देवकी और वासुदेव पूर्व जन्म में कौन थे? - devakee aur vaasudev poorv janm mein kaun the?

Vasudev Devki Rohini Ke Purva Janm Ki Katha: कश्यप मुनि और उनकी दो पत्नियों (अदिति और दिति) ने ही जल-जन्तुओं के स्वामी वरूणदेव के शापवश पृथ्वी पर वसुदेव, देवकी और रोहिणी के रूप में अवतार ग्रहण किया था।

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देवकी और वासुदेव पूर्व जन्म में कौन थे? - devakee aur vaasudev poorv janm mein kaun the?

एक बार महर्षि कश्यप यज्ञकार्य के लिए वरुणदेव की गौ ले आये। यज्ञ-कार्य की समाप्ति के बाद वरुणदेव के बहुत याचना करने पर भी उन्होंने वह गौ वापिस नहीं दी। तब उदास मन से वरुणदेव ब्रह्माजी के पास गये और उनको अपना दु:ख सुनाते हुए कहा–हे महाभाग ! वह अभिमानी कश्यप मेरी गाय नहीं लौटा रहा है। अत: मैंने उसे शाप दे दिया कि मनुष्य जन्म लेकर तुम गोपालक हो जाओ और तुम्हारी दोनों पत्नियां भी मानव योनि में उत्पन्न होकर अत्यधिक दु:खी रहें।

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मेरी गाय के बछड़े माता से अलग होकर बहुत दु:खी हैं और रो रहे हैं, अतएव पृथ्वीलोक में जन्म लेने पर यह अदिति भी मृतवत्सा (जन्म लेते ही बच्चों का मृत्यु को प्राप्त हो जाना) होगी। इसे कारागार में रहना पड़ेगा और उसे बहुत कष्ट भोगना होगा।

वरुणदेव की बात सुनकर प्रजापति ब्रह्मा ने कश्यप मुनि को बुलाया और पूछा–’आपने लोकपाल वरुण की गाय का हरण क्यों किया; और फिर आपने गाय को लौटाया भी नहीं। आप ऐसा अन्याय क्यों कर रहे हैं? न्याय को जानते हुए भी आपने दूसरे के धन का हरण किया है।’

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लोभ की ऐसी महिमा है कि वह महान-से-महान लोगों को भी नहीं छोड़ता है। संसार में लोभ से बढ़कर अपवित्र अन्य कोई चीज नहीं है; यह सबसे बलवान शत्रु है। महर्षि कश्यप भी इस नीच लोभवश दुराचार में लिप्त हो गये। अत: मर्यादा की रक्षा के लिए ब्रह्माजी ने अपने प्रिय पौत्र कश्यप मुनि को शाप दे दिया कि तुम अपने अंश से पृथ्वी पर यदुवंश में जन्म लेकर वहां अपनी दोनों पत्नियों के साथ गोपालन का कार्य करोगे।

इस प्रकार अंशावतार लेने तथा पृथ्वी का बोझ उतारने के लिए वरुणदेव तथा ब्रह्माजी ने कश्यप मुनि को शाप दे दिया था। कश्यप मुनि ने अगले जन्म में वसुदेवजी और उनकी दोनों पत्नियों ने देवकी और रोहिणी के रूप में जन्म लिया।

क्या आप जानते हैं माता देवकी ने पिछले जन्म की काटी थी 14 साल कि सजा

desk 2021/10/28 Entertainment Leave a comment

देवकी और वासुदेव पूर्व जन्म में कौन थे? - devakee aur vaasudev poorv janm mein kaun the?

कंस को मारने के बाद भगवान श्रीकृष्ण कारागृह में गए और वहां से माता देवकी और पिता वसुदेव को छुड़ाया।
तब माता देवकी ने श्रीकृष्ण से पूछा, “बेटा, तुम भगवान हो। तुम्हारे पास असीम शक्ति है। फिर तुमने चौदह साल तक कंस को मारने और हमें यहां से छुड़ाने की प्रतीक्षा क्यों की?”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “क्षमा करें आदरणीय माता जी। क्या आपने मुझे पिछले जन्म में चौदह साल के लिए वनवास में नहीं भेजा था।”
माता देवकी आश्चर्यचकित हो गईं और फिर पूछा। “बेटा कृष्ण, यह कैसे संभव है? तुम ऐसा क्यों कह रहे हो?”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “माता, आपको अपने पूर्व जन्म के बारे में कुछ भी स्मरण नहीं है, परंतु तब आप कैकेई थीं और आपके पति राजा दशरथ थे।”
माता देवकी ने और ज्यादा आश्चर्यचकित होकर पूछा, “फिर महारानी कौशल्या कौन हैं?”
भगवान श्रीकृष्ण ने कहा, “वही तो इस जन्म में माता यशोदा हैं। चौदह साल तक जिनको पिछले जीवन में मां के जिस प्यार से वंचित रहना पड़ा था, वह उन्हें इस जन्म में मिला है।”
अर्थात्, प्रत्येक प्राणी को इस मृत्युलोक में अपने कर्मों का भोग भोगना ही पड़ता है। यहां तक कि देवी-देवता भी इससे अछूते नहीं हैं।
अतः अहंकार के बंगले में कभी प्रवेश नहीं करना चाहिए और मनुष्यता की झोपड़ी में जाने से कभी संकोच नहीं करना चाहिए!
साभार पी श्रीवास्तव

