प्रगतिवाद की प्रमुख विशेषताएं क्या है? - pragativaad kee pramukh visheshataen kya hai?

Que : 34. प्रगतिवाद की दो विशेषताएं बताते हुए दो प्रमुख कवियों के नाम तथा एक-एक रचना के नाम लिखिए ।

Answer: प्रगतिवादी काव्यधारा की प्रमुख विशेषताओं व प्रवृत्तियों का वर्णन निम्नलिखित है -

1. रूढ़ि - विरोध -
प्रगतिवादी साहित्यकार ईश्वर को सृष्टि का कर्ता न मानकर जागतिक द्वन्द को सृष्टि का विकास का कारण स्वीकार करता है .उसे ईश्वर की सत्ता, आत्मा, परलोक,  भाग्यवाद, धर्म, स्वर्ग, नरक आदि पर विश्वास नहीं है .उसकी दृष्टि में मानव की महत्ता सर्वोपरि है .उसके लिए धर्म एक अफीम का नशा है और प्रारब्ध एक सुन्दर प्रवंचना है .उसके लिए मंदिर, मस्जिद, गीता और कुरान आज महत्व नहीं रखते हैं

प्रगतिवादी कवि का कहना है कि -
किसी को आर्य, अनार्य,
किसी को यवन,
किसी को हूण -यहूदी - द्रविड
किसी को शीश
किसी को चरण
मनुज को मनुज न कहना आह !


2.क्रांति का स्वर -
प्रगतिवादी कवि क्रांति में विश्वास रखते हैं .वे पूंजीवादी व्यवस्था, रुढ़ियों तथा शोषण के साम्राज्य को समूल नष्ट करने के लिए विद्रोह का स्वर निकालते हैं -
नवीन -
कवि कुछ ऐसी तान सुनाओ जिससे उथल-पुथल मच जाये,
एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
प्राणों के लाले पड़ जायें त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,
नाश और सत्यानाशों का धुआँधार जग में छा जाये,."

3. मानवतावाद का स्वर -
ये कवि मानवता की शक्ति में विश्वास रखते हैं .प्रगतिवादी कवि कविताओं के माध्यम से मानवतावादी स्वर बिखेरता है .वह जाति - पाति, वर्ग भेद, अर्थ भेद से मानव को मुक्त करके एक मंच पर देखना चाहते हैं .

4. नारी भावना -
प्रगतिवादी कवियों का विश्वास है कि मजदूर और किसान की तरह साम्राज्यवादी समाज में नारी भी शोषित है .वह पुरुष की दास्ताजन्य लौह बंधनों में बंद है .वह आज अपना स्वरुप खोकर वासना पूर्ति का उपकरण रह गयी है .अतः कवि कहता है -

मुक्त करो नारी को मानव चिर वन्दिनी नारी को।
युग-युग की निर्मम कारा से जननी सखि प्यारी को।

5. धरती पर ही स्वर्ग बनाना -
प्रगतिवादी कवि आशावादी है .वे जीवन से निराश नहीं होते हैं .उन्हें कल्पना और सपना पर विश्वास नहीं, बल्कि इसी धरती को ही वे स्वर्ग के रूप में बदलना चाहते हैं .इस धरती से विषमता दूर हो जाए और मानवता का प्रसार हो जाए तो सचमुच यह धरती ही स्वर्ग से भी महान बन जायेगी .अतः कवि इस जीवन में विश्वास करते हैं और इसे ही श्रेष्ठ बनाना चाहते हैं|


6. कला पक्ष -
प्रगतिवाद जन आन्दोलन के रूप में उभरा था, इसीलिए इन कवियों ने अपनी भाषा को बहुत सरल और जन - भाषा के नजदीक रखा . अलंकारों के रूप में ए सामन्तवादी प्रवृत्ति का घोतक मानते हैं, इसीलिए इन्होने उनके स्थान पर जनजीवन के लिए सहज उपमानों और प्रतीकों का प्रयोग किया है .छंदों का भी तिरस्कार करके मुक्त छंद का सहारा लिया है|


7. सामाजिक जीवन का यथार्थ चित्रण -
प्रगतिवादी कविता की मुख्य विशेषता शब्दों के माध्यम से ध्वनि देना और अपनी जमीन से जुड़कर यथार्थ का चित्रण करना है .इनमें समाज के यथार्थ चित्रण की प्रवृत्ति मिलती है

कविवर पन्त भारतीय ग्राम का चित्रण करते हुए लिखते हैं -

यहाँ खर्व नर (बानर?) रहते युग युग से अभिशापित,
अन्न वस्त्र पीड़ित असभ्य, निर्बुद्धि, पंक में पालित।
यह तो मानव लोक नहीं रे, यह है नरक अपरिचित,
यह भारत का ग्राम,-सभ्यता, संस्कृति से निर्वासित।
झाड़ फूँस के विवर,--यही क्या जीवन शिल्पी के घर?
कीड़ों-से रेंगते कौन ये? बुद्धिप्राण नारी नर?
अकथनीय क्षुद्रता, विवशता भरी यहाँ के जग में,
गृह- गृह में है कलह, खेत में कलह, कलह है मग में!

