शरीर में खून गाढ़ा क्यों होता है - shareer mein khoon gaadha kyon hota hai

खून भिन्न-भिन्न तत्वों जैसे कि लाल और श्वेत रक्त कणिकाओं, प्रोटीन्स तथा थक्का बनाने में सहायक कई पदार्थों से मिलकर बनता है।  इन सभी तत्वों का सही संतुलन अच्छे स्वास्थ्य में स्थिरता की निशानी है। खून में गाढ़ेपन या जमने की शुरूआत इसमें मौजूद रक्त कणिकाओं और थक्का बनाने में सहायक प्रोटीन्स का संतुलन बिगड़ने से होती है इसे मेडिकल साइंस में हाइपरकोएगुलेबिल्टी कहते हैं। … खून गाढ़ा होने से नसों और धमनियों में क्लॉटिंग का रिस्क रहता है, नसों में क्लॉट बनने से ब्लड सप्लाई बाधित होती है, गाढ़े खून से हार्ट अटैक या स्ट्रोक की सम्भावना बढ़ती है कुछ मामलों में तो ऑर्गन तक डैमेज हो जाते हैं। blood clotting its symptoms

अपने यहा नेगेटिव अर्थ में कहावत है इसका तो खून पानी (पतला) हो गया है  लेकिन मेडिकल साइंस में पतला खून स्वास्थ्य के लिये अच्छा जबकि गाढ़ा जानलेवा समस्या है। जहां तक खून की बात है तो यह भिन्न-भिन्न तत्वों जैसेकि लाल और श्वेत रक्त कणिकाओं, प्रोटीन्स तथा थक्का बनाने में सहायक कई पदार्थों से मिलकर बनता है,  इन सभी तत्वों का सही संतुलन अच्छे स्वास्थ्य में स्थिरता की निशानी है। खून में गाढ़ेपन या जमने की शुरूआत इसमें मौजूद रक्त कणिकाओं और थक्का बनाने में सहायक प्रोटीन्स का संतुलन बिगड़ने से होती है इसे मेडिकल साइंस में हाइपरकोएगुलेबिल्टी कहते हैं।

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क्या हो सकता है खून गाढ़ा होने से?

खून गाढ़ा होने से नसों और धमनियों में क्लॉटिंग का रिस्क रहता है, नसों में क्लॉट बनने से ब्लड सप्लाई बाधित होती है, पर्याप्त ब्लड सप्लाई के बिना शरीर के टिश्यू जीवित नहीं रहते। इससे आप समझ सकते हैं कि यह कितनी गम्भीर समस्या है।

गाढ़े खून से हार्ट अटैक या स्ट्रोक की सम्भावना बढ़ती है कुछ मामलों में तो ऑर्गन तक डैमेज हो जाते हैं। कुछ लोगों में गाढ़े खून के कोई लक्षण नहीं उभरते और पता तब चलता है जब नसों में क्लॉटिग होने लगती है, इससे क्लॉट वाले एरिया के चारों ओर ब्लड सर्कुलेशन घटने से दर्द होता  है, यदि ऐसा दिल के आसपास हो तो हार्ट अटैक भी हो सकता है। गाढ़े खून के सबसे घातक प्रभावों में एक है पुलमोनरी इम्बोली, इसमें फेफड़ों की पुलमोनरी आर्टरीज के क्लॉट से अवरूद्ध होने पर फेफड़े को ऑक्सीजन युक्त रक्त मिलना बंद होने से सांस लेने में तकलीफ, सीने में दर्द तथा खांसी आने लगती है, यह मेडिकल इमरजेंसी है।

आमतौर पर खून गाढ़े होने के लक्षण धुंधली दृष्टि, सिर चकराना, मासिक धर्म में ज्यादा रक्तस्राव, सिरदर्द, हाई ब्लड प्रेशर, त्वचा में खुजली, ऊर्जाहीनता, सांस लेने में दिक्कत और गाउट के रूप में उभरते हैं। यदि हाइपरकोएगुलेबिल्टी की फैमिली हिस्ट्री है और ये लक्षण महसूस हों तो तुरन्त डॉक्टर से मिलना चाहिये कि कहीं उसे ब्लड क्लॉटिंग तो नहीं हो रही।

यदि गर्भवती महिलाओं को पहली तिमाही या इसके आसपास गर्भपात हो जाता है तो इसका कारण रक्त का गाढ़ापन हो सकता है। अगर ब्लड क्लॉटिंग डिस्आर्डर की फैमिली हिस्ट्री है तो साल में कम से कम दो बार ब्लड टेस्ट कराना चाहिये।

 

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क्यों होता है खून गाढ़ा?

