तिब्बत में डांडे सबसे खतरनाक जगह क्यों है? - tibbat mein daande sabase khataranaak jagah kyon hai?

RBSE Class 9 Hindi Solutions Kshitij Chapter 2 ल्हासा की ओर

ल्हासा की ओर Summary in Hindi

लेखक-परिचय – राहुल सांकृत्यायन का जन्म सन् 1893 में आजमगढ़ (उत्तर प्रदेश) में हुआ। इनका मूल नाम केदार पाण्डेय था। शिक्षा प्राप्त कर सन् 1930 में श्रीलंका जाकर इन्होंने बौद्ध धर्म अपनाया। तब से इनका नाम राहुल सांकृत्यायन हो गया। ये पालि, प्राकृत, अपभ्रंश, चीनी, तिब्बती आदि अनेक भाषाओं के ज्ञाता थे। इन्होंने पर्याप्त मात्रा में साहित्य रचना की। यात्रावृत्त, जीवनी, आत्मकथा, शोध आदि अनेक विधाओं पर इन्होंने लिखा। सन् 1963 में इनका देहान्त हो गया।

पाठ-सार – ‘ल्हासा की ओर’ राहुल सांकृत्यायन द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत है। इसमें उन्होंने सन् 1929-30 में अपनी तिब्बत यात्रा का वर्णन किया है। वे नेपाल के प्राचीन मार्ग से ल्हासा गये। उस यात्रा में उन्हें अनेक पुराने अवशेष मिले। तिब्बत में यात्रियों को बहुत कष्टों का सामना करना पड़ता था। वहाँ पर जाति-पाति, छुआछूत की परम्परा नहीं थी। तिब्बत में डांडे काफी खतरनाक होते हैं। वहाँ सुनसान स्थानों पर डाकू खून तक कर देते हैं.। लेखक और उसका साथी वहाँ भिखमंगों के वेश में थे।

वहाँ पर एक ओर सफेद बर्फीले पहाड़ हैं तो दूसरी तरफ वनस्पतियों का अभाव है। लेखक का साथी सुमति (लोबजंग) तिब्बती लामा था। रास्ते में उसके अनेक यजमानों के गाँव थे। वह उन्हें गण्डे देता था। वे दो दिन यात्रा कर जिस बौद्ध विहार में रुके, वहाँ पर एक मन्दिर में बुद्धवचन-अनुवाद (कन्जुर) की एक सौ तीन हस्तलिखित भारी पुस्तकें थीं। लेखक उन्हीं की तलाश में गया था। इसलिए वह वहीं पर आसन लगाकर बैठ गया तथा उनका अवलोकन करने लगा। लेखक ने सुमति को अपने यजमानों के पास भेज दिया और साथियों सहित तिभी गाँव की ओर प्रस्थान किया।

कठिन-शब्दार्थ :

  • पलटन = सेना।
  • परित्यक्त = छोड़ा हुआ।
  • छङ् = मदिरा जैसा एक पेय पदार्थ।
  • थुम्पा = एक खाद्य पदार्थ।
  • चिरी = चीर कर बनाई हुई।
  • गंडा = मंत्र पढ़कर गाँठ लगाया हुआ धागा या कपड़ा।
  • निर्जन = एकान्त।
  • हस्तलिखित = हाथ से लिखी हुई।
  • पोथियाँ = पुस्तकें।

RBSE Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Textbook Questions and Answers

प्रश्न 1.
थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव पहुँचने पर भिखमंगे के वेश में होने के बावजूद लेखक को ठहरने के लिए उचित स्थान मिला, जबकि दूसरी यात्रा के समय भद्र वेश भी उन्हें उचित स्थान नहीं दिला सका। क्यों?
उत्तर :
गाँव में ठहरने का उचित स्थान मिलने या न मिलने का कारण यह था कि
(i) भिखमंगे के वेश में यात्रा करते समय लेखक के साथ सुमति था। वहाँ गाँव में सुमति के जान-पहचान के लोग थे। इस कारण उन्हें ठहरने के लिए अच्छी जगह मिल गयी।
(ii) दूसरी बार भद्र वेश में घोड़े पर सवार होकर आये थे। वहाँ पर शाम के समय लोग छङ् पीकर नशे में अपना होश-हवास खो देते हैं। इस तरह की मनोवृत्ति के कारण लेखक को रहने का उचित स्थान नहीं मिला और उन्हें सबसे गरीब के झोंपड़े में ठहरना पड़ा।

प्रश्न 2.
उस समय के तिब्बत में हथियार का कानून न रहने के कारण यात्रियों को किस प्रकार का भय बना रहता था?.
उत्तर :
लेखक की यात्रा के समय तिब्बत में हथियार का कानून नहीं था, वहाँ के लोग बन्दूक, पिस्तौल को लाठी की तरह लिये फिरते थे। वहाँ पर अनेक निर्जन स्थान थे, जहाँ न पुलिस का और न खुफिया विभाग का प्रबन्ध था। यहाँ डाकू किसी को भी आसानी से मार सकते थे। इसलिए यात्रियों को हत्या और लूटमार का भय था।

प्रश्न 3.
लेखक लड्कोर के मार्ग में अपने साथियों से किस कारण पिछड़ गया?
उत्तर :
लङ्कोर के मार्ग में लेखक अपने साथियों से इस कारण पिछड़ गया था कि –
(i) उसका घोड़ा मन्द गति से चल रहा था। जब लेखक उस पर जोर देता तो वह और सुस्त पड़ जाता था।
(ii) एक जगह दो रास्ते फूट रहे थे, लेखक गलत रास्ते पर डेढ़-दो मील चला गया और फिर लौटकर सही रास्ते पर चला, जिससे वह पिछड़ गया था।

प्रश्न 4.
लेखक ने शेकर विहार में सुमति को उसके यजमानों के पास जाने से रोका, परन्तु दूसरी बार रोकने का प्रयास क्यों नहीं किया?
उत्तर :
सुमति आसपास के गाँवों में गण्डे-ताबीज बाँटने जाते, तो जल्दी वापस नहीं आते थे। इसलिए लेखक ने उन्हें यजमानों के पास जाने से रोका। परन्तु दूसरी बार लेखक को शेकर विहार के एक मंदिर में बुद्धवचन-अनुवाद की एक सौ तीन पोथियाँ मिल गई थीं। लेखक को उनका अवलोकन एवं अध्ययन करने के लिए समय की जरूरत थी। इसलिए एकान्त ज्ञानार्जन की दृष्टि से लेखक ने सुमति को रोकने का प्रयास नहीं किया।

प्रश्न 5.
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर :
अपनी यात्रा के दौरान लेखक को निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा –

  1. बीहड़ एवं ऊबड़-खाबड़ रास्तों पर उसे धूप में यात्रा करनी पड़ी।
  2. ऐसे निर्जन स्थानों से गुजरना पड़ा, जहाँ डाकू बिना बात पर खून कर देते थे। हथियारों का कानून न होने से डाकुओं का भय. रहता था।
  3. उसका घोड़ा मन्द गति से चल रहा था, इसलिए वह साथियों से बिछड़ गया।
  4. वापस आते समय अपना सामान स्वयं पीठ पर लादकर पैदल यात्रा करनी पड़ी।

