साँवले सपने की याद हिंदी साहित्य की कौन सी विधा है? - saanvale sapane kee yaad hindee saahity kee kaun see vidha hai?

पठन सामग्री, अतिरिक्त प्रश्न और उत्तर और सार - साँवले सपनों की याद क्षितिज भाग - 1

पाठ का सार

इस पाठ में लेखक हुसैन जी ने पक्षी प्रेमी सालिम अली का स्मरण करते हुए उनका व्यक्तित्व परिचय दिया है। लेखक ने बताया वो ठीक एक सैलानी के तरह अपने कंधो पर बोझ उठाये पलायन कर गए परन्तु यह उनका आखिरी पलायन था यानी वो मृत्यु को प्राप्त हुए। वो प्रकृति में ठीक उस पक्षी की तरह विलीन हो गए जो आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। सालिम का मानना था की लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं।

लेखक ने वृन्दावन का जिक्र करते हुए कहा है की भले ही कृष्ण के बचपन की शरारतों को किसी ने नही देखा, कब उन्होंने घने पेड़ की छाहों में विश्राम किया और कब उन्होंने बांसुरी बजाई यह कोई नही जानता पर आज भी अगर कोई वृन्दावन जाकर नदी के सांवले पानी को देखे तो वह कृष्ण की याद दिला देता है। आज भी वृन्दावन कृष्ण की बांसुरी के जादू से खाली नही हुआ।

उसी तरह सालिम अली को भी पक्षी प्रेमी के रूप में हरदम याद किया जाएगा। पूर्व समय की याद करते हुए लेखक ने बताया है की वे उम्र की सौवें पड़ाव के करीब थे, यात्राओं की थकान ने उन्हें कमजोर कर दिया था और कैंसर जैसी जानलेवा मृत्यु उनके मौत का कारण बनी। परन्तु एक बात स्पष्ट थी की वे सब मिलकर उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नही हो पायीं जो पक्षियों की तलाश और उनके हिफाजत के प्रति समर्पित थीं। अपने जीवन के एकांत क्षणों में भी वह दूरबीन के साथ पक्षियों को निहारते ही देखे गए। वे उनलोगों में से थे जो प्रकृति के प्रभाव में ना जाकर प्रकृति को अपने प्रभाव में लाता है। उन्होंने अपना जीवनसाथी अपने स्कूल सहपाठी तहमीना को चुना, जिन्होने हर लम्हे में उनका सहयोग दिया।

सालिम जी अनेकों अनुभवों के मालिक थे। एक दिन वे केरल की 'साइलेंट वैली' को रेगिस्तानी हवाओं के झोंको से बचाने का अनुरोध लेकर पूर्व प्रधानमन्त्री चौधरी चरण सिंह से मिले थे जो की मिटटी पर पड़ी पानी की पहली बून्द का असर जाननें वाले नेता थे परन्तु पर्यावरण के संभावित खतरों के बारे में जब सालिम ने उन्हें अवगत कराया तब उनकी भी आँखे नम हो गयी। सालिम ने अपनी आत्मकथा का नाम 'फॉल ऑफ़ स्पैरो' रखा। जिसमे उन्होंने एक घटना का जिक्र करते हुए लेखक को डी.एच. लॉरेंस के बारे में लिखा है की उनकी मृत्यु के बाद उनकी पत्नी से कहा गया की वे अपने पति पर कुछ लिखें तब उन्होंने कहा की उनके बारे में मेरे से ज्यादा मेरी छत पर बैठने वाली गोरैया जानती है। मुमकिन है लॉरेंस सालिम का अटूट हिस्सा हों।

वे सदा जटिल प्राणियों के लिए एक पहली रहेंगे बचपन में उनके एयरगन की शिकार एक गोरैया ने उन्हें पक्षी प्रेमी बनाकर जो राह राह दिखाई वे उन्हें नए-नए रास्तों की ओर ले जाती रही। वे एक भ्रमणशील व्यक्ति थे जो की प्रकृति के दुनिया में एक टापू के बजाए अथाह सागर बनकर उभरे।

लेखक परिचय

जाबिर हुसैन

इनका जन्म सन 1945 में गाँव नौनहीं, राजगीर, जिला नालंदा, बिहार में हुआ। वे अंग्रेजी भाषा एवं साहित्य के प्राध्यापक रहे। इन्होने सक्रिय राजनीति में भी भाग लिया और विधानसभा के सदस्य, मंत्री और सभापति भी रहे। ये हिंदी, अंग्रेजी और उर्दू तीनों भाषाओं में समान अधिकार के साथ लेखन करते रहे हैं।

