वाष्पोत्सर्जन पौधे के माध्यम से होने वाले पानी के आवागमन और इसके हवाई भागों से वातावरण में होने वाले वाष्पीकरण की प्रक्रिया है। पत्तियों में और युवा कलियों में एपिडर्मल (बाह्यत्वचा) परत में सूक्ष्म रंध्र की तरह की संरचनाएं होतीं है, इसे स्टोमेटा कहा जाता है। वाष्पोत्सर्जन मुख्य रूप से पत्तियों के स्टोममेटा के माध्यम से होता है। स्टोमेटा मुख्य रूप से प्रकाश संश्लेषण और श्वसन की प्रक्रिया के दौरान गैसों के आदान-प्रदान से संबंधित होता हैं। हरेक स्टोममेटा में दरार जैसे निकासमुख होते हैं । इन्हें स्टोमेटल रंध्र कहा जाता है। यह पहरेदार कोशिकाओं (गार्ड सेल्) नामक दो विशेष कोशिकाओं से घिरा रहता है। ये विशेष कोशिकाएं स्टोमेटा को खोल और बंद करके वाष्पोत्सर्जन की दर को विनियमित करने में मदद करती हैं। Show
वाष्पोत्सर्जन का महत्व
वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करने वाले पर्यावरणीय कारक
अलग-अलग पौधों में स्टोमेटा का वितरण, संख्या, आकार और प्रकार अलग-अलग होता है। यहां तक कि पौधे के अंदर ही पत्ती की ऊपरी और निचली सतहों में अलग-अलग वितरण हो सकता है। कुछ पौधों में पत्ती की ऊपरी सतह की तुलना में निचली सतह पर बड़ी संख्या में स्टोमेटा मौजूद होते हैं। इसलिए, निचली सतह से होनेवाली पानी की हानि ऊपरी सतह से ज्यांदा होती है। हम पत्ती की दो सतहों से होने वाली जलवाष्प की हानि की तुलना करके पत्ती की दो सतहों से होने वाले वाष्पोत्सर्जन की दर का अध्ययन कर सकते हैं। वाष्पोत्सर्जन की दर को आसानी से कोबाल्ट क्लोराइड पेपर परीक्षण के जरिए प्रदर्शित किया जा सकता है। नीले रंग वाला सूखा कोबाल्ट क्लोराइड पेपर जब पानी के संपर्क में आता है तो गुलाबी हो जाता है। कोबाल्ट क्लोराइड पेपर के इस गुणधर्म का उपयोग करके हम वाष्पोत्सर्जन के दौरान होने वाली पानी की हानि का प्रदर्शन कर सकते हैं । हम पेपर का रंग नीले से गुलाबी में बदलने में लगने वाले समय का उपयोग करके वाष्पोत्सर्जन की दर का मापन कर सकते हैं। ● छात्र वाष्पोत्सर्जन की अवधारणा समझते हैं। ● छात्र वाष्पोकत्सर्जन का महत्व समझते हैं। ● छात्र वाष्पोत्सर्जन की दर को प्रभावित करने वाले कारकों को समझते हैं। ● एक बार जब छात्र एनीमेशन और सिमुलेशन के माध्यम से चरणों को समझ लेंगें वे वास्तविक प्रयोगशाला में और ज्यादा सही ढंग से प्रयोग करने में सक्षम हो जाएंगे “पौधे के वायवीय भागों (pneumatic parts) द्वारा जल के वाष्प (water vapour) के रूप में हानि को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं” पौधे अपनी जड़ों द्वारा मृदा (soil) से जल का निरंतर अवशोषण करते रहते हैं। यह जल रसारोहण (ascent of sap) द्वारा पौधे के विभिन्न भागों में पहुंचता है। पौधे द्वारा अवशोषित (absorbed) जल की कुल मात्रा उसकी अपनी आवश्यकता से बहुत अधिक होती है। इस जल की कुछ ही मात्रा उसकी (पौधे की) वृद्धि तथा विकास (Plant growth) में काम आती है तथा आवश्यकता से अधिक जल की मात्रा पौधे की वायवीय भागो (स्तंभ, पत्तियों, कलियों एवं पुष्पों) से वाष्प के रूप में बाहर निकल जाती है जो संपूर्ण अवशोषित जल का लगभग 95% होती है। इसी क्रिया को वाष्पोत्सर्जन (transpiration) कहते हैं। Table of Contents
वाष्पोत्सर्जन और वाष्पीकरण में अंतरक्रमांकवाष्पोत्सर्जनवाष्पीकरण1.यह एक जैविक (vital) क्रिया है।यह एक भौतिक क्रिया है।2.यह क्रिया मुख्यतः रंध्रों (stomata) द्वारा होती है।यह किसी भी सतह से हो सकती है।3.इसमें पानी वाष्प के रूप में पौधों के वायवीय भागों से निकलता है।इसमें पानी वाष्प (vapor) के रूप में पानी की किसी भी स्वतंत्र सतह से निकलता है।4.पानी की प्रति इकाई क्षेत्रफल (area per unit) हानि अधिक होती है।पानी की प्रति इकाई क्षेत्रफल हानि कम होती है।5.यह एक नियमित (regulated) क्रिया है।यह एक अनियमित (non-regulated) क्रिया है।6.