प्रश्न 6.
प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त के आधार पर बताइए कि उस समय का तिब्बती समाज कैसा था?
उत्तर :
लेखक ने सन् 1929-30 में तिब्बत की यात्रा की थी। उस समय वहाँ स्त्रियों में परदा-प्रथा नहीं थी। वहाँ की स्त्रियाँ अपरिचित यात्रियों की सेवा-सहायता कर दिया करती थी। वहाँ के लोग शाम को छङ्पीकर नशे में मस्त रहते थे। धार्मिक प्रवृत्ति के कारण वहाँ के लोग बोधगया के कपड़े से बने गण्डे धारण करते थे। समाज में छुआछूत, जाति-पाति आदि कुप्रथाएँ नहीं थीं। खुफिया विभाग या पुलिस का पूरा इन्तजाम नहीं था, इस कारण अपराध-वृत्ति भी प्रचलित थी। लोग लाठी की भाँति बन्दूक रखते थे। अधिकांश मठों का जमीन आदि पर कब्जा था। भिक्षु जागीर के लोगों में राजा के समान सम्मान पाता था। जागीरदारों को मजदूर बेगार में मिल जाते थे। बुद्ध और उनसे सम्बन्धित वस्तुओं को महत्त्व दिया जाता था।

प्रश्न 7.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” नीचे दिये गये विकल्पों में से कौन-सा इस वाक्य का अर्थ बतलाता है
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया।
(ख) लेखक पुस्तकों की शैल्फ के भीतर चला गया।
(ग) लेखक के चारों ओर पुस्तकें ही थीं।
(घ) पुस्तक में लेखक का परिचय और चित्र छपा था।
उत्तर :
(क) लेखक पुस्तकें पढ़ने में रम गया। रचना और अभिव्यक्ति

प्रश्न 8.
सुमति के यजमान और अन्य परिचित लोग लगभग हर गाँव में मिले। इस आधार पर आप सुमति के व्यक्तित्व की किन विशेषताओं का चित्रण कर सकते हैं?
उत्तर : हर गाँव में सुमति के यजमान और परिचित लोगों के मिलने से उसके चरित्र की निम्न विशेषताएँ प्रकट होती हैं

  1. मिलनसार स्वभाव-सुमति मिलनसार स्वभाव का था और हर किसी का ध्यान रखकर उससे अपनत्व रखता था।
  2. धार्मिक विचारक-सुमति बौद्ध धर्म में आस्था रखने वाला था। उसके यजमान दूर-दूर तक अनेक गाँवों में फैले हुए थे। वह उन्हें बोधगया से लाये गये गण्डे देता था। यजमान उसका धर्मगुरु की तरह सम्मान करते थे।
  3. लालची-वह तीर्थयात्रा का प्रसाद बाँटने के बहाने नकली गण्डों को भी बोधगया के कपड़ों से बना बताकर यजमानों को बाँटता था और उनसे दक्षिणा पाता था। यह सब दक्षिणा के लालच से करता था।

प्रश्न 9.
“हालाँकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था।”-उक्त कथन के अनुसार हमारे आचार-व्यवहार के तरीके वेशभूषा के आधार पर तय होते हैं। आपकी समझ में यह उचित है अथवा अनुचित, विचार व्यक्त करें।
उत्तर :
यह पूर्ण रूप से सत्य है कि हम किसी के अच्छे पहनावे को देखकर उसका मान-सम्मान करते हैं, परन्तु फटे-पुराने कपड़ों में देखकर उसका जरा भी सम्मान नहीं करते हैं। लेखक भिखमंगों के वेश में यात्रा कर रहा था। इसलिए उसे यह अपेक्षा नहीं थी कि शेकर विहार का भिक्षु उसे सम्मानपूर्वक देखेगा। लेकिन व्यवहार और वेशभूषा के आधार पर किसी का सम्मान या अपमान करना सर्वथा अनुचित है। उचित तो वेशभूषा की अपेक्षा सादा जीवन उच्च विचार को महत्त्व देना है। महात्मा गाँधी, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर, प्रेमचन्द आदि साधारण वेशभूषा पहनने वाले थे, परन्तु उनका व्यक्तित्व महान् था तथा सब उनका सम्मान करते थे।

प्रश्न 10.
यात्रा-वृत्तान्त के आधार पर तिब्बत की भौगोलिक स्थिति का शब्द-चित्र प्रस्तुत करें। वहाँ की स्थिति आपके राज्य/शहर से किस प्रकार भिन्न है?
उत्तर :
हिमालय पर्वत-शिखरों से घिरा तिब्बत ऊँचा पठारी भू-भाग है। यहाँ पर बर्फीले श्वेत शिखर तथा वनस्पतियों से रहित घाटियाँ, डाँडे एवं निर्जन क्षेत्र हैं। यहाँ पर आवागमन के गिने-चुने मार्ग और साधन हैं। तिब्बत की प्रकोप रहता है, परन्तु धूप इतनी तेज पडती है कि उसे सहा नहीं जाता। वहाँ रास्ते चढाई और उतराई के हैं जो ऊबड़-खाबड़ हैं। कुछ भागों में खेती होती है, सारी भूमि जमींदारों में बँटी है, जमीन पर मठों का अधिकार है; जमीदारों को बेगार के मजदूर मिल जाते हैं। . हमारा राज्य राजस्थान उष्ण जलवायु का है। इसके पश्चिमी भाग में विशाल मरुस्थल है। पूर्वी एवं दक्षिणी भाग में खेती होती है। राजस्थान का भू-भाग तिब्बत की भौगोलिक स्थिति से सर्वथा भिन्न है।

प्रश्न 11.
आपने भी किसी स्थान की यात्रा अवश्य की होगी? यात्रा के दौरान हुए अनुभवों को लिखकर प्रस्तुत करें।
उत्तर :
निबन्ध भाग में ‘किसी रोचक यात्रा का वर्णन’ शीर्षक देखकर लिखें।

प्रश्न 12.
यात्रा-वृत्तान्त गद्य-साहित्य की एक विधा है। आपकी इस पाठ्य-पुस्तक में कौन-कौन सी विधाएँ हैं? प्रस्तुत विधा उनसे किन मायनों में अलग है?
उत्तर :

तिब्बत में डांडे सबसे खतरनाक जगह क्यों है? - tibbat mein daande sabase khataranaak jagah kyon hai?

प्रस्तुत यात्रा-वृत्तान्त अन्य विधाओं से निम्नलिखित मायनों से भिन्न है –

  1. यात्रा-वृत्तान्त कहानी आदि की तरह कल्पित नहीं है।
  2. यात्रावृत्त होने से इसमें बीते रोचक प्रसंगों का चित्रण हुआ है।
  3. इसमें निबन्ध की भाँति गम्भीरता नहीं है।
  4. इसमें रिपोर्ताज की भाँति कलात्मकता तथा व्यंग्य-रचना की तरह पैनापन नहीं है।
  5. प्रत्यक्ष अनुभवों का वर्णन होने पर भी यह संस्मरण एवं आत्मकथा से भिन्न है।

भाषा अध्ययन :

प्रश्न 13.
किसी भी बात को अनेक प्रकार से कहा जा सकता है, जैसे –
सुबह होने से पहले हम गाँव में थे।
पौ फटने वाली थी कि हम गाँव में थे।
तारों की छाँव रहते-रहते हम गाँव पहुँच गए।
नीचे दिये गये वाक्य को अलग-अलग तरीके से लिखिए –
जान नहीं पड़ता था कि घोड़ा आगे जा रहा है या पीछे।
उत्तर :
घोड़ा बहुत ही धीरे-धीरे चल रहा था। यह कहना कठिन था कि घोड़ा किधर जा रहा है – आगे या पीछे। घोड़े की गति की दिशा मालूम नहीं पड़ रही थी। घोड़ा इतनी मन्द गति से चल रहा था कि लगता ही नहीं था कि वह चल रहा है।

प्रश्न 14.
ऐसे शब्द जो किसी ‘अंचल’ यानी क्षेत्र-विशेष में प्रयुक्त होते हैं, उन्हें आंचलिक शब्द कहा जाता है। प्रस्तुत पाठ में से आंचलिक शब्द ढूँढ़कर लिखिए।
उत्तर :
प्रस्तुत पाठ में प्रयुक्त कुछ आंचलिक शब्द –

तिब्बत में डांडे सबसे खतरनाक जगह क्यों है? - tibbat mein daande sabase khataranaak jagah kyon hai?

