दुष्यंत कुमार कविता अपनी प्रेमिका से - dushyant kumaar kavita apanee premika se

दुष्यंत कुमार का 'इश्क'...एक जंगल है तेरी आंखों में, मैं जहां राह भूल जाता हूं... 

प्रसिद्ध शायर निदा फाजली की नजर में दुष्यंत कुमार अपने जमाने के नए युवकों की आवाज़ हैं। यह पूरी तरह सच भी है। दुष्यंत कुमार ने अपनी ग़ज़लों से क्रान्ति ला दी थी, उनकी रचनाएं वो रक्त संचार थीं जिन्होंने समाज के पिछड़े वर्गों को जागरुक किया। उन्होंने 'एक कंठ विषपायी' (काव्य नाटक), 'और मसीहा मर गया' (नाटक) एवं 'सूर्य का स्वागत' जैसी कालजयी कृतियों की रचना की है। साहित्य के संसार में दुष्यंत कुमार का स्थान अद्वितीय है। उनकी ग़ज़ल...कहां तो तय था चरागां हर घर के लिए... को लोगों ने कंठस्थ कर लिया है। इसी के साथ उनकी प्रेम-रस की कविताएं भी लाजवाब हैं।  आगे पढ़ें

हर तरफ़ ऐतराज़ होता है...मैं अगर रौशनी में आता हूं... 

4 years ago