देवकी महाभारत काल में मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थी और श्रीकृष्ण और बलराम की माता थीं। उनको अदिति का अवतार भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि उनका पुनर्जन्म पृष्णि के रूप में हुआ और उस जन्म में उनका विवाह राज सुतपस से हुआ।[1]

देवकी के रूप में इनका विवाह वसुदेव से हुआ। उग्रसेन के क्रूर बेटे कंस को जब यह भविष्यवाणी सुना कि उसका वध देवकी के आठवें बेटे के हाथों होगा तो उसने देवकी और वसुदेव को कारागार में डाल दिया और उनके छ: बेटों की जन्म होते ही हत्या कर दी। बलराम इनके सातवें पुत्र थे। आठवें बच्चे कृष्ण (जो वास्तव में भगवान विष्णु का अवतार थे) का जन्म होते ही वसुदेव उसे पास में ही एक दूसरे गाँव गोकुल में छोड़ आए जहाँ नंद और उनकी पत्नी यशोदा ने उसका पालन-पोषण किया। लौटते समय वसुदेव यशोदा की कन्या महामाया को अपने साथ लेते आए। कहते हैं कि जब कंस ने उसको मारने की चेष्टा की तो वह हाथ से छूट गई और आकाश की ओर जाते हुआ उसने भविष्यवाणी कि कि तुझे मारनेवाला तो गोकुल में जन्म ले चुका है।

वसुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी से सुभद्रा नामक कृष्ण की एक बहन थीं। इसका विवाह अर्जुन से हुआ और अभिमन्यु की माता थीं।

वासुदेव जी ने देखा कि उनके सम्मुख एक अद्भुत बालक है। उसके नेत्र कमल के समान कोमल और विशाल हैं। चार हाथों में शंख, गदा, चक्र और कमल धारण कर रखा है। वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभमणि झिलमिला रही है।

जब कंस ने एक-एक करके देवकी के छह बालक मार डाले तब माता देवकी के गर्भ में स्वयं भगवान श्रीकृष्ण जी पधारे। इससे पहले विश्वात्मा भगवान ने अपनी योगमाया को आदेश दिया कि देवकी के गर्भ से श्री शेष जी को वासुदेव की दूसरी पत्नी रोहिणी के गर्भ में स्थानान्तरित कर दो। तुम नन्द बाबा की पत्नी यशोदा के गर्भ से पैदा होना, मैं देवकी का पुत्र बनूँगा। पृथ्वी के लोग तुम्हारे लिये बहुत से स्थान बनाएँगे और दुर्गा, भद्रकाली, माधवी, कृष्णा, चण्डिका, कुमुदा, वैष्णवी, विजया, शारदा, ईशानी, नारायणी, माया, कन्या और अम्बिका आदि अनेक नामों से पुकारेंगे। जब भगवान के अवतार का समय आया तो चारों ओर अंधकार छाया हुआ था उसी समय सबके हृदय में विराजमान भगवान श्रीविष्णु देवकी के गर्भ से प्रकट हुए।

वासुदेव जी ने देखा कि उनके सम्मुख एक अद्भुत बालक है। उसके नेत्र कमल के समान कोमल और विशाल हैं। चार हाथों में शंख, गदा, चक्र और कमल धारण कर रखा है। वक्षस्थल पर श्रीवत्स का चिह्न अंकित है। गले में कौस्तुभमणि झिलमिला रही है। उनका रूप देखकर सबको बड़ी प्रसन्नता हुई। अपनी बुद्धि को स्थिर करके उन्होंने भगवान के चरणों में अपना सिर झुकाया और हाथ जोड़कर उनकी स्तुति करने लगे। इधर देवकी ने देखा कि मेरे पुत्र में पुरुषोत्तम भगवान के सभी लक्षण उपस्थित हैं। वे भी पवित्र भाव से मुस्कुराती हुई स्तुति करने लगीं।