प्रश्न 15.
पाठ में कागज, अक्षर, मैदान के आगे क्रमशः मोटे अच्छे और विशाल शब्दों का प्रयोग हुआ है। इन शब्दों से उनकी विशेषता उभर कर आती है। पाठ में से कुछ ऐसे ही और शब्द छाँटिए जो किसी की विशेषता बता रहे हों।
उत्तर :
– मुख्य रास्ता
– विकट डाँडा
– परित्यक्त किला
– निर्जन स्थान
– दूधवाली चाय
– ऊँची चढ़ाई
– सारा मक्खन
– विशाल मैदान
– भद्र यात्री
– हस्तलिखित पोथियाँ

पाठेतर सक्रियता –

यह यात्रा राहुलजी ने 1930 में की थी। आज के समय यदि तिब्बत की यात्रा की जाए तो राहुलजी की यात्रा से कैसे भिन्न होगी?
उत्तर :
आज तिब्बत स्वतंत्र राष्ट्र न होकर चीनी गणतंत्र का एक प्रान्त है। वहाँ जाने के लिए अब सर्वप्रथम पासपोर्ट और वीजा की जरूरत होती है। राहलजी को पैदल यात्रा करनी पडी थी. अब पैदल मार्ग बहत कम है। अब तीन दरों से तिब्बत की यात्रा की जा सकती है लेह दर्रे से, लिपु दर्रे से तथा नीति पास से। राहुलजी को गाँवों में आश्रय माँगना पड़ा था, जबकि अब वहाँ पर विश्राम-गृह एवं होटल उपलब्ध हैं। आवागमन के मोटर-कार आदि साधन सुलभ हैं

क्या आपके किसी परिचित को घुमक्कड़ी/यायावरी का शौक है? उसके इस शौक का उसकी पढ़ाई। काम आदि पर क्या प्रभाव पड़ता होगा, लिखें।
उत्तर :
घुमक्कड़ी करने वाले को प्रायः घर से बाहर और अव्यवस्थित रहना पड़ता है। अतएव इस तरह के शौक से उसकी पढ़ाई या काम पर काफी प्रभाव पड़ता होगा। शेष छात्र स्वयं लिखें।

अपठित गद्यांश को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के उत्तर दीजिए

आम दिनों में समुद्र किनारे के इलाके बेहद खूबसूरत लगते हैं। समुद्र लाखों लोगों को भोजन देता और लाखों उससे जुड़े दूसरे कारोबारों में लगे हैं। दिसम्बर 2004 में सुनामी या समुद्री भूकम्प से उठने वाली तूफानी लहरों के प्रकोप ने एक बार फिर साबित कर दिया है कि कुदरत की यह देन सबसे बड़े विनाश का कारण भी बन सकती है।

प्रकृति कब अपने ही ताने-बाने को उलट कर रख देगी, कहना मुश्किल है। हम उसके बदलते मिजाज को उसका कोप कह लें या कुछ और, मगर यह अबूझ पहेली अक्सर हमारे विश्वास के चीथड़े कर देती है और हमें यह एहसास करा जाती है कि हम एक कदम आगे नहीं, चार कदम पीछे हैं। एशिया के एक बड़े हिस्से में आने वाले उस भूकंप ने कई द्वीपों को इधर-उधर खिसकाकर एशिया का नक्शा ही बदल डाला। प्रकृति ने पहले भी अपनी ही दी हुई कई अद्भुत चीजें इंसान से वापस ले ली हैं जिसकी कसक अभी तक है।

द:ख जीवन को माँजता है. उसे आगे बढ़ने का हनर सिखाता है। वह हमारे जीवन में ग्रहण लाता है ताकि हम पूरे प्रकाश की अहमियत जान सकें और रोशनी को बचाए रखने के लिए जतन करें। इस जतन से सभ्यता और संस्कृति का

निर्माण होता है। सुनामी के कारण दक्षिण भारत और विश्व के अन्य देशों में जो पीड़ा हम देख रहे हैं, उसे निराशा के चश्मे से न देखें। ऐसे समय में भी मेघना, अरुण और मैगी जैसे बच्चे हमारे जीवन में जोश, उत्साह और शक्ति भर देते हैं। 13 वर्षीय मेघना और अरुण दो दिन अकेले खारे समुद्र में तैरते हुए जीव-जन्तुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ लगे। इंडोनेशिया की रिजा पड़ोसी के दो बच्चों को पीठ पर लादकर पानी के बीच तैर रही थी कि एक विशालकाय साँप ने उसे किनारे का रास्ता दिखाया।

मछुआरे की बेटी मैगी ने रविवार को समुद्र का भयंकर शोर सुना, उसकी शरारत को समझा, तुरन्त अपना बेड़ा उठाया, और अपने परिजनों को उस पर बिठा उतर आई समुद्र में, 41 लोगों को लेकर। महज 18 साल की यह जलपरी चल पड़ी पगलाए सागर से दो-दो हाथ करने। दस मीटर से ज्यादा ऊँची सुनामी लहरें जो कोई बाधा, रुकावट मानने को तैयार नहीं थीं, इस लड़की के बुलंद इरादों के सामने बौनी ही साबित हुईं।

जिस प्रकृति ने हमारे सामने भारी तबाही मचाई है, उसी ने हमें ऐसी ताकत और सूझ दे रखी है कि हम फिर से खड़े होते हैं और चुनौतियों से लड़ने का एक रास्ता ढूँढ़ निकालते हैं। इस त्रासदी से पीड़ित लोगों की सहायता के लिए जिस तरह पूरी दुनिया एकजुट हुई है, वह इस बात का सबूत है कि मानवता हार नहीं मानती।

प्रश्न 1.
1. कौन-सी आपदा को सुनामी कहा जाता है?
2. ‘दुःख जीवन को माँजता है, उसे आगे बढ़ने का हुनर सिखाता है’-आशय स्पष्ट कीजिए।
3. मैगी, मेघना और अरुण ने सुनामी जैसी आपदा का सामना किस प्रकार किया?
4. प्रस्तुत गद्यांश में ‘दृढ़ निश्चय’ और ‘महत्त्व’ के लिए किन शब्दों का प्रयोग हुआ है?
5. इस गद्यांश के लिए एक शीर्षक ‘नाराज समुद्र’ हो सकता है। आप कोई अन्य शीर्षक दीजिए।
उत्तर :
1. समुद्र में आये भयंकर भूकम्प के कारण उठने वाली विनाशकारी तूफानी लहरों को सुनामी आपदा कहा जाता है।