प्रमुख कार्य

हिंदी में - जो आगे हैं, डोला बीबी का मज़ार, अतीत का चेहरा, लोगां और एक नदी रेत भरी।

कठिन शब्दों के अर्थ

• गढ़ना - बनाना
• हुजूम - भीड़
• वादी - घाटी
• सोंधी - सुगन्धित
• पलायन - दूसरी जगह चले जाना
• हरारत - गर्मी
• आबशार - झरना
• मिथक - प्राचीन पुराकथाओं का तत्व, जो नविन स्थितियों मे  नए अर्थ का वहन करता हो।
• शोख - चंचल
• शती - सौ वर्ष का समय
• नैसर्गिक - स्वाभाविक

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जीवन-परिचय – जाबिर हुसैन का जन्म सन् 1945 में बिहार प्रदेश में हुआ। उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की। बाद में अंग्रेजी भाषा और साहित्य के प्राध्यापक नियुक्त हुए। वे आरंभ से ही देश की सक्रिय राजनीति में रुचि रखते थे। सन् 1977 में उन्होंने मुंगेर विधानसभा का चुनाव जीता। उन्हें मंत्री बनाया गया। सन् 1995 से वे बिहार विधान परिषद् के सभापति हैं। राजनीतिज्ञ होने के साथ-साथ वे श्रेष्ठ लेखक भी हैं।

रचनाएँ- जाबिर हुसैन की हिंदी – रचनाएँ निम्नलिखित हैं।

डोला बीनी का मजार, जो आगे हैं, अतीत का चेहरा, लोगों, एक नदी रेत भरी।

साहित्यिक विशेषताएँ – जाबिर हुसैन ने अध्यापन के साथ-साथ सामाजिक क्षेत्रों में भी बहुत कार्य किया है। उन्होंने अपने लंबे राजनैतिक-सामाजिक जीवन में आम आदमी के संघर्ष को निकटता से महसूस किया है। इस अनुभव को उन्होंने अपने साहित्य में भी प्रकट किया है। उनके द्वारा संघर्षरत आम आदमी और विशिष्ट व्यक्तित्वों पर लिखी गई डायरियाँ काफी चर्चित और प्रशंसित हैं।

भाषा-शैली – जाबिर हुसैन की कृतियों में प्रयुक्त भाषा आम आदमी के निकट है। उनकी भाषा कलात्मक, सरल तथा रोचक है। उन्होंने अपनी रचनाओं में आवश्यकतानुसार तत्सम शब्दों, उर्दू और अंग्रेजी भाषा के शब्दों का भी प्रयोग किया है। उन्होंने डायरी विधा में अभिनव प्रयोग किया है जो अपनी प्रस्तुति, शैली और शिल्प में नवीन है।

पाठ का सार

‘साँवले सपनों की याद’ जाबिर हुसैन द्वारा लिखित संस्मरण है जो प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली को समर्पित है। यह संस्मरण जून 1987 में सालिम अली की मृत्यु के बाद डायरी शैली में लिखा गया है। सालिम अली की मृत्यु से दुखी लेखक ने अपने दुख और अवसाद को इस पाठ के रूप में व्यक्त किया है। लेखक ने सालिम अली को पक्षी विशेषज्ञ होने के साथ-साथ पर्यावरण प्रेमी भी माना है।

सुनहरे पक्षियों के पंखों पर साँवले सपनों का एक झुंड सवार है। यह झुंड मौत की वादी में जा रहा है, जिसमें सबसे आगे सालिम अली हैं। वे अपने कंधों पर सैलानियों की तरह अंतहीन सफर का बोझ उठाए हुए हैं। यह उनका अंतिम सफर है। वे उस वन- पक्षी की तरह विलीन हो रहे हैं जो अंतिम गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो।

सालिम अली इस बात से दुखी थे कि लोग पक्षियों को आदमियों की नजर से देखते हैं। वे झरने, पहाड़ों, जंगलों को भी इस दृष्टि से देखते हैं। ऐसे में वे इनके मधुर संगीत का अनुभव नहीं कर पाते हैं।

