, स्मिथबर्ग और थामसन की "Public Administration" चेस्टन बर्नार्ड की "Function of the Executive" तथा हर्बर्ट साइमन की पुस्तक "Administrative Behavior" का प्रमुख स्थान है। 4. चौथा चरण (1948-1970) इस काल को पहचान के संकट का काल भी काहा जाता हैं। इस समय में सबसे बड़ी समस्या लोक प्रशासन की पहचान बनाये रखने की थी। इस काल में लोक प्रशासन को राजनीति से अलग न मानकर , राजनीति का ही एक भाग माना गया तथा लोक प्रसासन के सिद्धांतों को नकार दिया तथा इसकी कड़ी आलोचना की गई जिनका जवाब लोक प्रशासन के सिद्धांतों की रचना करने वाले लेखकों के पास नहीं था। इस कारण लोक प्रशासन के सामने पहचान का संकट खड़ा हो गया।
1960 के दशक के अंतिम वर्षों में अमेरिकी समाज में अशांति का माहौल था। सरकार को चारों ओर से सरकारी अकुशलता गैर उत्तरदायित्व तथा समस्याओं के प्रति लापरवाही के कारण कड़ी आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा था। वियतनाम युद्ध में भारी आर्थिक हानि तथा वाटरगेट स्कैंडल के कारण जनता में गुस्सा बढ़ रहा था। इन सब के खिलाफ युवा पीढ़ी के द्वारा समकालीन समस्याओं के समाधान तथा लोक प्रशासन में सुधार के लिए सन 1968 में प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में "नवीन लोक प्रशासन" के विचार का समर्थन किया गया। प्रथम मिन्नो ब्रुक सम्मेलन लोक प्रशासन में नवीन परिवर्तनों के लिए जाना जाता है जो इस प्रकार है :-
अतः नवीन लोक प्रशासन के नए दौर की शुरुआत हुई। नवीन लोक प्रशासन NEW PUBLIC ADMINISTRATION नवीन लोक प्रशासन का अभिप्राय हैं- किसी भी प्रचलित व्यवस्था में प्राचीन तकनीको या विधियों के स्थान पर नयी तकनीक एवं विधियों को लागू करना 1960 के दशक के अंतिम वर्षों में विद्वानों ने लोक प्रशासन में मूल्य और नैतिकता पर बल देना आरंभ किया। उन्होंने कहा की कार्यकुशलता ही समूचा लोक प्रशासन नहीं है समस्त प्रशासनिक क्रियाकलापों का केंद्र "मनुष्य" है जो आवश्यक नहीं है कि उन आर्थिक कानूनों जिनका प्रति कार्य कुशलता है, के अधीन ही हो अतः लोक प्रशासन में मूल्य का होना आवश्यक है। इस प्रवृत्ति को नवीन लोक प्रशासन का नाम दिया गया।
5. पांचवा चरण (1971-1990) 1971 के बाद लोक प्रशासन के अध्ययन में अभूतपूर्व उन्नति हुई। राजनीति शास्त्र के अलावा अर्थशास्त्र मनोविज्ञान समाजशास्त्र आदि के विद्वानों ने भी इसमें रुचि लेना प्रारंभ किया फल स्वरुप लोक प्रशासन अंतर्विषयी Interdisciplinary बन गया। इस समय में लोक प्रशासन की अन्य विषयों से तुलना कर विश्लेषण निकाला जाने लगा।
दूसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन को लोक प्रशासन के विकास का एक महत्वपूर्ण पड़ाव माना जाता है। इस सम्मेलन के परिणाम स्वरुप नवीन लोक प्रबंधन का जन्म हुआ। नवीन लोक प्रबंधन के जन्म का कारण अर्थव्यवस्था का ग्लोबलाइजेशन, बाजार शक्तियों का संवर्धन तथा अहस्तछेप पर जोर व प्रतियोगी व्यवस्था पर जोर को माना जाता है। इस मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (1988) में नौकरशाही व्यवस्था की कड़ी आलोचना की गई तथा उदारीकरण, निजीकरण और वैश्वीकरण का समर्थन किया गया जेन एरिक लेन के अनुसार "निजी उद्यमों में प्रयुक्त होने वाली प्रबंधकीय तकनीकों को सार्वजनिक क्षेत्र में लागू करना नवीन लोक प्रबंधन है।" नवीन लोक प्रबंधन के अंतर्गत निम्न बातों पर जोर दिया गया :-
