द्रव का वास कैसे होता है? - drav ka vaas kaise hota hai?

वाष्पीकरण वह प्रक्रिया है, जिसमें कोई तत्व या यौगिक गैस अवस्था में परिवर्तित होता है। रसायन विज्ञान में द्रव से वाष्प में परिणत होने कि क्रिया 'वाष्पीकरण' कहलाती है।

धरती के मौजूद किसी तत्त्व या यौगिक का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन ही वाष्पीकरण (Vaporization या vaporisation) कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार का होता है- वाष्पन, तथा क्वथन।

वह प्रक्रिया, जिसमें तापमान द्वारा जल, गैस अवस्था में परिवर्तित होता है, वाष्पीकरण कहलाती है। वाष्पीकरण की प्रक्रिया ओसांक अवस्था को छोड़कर प्रत्येक तापमान, स्थान व समय में होती है, वाष्पीकरण की दर कई कारकों पर निर्भर करती है। इनमें से प्रमुख कारकइस प्रकार हैंः-

1 - जल की उपलब्धता:

स्थल भागों की अपेक्षा जल भागों से वाष्पीकरण अधिकहोता है। यही कारण है कि वाष्पीकरण महाद्वीपों की तुलना में महासागरों परअधिक होता है।

2 - तापमान:

हम जानते हैं कि गर्म वायु ठंडी वायु की तुलना में अधिक नमी धारणकर सकती है। अतः जब किसी वायु का तापमान अधिक होता है, वह अपने अन्दरकम तापमान की तुलना में अधिक नमी धारण करने की स्थिति में होती है। यहीकारण है कि शीत काल की तुलना में ग्रीष्म काल में वाष्पीकरण अधिक होता है, अतः गीले कपड़े सर्दियों की तुलना में गर्मियों में जल्दी सूख जाते हैं।

3 - वायु की नमी:

यदि किसी वायु की सापेक्ष आर्द्रता अधिक है तो वह कम मात्रा में अतिरिक्त नमी धारण कर सकती है। इसके विपरीत यदि सापेक्ष आर्द्रता कमहै तो अधिक मात्रा में अतिरिक्त नमी धारण कर सकती है। ऐसी स्थिति मेंवाष्पीकरण अधिक तेजी से होगा। वायु की शुष्कता भी वाष्पीकरण की दर को तेजकरती है। वर्षा वाले दिनों में वायु में अधिक नमी होने के कारण गीले कपड़े देरसे सूखते हैं।

4 - पवन:

हवा भी वाष्पीकरण की दर को प्र्रभावित करती है। यदि वायु शांत है, तो जलीय धरातल से लगी वायु वाष्पीकरण होते ही संतृप्त हो जाएगी। वायु के संतृप्तहोने पर वाष्पीकरण रूक जाएगा। यदि वायु गतिशील है तो वह संतृप्त वायु कोउस स्थान से हटा देती है उसके स्थान पर कम आर्द्रता वाली वायु आ जाती है।इससे वाष्पीकरण की प्रक्रिया फिर प्रारम्भ हो जाती है और तब तक होती रहतीहै जब तक संतृप्त वायु पवन द्वारा हटायी जाती रहती है।

5 - बादलों का आवरण:

मेघाच्छादन सौर विकिरण में अवरोध डालता है और किसीस्थान की वायु के तापमान को प्रभावित करता है। इस प्रकार यह अप्रत्यक्ष रूपसे वाष्पीकरण प्रक्रिया को नियंत्रित करता है।

यह रोचक तथ्य है कि एक ग्राम जल को जलवाष्प में बदलने के लिये लगभग 600कैलोरी ऊष्मा की आवश्यकता होती है। एक ग्राम जल के तापमान को 100 सेन्टीग्रेट से बढ़ाने में जो ऊष्मा ऊर्जा खर्च होती है उसे कैलोरी कहते हैं। तापमान में बिना परिवर्तन कियेजब जल द्रव अवस्था से गैसीय अवस्था में बदलता है या जब वह ठोस (बर्फ) अवस्थासे द्रव (जल) अवस्था में बदलता है तो इस क्रिया में जो ऊष्मा ऊर्जा खर्च होती है, उसेगुप्त ऊष्मा कहते हैं। यह एक प्रकार की छिपी हुई ऊष्मा होती है। इसका प्रभावतापमापी पर दिखाई नहीं देता। जब जलवाष्प जल की नन्हीं-नन्हीं बूँदों या बर्फ केकणों में बदलती है तो यह गुप्त ऊष्मा वायु में छोड़ दी जाती है। वायुमंडल में छोड़े जानेवाली यह गुप्त ऊष्मा मौसम परिवर्तनों के लिये ऊर्जा का महत्वपूर्ण स्रोत बनती हैं।

