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देवनागरी लिपि का जन्मदाता कोई एक व्यक्ति नहीं था। इसका विकास भारत की प्राचीन लिपि ब्राहमी से हुआ। ब्राहमी की दो शाखाएं थीं, उत्तरी और दक्षिणी। Devnagri lipi :- देवनागरी एक भारतीय लिपि है जिसमें अनेक भारतीयभाषाएँ तथा कई विदेशी भाषाएँ लिखी जाती हैं। यह बायें से दायें लिखी जाती है। इसकी पहचान एक क्षैतिज रेखा से है जिसे ‘शिरोरेखा’ कहते हैं संस्कृत, पालि, हिन्दी, मराठी, कोंकणी, सिन्धी, कश्मीरी, हरियाणवी, बुंदेली भाषा, डोगरी, खस, नेपाल भाषा (तथा अन्य नेपाली भाषाएँ), तमांग भाषा, गढ़वाली, बोडो, अंगिका, मगही, भोजपुरी, नागपुरी, मैथिली, संताली, राजस्थानी भाषा, बघेली आदि भाषाएँ और स्थानीय बोलियाँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमानी और उर्दू भाषाएँ भी देवनागरी में लिखी जाती हैं। देवनागरी विश्व में सर्वाधिक प्रयुक्त लिपियों में से एक है। यह दक्षिण एशिया की 175 से अधिक भाषाओं को लिखने के लिए प्रयुक्त हो रही है। अधिकतर भाषाओं की तरह देवनागरी भी बायें से दायें लिखी जाती है। प्रत्येक शब्द के ऊपर एक रेखा खिंची होती है (कुछ वर्णों के ऊपर रेखा नहीं होती है) इसे शिरोरेखा कहते हैं। देवनागरी का विकास ब्राह्मी लिपि से हुआ है। यह एक ध्वन्यात्मक लिपि है जो प्रचलित लिपियों (रोमन, अरबी, चीनी आदि) में सबसे अधिक वैज्ञानिक है। इससे वैज्ञानिक और व्यापक लिपि शायद केवल अध्वव लिपि है। भारत की कई लिपियाँ देवनागरी से बहुत अधिक मिलती-जुलती हैं, जैसे- बांग्ला, गुजराती, गुरुमुखी आदि। कम्प्यूटर प्रोग्रामों की सहायता से भारतीय लिपियों को परस्पर परिवर्तन बहुत आसान हो गया है। भारतीय भाषाओं के किसी भी शब्द या ध्वनि को देवनागरी लिपि में ज्यों का त्यों लिखा जा सकता है और फिर लिखे पाठ को लगभग ‘हू-ब-हू’ उच्चारण किया जा सकता है, जो कि रोमन लिपि और अन्य कई लिपियों में सम्भव नहीं है, जब तक कि उनका विशेष मानकीकरण न किया जाये, जैसे आइट्रांस या IAST । इसमें कुल ५२ अक्षर हैं, जिसमें १४ स्वर और ३८ व्यंजन हैं। अक्षरों की क्रम व्यवस्था (विन्यास) भी बहुत ही वैज्ञानिक है। स्वर-व्यंजन, कोमल-कठोर, अल्पप्राण-महाप्राण, अनुनासिक्य-अन्तस्थ-उष्म इत्यादि वर्गीकरण भी वैज्ञानिक हैं। एक मत के अनुसार देवनगर (काशी) में प्रचलन के कारण इसका नाम देवनागरी पड़ा। भारत तथा एशिया की अनेक लिपियों के संकेत देवनागरी से अलग हैं, परन्तु उच्चारण व वर्ण-क्रम आदि देवनागरी के ही समान हैं, क्योंकि वे सभी ब्राह्मी लिपि से उत्पन्न हुई हैं (उर्दू को छोड़कर)। इसलिए इन लिपियों को परस्पर आसानी से लिप्यन्तरित किया जा सकता है। देवनागरी लेखन की दृष्टि से सरल, सौन्दर्य की दृष्टि से सुन्दर और वाचन की दृष्टि से सुपाठ्य है। Devnagri lipi देवनागरी लिपि गुण , महत्व देवनागरी’ शब्द की व्युत्पत्तिदेवनागरी या नागरी नाम का प्रयोग “क्यों” प्रारम्भ हुआ और इसका व्युत्पत्तिपरक प्रवृत्तिनिमित्त क्या था- यह अब तक पूर्णतः निश्चित नहीं है। (क) ‘नागर’ अपभ्रंश या गुजराती “नागर” ब्राह्मणों से उसका सम्बन्ध बताया गया है। पर दृढ़ प्रमाण के अभाव में यह मत सन्दिग्ध है। (ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम “नंदिनागरी” था। हो सकता है “नन्दिनागर” कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ सम्बन्ध रहा हो। (ग) यह भी हो सकता है कि “नागर” जन इसमें लिखा करते थे, अत: “नागरी” अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब “देवनागरी” भी कहा गया। (घ) सांकेतिक चिह्नों या देवताओं की उपासना में प्रयुक्त त्रिकोण, चक्र आदि संकेतचिह्नों को “देवनागर” कहते थे। कालान्तर में नाम के प्रथमाक्षरों का उनसे बोध होने लगा और जिस लिपि में उनको स्थान मिला- वह ‘देवनागरी’ या ‘नागरी’ कही गई। इन सब पक्षों के मूल में कल्पना का प्राधान्य है, निश्चयात्मक प्रमाण अनुपलब्ध हैं। देवनागरी लिपि का उपयोग करने वाली भाषाएँ