6. छठा चरण (1991 से अब तक) 1991 के बाद लोक प्रशासन में नए बदलाव देखने को मिले इसी दौर में वैश्वीकरण का प्रचलन काफी तेजी से बढ़ रहा था जिस कारण लोक प्रशासन पर भी इसका स्वभाविक प्रभाव पड़ा अब लोक प्रशासन में निम्न पहलुओं पर जोर दिया जाने लगा :-
इसके साथ-साथ अब लोक प्रशासन में "Public Choice Approach" की शुरूआत हो चली है। वैश्वीकरण तथा लोक प्रशासन वैश्वीकरण एक ऐसी परिघटना है जिसके कारण लोक प्रशासन के सिद्धांतिक तथा व्यवहारिक स्वरुप बदल गया है। वैश्वीकरण ने लोक प्रशासन में कार्यात्मक व संरचनात्मक दोनों स्वरुप में परिवर्तन ला दिया है। संरचनात्मक तौर पर कठोर पदसोपान एक और नौकरशाही स्वरूप के स्थान पर अब लचीला कम पदसोपान एक तथा सहभागिता पर अधिक जोर दिया जाने लगा। इसी प्रकार कार्यात्मक तौर पर लोक प्रशासन में लोक सेवा के स्वरुप में परिवर्तन देखने को मिला। वैश्वीकरण के कारण अब कल्याणकारी राज्य गैर सरकारी संगठनों के साथ मिलकर वस्तू व सेवा प्रदान करने लगी। इस प्रकार वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को निजीकरण के सहायता से अधिक समर्थ वह सुगम बनाने का प्रयास किया गया।
तीसरे मिन्नो ब्रुक सम्मेलन (2008) में, वैश्वीकरण के दौर में लोक प्रशासन को जिन समस्याओं का सामना करना पड़ रहा था उस पर चर्चा की गई इसके अलावा इस सम्मेलन में लोक प्रशासन के भविष्य की रूपरेखा व स्वरूपों पर भी चर्चा की गई। इस सम्मेलन में इस दौर के मुख्य विचारको जैसे -Fredrickson, Rosemary आदि ने भाग लिया इस सम्मेलन में चर्चा के मुख्य बिंदु निम्नलिखित थे :-
तीसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन (2008) में इसके मानव स्वरूप को पुनः स्पष्ट करने का प्रयास किया गया जिसे दूसरे मिन्नोब्रुक सम्मेलन में भुला दिया गया था। इस प्रकार मिलो ब्रुक सम्मेलन के द्वारा लोक प्रशासन को नवीन समस्याओं के प्रति समर्थ व प्रभावशील तथा इसके समाधान के लिए योग्य बनाने की ओर एक प्रयास था संक्षेप में निष्कर्ष के तौर पर यह कहा जा सकता है कि लोक प्रशासन का एक विषय के रूप में विकास विभिन्न चरणों से होकर गुजरा है इन विभिन्न चरणों में लोक प्रशासन के विषय तथा स्वरूप में भी परिवर्तन देखने को मिला हैं। लोक प्रशासन के विकास के कितने चरण हैं?चरण 2 : प्रशासन के सिद्धांत (1927-1937), चरण 3 : चुनौती का युग (1938-1947), चरण 4 : पहचान का संकट (1948- 1970), चरण 5 : लोकनीति परिप्रेक्ष्य (1970-जारी) ।
लोक प्रशासन का विकास कैसे हुआ?एक व्यवस्थित अध्ययन के रूप में लोक-प्रशासन का विकास अभी नया ही है। लोक-प्रशासन के शैक्षिक अध्ययन का प्रारम्भ करने का श्रेय वुडरो विल्सन को जाता है जिसने १८८७ में प्रकाशित अपने लेख 'द स्टडी ऑफ ऐडमिनिस्ट्रेशन' में इस शास्त्र के वैज्ञानिक आधार को विकसित करने की आवश्यकता पर बल दिया।
प्रशासन कितने प्रकार के होते हैं?प्रशासन. लोक प्रशासन. सैन्य प्रशासन. व्यवसाय प्रशासन. प्रशासन (सरकार). लोक प्रशासन से आप क्या समझते है लोक प्रशासन के अध्ययन के विभिन्न चरणों की व्याख्या करें?लोक प्रशासन (अंग्रेज़ी: Public administration) मोटे तौर पर शासकीय नीति (government policy) के विभिन्न पहलुओं का विकास, उन पर अमल एवं उनका अध्ययन है। प्रशासन का वह भाग जो सामान्य जनता के लाभ के लिये होता है, लोकप्रशासन कहलाता है। लोकप्रशासन का संबंध सामान्य नीतियों अथवा सार्वजनिक नीतियों से होता है।
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