लेखक का मानना है कि इतिहास में पता नहीं कब कृष्ण ने वृंदावन में नाना प्रकार की क्रीड़ाएँ कीं और कब मधुर स्वर में बंसी बजाई कि वृंदावन संगीतमय हो उठा पर आज वृंदावन जाने पर यमुना का साँवला पानी सारी घटना की याद दिला देता है। कृष्ण की बाँसुरी से उत्पन्न जादू से वृंदावन कभी खाली नहीं हो सकता है। सालिम अली की मृत्यु लगभग एक सौ साल की उम्र में हुई। उनकी मौत कैंसर से हुई। इस उम्र में भी उनकी आँखों की ज्योति अच्छी थी जो पक्षियों की हिफाजत के लिए कटिबद्ध थी । सालिम अली प्रसिद्ध ‘बर्ड वाचर’ थे। एकांत के क्षणों में प्राकृतिक दृश्यों को देखने में खोए रहते थे। वे केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंके से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह से मिले। उनकी चिंता देख मिट्टी की सोंधी खुशबू का असर जानने वाले प्रधानमंत्री की आँखें भर आईं। आज न चौधरी चरण सिंह जिंदा हैं और न पर्यावरण प्रेमी सालिम अली। ऐसे में प्रकृति, पर्यावरण और पक्षियों की चिंता कौन करेगा? सालिम अली की आत्मकथा का नाम है-‘फॉल आफ ए स्पैरो’ (Fall of a Sparrow)। इसी बात से प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार डी. एच. लॉरेंस की मृत्यु के बाद की बात याद आ गई। कुछ लोगों ने उनकी पत्नी फ्रीडा लॉरेंस से अपने पति के बारे में कुछ लिखने को कहा। फ्रीडा का जवाब था कि उनके पति के बारे में उनसे ज्यादा उनकी छत पर बैठने वाली गौरैया जानती है। इस तरह लॉरेंस और सालिम अली दोनों ही प्रसिद्ध पक्षी प्रेमी थे।

बचपन के दिनों में उनकी एअरगन से घायल होकर गिरने वाली गौरैया उन्हें जीवन भर के लिए नई-नई खोज और नए-नए रास्तों की ओर ले गई। उसी दिन से वे पक्षियों के विषय में रुचि लेने लगे। प्राकृतिक रहस्यों को जानने के लिए नित नई ऊंचाइयाँ छूने लगे। सालिम अली आजीवन भ्रमणशील रहे। उनकी यायावरी देखकर लगता है कि वे आज भी पक्षियों की ही खोज में निकले हैं और कुछ ही देर में अपने गले में दूरबीन लटकाए जानकारी लिए वापस आ जाएँगे। लेखक पूछता है कि तुम लौटोगे ना सालिम अली!

पाठ्यपुस्तक पर आधारित महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. किस घटना ने सालिम अली के जीवन की दिशा को बदल दिया और उन्हें पक्षी प्रेमी बना दिया?

उत्तर- सालिम अली को पक्षी-प्रेमी बनाने में सबसे बड़ा हाथ उस घटना का है, जिसमें बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से नीले कंठ की एक गौरेया घायल होकर जमीन पर गिरी थी। घायल गौरैया को देखकर उनका मन व्यथा से द्रवित हो उठा था। उसकी सेवा करते हुए वे उसके बारे में बहुत कुछ जान गए थे। आगे चलकर उसी गौरैया ने सारी जिंदगी सालिम अली को खोज के नए-नए रास्ते दिखाए और उन्हें पक्षीविज्ञानी बनाकर, पक्षी जगत् के उच्च शिखर पर पहुँचाया था।

प्रश्न 2. सालिम अली ने पूर्व प्रधानमंत्री के सामने पर्यावरण से संबंधित किन संभावित खतरों का चित्र खींचा होगा, जिससे उनकी आँखें नम हो गई थीं?

उत्तर- सालिम अली ने तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह से केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवाओं से बचाने का अनुरोध किया था। सालिम अली ने इन रेगिस्तानी हवाओं के कुप्रभावों; जैसे- क्षेत्र का पक्षी विहीन हो जाना, पेड़ पौधों का नष्ट हो जाना, गंदगी का जमावड़ा लग जाना, क्षेत्र का प्राणीविहीन हो जाना इत्यादि बातों का लेखा-जोखा उनके सामने पेश किया। प्रधानमंत्री गाँव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की बूँद का असर जानने वाले नेता थे। अतः उन्होंने सालिम अली द्वारा प्रस्तुत कुप्रभावों को गहराई से समझा। फलस्वरूप उनकी आँखें नम हो गई थी। “

प्रश्न 3. लॉरेंस की पत्नी फ़ीडा ने ऐसा क्यों कहा होगा कि “मेरी छत पर बैठने वाली गौरया लरिंग के बारे में र सारी बातें जानती है?”