2. दुःख और कष्टों का सामना करने से जीवन में विपत्तियों से जूझने की हिम्मत प्राप्त होती है। कठिनाइयों का सामना करते रहने से जीवन में आगे बढ़ने का साहस बढ़ता है, अच्छी प्रेरणा मिलती है और जीवन सुन्दर प्रतीत होता है।

3. मैगी ने दस मीटर ऊँची लहरों की परवाह न करके अपना बेड़ा उतार दिया और अपने साहस से संघर्ष करते हुए अपने परिजनों और इकतालीस लोगों को बचा लिया। मेघना और अरुण भी दो दिन तक खारे पानी में तैरते हुए, समुद्री जीव-जन्तुओं से मुकाबला करते हुए किनारे आ गए थे।

4. ‘दृढ़ निश्चय’ के लिए ‘बुलन्द इरादे’ तथा ‘महत्त्व’ के लिए ‘अहमियत’ शब्द का प्रयोग हुआ है।

5. ‘पगलाए समुद्र से दो-दो हाथ’ या ‘सुनामी का सामना’।

RBSE Class 9 Hindi ल्हासा की ओर Important Questions and Answers

प्रश्न 1.
लेखक ने अपनी पहली तिब्बत यात्रा की थी –
(क) सादगी भरे वेश में
(ख) भिखमंगे के छद्म वेश में
(ग) बौद्ध भिक्षु के वेश में
(घ) राजसी वेश में
उत्तर :
(ख) भिखमंगे के छद्म वेश में

प्रश्न 2.
तिब्बत में जगह-जगह बनी फौजी चौकियों और किले में रहा करती थी.
(क) भारतीय पलटन
(ख) तिब्बती पलटन
(ग) चीनी पलटन
(घ) नेपाली पलटन।
उत्तर :
(ग) चीनी पलटन

प्रश्न 3.
तिब्बत में लोग लाठी की तरह पिस्तौल और बन्दूक लिए फिरते हैं, क्योंकि
(क) जान का खतरा रहने के कारण
(ख) लुटेरों का आधिक्य होने के कारण
(ग) हिंसक जानवरों के कारण
(घ) हथियार का कानून न होने के कारण
उत्तर :
(घ) हथियार का कानून न होने के कारण

प्रश्न 4.
आदमी से मिलने का बहाना कर सुमति ने लेखक से चलने को कहा था
(क) लकोर की ओर
(ख) तिडरी की ओर
(ग) शेकर विहार की ओर
(घ) बोध गया की ओर
उत्तर :
(ग) शेकर विहार की ओर

प्रश्न 5.
शेकर की खेती के मुखिया थे
(क) जागीरदार
(ख) नम्से
(ग) सुमति
(घ) जमीदार
उत्तर :
(ख) नम्से

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्न :

निर्देश-निम्नलिखित गद्यांशों को पढ़कर दिये गये प्रश्नों के सही उत्तर दीजिए :

1. यह व्यापारिक ही नहीं सैनिक रास्ता भी था, इसीलिए जगह-जगह फौजी चौकियाँ और किले बने हुए हैं, जिनमें कभी पलटन रहा करती थी। आजकल बहुत-से फौजी मकान गिर चुके हैं। दुर्ग के किसी भाग में, जहाँ किसानों ने अपना बसेरा बना लिया है, वहाँ घर कुछ आबाद दिखाई पड़ते हैं, ऐसा ही परित्यक्त एक चीनी किला था। हम वहाँ चाय पीने के लिए ठहरे। तिब्बत में यात्रियों के लिए बहुत-सी तकलीफें भी हैं और कुछ आराम की बातें भी। वहाँ जाति-पाँति, छुआछूत का सवाल ही नहीं है और न औरतें परदा ही करती हैं। बहुत निम्न श्रेणी के भिखमंगों को लोग चोरी के डर से घर के भीतर नहीं आने देते। नहीं तो आप बिलकुल घर के भीतर चले जा सकते हैं।

प्रश्न 1. राहुल सांकृत्यायन ने कहाँ की यात्रा की थी और क्यों की थी?
प्रश्न 2. लेखक किस रास्ते से तिब्बत गया था?
प्रश्न 3. लेखक जिस रास्ते से तिब्बत गया था, वह कैसा रास्ता था?
प्रश्न 4. तिब्बत की किन सामाजिक प्रवृत्तियों की ओर लेखक ने संकेत किया है?
उत्तर :
1. राहुल सांकृत्यायन ने तिब्बत की राजधानी ल्हासा की यात्रा बौद्ध धर्मग्रन्थों के अध्ययन की दृष्टि से की थी।

2. लेखक, नेपाल से तिब्बत जाने का जो मख्य रास्ता है तथा जिससे प्राचीन समय में व्यापार होता था. जो सैनिकों के द्वारा घिरा रहता था, उसी रास्ते से गया था।

3. लेखक जिस रास्ते से तिब्बत गया था, वह नेपाल से होकर जाता था। उस रास्ते पर जगह-जगह पुलिस चौकियाँ और किले बने हुए हैं। उन किलों में पहले पलटन रहा करती थी। वह रास्ता व्यापारिक के साथ ही सैनिकों के आवागमन के लिए निर्धारित था। उस रास्ते में तिब्बत जाने वालों को कुछ सुविधाएँ मिल जाती थीं।

4. लेखक ने यह संकेत किया है कि वहाँ पर जाति-पाँति, ऊँच-नीच एवं छुआछूत की भावना नहीं थी। औरतें परदा नहीं करती थीं। वहाँ पर एकदम अपरिचित को भी घर में आने दिया जाता था, परन्तु निम्न श्रेणी के भिखमंगों से लोगों को चोरी करने का भय रहता था, इसलिए उन्हें घर के भीतर नहीं आने दिया जाता था।

2. परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी माँगने आया। हमने वह दोनों चिटें उसे दे दी। शायद उसी दिन हम थोड्ला के पहले के आखिरी गाँव में पहुँच गये। यहाँ भी सुमति के जान-पहचान के आदमी थे और भिखमंगे रहते भी ठहरने के लिए अच्छी जगह मिली। पाँच साल बाद हम इसी रास्ते लौटे थे और भिखमंगे नहीं, एक भद्र यात्री के वेश में घोड़ों पर सवार होकर आये थे, किन्तु उस वक्त किसी ने हमें रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के सबसे गरीब झोंपड़े में ठहरे थे। बहुत कुछ लोगों की उस वक्त की मनोवृत्ति पर ही निर्भर है, खासकर शाम के वक्त छङ् पीकर बहुत कम होश-हवास को दुरुस्त रखते हैं।

प्रश्न 1. किले को परित्यक्त तथा चीनी क्यों कहा गया है? बताइये।
प्रश्न 2. लेखक और उसका साथी भिखमंगे के वेश में क्यों थे?
प्रश्न 3. भिखमंगे रहते भी लेखक को ठहरने की अच्छी जगह कैसे मिली?
प्रश्न 4. तिब्बत यात्रा में लेखक को भारतीय तथा तिब्बती अतिथि-सत्कार में क्या अन्तर देखने को मिला?
उत्तर :
1. पहले उस किले में चीनी सैनिक रहते थे, किन्तु अब उसमें कोई नहीं रहता था, चीनियों द्वारा निर्मित
होने से उसे चीनी किला कहा गया है।