वैज्ञानिकों का मानना है कि खून में लाल और श्वेत रक्त कणिकायों की मात्रा बढ़ना, किसी बीमारी से ब्लड क्लॉटिंग प्रभावित होना या खून में क्लॉटिंग वाले प्रोटीन्स की संख्या बढ़ने से खून गाढ़ा होता है। चूंकि खून का गाढ़ापन किसी एक वजह से न होकर कई कारणों से होता हैं इसलिये वैज्ञानिकों ने कोई स्टैन्डर्ड परिभाषा नहीं दी है इसके बजाय वे अलग-अलग स्थितियों को इसका कारण मानते हैं।

जहां तक ब्लड क्लॉटिंग डिस्आर्डर की बात है तो यह रेयर है लेकिन रक्त में वी-लीडेन फैक्टर के आधार पर माना जाता है कि केवल 3 से 7 प्रतिशत लोगों में ही खून गाढ़े होने की सम्भावना होती है। रिसर्च से पता चला कि ब्लड क्लाटिंग के शिकार लोगों में मात्र 15 प्रतिशत ही ऐसे थे जिन्हें  हाइपरकोएगुलेबिल्टी की सम्भावना थी।

कई मामलों में खून का गाढ़ापन जेनेटिक समस्या होती है लेकिन ज्यादातर में ऐसा किसी बीमारी या डिफीशियेन्सी से होता है। जहां तक बीमारी की बात है तो कैंसर और ल्यूपस के मरीजों में रक्त के गाढ़ेपन की समस्या आम है। ल्यूपस में अतिरिक्त एंटीकॉस्फोलिपिड एंटीबॉडी बनने से क्लॉटिंग होती है। इसके अलावा रक्त के फैक्टर वी में म्यूटेशन, प्रोथोम्बिन 2021 म्यूटेशन, प्रोटीन सी और प्रोटीन एस की कमी और पॉलीसिथेमिया वेरा नामक बीमारी में शरीर में ज्यादा मात्रा में रेड ब्लड सेल्स बनने से रक्त गाढ़ा होने लगता है। शोध से पता चला है कि स्मोकिंग से भी खून में क्लॉट कम करने वाले तत्वों का उत्पादन घटता है जिससे खून गाढ़ा होता है।

कैसे पता चलता है रक्त के गाढ़ेपन का?

इसकी पुष्टि के लिये मेडिकल हिस्ट्री और फिजिकल जांच के अलावा ये ब्लड टेस्ट किये जाते हैं-

कम्पलीट ब्लड काउंट (सीबीसी): इससे ब्लड में मौजूद तत्वों की मात्रा पता चलती है। यदि हीमोग्लोबिन और हीमोटेक्रेट की मात्रा रेंज से अधिक है तो खून के गाढ़ेपन के साथ पता चलता है कि व्यक्ति आगे चलकर पॉलीसाइथीमिया वेरा डिसीस की चपेट में आ जायेगा।

एक्टीवेटेड प्रोटीन सी रजिस्टेंस: इससे रक्त में वी-लीडएन फैक्टर की मौजूगदी पता चलती हैं।

प्रोथोम्बिन जी20210ए म्यूटेशन: इससे रक्त में एंटीथ्रोम्बिन और प्रोटीन सी व एस की असमानताओं का पता चलता है।

एंटीथ्रोम्बिन, प्रोटीन सी या प्रोटीन एस फंक्शनल लेवल: इससे रक्त में ल्यूपस एंटीकोएगुलेन्टस का पता चलता है।

इलाज क्या है खून के गाढ़ेपन का?