उत्तर- सालिम अली और डी. एच. लॉरेंस दोनों प्रकृति और पक्षियों को अत्यंत प्यार करते थे। वे अपना अधिकांश समय अपने आस-पास के पर्यावरण तथा पक्षियों की सूक्ष्म गतिविधियों को जानने में बिताते थे। फ्रीडा ने उपर्युक्त कथन इसलिए कहा होगा, कि गौरैया तथा लारेंस इतने घुल-मिल गए थे तथा एकदूसरे के बारे में इतनी जानकारी रखते थे, जितना फ्रीडा भी नहीं जानती थी। गौरैया पर लॉरेंस ने गहन अध्ययन किया था। उनकी प्रत्येक गतिविधि से वाकिफ थे। स्वयं खुले विचारों के आदमी थे। उनके जीवन से संबंधित सभी पहलू एक-दूसरे को मालूम थे। इसलिए फ्रीडा ने लॉरेंस के जीवन दर्शन, खुलेपन एवं सादेपन को सामने लाने के लिए ऐसा कहा होगा।

प्रश्न 4. “वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गए थे।” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- उक्त पंक्ति जाबिर हुसैन द्वारा लिखित है, जिसमें लॉरेंस और सालिम की सभ्यता को दर्शाया गया है। अंग्रेजी के प्रसिद्ध उपन्यासकार डी. एच. लॉरेंस को प्रकृति से बहुत लगाव था। उनकी अधिकांश रचनाओं की विषय-वस्तु प्रकृति ही है। वे मानते थे कि मानव जाति एक उखड़े हुए महान् वृक्ष की तरह है, जिसकी जड़ें हवा में फैली हुई हैं। अतः मानव का प्रकृति की ओर लौटना अत्यंत आवश्यक है। ठीक वैसे ही सालिम अली ने भी अपना जीवन प्रकृति और पक्षियों को समर्पित कर दिया। वे जीवनभर पक्षियों एवं प्रकृति संबंधी शोध में लगे रहे और मानव और प्रकृति को जोड़ने का प्रयास करते रहे।

प्रश्न 5. “कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे तो वह पक्षी अपने सपनों का गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- लेखक ने उपर्युक्त पंक्ति में सालिम अली के पक्षीप्रेम को निरूपित करते हुए उनकी तुलना ऐसे पक्षी से की है, जो अपने जीवन की लंबी यात्रा से थक कर मौत रूपी गोद में सदा के लिए सो गया है। अतः उसे कृत्रिम गर्मी और साँसे देकर जीवित नहीं किया जा सकता। सालिम अली के कार्य मौलिक थे, किसी के दिए हुए नहीं। अतः लेखक यह कहता है कि वह पक्षी, जो सदा के लिए सो गया है, उसे दोबारा आवाज देना असंभव है, अर्थात् उनके जैसा पक्षी-प्रमी शायद ही कोई हो।

प्रश्न 6. “सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने के बजाय अथाह सागर बनकर उभरे थे” पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर- उपर्युक्त पंक्ति में लेखक ने सालिम अली की व्यापकता को प्रतिपादित किया है। उनके अनुसार सालिम अली ने अपने कार्य क्षेत्र में किसी क्षेत्र विशेष के लिए काम नहीं किया। वह पूरे संसार के पक्षियों एवं पर्यावरण का हित सोचते थे। वे टापू की तरह सीमित दायरे के नहीं, वरन समुद्र की तरह अथाह तथा खुले आचार-विचार और सोच वाले व्यक्ति थे। वे पक्षी, प्रकृति और पर्यावरण के लिए कभी भी, कुछ भी करने को तैयार थे। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन उन्हें ही समर्पित कर दिया।

प्रश्न 7. जाबिर हुसैन की भाषा शैली की चार विशेषताएँ ‘साँवले सपनों की याद’ संस्मरण के आधार पर लिखिए।

उत्तर- ‘साँवले सपनों की याद’ संस्मरण में लेखक जाबिर हुसैन की भाषा शैली की निम्नलिखित विशेषताएँ उभरकर सामने आती हैं:

(i) मिश्रित शब्दावली का प्रयोग लेखक ने पाठ में हिंदी, अंग्रेजी, उर्दू तथा फारसी शब्दों का अधिकाधिक प्रयोग किया है।

(ii) मुहावरों का यथास्थान प्रयोग कर लेखनी में प्रभावोत्पादकता ला दी है। जामा पहनाना, कदम थमना, आँखें नम होना, कायल होना इत्यादि अनेक मुहावरे यथास्थान प्रयुक्त हुए हैं।