2. तिब्बत यात्रा में निर्जन स्थानों पर डाकुओं का भय रहता था। उनके समक्ष स्वयं को अतीव साधारण यात्री दिखाने के लिए लेखक और उसका साथी भिखमंगे वेश में थे।

3. जहाँ पर लेखक और उसका साथी सुमति गये थे, वहाँ पर सुमति के जान-पहचान के आदमी रहते थे। इस कारण भिखमंगे वेश में रहते हुए भी उन्हें ठहरने की अच्छी जगह मिली।

4. लेखक को यह देखने को मिला कि वहाँ पर जान-पहचान वाले को ही ठहरने की जगह मिलती है, उसी को अतिथि-सत्कार प्राप्त होता है। जान-पहचान के बिना वहाँ पर अतिथि-सत्कार मिलना मुश्किल है। शाम के समय तो वहाँ के लोग छङ्पीकर मदमस्त हो जाते हैं फिर वे किसी की बात को नहीं सुनते हैं। भारत में लोग बिना जान-पहचान के भी अतिथि-सत्कार करते हैं।

3. डाँडे तिब्बत में सबसे खतरे की जगहें हैं। सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई होने के कारण उनके दोनों तरफ मीलों तक कोई गाँव-गिराँव नहीं होते। नदियों के मोड़ और पहाड़ों के कोनों के कारण बहुत दूर तक आदमी को देखा नहीं जा सकता। डाकुओं के लिए यही सबसे अच्छी जगह है। तिब्बत में गाँव में आकर खून हो जाए, तब तो खूनी को सजा भी मिल सकती है, लेकिन इन निर्जन स्थानों में मरे हुए आदमियों के लिए कोई परवाह नहीं करता। सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती और वहाँ गवाह भी तो कोई नहीं मिल सकता। डकैत पहिले आदमी को मार डालते हैं, उसके बाद देखते हैं कि कुछ पैसा है कि नहीं। हथियार का कानून न रहने के कारण यहाँ लाठी की तरह लोंग पिस्तौल, बन्दूक लिये फिरते हैं।

प्रश्न 1. तिब्बत के निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की कोई परवाह क्यों नहीं करता है?
रश्न 2. तिब्बत में डाँडों को सबसे खतरनाक जगह क्यों कहा गया है?
प्रश्न 3. तिब्बत में लोग लाठी की तरह पिस्लौल और बन्दूक लिए क्यों फिरते हैं?
प्रश्न 4. तिब्बत के डाँडे, नदियों के मोड़ एवं पहाड़ों के कोने किनके लिए अच्छे हैं? बताइए।
उत्तर :
1. तिब्बत में एकदम निर्जन स्थान डाकुओं के लिए अच्छे हैं। इन स्थानों पर उनके द्वारा की गई हत्या की गवाही देने वाला कोई नहीं मिलता है। अतः लोग मरे हुए आदमियों की परवाह नहीं करते हैं और पुलिस भी उनकी ओर से लापरवाह बनी रहती है।

2. तिब्बत में डाँडे सोलह-सत्रह हजार फीट की ऊँचाई पर हैं। उनके दोनों ओर दूर-दूर तक कोई गाँव भी नहीं है। नदियों एवं पहाड़ों के मोड़ों के कारण वहाँ पर आदमी न रहने के कारण सदा खतरा बना रहता है।

3. तिब्बत में और जगह की तरह हथियार का कानून न होने के कारण लोग अपनी सुरक्षा के लिए लाठी की तरह पिस्तौल और बन्दूक रखते हैं।

4. तिब्बत में उक्त जगहें डाकुओं के लिए बहुत अच्छी हैं; क्योंकि निर्जन स्थानों पर मरे हुए आदमियों की कोई परवाह नहीं करता।

4. अब हम तिी के विशाल मैदान में थे, जो पहाड़ों से घिरा टापू-सा मालूम होता था, जिसमें दूर एक छोटी-सी पहाड़ी मैदान के भीतर दिखाई पड़ती है। उसी पहाड़ी का नाम है तिमी समाधि-गिरि। आस पास के गाँव में भी सुमति के कितने ही यजमान थे, कपड़े की पतली-पतली चिरी बत्तियों के गंडे खतम नहीं हो सकते थे, क्योंकि बोधगया से लाये कपड़े के खतम हो जाने पर किसी कपड़े से बोधगया का गंडा बना लेते थे। वह अपने यजमानों के पास जाना चाहते थे। मैंने सोचा वह तो हफ्ताभर उधर ही लगा देंगे। मैंने उनसे कहा कि किस गाँव में ठहरना हो, उसमें भले ही गंडे बाँट दो, मगर आस-पास के गाँवों में मत जाओ। इसके लिए मैं तुम्हें ल्हासा पहुँचकर रुपये दे दूंगा। सुमति ने स्वीकार कर लिया।

प्रश्न 1. तिकी-समाधि-गिरि किसका नाम है? वह कहाँ स्थित है?
प्रश्न 2. सुमति द्वारा बनाये जाने वाले गंडे खतम क्यों नहीं हो पाते थे?
प्रश्न 3. गंडा किसे कहा गया है? सुमति बोधगया का गंडा कैसे बना लेता था?
प्रश्न 4. लेखक ने सुमति को क्या प्रलोभन दिया था और क्यों?
उत्तर :
1. तिश्री का विशाल मैदान चारों ओर से पहाड़ों से घिरा हुआ है। उसके मध्य में एक पहाड़ी स्थित है जो टापू जैसी प्रतीत होती है। उसी पहाड़ी का नाम तिड्री-समाधि-गिरि है।

2. सुमति द्वारा बनाये गंडे इसलिए खत्म नहीं हो पाते थे, क्योंकि वह बोध- गया से लाए कपड़े के खतम हो जाने पर भी किसी भी कपड़े को बोधगया का कपड़ा बनाकर उससे गंडे को तैयार कर देता था।

3. मंत्र पढ़कर गाँठ लगाए हुए धागे या कपड़े को गंडा कहा गया है। सुमति लालची और चालाक बौद्ध भिक्षु था। बोधगया से लाया गया धागा या कपड़े से ही गंडा बनाया जाता था लेकिन वह बोधगया से लाया हुआ कपड़ा खतम हो जाने पर भी दूसरे कपड़े को बोधगया का बताकर गंडा बना लेता था।

4. सुमति बौद्ध भिक्षु होने के नाते गंडे बाँटता था और गंडे बाँटने में वह काफी समय लगा देता था। इसलिए लेखक ने समय की बचत से उसे प्रलोभन दिया था कि ल्हासा पहुँच कर वह उसे रुपये दे देगा।

5. दूसरे दिन हमने भरिया ढूँढ़ने की कोशिश की, लेकिन कोई न मिला। सवेरे ही चल दिए होते तो अच्छा था, लेकिन अब 10-11 बजे की धूप में चलना पड़ रहा था। तिब्बत की धूप भी बड़ी कड़ी मालूम होती है, यद्यपि थोड़े से भी मोटे कपड़े से सिर को ढाँक लें तो गरमी खतम हो जाती है। आप दो बजे सूरज की ओर मुँह करके चल रहे हैं, ललाट धूप से जल रहा है और पीछे का कन्धा बर्फ हो रहा है। फिर हमने पीठ पर अपनी-अपनी चीजें लादी, डंडा हाथ में लिया और चल पड़े। यद्यपि सुमति के परिचित तिकी में भी थे। लेकिन वह एक और यजमान से मिलना चाहते थे। इसलिए आदमी मिलने का बहाना कर शेकर विहार की ओर चलने के लिए कहा।

