सूरजमल का इतिहास दिल्ली की लड़ाई - soorajamal ka itihaas dillee kee ladaee

सूरजमल का इतिहास दिल्ली की लड़ाई - soorajamal ka itihaas dillee kee ladaee
भरतपुरPublished: Dec 25, 2019 12:42:45 am

-तोप चले बंदूक चले, जाके रायफल चले इशारे ते।अबकै जाने बचाइले अल्लाह, या जाट भरतपुर वारे ते।।

सूरजमल का इतिहास दिल्ली की लड़ाई - soorajamal ka itihaas dillee kee ladaee

महाराजा सूरजमल ने 80 युद्ध लड़े पर नहीं हरा पाया कोई भी राजा

भरतपुर. ये आवाजें दिल्ली की प्राचीरों में आज भी गूंज रही है। इतिहास गवाह है कि भरतपुर की स्थापना रक्त एवं खडग़ों के सृजन से हुई है। राजा बदन सिंह की रानी देवकी के गर्भ से सूरजमल जैसा योद्धा 13 जनवरी 1707 को डीग के राज प्रसादों में पैदा हुआ। 1721 ईस्वी में मात्र 14 वर्ष की आयु में जब सूरजमल पिता राजा बदन सिंह के दूत के रूप में सवाई जय सिंह से मिलने उसके दिल्ली स्थित मुकाम पर पहुंचा, तब उसके राजनैतिक जीवन का प्रारंभ हुआ था। भारतीय राज्य व्यवस्था में सूरजमल का योगदान सैद्धांतिक या बौद्धिक नहीं अपितु रचनात्मक तथा व्यावहारिक था। मुसलमानों, मराठों, राजपूतों से गठबंधन का शिकार हुए बिना ही उसने अपने युग पर एक जादू सा फेर दिया था। राजनैतिक तथा सैनिक दृष्टि से वह कभी पथभ्रांत नहीं हुआ। कई बार उसके हाथ में बहुत काम के पत्ते नहीं होते थे, फिर भी वह कभी गलत या कमजोर चाल नहीं चलता थे। सैयद गुलाम अली नकबी अपने ग्रंथ इमाद उस सादात में लिखता है कि... नीतिज्ञता और राजस्व तथा दीवानी मामलों के प्रबंध की निपुणता तथा योग्यता में हिंदुस्तान के उच्च पदस्थ लोगों में से... आसफजाह बहादुर, निजाम के सिवाय कोई भी उसकी बराबरी नहीं कर सकता था। उसमें अपनी जाति के सभी श्रेष्ठ गुण, ऊर्जा, साहस, चतुराई, निष्ठा और कभी पराजय स्वीकार न करने वाली अदम्य भावना सबसे बढ़कर विद्यमान थे, लेकिन यह सब सूरजमल ने कर दिखाया। वह एक ऐसा होशियर पंछी था, जो हर एक जाल में से दाना तो चुग लेता था पर उसमें फंसता नहीं था।
महाराजा सूरजमल के शासनकाल में धर्म के नाम पर भेदभाव व उत्पीडऩ का कोई उदाहरण नहीं मिलता है। इसके विपरीत अहमद शाह अब्दाली की मुस्लिम सेनाओं ने धर्म के नाम पर जब उनके राज्य में मथुरा, वृंदावन व गोकुल में अत्याचार व विनाश का नग्न प्रदर्शन किया। तब भी सूरजमल ने धैर्य नहीं खोया। उसके राज्य में मस्जिदों की पवित्रता यथावत बनी रही। व्यक्तिगत रूप से सूरजमल हिंदू धर्म के वैष्णव संप्रदाय का अनुयायी था, लेकिन राज्य की नीति एवं सार्वजनिक मामलों में उसने उदार सामंजस्य की नीति का पालन किया। उसके सेवकों में करीम मुल्लाह खान और मीर पतासा प्रमुख थे। उसकी सेना में मुसलमान बहुत बड़ी संख्या में मेव थे। मीर मुम्मद पनाह उसकी सेना में अति महत्वपूर्ण पद पर था। उसने घसेरा के दुर्ग पर सर्व प्रथम विजयी झंडा फहराते हुए अपने प्राणों की आहूति दी थी। सेना व प्रशासन में बिना किसी भेदभाव के जाट, मुसलमानों के अलावा ब्राह्मण, राजपूत, गूजर सहित सभी वर्गों के लोग थे। खजाने की देखरेख जाटव खजांची करता था।
वरिष्ठ साहित्यकार रामवीर सिंह वर्मा बताते हैं कि किसान संस्कृति पर आधारित भरतपुर राज्य के संस्थापक महाराजा सूरजमल ने मुगल वजीर मंसूर अली सफदरजंग को अपने डीग के किले में शरण देकर पानीपत युद्ध से जान बचाकर, लुटे-पिटे मराठा सैनिक व सेना नायक सदाशिव राव भाऊ की पत्नी पार्वती देवी को शरण देकर शरणागत रक्षक का अनुपम उदाहरण प्रस्तुत किया। पानीपत युद्ध में विजयी अहमदशाह अब्दाली ने सूरजमल को संदेश भेजा कि यदि पराजित मराठों को उसने नहीं सौंपा और अपने राज्य में शरण दी तो वह भरतपुर राज्य पर आक्रमण कर देगा। अब्दाली की धमकी व आसन्न आक्रमण की चिंता किए बिना उसने मराठा सेना को अपने डीग, कुम्हेर, भरतपुर के किलों में शरण दी। छह माह तक घायलों का इलाज व अन्न, वस्त्र, भोजन देकर आश्रय दिया और अपनी सेना की ओर से ग्वालियर तक सुरक्षित पहुंचाया। मीर वख्सी सलामत खां को पराजित किया। रूहेला सरदार अहमद शाह वंगश के हिमालय की तराइयों तक खदेड़ा, मल्हार राव हाल्कर, बजीर गाजिउद्दीन तथा जयपुर नरेश माधो सिंह की गठबंधित सेना को 1754 के युद्ध में पराजित किया। डासना अलीगढ़ के युद्ध में नजीब खां को हार का मुंह दिखाकर भारत से लौटने पर विवश कर और भारत की पश्चिमोत्तर सीमा पर छोटे-छोटे राज्य तथा नबाबों से राज्य छीनकर एक संगठित राज्य की स्थापना की।