(iii) इस संस्मरण में प्रयुक्त वाक्य लंबे तथा जटिल हैं।

(iv) भावानुकूल भाषा का प्रयोग किया गया है। की सार्थकता

प्रश्न 8. “साँवले सपनों की याद” शीर्षक पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर- मेरे विवेकानुसार सालिम अली के संपूर्ण व्यक्तित्व को देखते हुए “साँवले सपनों की याद” शीर्षक संस्मरण पूर्णत: सार्थक है। कारण, जो सपना सालिम अली ने देखा था, उसे कुछ हद तक उन्होंने साकार भी किया | संपूर्ण संस्मरण सालिम अली के पक्षी-प्रेम और पक्षियों के लिए किए गए अवदान से भरा पड़ा है। वे आजीवन पक्षियों एवं पर्यावरण को ठीक रखने के प्रयास से जुड़े रहे। उनके कार्य और कार्य क्षेत्र किसी सपने से कम नहीं थे ये सपने हमें सदैव स्मरण रहेंगे।

वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1. सही विकल्प चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए –

(i) ‘आबसार’ का अर्थ……….. है। (नदी/झरना)

(ii) ‘हुजूम’ में सबसे आगे ………है। (नेता/सालिम अली)

(iii) सालिम अली को ……… की बीमारी थी। (क्षय/कैंसर)

(iv) सालिम अली की आँखों पर उम्र भर ……… चढ़ा रहा। (चश्मा/दूरबीन)

(v) ‘फाल ऑफ ए स्पेरो’ …….. की आत्मकथा है। (महात्मा गांधी / सालिम अली)

उत्तर- (i) झरना, (ii) सालिम अली, (iii) कैंसर, (iv) दूरबीन, (v) सालिम अली।

प्रश्न 2. सत्य / असत्य बताइए –

(i) सालिम अली विख्यात पक्षी विज्ञानी थे।

(ii) सालिम अली की आत्म कथा का नाम ‘मेरी आत्मकथा’ है।

(iii) साइलेंट वेली कश्मीर में है।

(iv) सालिम अली एक सागर बनकर उभरे थे।

(v) सालिम अली एक प्रकृति प्रेमी भी थे।

उत्तर- (i) सत्य, (ii) असत्य, (iii) असत्य, (iv) सत्य, (v) सत्य।

प्रश्न 3. एक वाक्य में उत्तर दीजिए –

(i) वृन्दावन क्यों प्रसिद्ध है?

(ii) तहमीना कौन थी ?

(iii) साइलेंट वेली कहाँ है?

(vi) चौधरी चरणसिंह कौन थे?

(v) ‘यायावरी’ क्या है?

उत्तर- (i) वृन्दावन भगवान कृष्ण की लीला स्थली होने से प्रसिद्ध है।

(ii) तहमीना, सालिम अली की पत्नी थी।

(iii) साइलेंट वेली केरल प्रान्त में है।

(iv) चौधरी चरणसिंह भारत के भूतपूर्व प्रधानमंत्री थे। (v) घुमक्कड़ी।

महत्वपूर्ण गद्यांशों पर आधारित प्रश्नोत्तर

गद्यांश 1. “सुनहरे परिदों के खूबसूरत पंखों पर सवार साँवले सपनों का एक हुजूम मौत की खामोश वादी की तरफ अग्रसर है। कोई रोक-टोक सके, कहाँ संभव है। इस हुजूम में आगे-आगे चल रहे हैं, सालिम अली। अपने कंधों पर, सैलानियों की तरह अपने अंतहीन सफर का बोझ उठाए। लेकिन यह सफर पिछले तमाम सफरों से भिन्न है। भीड़-भाड़ की जिंदगी और तनाव के माहौल से सालिम अली का यह आखिरी पलायन है। अब तो वो उस वन-पक्षी की तरह प्रकृति में विलीन हो रहे हैं, जो जिंदगी का आखिरी गीत गाने के बाद मौत की गोद में जा बसा हो। कोई अपने जिस्म की हरारत और दिल की धड़कन देकर भी उसे लौटाना चाहे, तो वह पक्षी अपने सपनों के गीत दोबारा कैसे गा सकेगा!”

प्रश्न 1. उक्त गद्यांश में किस हुजूम की चर्चा की गई है?

उत्तर- उक्त गद्यांश में सालिम अली के शव को कंधे पर उठाए लोगों के हुजूम की चर्चा की गई हैं।

प्रश्न 2. इस गद्यांश में वर्णित हुजूम में सबसे आगे कौन है ?

उत्तर- इस गद्यांश में वर्णित हुजूम में सबसे आगे सालिम अली हैं।

प्रश्न 3. सालिम अली कहाँ विलीन होने वाले थे ?

उत्तर- सालिम अली प्रकृति में विलीन होने वाले थे।

प्रश्न 4. ‘हुजूम’ का क्या अर्थ है?

उत्तर- हुजूम का अर्थ है- जनसमूह ।

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश किस अध्याय से लिया गया है। इस अध्याय के लेखक कौन हैं?