प्रश्न 1. लेखक को यात्रा के दौरान तेज धूप में क्यों चलना पड़ा था?
प्रश्न 2. तिब्बत में पड़ने वाली धूप और ठंड पर प्रकाश डालिए।
प्रश्न 3. ‘सवेरे ही चल दिए होते तो अच्छा था’ लेखक ने यह क्यों कहा?
प्रश्न 4. सुमति ने लेखक से शेकर विहार की ओर चलने को क्यों कहा?
उत्तर :
1. लेखक ने अपनी यात्रा के दौरान भरिया ढूँढ़ने की कोशिश की थी लेकिन उसके न मिलने पर उसे तेज धूप में ही अपनी यात्रा जारी रखने के कारण चलना पड़ा था।

2. तिब्ब्त में धप बहत तेज पडती है। इसलिए 10-11 बजे तेज धप में चलना मश्किल हो जाता है। उस कडी धप से बचने के लिए मोटे कपड़े से सिर को ढंकना पड़ता है। दूसरी ओर वहाँ ठंड भी बहुत पड़ती है। दिन के दो बजे भी उसका प्रभाव कम नहीं होता। इसलिए जहाँ ललाट तेज धूप से जल रहा होता वहीं पीछे का कन्धा बर्फ हो रहा होता।

3. लेखक ने यह इसलिए कहा कि भरिया को ढूँढ़ने के कारण लेखक को यात्रा शुरू करने में देर हो गयी थी। जब उसने 10-11 बजे यात्रा प्रारम्भ की तब तेज धूप के कारण उसको चलने में कठिनाई हो रही थी।

4. तालची प्रकृति का था। वह वहाँ जाकर अपने अन्य किसी परिचित यजमान से धन-प्राप्ति की लालसा में मिलना चाहता था इसलिए उसने लेखक से शेकर विहार की ओर चलने को कहा।

6. तिब्बत की जमीन बहुत अधिक छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। इन जागीरों का बहुत ज्यादा हिस्सा मठों (विहारों) के हाथ में है। अपनी-अपनी जागीर में हरेक जागीरदार कुछ खेती खुद भी करता है, जिसके लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। खेती का इन्तजाम देखने के लिए वहाँ कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता। शेकर की खेती के मुखिया भिक्षु (नम्से) बड़े भद्र पुरुष थे। वह बहुत प्रेम से मिले, हालांकि उस वक्त मेरा भेष ऐसा नहीं था कि उन्हें कुछ भी खयाल करना चाहिए था। यहाँ एक अच्छा मन्दिर था, जिसमें कन्जुर (बुद्धवचन-अनुवाद) की हस्तलिखित एक सौ तीन पोथियाँ रखी हुई थीं, मेरा आसन भी वहीं लगा।

प्रश्न 1. नम्से कौन थे? वे लेखक से किस तरह मिले?
प्रश्न 2. लेखक जब भिक्षु नम्से से मिला, उस समय उसकी वेशभूषा कैसी थी?
प्रश्न 3. मन्दिर में लेखक के लिए क्या आकर्षण था?
प्रश्न 4. तिब्बत में कृषि-भूमि की क्या व्यवस्था है? बताइए।
उत्तर :
1. नम्से शेकर विहार की खेती के मुखिया भिक्षु थे। वे सरल स्वभाव के भद्र पुरुष थे और लेखक से बहुत प्रेम से मिले थे।

2. लेखक और उसके साथी ने चोर-डाकुओं के भय से भिखारियों की वेशभूषा बना रखी थी। जब लेखक भिक्षु नम्से से मिला, तो उस समय भी उसकी वेशभूषा वैसी ही थी।

3. लेखक बौद्ध-साहित्य का अध्ययन करने के उद्देश्य से ही तिब्बत की यात्रा पर गया था। उस मन्दिर में कन्जुर की एक सौ तीन हस्तलिखित पोथियाँ रखी थीं। लेखक उन दुर्लभ पोथियों का अवलोकन एवं ज्ञानार्जन करना चाहता था। इसी कारण लेखक के लिए उस मन्दिर का आकर्षण था और उसने वहाँ पर अपना आसन जमा लिया था।

4. तिब्बत में जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी है। प्रत्येक जागीरदार अपने हिस्से की कुछ भूमि पर खुद खेती करता है। वहाँ पर खेती के लिए मजदूर बेगार में मिल जाते हैं। जागीरों का अधिक हिस्सा बौद्ध विहारों के पास है, उनकी खेती की व्यवस्था के लिए मठ से कोई भिक्षु भेजा जाता है, जो जागीर के आदमियों के लिए राजा से कम नहीं होता है।

बोधात्मक प्रश्न :

प्रश्न 1.
तिब्बत में यात्रियों के लिए आराम की बातें क्या हैं?
उत्तर :
तिब्बत में छुआछूत का भाव नहीं है। भिखमंगों को छोड़कर सामान्य अपरिचित जन को भी घर में प्रवेश दिया जाता है। यात्री घर की स्त्री की झोली में चाय देते हैं तो वे बनाकर दे देती हैं। यह वहाँ यात्रियों के लिए आराम की बात है।

प्रश्न 2.
“शायद खून की हम उतनी परवाह नहीं करते।” लेखक के इस कथन का आशय बताइये।
उत्तर :
तिब्बत में निर्जन स्थानों पर डाकुओं का आतंक रहता है। वे यात्रियों को मार देते हैं। जो यात्री साधारण भिखमंगों के वेश में जाते हैं, वे उनसे कुछ भी धन न मिलने की बात समझकर नहीं मारते हैं। लेखक और उनका साथी भी भिखमंगों के वेश में थे। वे जरूरत पड़ने पर डाकुओं से भी भीख माँगने लगते थे। इसी कारण लेखक ने कहा कि खून की हमें उतनी परवाह नहीं थी।

प्रश्न 3.
‘नम्से’ कौन था? उसकी चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
‘नम्से’ शेकर विहार नामक जागीर का प्रमुख बौद्ध भिक्षु था। वह भद्र पुरुष था। उसका जागीर में बहुत सम्मान था। उसमें किसी भी प्रकार से अभिमान नहीं था इसीलिये भिखमंगे के वेष में लेखक के होने पर भी वह उससे बड़े प्रेम से मिला था और लेखक के साथ प्रेमपूर्वक बातें की थीं।

प्रश्न 4.
लेखक अपने मित्र सुमति के पास विलम्ब से क्यों पहुँचा? इस पर सुमति ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर :
लेखक का घोड़ा धीमे चलने के कारण वह अपने साथियों से पिछड़ गया था साथ ही आगे चलने पर रास्ता दो जगहों के लिए फूट रहा था। इस कारण लेखक गलत रास्ते पर डेढ़ किलोमीटर तक चला गया था। पूछने पर वापस त के पास देर से पहुंचा था। सुमति उसका इन्तजार कर रहा था। इन्तजार के कारण उसे गुस्सा आ रहा था। लेकिन वास्तविकता जानकर वह शान्त हो गया था।