मराठा सेनापति भाऊ यदि महाराजा सूरजमल के परामर्श को मान लेते तो पानीपत युद्ध में उनकी पराजय नहीं होती और न अंग्रेजों को भारत में प्रवेश करने का अवसर मिल पाता। यह देश का दुर्भाग्य ही कहा जाएगा कि इस युद्ध के बाद देश में विदेशी शक्तियों ने अधिकार जमा लिया। सूरजमल ने अपने जीवन में अस्सी युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे, उन्हें कोई राजा-महाराजा हरा नहीं पाया। इमाद के लेखक ने सत्य ही उसे जाटों का प्लेटो कहा है। भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए दिल्ली में इमाद से लड़े गए युद्ध में धोखे से महाराजा सूरजमल 25 दिसंबर 1763 को वीरगति को प्राप्त हो गए। 25 दिसंबर ईशा का बलिदान दिवस विश्व का महान पर्व बन गया। उनके 256वें बलिदान दिवस पर समूचा देश उन्हें नमन करता है।

Raja Suraj Mal – नमस्कार एक बार फिर हाजिर हैं हम राजस्थान के वीर राजाओं की कहानियों की श्रृंखला में आज हम आपके लिए लाए हैं राजस्थान के छोटे से जिले भरतपुर के जाट महाराजा सूरजमल की इतिहास के पन्नों में कहीं गुम हो चुकी कहानी। महाराजा सूरजमल की कहानी को आज हम आपके साथ शेयर करेंगे।

राजस्थान के भरतपुर को एक नई पहचान दिलाने वाले और अपने शत्रुओं को धूल चटाने वाले इस महान राजा की क्या थी खासियत, महाराजा सूरजमल का जीवन परिचय, महाराजा सूरजमल का इतिहास, महाराजा सूरजमल की उपाधियां, इन सब की जानकारी हम आपको इस पोस्ट के माध्यम से देंगे। इतिहास द्वारा उपेक्षित इस महान राजा के जीवन से जुड़ी कई सारी बातें आज हम इस पोस्ट के माध्यम से आपको बताएंगे।

राजा सूरजमल जीवन परिचय (Raja Suraj Mal Biography in Hindi) :

