विद्यालय के प्राचार्य का क्या कार्य है? - vidyaalay ke praachaary ka kya kaary hai?

Home4th Semesterविद्यालय प्रशासन एवं प्रबन्धन में प्राचार्य,प्रधानाचार्य, अध्यापक भूमिका तथा कार्य (शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशासन,examstd)

 

विद्यालय प्रशासन एवं प्रबन्धन में प्राचार्य,प्रधानाचार्य, अध्यापक  भूमिका तथा कार्य (शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशासन,examstd)

विद्यालय प्रशासन एवं प्रबन्धन 

विद्यालय प्रशासन का अर्थ क्या है?

अगर कहा जाये की विद्यालय प्रबंधन से क्या समझते है? विद्यालय प्रशासन एवं प्रबन्धन में प्राचार्य, प्रधानाचार्य, अध्यापक सभी की भूमिका तथा कार्य भिन्न-भिन्न होते है। प्रधानाध्यापक छात्रों, अध्यापकों तथा स्थानीय समुदाय के मध्य सेतु की तरह कार्य करता है। प्रधानाध्यापक अध्यापकों एवं अन्य सहायक कर्मचारियों का निरीक्षणकर्ता है। प्रधानाध्यापक प्रशासक, वित्तीय प्रबंधक, लेखाकार, निरीक्षणकर्ता आदि की समन्वित भूमिका का निर्वहन करता है।विद्यालय प्रशासन एवं प्रबन्धन में प्राचार्य,प्रधानाचार्य, अध्यापक  भूमिका तथा कार्य (शैक्षिक प्रबन्धन एवं प्रशासन,examstd) पोस्ट से माध्यम से विद्यालय प्रबंधन में शिक्षक की भूमिका pdf क्या होती है, स्कूल प्रशासन की क्या आवश्यकता है? तथा विभिन्न स्तरों पर कार्यकृत जैसे प्राचार्य, प्रधानाचार्य, अध्यापक के कार्य एवं उनकी भूमिका का बारे में पढ़ेगें। 

विद्यालय के प्राचार्य का क्या कार्य है? - vidyaalay ke praachaary ka kya kaary hai?

विद्यालय प्रशासन का क्या कार्य है?

विद्यालय प्रसाशन का प्रमुख कार्य विद्यालय का वार्षिक बजट तैयार करना साथ ही वित्तीय अनुदान का प्रयास करना उसका उपयोग करना। पाठ्य-पुस्तकों का चयन करके उनकी खरीदारी करना इसके साथ अन्य शिक्षण सामग्री जैसे  मानचित्र, चार्ट, प्रयोगशाला  सम्बन्धित आवश्यकताओं को पूरा करना होता है। 

विद्यालय में प्रसाशन कार्यों का निर्वाहन का दायित्व प्राचार्य और प्रधानाचार्य करते है।  इनके कार्य निम्नलिखित है -

A . प्राचार्य की विद्यालय में भूमिका एवं कार्य(Role and Activities of the Principal in School)

प्रधानाचार्य विद्यालय के बाह्य तथा आन्तरिक प्रशासन के मध्य एक कड़ी होती है। प्रधानचार्य विद्यालय की आन्तरिक व्यवस्था का सम्बन्ध बाह्य प्रशासन से स्थापित करता है। प्राचार्य और विद्यालय की समस्त क्रियाएँ संचालित तथा सम्पादित होती है। 

विद्यालय के संचालन हेतु उसे उनके कार्य तथा भूमिकाओं का निर्वाह करना होता है। इसकी भूमिकाओं को प्रमुख रूप से तीन वर्गों में विभाजित किया जा सकता है

  1. प्रशासनिक भूमिका (Administration Role)
  2. शिक्षा सम्बन्धी भूमिका (Educational Role)
  3. जन-सम्पर्क भूमिका (Public-relation Role)

1. प्राचार्य की विद्यालय में प्रशासनिक भूमिका (Administration Role of Principal in School)

विद्यालय की कार्य-प्रणाली में प्राचार्य का स्थान सबसे ऊँचा होता है। इसे अनेक कार्य करने विद्यालय सम्बन्धी प्रत्येक प्रकार की क्रियाओं का उत्तरदायित्व प्राचार्य का ही होता है। 