प्रश्न 5.
“मैं अब पुस्तकों के भीतर था।” लेखक के इस कथन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर :
बौद्ध मन्दिर में कन्जुर (बुद्धवचन-अनुवाद) की हस्तलिखित एक सौ तीन पोथियाँ रखी थीं। लेखक खोज में. बौद्ध धर्म का अध्ययन करने के लिए तिब्बत गया था। वहाँ पर लेखक को पोथियों का संग्रह मिल गया था, उसका मन एकाग्र होकर पोथियों को पढ़ने में लीन हो गया था। इसी कारण उसने कहा कि अब वह पुस्तकों के भीतर था।

प्रश्न 6.
लेखक को भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा क्यों करनी पड़ी थी?
उत्तर :
लेखक को भिखमंगे का वेश बनाकर यात्रा इसलिए करनी पड़ी थी, क्योंकि तिब्बत के पहाड़ों पर लूटपाट और हत्या का भय बना रहता था। वहाँ लूटपाट के इरादे से ही हत्याएँ की जाती थीं इसलिए लेखक ने अपने आप को सुरक्षित रखने के लिए भिखमंगे का वेश धारण किया और जब भी उसके सामने कोई संदिग्ध आदमी आता था तब वह “कुची-कुची (दया-दया) एक पैसा” कहते भीख माँगने लगता था। इस प्रकार वह अपनी जान-माल की रक्षा कर लेता था।

प्रश्न 7.
तिकी समाधि गिरि कहाँ स्थित है?
उत्तर :
तिक्री में एक विशाल मैदान है। उसके चारों ओर पहाड़ ही पहाड़ है। उसके बीचोंबीच एक पहाड़ी स्थित है जो टापू जैसी प्रतीत होती है। उसी का नाम तिकी समाधि गिरि है।

प्रश्न 8.
‘ल्हासा की ओर’ यात्रा-वृत्त के आधार पर सुमति की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर :
सुमति लेखक का मित्र तथा तिब्बत से परिचित सहयोगी यात्री था। वह मिलनसार एवं स्नेही व्यक्ति था। वह समय का महत्त्व समझने वाला और अतिथि-सत्कार में कुशल था। मंगोल जाति का होने से वह जल्दी नाराज भी हो जाता था और गुस्सा करता था, परन्तु उतनी ही जल्दी उसकी नाराजगी दूर हो जाती थी। वह यजमानों से काफी स्नेह एवं मेल-मिलाप रखता था, परन्तु कुछ लालची भी था। वह बौद्ध धर्म पर आस्था रखने वाला भिक्षु था।

प्रश्न 9.
भारत के समान तिब्बत में भी अतिथि-सत्कार की परम्परा है’-पठित पाठ के आधार पर लिखिए।
उत्तर :
तिब्बत में सभी घरों के द्वार खुले रहते हैं और वहाँ की महिलाएँ अपरिचित व्यक्तियों को भी चाय बनाकर देती हैं। अगर किसी यात्री को आशंका रहती है कि सारा मक्खन उसकी चाय में नहीं पड़ेगा, तो वह खुद अन्दर जाकर चाय बनाकर ला सकता है। निम्न श्रेणी के भिखमंगों को छोड़कर अन्य व्यक्ति वहाँ घरों के अन्दर बेरोकटोक जा सकते हैं। इस प्रकार तिब्बत में भारत के समान ही ‘अतिथिदेवो भवः’ की परम्परा दिखाई देती है।

प्रश्न 10.
भारत की तुलना में तिब्बती स्त्रियों की सामाजिक स्थिति पर प्रकाश डालिए।
उत्तर :
भारत में स्त्रियाँ अपरिचित व्यक्ति से परदा करती हैं और ऐसे व्यक्ति को अपने घर में घुसने नहीं देती हैं, फिर घर के अन्दर तक जाने का सवाल ही नहीं उठता। भारत की स्त्रियाँ अपरिचित पुरुष से दूरी बनाये रखती हैं तथा उससे स्वयं को असुरक्षित अनुभव करती हैं। परन्तु तिब्बत में स्त्रियाँ न तो परदा करती हैं और न अपरिचित से डरी सहमी रहती हैं। वे अपरिचित यात्रियों का पूरे विश्वास से, बिना भय के स्वागत-सत्कार करती हैं। इस तरह भारत की तुलना में तिब्बती स्त्रियों की सामाजिक स्थिति कुछ अच्छी दिखाई देती है।

प्रश्न 11.
तिब्बत में डाँडे डाकुओं के लिए किस कारण सुरक्षित स्थान हैं?
उत्तर :
तिब्बत में 16-17 हजार फीट की ऊँचाई पर अनेक डाँडे हैं। वे एकदम निर्जन और खतरनाक मोड़ों वाले होते हैं। इनके आसपास कोई गाँव या आबादी नहीं होती है। पहाड़ और नदी के मोड़ पर मौजूद ये डाँडे डाकुओं के लिए सरक्षित स्थान होते हैं। एकदम सनसान होने के कारण डाक वहाँ पर यात्रियों को लट लेते हैं। वहाँ न पुलिस होती है और न कानून-व्यवस्था है। इस वजह से वहाँ पर आसानी से खून हो जाते हैं अर्थात् यात्री मारे जाते हैं

प्रश्न 12.
लेखक सुमति को अपने यजमानों के पास क्यों नहीं जाने देना चाहता था?
उत्तर :
सुमति गया से लाये कपड़े के गंडे बनाकर अपने यजमानों को देता था और उनसे भेंटस्वरूप धन प्राप्त करता था। तिब्बत में सुमति के अनेक यजमान थे। लेखक का मानना था कि सुमति अपने यजमानों के पास जाकर काफी समय लगा देगा। इतने दिनों तक उसे भी उसकी प्रतीक्षा करनी पड़ेगी। इससे उसकी यात्रा में तथा बौद्ध ग्रन्थों के अध्ययन में बाधा पड़ेगी। इसीलिए वह सुमति को यजमानों के पास नहीं जाने देना चाहता था।

प्रश्न 13.
शेकर बिहार के मन्दिर में रखी पोथियों का परिचय दीजिए।
उत्तर :
शेकर विहार में एक अच्छा-सा बौद्ध मन्दिर था, जिसमें कन्जुर अर्थात् बुद्धवचन-अनुवाद की हस्तलिखित एक सौ तीन पोथियाँ रखी थीं। वे पोथियाँ बड़े मोटे कागज पर अच्छे अक्षरों में लिखी हुई थीं, एक-एक पोथी 15-15 सेर से कम वजन की नहीं थी। वहाँ पर रखी गई पोथियाँ अच्छी दशा में तथा पूरी तरह सुरक्षित थीं। लेखक उन पोथियों के अध्ययन में रम गया था।

प्रश्न 14.
लेखक ने तिब्बत में किस धर्म के अनुयायियों का उल्लेख किया है?
उत्तर :
तिब्बत में बौद्ध धर्म के अनुयायी रहते हैं। लेखक का मित्र सुमति बौद्ध धर्म का अनुयायी था और वहाँ पर उसके अनेक यजमान थे। सुमति दूर-दूर तक अपने यजमानों के गाँवों में जाता था। लेखक ने उल्लेख किया है कि तिब्बत में बौद्ध विहारों (मठों) की अधिकता है। वहाँ बौद्ध भिक्षुओं को राजा के समान आदर दिया जाता है। सुमति मंगोल भिक्षु था अर्थात् वह मुसलमान था। उसी की तरह वहाँ के मुसलमान बौद्ध धर्म से प्रभावित बताये गये हैं तथा सब ओर बौद्ध धर्म का प्रसार है।