तेरह जनवरी सत्रह सौ सात में महाराजा बदन सिंह जाट और महारानी देवकी के घर राजस्थान के भरतपुर ज़िले में जन्मे महाराजा सूजन सिंह जिन्हें इतिहास में महाराजा सुजान सिंह के नाम से भी जाना जाता है। महाराजा सूजन सिंह के पांच बेटे थे जिनका नाम रंजीत सिंह, जवाहर सिंह, नवल सिंह, रतन सिंह, और नाहर सिंह था।

महाराजा सूजन सिंह ने जिस शौर्य का परिचय अपने समय में दिया उससे यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि महाराजा सूजन सिंह के समय में उन को टक्कर देने वाला कोई दूसरा शासक भारत में हुआ ही नहीं हालांकि अब यह भी कह सकते हैं कि 18वीं सदी का समय उनके शासन का सबसे उथल पुथल और राजनैतिक परेशानियों वाला रहा है

लेकिन उन्होंने जिस तरह से अपने साम्राज्य को दिल्ली और आगरा तक बढ़ाया इतना सामर्थ्य तो उस समय के किसी मराठा शासक में भी नहीं था। उनकी सेना इतनी विशाल थी कि इनकी सेना में पंद्रह सौ से ज्यादा घुड़सवार और पच्चीस हज़ार से ज़्यादा पैदल सैनिक थे।

महाराजा सूरजमल की उपाधियां (Titles of Raja Suraj Mal in Hindi) :

महाराजा सूरजमल को जाटों का प्लेटो या जाटों का अफलातून कहा जाता है। उनको यह उपाधि उनकी वीरता और शौर्य के लिए दी जाती है। उन्होंने जिस तरह भरतपुर के जाट साम्राज्य को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाया वह उस समय कि भारत में किसी भी शासक के लिए करना लगभग नामुमकिन था।

इन्होने अपनी सूझबूझ से ना सिर्फ मुगल शासकों को हराया बल्कि उन्होंने अपनी दानशीलता और सहानुभूति से भारत के दूसरे राज्यों और शासकों की कई प्रकार से मदद की। महाराजा सूजन सिंह को उनके दानवीरता के लिए याद किया जाता है।

महाराजा सूरजमल का इतिहास (Raja Surajmal History in Hindi) :

महाराजा सूरजमल ने केवल पच्चीस वर्ष की उम्र में अपना पहला सैन्य अभियान सफलतापूर्वक संचालित किया था। महाराजा सूजन सिंह की सूझबूझ और उनकी राजनैतिक स्थिरता की तुलना ऑडिसस से की जाती है। महाराजा सूजन सिंह ने सत्रह सौ तेतीस में खेमकरण सोगरिया को हराकर भरतपुर को अपने कब्जे में किया था और सत्रह सौ तियालीस में यहीं से उन्होंने अपने भरतपुर साम्राज्य की स्थापना की थी।

महाराजा सूरजमल के युद्ध और उपलब्धियाँ (War and Achievements of Raja Suraj Mal in Hindi) :

महाराजा सूरजमल ने अपने जीवन काल में कई युद्ध लड़े और उन पर विजय पाई इतिहासकारों के अनुसार देखा जाए तो ऐसा कहा जाता है कि सूरजमल ने अपने पूरे जीवन में कुल अस्सी युद्ध किए थे और उन्होंने सारे युद्ध में जीत हासिल की थी। उन्होंने अपने जीवन में कोई भी युद्ध कभी नहीं हारे थे। उनके द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्धों का वर्णन इस प्रकार हैं-

उन्होंने ने सत्रह सौ तरेपन में दिल्ली पर हमला किया था। उस समय दिल्ली पर नवाब गाजी अल्दीन का शासन था। नौ दिन चले इस सैन्य अभियान में उन्होंने एक-एक कर के दिल्ली के लगभग सभी प्रमुख इलाकों पर अपना कब्जा कर लिया था। मुगल सेना इनकी विशाल सेना का सामना नहीं कर पाई और मुगल सेना के कई सैनिक मारे गए। महाराजा सूजन सिंह की दिल्ली से यह लड़ाई इतनी भीषण थी कि इसमें रोहिल्ला सेना के चार सौ सैनिक मारे गए दिल्ली की सेना की हालत खराब हो गई और आखिरकार उन्होंने विवश होकर मराठा साम्राज्य से मदद की गुहार लगाई।