उत्तर- उक्त गद्यांश ‘साँवले सपनों की याद’ अध्याय से लिया गया है। इसके लेखक जाबिर हसैन हैं।

गद्यांश 2. “मुझे नहीं लगता, कोई इस सोए हुए पक्षी को जगाना चाहेगा। वर्षों पूर्व, खुद सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं। यह उनकी भूल है, ठीक उसी तरह, जैसे जंगलों और पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वो प्रकृति की नजर से नहीं, आदमी की नजर से देखने को उत्सुक रहते हैं। भला कोई आदमी अपने कानों से पक्षियों की आवाज का मधुर संगीत सुनकर अपने भीतर रोमांच का सोता फूटता महसूस कर सकता है?”

प्रश्न 1. प्रस्तुत गद्यांश में सोए हुए पक्षी किसके लिए प्रयुक्त हुआ है? सालिम अली ने क्या कहा था?

उत्तर- प्रस्तुत गद्यांश में सोए हुए पक्षी का प्रयोग सालिम अली के लिए हुआ है। सालिम अली ने कहा था कि लोग पक्षियों को आदमी की नजर से देखना चाहते हैं।

प्रश्न 2. सालिम अली ने लोगों की किस भूल की तरफ ध्यान आकृष्ट किया है? जंगलों, पहाड़ों, झरनों और आबशारों को वे किस नजर से देखने को उचित मानते हैं?

उत्तर- पक्षियों को मनुष्य की नजर से देखने को सालिम अली लोगों की भूल मानते थे। वे जंगलों, पहाड़ों, झरनों और आबशारों को प्रकृति की नजर से देखने को उचित मानते हैं।

प्रश्न 3. ‘आबशार’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- ‘आबशार’ का अभिप्राय झरना है।

गद्यांश 3. “पता नहीं, इतिहास में कब कृष्ण ने वृंदावन में रासलीला रची थी और शोख गोपियों को अपनी शरारतों का निशाना बनाया था। कब माखन भरे भांडे फोड़े थे और दूध-छाली से अपने मुँह भरे थे। कब वाटिका में, छोटे-छोटे किंतु घने पेड़ों की छाँव में विश्राम किया था। कब दिल की धड़कनों को एकदम से तेज करने वाले अंदाज में बंसी बजाई थी और पता नहीं, कब वृंदावन की पूरी दुनिया संगीतमय हो गई थी। पता नहीं, यह सब कब हुआ था। लेकिन कोई आज भी वृंदावन जाए तो नदी का साँवला पानी उसे पूरे घटनाक्रम की याद दिला देगा। हर सुबह, सूरज निकलने से पहले, जब पतली गलियों से उत्साह भरी भीड़ नदी की ओर बढ़ती है, तो लगता है जैसे उस भीड़ को चीरकर अचानक कोई सामने आएगा और बंसी की आवाज पर हर किसी के कदम थम जाएँगे। हर शाम सूरज ढलने से पहले, जब वाटिका का माली सैलानियों को हिदायत देगा, तो लगता है जैसे बस कुछ ही क्षणों में वो कहीं से आ टपकेगा और संगीत का जादू वाटिका के भरे-पूरे माहौल पर छा जाएगा। वृंदावन कभी कृष्ण की बाँसुरी के जादू से खाली हुआ है क्या!”

प्रश्न 1. वृंदावन में किसने कौन-सी लीला रची थी?

उत्तर- वृंदावन में कृष्ण ने रासलीला रची थी।

प्रश्न 2. वृंदावन क्यों प्रसिद्ध है?

उत्तर- वृंदावन कृष्ण की लीला स्थली होने के कारण प्रसिद्ध है।

प्रश्न 3. वृंदावन में किसके संगीत का जादू चलता है?

उत्तर- वृंदावन में कृष्ण की बांसुरी के संगीत का जादू चलता है।

प्रश्न 4. ‘शोख’ शब्द से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- ‘शोख’ शब्द से अभिप्राय है- चंचल ।

प्रश्न 5. उपर्युक्त गद्यांश पाठ्य पुस्तक के किस अध्याय से लिया गया है तथा उसके लेखक कौन हैं?