डॉक्टर इसका इलाज कारण के आधार पर करते हैं, उदाहरण के लिये पॉलीसाइथेमिया वेरा बीमारी के इलाज में ब्लड फ्लो ठीक किया जाता है, इसके तहत मरीज को फिजिकल एक्टीविटीज के लिये प्रोत्साहित करना ताकि उसके सम्पूर्ण शरीर में रक्त प्रवाह ठीक हो सके। इन एक्टीविटीज में टांगों और पैरो से सम्बन्धित स्ट्रेचिंग से जुड़े व्यायामों पर विशेष ध्यान देते हैं। इसके अलावा सर्दियों में हाथों और पैरों को ठंड से बचाने के लिये गरम कपड़े पहनना, एक्सट्रीम टेम्प्रेचर से बचना, शरीर हाइड्रेट रखने के लिये समुचित मात्रा में पानी पीना, पॉलीसाइथेमिया वेरा बीमारी में खुजली से बचाव के लिये गुनगुने पानी में स्टार्च डालकर स्नान करना और कई मामलों में डाक्टर गाढ़ापन कम करने के लिये फ्लेबोटोमी नामक ट्रीटमेंट के तहत नस में इन्ट्रावीनस लाइन डालकर निश्चित मात्रा में रक्त निकाल देते हैं।

इलाज के कुछ तरीकों से शरीर में मौजूद आयरन रिमूव करके रक्त निर्माण प्रक्रिया धीमी की जाती है। रेयर मामलों में जब गाढ़े रक्त से अंग डैमेज होने लगें तो डॉक्टर शरीर में रक्त निर्माण की प्रक्रिया धीमी करने के लिये कीमोथेरेपी करते हैं, उदाहरण के लिये हाइड्रोक्सीयूरिया (ड्रोक्सिया) और इंटरफेरॉन-अल्फा जैसे मेडीकेशन बोन मैरो को अतिरिक्त रक्त कोशिकाओं के उत्पादन रोकने में मदद करते हैं ताकि खून में गाढ़ापन कम हो। यदि व्यक्ति ऐसी बीमारी से ग्रस्त है जिससे ब्लड में आसानी से क्लॉट बनता हो जैसेकि फैक्टर वी म्यूटेशन तो डॉक्टर इसके लिये एंटीप्लेटलेट थेरेपी और एंटीकॉगुलेशन थेरेपी इस्तेमाल करते हैं, इनके तहत एस्प्रिन और वारफ्रिन (कॉउमाडिन) जैसी दवायें दी जाती हैं।

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प्राकृतिक ब्लड थिनर

खून के सभी तत्व सन्तुलित मात्रा में रहें और गाढ़ापन न बढ़े इसके लिये प्राकृतिक ब्लड थिनर के रूप में अपने खाने में इन चीजों को शामिल करें-

एक शोध के मुताबिक मसाले के रूप में प्रयोग की जाने वाली हल्दी नेचुरल ब्लड थिनर है इसमें मौजूद रसायन, रक्त में क्लॉट बनाने वाले तत्वों को नियन्त्रित करके क्लॉटिंग फैक्टर बैलेंस करते हैं।

अदरक भी एक नेचुरल ब्लड थिनर है और यह हल्दी वाली फैमिली से आता है। इसमें मौजूद सैलिसाइलेट नामक नेचुरल कैमिकल ब्लड क्लॉट बनने से रोकता है। इसी रसायन से बना एसिटाइलसैलिसिलिक एसिड जोकि प्रयोगशाला में साइलीसाइलेट से बनाया जाता है से एस्प्रिन नामक ब्लड थिनर बनता है जो स्ट्रोक तथा हार्ट अटैक रोकने में मददगार है। सैलिसाइलेट नामक रसायन एवोकाडो, जामुन, मिर्च और चेरी में भी पाया जाता है।

दालचीनी में मौजूद कूमरीन एक शक्तिशाली एंटीकॉग्यूलेंट है इससे ब्लड प्रेशर कम होने के साथ शरीर की सूजन घटती है। दालचीनी के सेवन के सम्बन्ध में रिस्क एसेसमेंट के लिये सन 2012 में हुए एक शोध से सामने आया कि इसका रेगुलर अधिक मात्रा में सेवन लीवर डैमेज कर सकता है इसलिये सीमित मात्रा में ही इसका सेवन करें।

कीइन पीपर नामक लाल मिर्च भी नेचुरल ब्लड थिनर है इसमें खून पतला करने में मददगार सैलीसाइलेट रसायन होता है जिससे ब्लड प्रेशर कम होने के साथ ब्लड सर्कुलेशन ठीक रहता है। विटामिन ई युक्त खाद्य पदार्थ या सप्लीमेंट भी एंटीकॉउगुलेटं होते हैं।