उन्होंने पिछले सत्तर सालों से चले आ रहे मुस्लिम शासन को अपने इस युद्ध के माध्यम से आखिरकार खत्म कर दिया। उनके के इस सैन्य अभियान में फर्रुखनगर के नवाब मूसा खान को पराजय का मुंह देखना पड़ा और इस तरह फरुखनगर और इसके आसपास के इलाकों पर महाराजा सूजन सिंह का अधिकार हो गया।

दिल्ली सल्तनत के बादशाह आलमगीर द्वितीय और उसके वज़ीर सिराजुद्दौला के बीच में किसी बात को लेकर स्थिति बहुत बिगड़ गई थी। इस पर महाराजा सूजन सिंह ने सिराजुद्दौला का पक्ष लेते हुए सुल्तान आलमगीर द्वितीय को दोषी ठहराया। इस पर महाराजा से युद्ध करने के लिए सुल्तान आलमगीर द्वितीय ने मराठा साम्राज्य से मदद मांग की क्योंकि वह जानता था कि वह अकेला अपनी सैन्य शक्ति से Raja Suraj Mal की विशाल सेना का सामना नहीं कर सकता था।

इस पर एक मराठा सरदार खंडेराव होल्कर ने सुल्तान आलमगीर द्वितीय की मदद करना स्वीकार किया और उसने Raja Suraj Mal के एक इलाके कुम्हेर पर अपनी घेराबंदी कर ली। इस घेरा बंदी के जवाब में Raja Suraj Mal अपनी विशाल सेना लेकर आए और खंडेराव होल्कर और आलमगीर द्वितीय की संयुक्त सेना पर गोलीबारी करना शुरू कर दिया।

एक गोला खांडेराव होल्कर की पालकी पर लगा और वह वहीं मर कर वीरगति को प्राप्त गया। इस प्रकार इस युद्ध में विजई होने के बाद सूरजमल और मराठा होल्कर राजाओं के बीच एक संधि हुई जो बाद में Raja Suraj Mal के लिए बहुत फायदे की साबित हुई।

महाराजा सूरजमल द्वारा निर्मित दुर्ग (Fort Built by Raja Suraj Mal in Hindi) :

महाराजा सूरजमल ने भरतपुर में लोहागढ़ नाम से एक किला 1733 में बनवाया था। इसके लिए की बनावट इतनी दुर्गम है की शायद ही आप में से किसी को पता होगा कि यह लोहागढ़ किला भारत का एकमात्र ऐसा किला है जिसे कोई भी शत्रु कभी नहीं जीत पाया।

इस किले का निर्माण ईस तरह से किया गया था कि इसके चारों ओर पहले पानी की बहुत गहरी खाई खाई खोदी गई और फिर एक बहुत सीधी और सपाट दीवार बनाई गई जिसके बाहर मिट्टी के गारे से दोहरी दीवार बनाई गई। जब भी शत्रु सेना किले की इस सुरक्षा दीवार पर तोप के गोले दागकर इसे ध्वस्त करने की कोशिश करती थी तो तोप से निकला गोला इस मिट्टी के गीले गारे में फंस जाता था और दीवार को बिना कोई नुकसान पहुंचाए शांत हो जाता था। इस तरह इस किले को कोई भी शत्रु सेना कभी नहीं जीत पाई।

यह किला इतना दुर्जेय है कि कई मुस्लिम शासक और यहां तक की अंग्रेजों ने इस किले को जीतने के लिए तेरह बार अपनी पूरी ताकत लगा दी। एक अंग्रेज अफसर जिसका नाम लॉर्ड लेक था, जिसने इस किले को बारूद तक से उड़ाने की योजना बनाई, लेकिन तब भी वह इस किले का कुछ नहीं बिगाड़ पाया। इसीलिए इस किले को अजय गढ़ का किला भी कहा जाता है।
उन्होंने भरतपुर में डीग नामक शहर भी बसाया था। स्कंद पुराण में जिस दीर्घापुर का ज़िक्र मिलता है वही भरतपुर का डीग है। डीग भरतपुर से बत्तीस किलोमीटर की दूरी पर स्थित है।

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महाराजा सूरजमल की ऊंचाई और वजन Raja Suraj Mal Height and Weight in Hindi) :