उत्तर- गद्यांश का अध्याय ‘साँवले सपनों की याद’ है। इसके लेखक जाबिर हुसैन हैं।

गद्यांश 4. “मिथकों की दुनिया में इस सवाल का जवाब तलाश करने से पहले एक नजर कमजोर काया वाले उस व्यक्ति पर डाली जाए जिसे हम सालिम अली के नाम से जानते हैं। उम्र को शती तक पहुँचने में थोड़े ही दिन तो बच रहे थे। संभव है, लंबी यात्राओं की थकान ने उनके शरीर को कमजोर कर दिया हो, और कैंसर जैसी जानलेवा बीमारी उनकी मौत का कारण बनी हो। लेकिन अंतिम समय तक मौत उनकी आँखों से वह रोशनी छीनने में सफल नहीं हुई जी पक्षियों की तलाश और उनकी हिफाजत के प्रति समर्पित थी। सालिम अली की आँखों पर चढ़ी दूरबीन उनकी मौत के बाद ही तो उतरी थी। “

प्रश्न 1, इस गद्यांश में सालिम अली की किस विशेषता को उजागर किया गया है?

उत्तर- इस गद्यांश में सालिम अली के दुबले-पतले होने की ओर संकेत किया गया है।

प्रश्न 2. ‘मिथक’ से क्या अभिप्राय है?

उत्तर- ‘मिथक’ से अभिप्राय है प्राचीन कथाओं का तत्व, जो नवीन परिस्थितियों में नए अर्थ का बोध कराता है।

प्रश्न 3. लेखक ने सालिम अली की आँखों की रोशनी को किसके प्रति समर्पित बताया है?

उत्तर- लेखक ने सालिम अली की आँखों की रोशनी को पक्षियों की तलाश और उनकी हिफाजत के प्रति समर्पित बताया है।

प्रश्न 4. सालिम अली को कौन-सी बीमारी थी?

उत्तर- सालिम अली को कैंसर की बीमारी थी।

प्रश्न 5. लेखक के अनुसार सालिम अली की आँखों पर ताउम्र क्या चढ़ा रहा?

उत्तर- सालिम अली की आँखों पर ताउम्र दूरबीन चढ़ा रहा।

गद्यांश 5. “उन जैसा ‘बर्ड वाचर’ शायद ही कोई हुआ हो। लेकिन एकांत क्षणों में सालिम अली बिना दूरबीन भी देखे गए हैं। दूर क्षितिज तक फैली जमीन और झुके आसमान को छूने वाली उनकी नजरों में कुछ-कुछ वैसा ही जादू था, जो प्रकृति को अपने घेरे में बाँध लेता है। सालिम अली उन लोगों में थे, जो प्रकृति के प्रभाव में आने की बजाए प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं। उनके लिए प्रकृति में हर तरफ एक हँसती-खेलती रहस्य भरी दुनिया पसरी थी। यह दुनिया उन्होंने बड़ी मेहनत से अपने लिए गढ़ी थी। इसके गढ़ने में उनकी जीवन साथी तहमीना ने काफी मदद पहुँचाई थी। तहमीना स्कूल के दिनों में उनकी सहपाठी रही थीं।”

प्रश्न 1. ‘बर्ड वाचर’ से क्या अभिप्राय है? गद्यांश के प्रारंभ में ‘उन’ शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?

उत्तर- पक्षियों के बारे में अधिकाधिक जानकारी के लिए उन पर ध्यान रखने वाले व्यक्ति ‘बर्ड वाचर’ कहलाता है। गद्यांश के प्रारंभ में ‘उन’ शब्द सालिम अली के लिए प्रयुक्त हुआ है।

प्रश्न 2. सालिम अली के जीवन में क्या विशिष्ट था? उनकी पत्नी का क्या नाम था?

उत्तर- सालिम अली के जीवन में उनका पक्षी प्रेम विशिष्ट था। सालिम अली की पत्नी की नाम तहमीना था।

प्रश्न 3. लेखक सालिम अली को किस श्रेणी में रखते हैं?

उत्तर- सालिम अली ऐसे व्यक्तित्व है जो प्रकृति को अपने प्रभाव में लाने के कायल होते हैं।

गद्यांश 6. “अपने लंबे रोमांचकारी जीवन में ढेर सारे अनुभवों के मालिक सालिम अली एक दिन केरल की ‘साइलेंट वैली’ को रेगिस्तानी हवा के झोंको से बचाने का अनुरोध लेकर चौधरी चरणसिंह से मिले थे। वे प्रधानमंत्री थे। चौधरी साहब गाँव की मिट्टी पर पड़ने वाली पानी की पहली बूँद का असर जानने वाले नेता थे। पर्यावरण के संभावित खतरों का जो चित्र सालिम अली ने उनके सामने रखा, उसने उनकी आँखें नम कर दी थीं। आज सालिम अली नहीं हैं। चौधरी साहब भी नहीं हैं। कौन बचा है, जो अब सोंधी माटी पर उगी फसलों के बीच एक नए भारत की नींव रखने का संकल्प लेगा? कौन बचा है, जो अब हिमालय और लद्दाख की बर्फीली जमीनों पर जीने वाले पक्षियों की वकालत करेगा?”