भगवान श्रीकृष्ण दोनों से बोले- मैंने अपना चतुर्भुजी रूप इसलिए दिखाया है कि तुम्हें मेरे पूर्व अवतारों का स्मरण हो जाये। तुम दोनों मेरे प्रति पुत्र भाव तथा ब्रह्मभाव रखना। इस प्रकार वात्सल्य स्नेह और चिंतन के द्वारा तुम्हें मेरे परमपद की प्राप्ति होगी। भगवान ने कहा- देवी! स्वायम्भुव मन्वन्तर में जब तुम्हारा जन्म हुआ था तब तुम्हारा नाम पृश्नि और वासुदेव जी का नाम सुतपा प्रजापति था। उस समय मैं पृश्नि गर्भ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। दूसरे जन्म में तुम अदिति और वासुदेव जी कश्यप थे। उस समय मैंने तुम्हारे गर्भ से जन्म लिया था और मेरा नाम उपेन्द्र था तथा मेरा नाम वामन अवतार के रूप में प्रसिद्ध हुआ। अब तीसरी बार आपका पुत्र बनकर प्रकट हुआ हूँ। इतना बताकर भगवान चुप हो गये और शिशु रूप धारण कर लिया। तब वासुदेव जी ने भगवान की प्रेरणा से अपने पुत्र को लेकर सूतिकाग्रह से बाहर निकलने की इच्छा प्रकट की। उसी समय नन्द जी की पत्नी यशोदा के गर्भ से उस योगमाया का जन्म हुआ जो भगवान की शक्ति होने के कारण उनके समान ही जन्म रहित हैं।

वासुदेव जी अपनी योगमाया से श्रीकृष्ण को लेकर गोकुल की तरफ चले। घनघोर वर्षा हो रही थी। श्री शेष जी ने छत्रछाया कर रखी थी। यमुना नदी उमड़ रही थी। यमुना जी ने रास्ता दे दिया। वासुदेव जी नन्दबाबा के यहाँ से उस कन्या को ले आये और अपने पुत्र को यशोदा जी के पास सुला दिया। जेल में पहुँच कर वासुदेव जी ने उस कन्या को देवकी के पास सुला दिया और अपने पैरों में बेड़ियां धारण कर लीं तथा दरवाजों पर स्वतः ही ताले लग गये।

वासुदेव और देवकी पिछले जन्म में कौन थे?

देवकी महाभारत काल में मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की कन्या थी और श्रीकृष्ण की माता और बलराम की विमाता थीं। उनको अदिति का अवतार भी माना जाता है। यह भी माना जाता है कि उनका पुनर्जन्म पृष्णि के रूप में हुआ और उस जन्म में उनका विवाह राज सुतपस से हुआ।

वासुदेव पिछले जन्म में क्या थे?

अपने पूर्वजन्म में वासुदेव श्रेष्ठ प्रजापति कश्यप थे तथा उनकी पत्नी सुतपा माता अदिति। प्रजापति कश्यप तथा अदिति ने श्रीकृष्ण की तपस्या की। उनकी तपस्या से प्रसन्न हो कृष्ण ने उनसे वरदान मांगने को कहा—कश्यप ने वरदानस्वरूप उनके जैसा पुत्र मांगा और श्रीकृष्ण ने उनको यह वरदान दे भी दिया।

यशोदा और देवकी का क्या रिश्ता था?

भगवान श्रीकृष्‍ण ने राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव की पत्नी देवकी के गर्भ से जन्म लिया था और गोकुल के ग्राम प्रमुख नंदराय की पत्नी यशोदा ने उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया थादेवकी : देवकी मथुरा के राजा उग्रसेन की पुत्री और कंस की बहनी थीं, जिनका विवाह पास ही के राजा शूरसेन के पुत्र वसुदेव से विवाह हुआ था

कृष्ण पूर्व जन्म में कौन थे?

सबसे पहले श्रीकृष्ण की ही बात करते हैं। यह भगवान विष्णु के आठवें अवतार माने जाते हैं। यानी इससे पहले इनका सात जन्म हो चुका था। लेकिन मूल रूप से यह माना जाता है कि कृष्ण पूर्वजन्म में नारायण थे