प्रशासनिक को दो भागों में विभाजित करते हैं-

(1) सामान्य कार्य

(2) पर्यवेक्षण कार्य

1. प्राचार्य के सामान्य कार्य(General Activities) :

विद्यालय के संचालन हेतु सामान्य कार्यों हेत व्यव एवं संचालन करना होता है, उनमें प्रमुख क्रियाएँ निम्नलिखित हैं

  1. छात्रों का प्रवेश करना तथा उनका वर्गीकरण अथवा विभाग बनाना। 
  2. समय-चक्र (Time Table) का निर्माण करना, शिक्षण विषयों तथा कक्षाओं का वितरण करना। 
  3. संसाधनों की व्यवस्था करना, चॉक, रजिस्टर, शिक्षक डायरी आदि की व्यवस्था करना।
  4. पुस्तकालय, वाचनालय, प्रयोगशाला, खेल-कूद सम्बन्धी सामग्री की व्यवस्था करना। 
  5. विद्यालय का वार्षिक बजट तैयार करना, वित्तीय अनुदान का प्रयास करना तथा उसका उपयोग करना।
  6. पाठ्य-पुस्तकों का चयन करके खरीदना, अन्य शिक्षण सामग्री मानचित्र, चार्ट तथा प्रयोगशाला सम्बन्धी आवश्यकताओं की पर्ति करना। 
  7. विद्यालय में अनुशासन व्यवस्था रखना छात्रों तथा शिक्षकों व कर्मचारियों की कठिनाइयों तथा समस्याओं का निवारण करना। 
  8. कार्यों का विभाजन करना, शिक्षण कार्य के वितरण के अतिरिक्त अन्य क्रियाओं का उत्तरदायित्व शिक्षकों को सौपना। (
  9. पाठ्यक्रम सहगामी क्रियाओं की व्यवस्था करना, विचार गोष्ठियों, विद्यालयों प्रार्थना, भाषण,वाद-विवाद प्रतियोगिता, एन०सी०सी०, राष्ट्रीय समाज सेवा, खेल केन्द्र, छात्रावास आदि की व्यवस्था करना तथा इनका समुचित ढंग से संचालन करना। 

2.प्राचार्य के पर्यवेक्षण कार्य (Supervision) 

सामान्य क्रियाएँ व्यवस्था तथा विद्यालय के संचालन से सम्बन्धित होती है। परन्तु पर्यवेक्षण की क्रियाएँ सहायक प्रणाली के रूप में कार्य करती है। संचालन समुचित किया जा रहा है अथवा नहीं, इसके लिए प्राचार्य को उन सभी क्रियाओं के संचालन का पर्यवेक्षण। करना होता है, और उनमें सुधार हेतु निर्देशन तथा सुझाव देने होते है। पर्यावेक्षण की विशिष्ट क्रियाएँ  निम्नलिखित है। 

  1. शिक्षण कार्यों का पर्यवेक्षण करना कि शिक्षक अपने कालांश में पहँचकर पढ़ा रहा है और छात्रा के गृह कार्यों की जाँच भी करता है। 
  2. कार्यालय आभलेख का पर्यवेक्षण करना कैशबुक, स्टाक बक परीक्षा परिणाम अभिलेख 'आदि का पर्यवेक्षण करता है कि सही ढंग से कार्य हो रहा है। 
  3. छात्रावास, खलकूद तथा व्यायामशाला, पुस्तकालय, वाचनालय प्रयोगशाला आदि की कार्य प्रणाली का पर्यवेक्षण करना। 
  4. सामान्य निरीक्षण करना। इसके अन्तर्गत परीक्षाओं, पाठयक्रमों अन्य सहायक क्रियाआ का पर्यवेक्षण करना है।

प्रधानाचार्य से प्रशासनिक क्रियाओं के साथ यह भी अपेक्षा की जाती है कि वह शिक्षण कार्य भी करे। उसे एक शिक्षक का भी निर्वाह करना होता है। अच्छे प्रशासक के साथ प्रभावशाली शिक्षकभी होना चाहियें। 

  1. शिक्षक की भूमिका का भी निर्वाह करना,अपने विषय का शिक्षण भी करना चाहिए।
  2. शिक्षकों का प्रशिक्षण तथा अभिविन्यास भी करना चाहिए। नवीन शिक्षण विधियों तथा नवीन नामों से अवगत करना तथा प्रदर्शन भी करना चाहिए।