प्रश्न 15.
तिब्बत के डांडों की यात्रा कितनी सुरक्षित रहती है?
उत्तर :
लेखक ने जिस समय तिब्बत की यात्रा की थी, तब वहाँ पुलिस एवं गुप्तचर विभाग की कोई व्यवस्था नहीं थी। तिब्बत के डाँडे (पहाड़ियाँ) समुद्रतल से 16-17 हजार फीट ऊँचाई पर स्थित हैं। वहाँ पर नदियों एवं पहाड़ों के खतरनाक मोड़ हैं, मीलों तक निर्जन स्थान हैं, परन्तु वहाँ डाकुओं का भय बना रहता है। डाकू धन के लोभ में यात्रियों को मार डालते हैं। निर्जन स्थान पर यात्री को मारने पर न कोई गवाह होता न पुलिस की सहायता मिलती। डाँडों की चढ़ाई-उतराई भी खतरनाक रहती। इस प्रकार तिब्बत में डाँडों की यात्रा सुरक्षित नहीं रहती है।

प्रश्न 16.
डाँडे के आसपास के प्राकृतिक सौन्दर्य का वर्णन पाठानुसार कीजिए।
उत्तर :
तिब्बत में डाँडे सोलह-सत्रह हजार फीट ऊँचे हैं। लेखक ने डाँडे पर चढ़कर देखा, उसे पश्चिम से दक्षिण तक हिमालय के सैकड़ों श्वेत-शिखर दिखाई दिये। भीटे (नीचे खड़े पहाड़) की ओर देखने पर उन पर न बरफ थी और न हरियाली दिखाई दी। उत्तर की तरफ कम बरफ वाली अनेक चोटियाँ थीं, जिन पर पेड़-पौधे नहीं थे। पर डाँडे के देवता का चबूतरा था जो कि पत्थरों का ढेर जैसा था, जिसे जानवरों के सींगों और रंग-बिरंगे कपड़े की  झण्डियों से सजाया गया था।

प्रश्न 17.
तिब्बत में कृषि-योग्य जमीन की क्या स्थिति है? पठित पाठ के आधार पर बताइये।
उत्तर :
तिब्बत में कृषि-योग्य सारी जमीन छोटे-बड़े जागीरदारों में बँटी हुई है। इन जागीरदारों का वहाँ के मठों पर नियन्त्रण है तथा जमीन का एक बड़ा हिस्सा मठों (बौद्ध विहारों) के अधिकार में है। वहाँ के जागीरदार बेगार में मिलने वाले मजदूरों से खेती करवाते हैं। प्रायः खेती का प्रबन्ध कोई भिक्षु करता है। वहाँ पर ऐसे भिक्षु को मठ का अधिकारी माना जाता है तथा उसे राजा की तरह सम्मान दिया जाता है।

प्रश्न 18.
तिब्बत में उस समय कानून-व्यवस्था एवं सुरक्षा की स्थिति कैसी थी?
उत्तर :
जब लेखक तिब्बत-यात्रा पर गया था, उस समय वहाँ पर कानून-व्यवस्था एवं सुरक्षा की स्थिति ठीक नहीं थी। वहाँ सरकार खुफिया विभाग और पुलिस पर उतना खर्च नहीं करती थी। वहाँ हथियार रखने का कानून न होने से लोग लाठी की तरह पिस्तौल व बन्दूक लिये फिरते थे। तिब्बत के पहाड़ी भागों में डाकू-लुटेरे खुलेआम घूमते थे और वे राहगीर को पहले मारकर फिर लूटते थे। मरने वाले का न कोई गवाह होता था और न कोई परवाह करता था। तिब्बत के गाँव भले ही कुछ सुरक्षित थे, परन्तु पहाड़ी निर्जन स्थान पूरी तरह असुरक्षित थे।

प्रश्न 19.
तिब्बत की जलवायु भारत से किस प्रकार भिन्न है? सोदाहरण लिखिए।
उत्तर :
तिब्बत की जलवायु भारत से बिल्कुल भिन्न है। वहाँ पर सुबह एवं शाम को ठंड बढ़ जाती है। दिन में सूर्य की ओर मुँह करके चलने में तेज धूप पड़ती है और ललाट धूप से तपने लगता है, लेकिन पीछे की तरफ सूर्य की किरणें न पड़ने से कन्धा-पीठ बर्फ की तरह ठंडा हो जाता है। इसी प्रकार छाया वाले स्थानों पर काफी ठंडक रहती है। पर्वतीय क्षेत्र होने से वहाँ पर भारत की तुलना में सर्दी का प्रकोप अधिक रहता है।

प्रश्न 20.
सुमति तिब्बतवासियों की धार्मिक आस्था का अनुचित लाभ किस तरह उठाता था?
उत्तर :
सुमति लेखक का सहयोगी बौद्ध भिक्षु था। वह बोधगया से लाये गये कपड़ों को चीरकर उनके गंडे बनाकर अपने यजमानों को बाँटता था। जब बोधगया से लाये लाल कपड़े खत्म हो जाते, तो वह उसी रंग के किसी भी कपड़े से गंडा बना देता और उसे बोधगया से लाया हुआ बताकर यजमानों को बाँट देता था और उनसे दक्षिणा लेता था। इस तरह वह अपने तिब्बतवासी यजमानों की धार्मिक आस्था का अनुचित लाभ उठाता था।

दांडी तिब्बत में सबसे खतरनाक जगह क्यों है?

2. तिब्बत में सबसे खतरनाक जगह कौन सी है और क्यों? उत्तर- तिब्बत में सबसे खतरनाक स्थान डाँडे है। सोलह सत्ररह हजार फीट ऊँचे स्थान होने कारण दूर तक कोई गाँव नही होता इसलिए डाकुओं का भय बना रहता है।

डांडे खतरनाक क्यों है?

यह खतरनाक क्यों हैं? उत्तर: तिब्बत में पहाड़ों के सीमान्त स्थलों को डांडे कहते हैं। यह सोलह-सत्रह हज़ार फ़ुट की उंचाई पर स्थित है। इनके चारों ओर निर्जन प्रदेश है।

तिब्बत मे खतरनाक जगह कौनसी है?

This is Expert Verified Answer तिब्बत में खतरनाक जगह को डाँडे कहते हैं, ये वो जगह होती है जो बेहद ऊँचाई पर स्थित होती है। ये एकदम सुनसान जगह होती है। इसलिये इन जगहों पर डाकुओं-लुटेरों को भय बना रहता हैतिब्बत में डाँडे उन जगहों को कहते हैं, जो बेहद ऊंचाई पर स्थित होती हैं।

तिब्बत में डंडे क्या है उनकी विशेषताएं लिखिए?

तिब्बत में डाँड़े खतरनाक जगह है जो समुद्रतल से सत्रह-हज़ार फीट ऊँचाई पर स्थित है। यह सुंदर स्थान निर्जन एवं सुनसान होता है। यहाँ के ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों के कोने और नदियों के मोड के अलावा चारों ओर फैली हरियाली इसकी सुंदरता बढ़ाती हैं। एक ओर बरफ़ से ढंकी पहाड़ों की चोटियाँ हैं तो दूसरी ओर घाटियों में विशाल मैदान हैं।