8. समसामयिक राष्ट्रीयता और अंतर्राष्ट्रीय चित्रण -


प्रगतिवादी कवियों में देश - विदेश में उत्पन्न समसामयिक समस्यों और घटनाओं की अनदेखी करने की दृष्टि नहीं है . साम्प्रदायिक समस्यों - भारत पाक विभाजन,  कश्मीर समस्या, बंगाल का अकाल, बाढ़, अकाल, बेकारी, चरित्रहीनता आदि का इन कवियों ने बड़े पैमाने पर चित्रण किया है|

नागार्जुन ने कागजी आजादी पर लिखा है -
" कागज की आजादी मिलती, ले लो दो - दो आने में "
निष्कर्ष -
प्रगतिवादी कवियों ने अपनी कविता के माध्यम से एक राजनितिक वाद विशेष साम्यवाद का प्रचार किया, व्यक्तिवाद के स्थान पर जनवाद की स्थापना की, जनता को सुख - दुःख की वाणी दी तथा शोषितों - पीड़ितों की उन्नति के लिए जोरदार समर्थन किया .

प्रगतिवादी कवि और उनकी रचनाएं

सुमित्रानंदन पंत(1900-1970) प्रगतिवादी रचनाएं: 1.युगांत 2.युगवाणी 3.ग्राम्या ।
सूर्यकांत त्रिपाठी निराला (1897-1962) प्रगतिवादी रचनाएं : 1. कुकुरमुत्ता 2. अणिमा 3.नए पत्ते 4. बेला 5.अर्चना।
नरेन्द्र शर्मा(1913-1989): 1. प्रवासी के गीत 2.पलाश-वन 3. मिट्टी और फूल 4. अग्निशस्य।
रामेश्वर शुक्ल अंचल(1915 -1996): 1.किरण-वेला 2. लाल चुनर।
माखन लाल चतुर्वेदी(1888- 1970): 1.मानव
रामधारी सिंह दिनकर(1908- 1974) : 1. कुरुक्षेत्र 2. रश्मिरथी 3.परशुराम की प्रतीक्षा।
उदयशंकर भट्ट(1898- 1964): 1.अमृत और विष ।
बालकृष्ण शर्मा नवीन(1897- 1960):1.कंकुम 2. अपलक 3.रश्मि-रेखा 4. क्वासि।
जगन्नाथ प्रसाद मिलिंद(1907-1986):1. बलिपथ के गीत 2. भूमि की अनुभुति 3.पंखुरियां।
केदारनाथ अग्रवाल(1911-2000 ) :1. युग की गंगा 2. लोक तथा आलोक 3. फूल नहीं रंग बोलते हैं 4.नींद के बादल।
राम विलास शर्मा(1912- 2000) :1.रूप-तरंग
नागार्जुन(1910-1998) : 1.युगधारा 2.प्यासी पथराई 3.आंखे 4.सतरंगे पंखों वाली 5.तुमने कहा था 6. तालाब की मछलियां 7.हजार-हजार बांहों वाली 8.पुरानी जूतियों का कोरस 9. भस्मासुर(खंडकाव्य)।
रांगेय-राघव(1923-1962) : 1.अजेय खंडहर 2.मेधावी 3. पांचाली 4. राह के दीपक 5.पिघलते पत्थर।
शिव-मंगल सिंह सुमन( 1915- 2002 ) : 1. हिल्लोल 2.जीवन के गान 3.प्रलय सृजन।
त्रिलोचन(1917- 2007 ) :1.मिट्टी की बात 2. धरती

प्रगतिवाद की प्रमुख विशेषता क्या है?

प्रगतिवाद अर्थ, अवसर तथा संसाधनों के समान वितरण के द्वारा ही समाज की उन्नति में विश्वास रखता है। सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा, श्रम की गरिमा, सामाजिक लोगों के सुख-दुख आदि को प्रस्तुत करना प्रगतिवादी काव्य का प्रमुख लक्ष्य है। प्रगतिवादी काव्य में शोषित वर्ग के प्रति सहानुभूति का भाव व्यक्त किया गया है।

प्रगतिवादी युग की दो विशेषताएं क्या है?

1. शोषितो के प्रति सहानुभूति -प्रगतिवादी कवियों ने किसानों मजदूरों पर किए जाने वाले पूंजी पतियों के अत्याचारों के प्रति अपना विद्रोह व्यक्त किया है। 2. सामाजिक यथार्थ का चित्रण- प्रगतिवादी कवियों ने सामाजिक यथार्थ का चित्रण किया है उन्होंने गरीबी भुखमरी अकाल और बेरोजगारी आदि विभिन्न समस्याओं का वर्णन किया है .

प्रगतिवाद रचना का मुख्य उद्देश्य क्या है?

प्रगतिवादी कविता का मूल उद्देश्य है : वर्गविहीन शोषणविहीन समाज की स्थापना करना।

प्रगतिवाद से आप क्या समझते हैं?

प्रगतिवाद अर्थ, अवसर और संसाधनों के समान वितरण द्वारा ही समाज की उन्नति मे विश्वास रखता हैं। सर्वहार या सामान्य जन की प्राण प्रतिष्ठा के साथ श्रम को गरिमा को प्रतिष्ठित करना और साहित्य मे प्रत्येक समाज के सुख-दुख का यर्थाथ चित्रण प्रस्तुत करना ही प्रगतिवाद का लक्ष्य है।