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निष्कर्ष

हमारे देश में झोलाछाप डाक्टर बड़ी संख्या में हैं और ये बिना ब्लड टेस्ट के एस्प्रिन जैसे ब्लड थिनर देते रहते हैं जो स्वास्थ्य के लिये हानिकारक है क्योंकि बहुत से लोगों का रक्त गाढ़ा तो होता है लेकिन उन्हें कभी भी क्लॉटिंग नहीं होती ऐसे में खून पतला करने वाली दवायें बिना अनुभवी डाक्टर की सलाह के न लें। जानलेवा संकट के लिये हमेशा गाढ़ा खून ही जिम्मेदार हो यह जरूरी नहीं है, कुछ मामलों में विशेष मेडिकल कंडीशन्स हार्ट अटैक या स्ट्रोक के लिये जिम्मेदार होती हैं उदाहरण के लिये जब रक्त धमनियों में मौजूद प्लॉक के सम्पर्क में आता है तो क्लॉटिंग होने से हार्ट अटैक या स्ट्रोक में से कुछ भी हो सकता है, ऐसे ही  बहुत से लोगों में पतली या क्षतिग्रस्त नसों की वजह से ब्लड सर्कुलेशन धीमा होने के कारण खून सम्पूर्ण शरीर में जरूरी मात्रा में नहीं पहुंचता जिससे स्ट्रोक या हार्ट अटैक आता है लेकिन यहां भी कारण खून का गाढ़ापन नहीं है, इसलिये समय-समय पर डाक्टर की सलाह पर हेल्थ रिलेटिड ब्लड टेस्ट कराते रहें विशेष रूप से 45 साल की उम्र के बाद तो जरूर। यदि खून गाढ़ा होने से ब्लड क्लॉट बन सकता है तो इसकी सम्भावना कम करके के लिये दवा के साथ लाइफस्टाइल में बदलाव भी जरूरी है जैसेकि स्मोंकिग छोड़ें, नियमित व्यायाम करें,  देर तक न बैठें रहें, 45 मिनट के बाद उठकर कुछ कदम जरूर चलें और शरीर को हाइड्रेड रखने के लिये पानी पीते रहें।

खून गाढ़ा होने के क्या लक्षण हैं?

सांस लेने में कठिनाई और हाई ब्लड प्रेशर को नजरअंदाज ना करें. यह ब्लड क्लोट के खतरे को विकसित करता हैं. ब्लड गाढ़ा होने पर आर्टरी और नसों में ब्लड के थक्के जमने लगते हैं, जिससे व्यक्ति की जान जाने तक का खतरा हो सकता है. ब्लड क्लोट आपके ब्रेन, हार्ट और लंग्स जैसे आवश्यक बॉडी पार्ट्स में ब्लड सरकुलेशन को रोकते हैं.

खून को पतला करने के लिए क्या खाएं?

​हल्दी करती है नेचुरल ब्लड थिनर का काम खाने में इस्तेमाल की जाने वाली हल्दी एक प्राकृतिक ब्लड थिनर है. हल्दी में करक्यूमिन होता है, जो खून को पतला करता है और खून का थक्का बनने से रोकता है. आप खाना बनाते समय उसमें हल्दी डालकर इसका सेवन कर सकते हैं.

अगर खून गाढ़ा हो जाए तो क्या करें?

अगर अपनी डाइट में फाइबर वाला भोजन शामिल करते हैं तो खून पतला होगा। खून को शुद्ध करने के लिए फाइबर युक्त आहार का सेवन करना जरूरी है। इससे पाचन शक्ति अच्छी रहती है और ब्लड सर्कुलेशन भी सही रहता है। ब्राउन राइस, गाजर, ब्रोकली, मूली, शलजम, सेब और इसका जूस अपनी डाइट में शामिल करें

शरीर का खून गाढ़ा क्यों हो जाता है?

भंडारी ने कहा कि पसीना आने के कारण खून गाढ़ा होता जाता है। इसके बाद खून में कॉलेस्ट्रॉल चर्बी बढ़ जाती है। इनके बढऩे से खून का थक्का बनना हार्ट अटैक का कारण बनता है। उन्होंने कहा कि नैचुरोपैथी, योग घरेलू उपचार करके हार्ट अटैक से बच सकते हैं।