देवनागरी वर्णमालादेवनागरी की वर्णमाला में १२ स्वर और ३४ व्यंजन हैं। शून्य या एक या अधिक व्यंजनों और एक स्वर के मेल से एक अक्षर बनता है। स्वरनिम्नलिखित स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ी बोली) के लिये दिये गये हैं। संस्कृत में इनके उच्चारण थोड़े अलग होते हैं। वर्णाक्षर“प” के साथ मात्राIPA उच्चारण“प्” के साथ उच्चारणIAST समतुल्यहिन्दी में वर्णनअप/ ə // pə /aबीच का मध्य प्रसृत स्वरआपा/ α: // pα: /āदीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वरइपि/ i // pi /iह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वरईपी/ i: // pi: /īदीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वरउपु/ u // pu /uह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वरऊपू/ u: // pu: /ūदीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वरएपे/ e: // pe: /eदीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वरऐपै/ æ: // pæ: /aiदीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वरओपो/ ο: // pο: /oदीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वरऔपौ/ ɔ: // pɔ: /auदीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर<कुछ भी नही><कुछ भी नही>/ ɛ // pɛ /<कुछ भी नहीं>ह्रस्व अर्धविवृत अग्र प्रसृत स्वरसंस्कृत में ऐ दो स्वरों का युग्म होता है और “अ-इ” या “आ-इ” की तरह बोला जाता है। इसी तरह औ “अ-उ” या “आ-उ” की तरह बोला जाता है। इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में य
देवनागरी अंकदेवनागरी अंक निम्न रूप में लिखे जाते हैं : ०१२३४५६७८९ देवनागरी लिपि के गुण
देवनागरी लिपि के दोष
देवनागरी लिपि पर महापुरुषों के विचारआचार्य विनोबा भावे संसार की अनेक लिपियों के जानकार थे। उनकी स्पष्ट धारणा थी कि देवनागरी लिपि भारत ही नहीं, संसार की सर्वाधिक वैज्ञानिक लिपि है। अगर भारत की सब भाषाओं के लिए इसका व्यवहार चल पड़े तो सारे भारतीय एक दूसरे के बिल्कुल नजदीक आ जाएंगे। हिंदुस्तान की एकता में देवनागरी लिपि हिंदी से ही अधिक उपयोगी हो सकती है। अनन्त शयनम् अयंगार तो दक्षिण भारतीय भाषाओं के लिए भी देवनागरी की संभावना स्वीकार करते थे। सेठ गोविन्ददास इसे राष्ट्रीय लिपि घोषित करने के पक्ष में थे।
भारत के लिये देवनागरी लिपि का महत्त्वबहुत से लोगों का विचार है कि भारत में अनेकों भाषाएँ होना कोई समस्या नहीं है जबकि उनकी लिपियाँ अलग-अलग होना बहुत बड़ी समस्या है। गांधीजी ने १९४० में गुजराती भाषा की एक पुस्तक को देवनागरी लिपि में छपवाया और इसका उद्देश्य बताया था कि मेरा सपना है कि संस्कृत से निकली हर भाषा की लिपि देवनागरी हो। देवनागरी लिपि का दूसरा नाम क्या है?इसे नागरी लिपि भी कहा जाता है। इसके अतिरिक्त कुछ स्थितियों में गुजराती, पंजाबी, बिष्णुपुरिया मणिपुरी, रोमन और उर्दू भाषाएं भी देवनागरी में लिखी जाती हैं।
देवनागरी के अन्य क्या क्या नाम है?(ख) दक्षिण में इसका प्राचीन नाम "नंदिनागरी" था। हो सकता है "नन्दिनागर" कोई स्थानसूचक हो और इस लिपि का उससे कुछ सम्बन्ध रहा हो। (ग) यह भी हो सकता है कि "नागर" जन इसमें लिखा करते थे, अत: "नागरी" अभिधान पड़ा और जब संस्कृत के ग्रंथ भी इसमें लिखे जाने लगे तब "देवनागरी" भी कहा गया।
देवनागरी लिपि का नाम कैसे पडा?देवनागरी लिपि का नामकरण (devnagri lipi in hindi)-
अधिकतर विद्वानों का मानना है कि देवनागरी लिपि सर्वप्रथम गुजरात में प्रचलित हुई थी. इसलिए वहां के नागर ब्राह्मणों के नाम पर इसे नागरी कहा गया और इस लिपि ने देव भाषा संस्कृत को लिपिबद्ध किया है इसलिए नागरी में देव शब्द जुड़ गया और देवनागरी बन गया.
देवनागरी लिपि कौन सी है?हिन्दी भाषा देवनागरी लिपि में लिखी जाती है। देवनागरी लिपि में हिन्दी के अलावा संस्कृत, पालि,मराठी, कोंकणी, सिन्धी भोजपुरी, मगही, कश्मीरी, अंगिका, नेपाली,गढ़वाली, बोडो, संथाली ,मैथिली आदि भाषाएँ भी लिखी जाती हैं।
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