वाष्पोत्सर्जन एक विशिष्ट प्रक्रिया है जिसमें वनस्पतियों के पत्तों एवं उसके तनों द्वाराजल वाष्प के रूप में परिवर्तित होता है। किसी क्षेत्रा से वाष्पीकरण तथा वाष्पोत्सर्जन द्वारासंयुक्त रूप से हुए जल के ह्रास को वानस्पतिक-वाष्पोत्सर्जन कहते हैं।वाष्पीकरण की दरें मौसमों के बदलाव की दरों के बहुत निकट होती हैं और वे अप्रैल तथा मई के गर्मियों के महीनों में अपने शीर्षस्थ स्तर तक पहुंच जाती हैं तथा इस अवधि के दौरान देश के केन्द्रीय हिस्से वाष्पीकरण की उच्चतम दरों का परिचय देते हैं। मानसून के आगमन के साथ वाष्पीकरण की दर में भारी गिरावट आ जाती है। देश के अधिकांश भागों में वार्षिक संभावित वाष्पीकरण 150 से 250 सेंटीमीटर के भीतर रहता है। प्रायद्वीप में मासिक संभावित वाष्पीकरण जो कि दिसम्बर में 15 सेंटीमीटर होता है, मई में बढ़कर 40 सेंटीमीटर तक पहुंच जाता है। पूर्वोत्तर में यह दर दिसम्बर में 6 सेंटीमीटर होती है जो कि मई में बढ़कर 20 सेंटीमीटर तक पहुंच जाता है। पश्चिमी राजस्थान में वाष्पीकरण जून में बढ़कर 40 सेंटीमीटर तक पहुंच जाता है। मानसून के आगमन के साथ संभावित वाष्पीकरण की दर आमतौर पर सारे देश में गिर जाती है।

जब किसी तत्व या यौगिक को गर्म किया जाता है तो यह पदार्थ द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में बदलने लगता है तो पदार्थ के द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होने की घटना को ही वाष्पीकरण कहते है , अत: वाष्पीकरण के अवस्था परिवर्तन की घटना होती है जिसमें कोई भी पदार्थ अपनी द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था में परिवर्तित होने लगता है।

उदाहरण : जब पानी को गर्म किया जाता है तो एक निश्चित ताप के बाद यह पानी , जल वाष्प में बदलने लगता है अर्थात पानी , अपनी द्रव अवस्था से वाष्प अवस्था को ग्रहण करने लगता है , इस घटना को वाष्पीकरण कहा जाता है।

अत: वाष्पीकरण को निम्न प्रकार परिभाषित कर सकते है –

“किसी भी तत्व , यौगिक या पदार्थ का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन को वाष्पीकरण कहते है। “

वाष्पीकरण को दो भागो में बांटा जा सकता है अर्थात यह दो प्रकार का हो सकता है –

1. वाष्पन

2. क्वथनांक

1. वाष्पन : जब किसी द्रव को गर्म किया जाता है तो द्रव की सतह के कण , गैस में बदलने लगते है इस घटना को वाष्पन कहा जाता है , वाष्पन की क्रिया तब तक चलती है जब तक कि द्रव की सतह के ऊपर की वायु संतृप्त न हो जाए।

2. क्वथनांक : इसे क्वथन भी कहा जाता है , इसका सामान्य भाषा में मतलब होता है उबलना , अत: जब द्रव को क्वथनांक बिंदु ताप से कम ताप पर गर्म किया जाता है तो वह द्रव तेजी के साथ वाष्पीकृत होने लगता है , इसी घटना को क्वथनांक कहते है , क्वथनांक की घटना इसलिए घटित होती है क्यूंकि इस स्थिति में द्रव की सतह पर द्रव के कणों की गतिज ऊर्जा का मान या वाष्पदाब , इस द्रव के ऊपर स्थित वायुमंडल के वाष्पदाब के बराबर हो जाता है अर्थात द्रव की सतह का वाष्प दाब का मान , वायुमंडलीय वाष्प दाब के बराबर हो जाता है , इस घटना को क्वथन कहते है।

द्रव्य का वास पन कैसे होता है?

Answer: वाष्पन (Vaporisation) : द्रव का प्रत्येक ताप पर बाहरी ऊष्मा लिए भिन्न निरंतर धीरे धीरे वाष्प में परिवर्तित होने की घटना को वाष्पीकरण कहते है। वाष्पीकरण के फलस्वरूप द्रव का ताप घटता है और ताप वृद्धि के साथ वाष्पन की दर बढ़ जाती है

द्रव में क्या निश्चित होता है?

द्रव का कोई निश्चित आकार नहीं होताद्रव जिस पात्र में रखा जाता है उसी का आकार ग्रहण कर लेता है।

किसी द्रव्य का वास में बदलना क्या कहलाता है?

रसायन विज्ञान में द्रव से वाष्प में परिणत होने कि क्रिया 'वाष्पीकरण' कहलाती है। धरती के मौजूद किसी तत्त्व या यौगिक का द्रव अवस्था से गैस अवस्था में परिवर्तन ही वाष्पीकरण (Vaporization या vaporisation) कहलाता है। वाष्पीकरण दो प्रकार का होता है- वाष्पन, तथा क्वथन।

द्रव का मतलब क्या होता है?

द्रव की परिभाषा “एक ऐसा पदार्थ जिसका कोई आकार नही होता, लेकिन आयतन होता है, उसे द्रव कहते हैं। यह जगह के हिसाब से स्वतंत्र रूप से बह सकता है। अर्थात इसे जिस आकार के बर्तन मे रखेंगे, उस आकार का रूप ले लेता है।” उदाहरण : दूध, पानी, पारा, खून, पेशाब, शराब, खनिज तेल आदि।