C . प्राचार्य के जन-सम्पर्क कार्य (Public Relation Activites of Principle) 

विद्यालय संचालन के लिये प्राचार्य को विभिन्न लोगो से सम्पर्क करना होता है। प्राचार्य में जन सम्पर्क की कुशलता भी होनी चाहिये 

  1. अध्यापकों से सम्पर्क करना 
  2. छात्रों से सम्पर्क करना। 
  3. अभिभावकों से सम्पर्क करना। 
  4. कर्मचारियों से सम्पर्क करना। 
  5. प्रबन्धन समिति के सदस्यों एवं पदाधिकारियों से सम्पर्क रखना। 
  6. जिला स्तर तथा उच्च स्तर के शिक्षा अधिकारयों से सम्पर्क रखना। 
  7. समाज के अन्य व्यक्तियों के सम्पर्क रखना; जैसे-राजनीतिक नेता अन्य सामाजिक कार्यकर्त्ता, प्रेस तथा शासन के अधिकारियों से सम्पर्क रखना।

स्कूल नियोजन में प्रधानचार्य की भूमिका तथा प्रबन्धीय कार्य 

प्रधानाचार्य के कार्य(Functions of Principle) 

प्रधानाचार्य के प्रमुख कार्यों का विस्तृत वर्णन निम्नलिखित है

शैक्षिक क्रियाओं सम्बन्धी कार्य- शिक्षण क्रियाओं के रूप में प्रधानाचार्य द्वारा पाठ्यक्रम का चयन करना, शिक्षण विधियों व सहायक सामग्री की व्यवस्था करना, मूल्यांकन करना, निर्देशन देना आदि कार्य किए जाते हैं, ताकि विद्यालय का चहुँमुखी विकास किया जा सके।

  1. शिक्षकों सम्बन्धी कार्य- विद्यालय के समस्त कार्यक्रमों का सफलता तथा असफलता उसके राक्षका पर निर्भर होती है। शिक्षक ही केवल वह एक साधन है जो स्कूल को गतिशील बनाए रखता है। इसक बिना विद्यालय शन्य बना रहता है। अत: प्रधानाचार्य द्वारा शिक्षकों को मार्ग-दर्शन व परामर्श देना, उन्नति के अवसर प्रदान करना. कार्यभार सन्तुलित करना, सभी सुविधाएँ देना तथा कार्य का मूल्यांकन करना आदि कार्य किए जा सकते है। पूरी पोस्ट पढ़े 

प्राचार्य का क्या काम होता है?

प्रशासन संबंधित कार्य एवं उत्तरदायित्व- जैसा कि हमने आपको बताया कि प्रधानाचार्य विद्यालय का मुख्या होता हैं, इसीलिए सम्पूर्ण विद्यालय के कार्यों का संचालन,निर्देशन,क्रियान्वयन, बजट, समन्वय, मूल्यांकन,छात्रावास की व्यवस्था करना,अनुदान मांगना,सह-पाठ्यक्रम गतिविधियों की व्यवस्था करना,फर्नीचर की व्यवस्था करना आदि समस्त ...

प्रधानाचार्य पर निबंध कैसे लिखें?

प्रधानाचार्य के रूप में मेरे कुछ दायित्व हैं जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं । आधुनिक परिवेश को देखते हुए मेरा मानना है कि विद्‌यालय में अनुशासन का होना सर्वाधिक महत्वपूर्ण है । मैं विद्‌यालय में अनुशासन बनाए रखने हेतु हर संभव प्रयास करूँगा क्योंकि अनुशासन के बिना कुछ भी महत्वपूर्ण प्राप्त नहीं किया जा सकता है ।

प्रधानाचार्य के कार्यों का विभाजन कितने वर्गों में किया गया है?

प्रधानाचार्य के कार्य(Functions of Principle) शैक्षिक क्रियाओं सम्बन्धी कार्य- शिक्षण क्रियाओं के रूप में प्रधानाचार्य द्वारा पाठ्यक्रम का चयन करना, शिक्षण विधियों व सहायक सामग्री की व्यवस्था करना, मूल्यांकन करना, निर्देशन देना आदि कार्य किए जाते हैं, ताकि विद्यालय का चहुँमुखी विकास किया जा सके।