ऐसा माना जाता है कि महाराजा सूरजमल की ऊंचाई सामान्य व्यक्ति की ऊंचाई से कई गुना ज्यादा थी। कहने का मतलब यह है कि महाराजा सूरजमल लगभग सात फुट दो इंच लंबे थे। और साथ ही वो दोनों हाथों से तलवार चलाने में भी निपुण थे। इनका वज़न इतिहासकारों के अनुसार एक सौ पचास किलोग्राम के आसपास था। इस तरह कह सकते हैं कि वो एक बहुत ही विशालकाय और ह्रष्ट पुष्ट देह के धनी थे।

महाराजा सूरजमल की मृत्यु (Death of Raja Suraj Mal in Hindi) :

जब महाराजा सूरजमल ने आगरा पर कब्जा कर लिया तो उन्होंने कहा कि दिल्ली का सुल्तान अब यह बात मान ले की आगरा पर अब Raja Suraj Mal का कब्जा है। लेकिन दिल्ली में सुल्तान अहमद शाह अब्दाली ने Raja Suraj Mal की यह बात मानने से इनकार कर दिया। रुहेला रियासत का वजीर नजीब उद् दौला जाटों से कट्टर दुश्मनी रखता था।

दिल्ली के सुल्तान अहमद शाह अब्दाली के साथ उसके अच्छे संबंध थे इसलिए जब अहमद शाह अब्दाली ने उसे अपनी तरफ से Raja Suraj Mal के साथ युद्ध में जाने का आदेश दिया तो नजीब उद् दौला मना नहीं कर पाया। दूसरी तरफ दिल्ली में अहमद शाह अब्दाली और नजीब उद् दौला अपने मित्र शासकों की सेनाओं को इकट्ठा करके दिल्ली के किले में सुरक्षित होकर Raja Suraj Mal की सेना के आने की प्रतीक्षा करने लगा।

Raja Suraj Mal की सेना ने दिल्ली के किले को चारों तरफ से घेर लिया और उन्होंने अपनी सेना की एक टुकड़ी को किले पर गोले दागने का आदेश दे दिया। इस पर दिल्ली सेना को पीछे हटना पड़ा। कुछ वक्त के लिए युद्ध शांत हो गया तो अपनी सेना का निरीक्षण करने के लिए Raja Suraj Mal मुट्ठी भर घुड़सवार अपने साथ लेकर चल पड़े और इसी क्षण का फायदा उठाते हुए अहमद शाह अब्दाली की सेना के घुड़ सवारों की एक टुकड़ी ने उनके ऊपर चुपके हमला कर दिया।

अचानक से हुए इस हमले की वजह से Raja Suraj Mal हड़बड़ा गए और देखते ही देखते हैं उन्हें शत्रु सेना ने चारों तरफ से घेर लिया। अपनी छोटी सी भूल की वजह से Raja Suraj Mal पचपन वर्ष की उम्र में यमुना नदी के किनारे वीरता से लड़ते हुए मारे गए।

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महाराजा सूरजमल की मृत्यु कैसे हुई थी?

२५ दिसम्बर १७६३ ई में दिल्ली के शाहदरा में मुगल सेना द्वारा घात लगाकर किए गए एक हमले में सूरजमल की मृत्यु हो गयी। उनकी मृत्यु के समय उनके अपने किलों पर तैनात सैनिकों के अलावा, उनके पास 25,000 पैदल सेना और 15,000 घुड़सवारों की सेना थी।

महाराजा सूरजमल ने कितने युद्ध लड़े थे?

सूरजमल ने अपने जीवन में अस्सी युद्ध लड़े और सभी में विजयी रहे, उन्हें कोई राजा-महाराजा हरा नहीं पाया।

पानीपत का राजा कौन था?

महाराजा सूरजमल ने पानीपत की तीसरी लड़ाई में मराठों के आधे से ज्यादा सैनिक मारे जाने के बाद उनकी काफी मदद की। युद्ध हारने के बाद मराठों के पास ना तो पूरा राशन था और ना ही उन्हें इलाके के बारे में जानकारी थी। महाराजा सूरजमल ने पानीपत के युद्ध से पहले सदाशिव भाऊ को सलाह दी थी अब्दाली की सेना पर अभी अतिक्रमण करना ठीक नहीं।

राजा सूरजमल ने क्या बनवाया था?

महाराजा सूरजमल ने अभेद्य लोहागढ़ किला बनवाया था, जिसे अंग्रेज़ 13 बार आक्रमण करने के बाद भी भेद नहीं पाए थे। यह देश का एकमात्र ऐसा किला है, जो हमेशा अभेद्य रहा है।