प्रश्न 1. सालिम अली चौधरी चरणसिंह से क्यों मिले थे?

उत्तर- सालिम अली साइलेंट वैली को रेगिस्तानी हवा से बचाने के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री चौधरी चरणसिंह से मिले थे।

प्रश्न 2. ‘साइलेंट वैली’ कहाँ हैं?

उत्तर- ‘साइलेंट वैली’ केरल प्रान्त में है।

प्रश्न 3. चौधरी चरणसिंह की आँखें नम क्यों हो गई थी?

उत्तर- सालिम अली द्वारा प्रस्तुत पर्यावरण के संभावित खतरे का चित्र देखकर चौधरी चरणसिंह की आँखें नम हो गई थीं।

प्रश्न 4. लेखक ने किसे लद्दाख की बर्फीली जमीन पर जीने वाले पक्षियों का वकील कहा है?

उत्तर- लेखक ने सालिम अली को लद्दाख की बर्फीली जमीन पर जीने वाले पक्षियों का वकील कहा है।

गद्यांश 7. “जटिल प्राणियों के लिए सालिम अली हमेशा एक पहेली बने रहेंगे। बचपन के दिनों में, उनकी एयरगन से घायल होकर गिरने वाली, नीले कंठ की वह गौरैया सारी जिंदगी उन्हें खोज के नए-नए रास्तों की तरफ ले जाती रही। जिंदगी की ऊँचाइयों में उनका विश्वास एक क्षण के लिए भी डिगा नहीं। वो लॉरेंस की तरह, नैसर्गिक जिंदगी का प्रतिरूप बन गये थे। सालिम अली प्रकृति की दुनिया में एक टापू बनने की बजाए अथाह सागर बनकर उभरे थे। जो लोग उनेक भ्रमणशील स्वभाव और उनकी यायावरी से परिचित हैं, उन्हें महसूस होता है कि वो आज भी पक्षियों के सुराग में ही निकले हैं।”

प्रश्न 1. लॉरेंस और सालिम में क्या समानता थी ?

उत्तर- लॉरेंस और सालिम दोनों प्रकृति प्रेमी थे। इन्हें पक्षियों से असीम प्रेम था।

प्रश्न 2. सालिम अली को नित्य नई खोज की तरफ प्रेरित करने वाला कौन था?

उत्तर – वह गौरैया, जो बचपन में उनकी एयरगन से घायल हुई थी, सालिम अली को नित्य नई खोज के लिए प्रेरित करती थी।

प्रश्न 3. सालिम अली के घुमक्कड़ी स्वभाव से परिचित लोग सालिम की मौत के बाद भी क्या महसूस करते हैं?

उत्तर- सालिम अली के घुमक्कड़ी स्वभाव से परिचित लोग उनकी मौत के बाद भी यह महसूस करते है कि सालिम पक्षियों की खोज में निकले हैं।

सांवले सपनो की याद पाठ साहित्य की कौन सी विधा है?

उत्तर:- साँवले सपनों की याद' पाठ साहित्य की 'संस्मरण' विधा के अन्तर्गत आता है

साँवले सपनों की याद पाठ का क्या उद्देश्य है?

➲ 'सांवले सपनों की याद' पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि हमें पशु-पक्षियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए। इस प्रकृति में जितना हमारा जीवन अनमोल है, उसी तरह प्रकृति के अन्य जीवों जैसे पशु-पक्षियों का जीवन भी अनमोल है। उन्हें भी अपने जीवन जीने का अधिकार है।

साँवले सपनों की याद पाठ में किसका वर्णन किया गया है?

उत्तर: इस संस्मरण में लेखक ने प्रसिद्ध पक्षी विज्ञानी सालिम अली के व्यक्तित्व एवं मुख्यतः उनके पक्षी प्रेम का वर्णन किया है। सालिम अली का सपना था पक्षियों के बारे में अधिकाधिक जानकारी प्राप्त करना, जिसे वे आजीवन सच करने में लगे रहे और इसे साकार भी किया। इस तरह इसका शीर्षक पूरी तरह सार्थक है।

साँवले सपनों की याद के कवि कौन है?

उत्तर:- “साँवले सपनों की याद” एक रहस्यात्मक शीर्षक है। यह रचना लेखक जाबिर हुसैन द्वारा अपने मित्र स्लिम अली की याद में लिखा गया संस्मरण है। सलीम अली के मृत्यु से उत्पन्न दुःख और अवसाद को लेखक ने “साँवले सपनों की यादके रूप में व्यक्त किया है