इस क्रिया में कई प्रकार के दाब (pressure), जैसे- चूषण दाब, परासरण दाब आदि भाग लेते हैं।यह किसी दाब द्वारा नियंत्रित नहीं होती है।वाष्पोत्सर्जन के कारण होने वाली जल की हानि (water loss) बहुत अधिक होती है तथा इसकी मात्रा विभिन्न पौधों में भिन्न-भिन्न होती है। जल संतृप्त अवस्था (saturated state) में उगने वाला ताड़ (palm) का वृक्ष एक दिन में 10-20 लीटर जल की हानि कर सकता है जबकि सेब का वृक्ष 1 दिन में 10 से 20 लीटर जल की हानि कर सकता है। मक्के का एक पौधा प्रतिदिन 3-4 लीटर जल की हानि कर सकता है जबकि मरुस्थलीय जलवायु में वृक्ष के आकार का एक कैक्टस (कैक्टस) प्रतिदिन 0.02 लीटर से भी कम जल की हानि करता है। सामान्यतः C₄ पौधों की अपेक्षा C₃ पौधों में जल हानि अधिक होती है। वाष्पोत्सर्जन का प्रदर्शनमिट्टी के एक गमले (clay pot) में एक पौधा लगाकर उसमें पहले बहुत पानी दे। अब गमले कि मिट्टी को रबर की चादर (Rubber wrap) से अच्छी तरह बंद कर दे ताकि मिट्टी में से जल न उड़ सके। इस गमले को एक बेलजार की नीचे रखकर बेलजार को वेसलीन या ग्रीस लगाकर (air tight) कर दें। कुछ देर बाद बेलजार की दीवारों (wall) पर जल की छोटी-छोटी बूंदे जमा हो जाएगी। इससे सिद्ध होता है कि पत्तियों द्वारा वाष्पोत्सर्जन (transpiration) होने से निकली वाष्प ठंडी (vapor cool) होने से बेलजार पर छोटी-छोटी बूंदों (drops) के रूप में एकत्र हो गयी है। वाष्पोत्सर्जन के प्रकारयह मुख्यतः तीन प्रकार के होते हैं- रंध्री वाष्प उत्सर्जन (Stomatal transpiration), उपत्वचीय वाष्प उत्सर्जन (epidermal transpiration), वातरंध्री वाष्प उत्सर्जन (Vasoconstriction)। इन्हें भी पढ़ें:- बिंदु स्त्राव किसे कहते है (12th, Biology, Lesson-1) रंध्री वाष्पोत्सर्जनरंध्री वाष्पोत्सर्जन पत्तियों पर स्थित रंध्रों (stomata) द्वारा होता है। इसे पणीय वाष्पोत्सर्जन (foliar transpiration) भी कहते हैं। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का लगभग 80-95% होता है। उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जनउपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन पौधों की बाहरी त्वचा के ऊपर पायी जाने वाली उपत्वचा अथवा उपचर्म (cuticle) द्वारा होता है। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का 5-10% तक होता है। उष्ण कटिबंधीय (tropical) जलवायु में इसकी दर अपेक्षाकृत अधिक तथा मरुस्थली (desert) जलवायु में कम होती है। वातरंध्री वाष्पोत्सर्जनवातरंध्री वाष्पोत्सर्जन काष्ठीय के तने तथा कुछ फलों में पाये जाने वाले वातरंध्र (lenticel) द्वारा होता है। यह कुल वाष्प उत्सर्जन का केवल 0.1-1%, अर्थात नगण्य होता है। पौधों में वाष्पोत्सर्जन में क्या होता है?पौधों द्वारा अनावश्यक जल को वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकालने की क्रिया को वाष्पोत्सर्जन कहा जाता है। पैड़-पौधे मिट्टी से जिस जल का अवशोषण करते हैं, उसके केवल थोड़े से अंश का ही पादप के शरीर में उपयोग होता है। शेष अधिकांश जल पौधों द्वारा वाष्प के रूप में शरीर से बाहर निकाला जाता है।
पौधों में वाष्पोत्सर्जन कौन करता है?स्टोमेटा द्वारा,जड़ों द्वारा,तनों द्वारा,मूलरोम द्वारा।
पौधों में वाष्पोत्सर्जन कितने प्रकार का होता है?Solution : वाष्पोत्सर्जन तीन प्रकार के होते हैं - <br> (1) रन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन <br>(2) उपत्वचीय वाष्पोत्सर्जन <br>(3) वातरन्ध्रीय वाष्पोत्सर्जन।
4 वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए क्या महत्व है?Solution : वाष्पोत्सर्जन क्रिया का पौधों के लिए महत्व-पौधे के मूल से चोटी तक लगातार जल की धारा वाष्पोत्सर्जन के द्वारा ही प्रवाहित होती है। यह खनिज व अवशोषण एवं परिवहन में भी सहायता करता है। इसके अलावा यह पौधों में तापक्रम-संतुलन बनाए रखने में सहायक होता है।
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