आधुनिक युग के कबीर कहे जाने वाले बाबा नागार्जुन अपनी सशक्त और निर्भीकतापूर्ण लेखनी के कारण सदैव याद किए जाते रहेंगे। वे प्रगतिवादी विचारधारा के कवि थे। उन्होंने अपनी कविताओं में कबीरदास के समान व्यवस्था के प्रति अत्यंत तीखा व्यंग्य किया है।आधुनिक काल में छायावाद के बाद का अत्यंत सशक्त साहित्यांदोलन प्रगतिवाद है। प्रगतिवाद का मूल आधार सामाजिक यथार्थवाद रहा है। प्रगतिवादी काव्य वह है, जो व्यवस्थाओं के प्रति रोष व्यक्त करता है और उसके बदलाव की आवाज़ को बुलंद करता है। नागार्जुन के काव्य में प्रगति के स्वर सर्वप्रमुख है। सही अर्थों मे नागार्जुन जनता के कवि हैं। इन्होंने अपनी कविताओं में गरीबी, भुखमरी, बीमारी, अकाल, बाढ़ जैसे सामाजिक यथार्थ का सूक्ष्म चित्रण किया है। साथ ही सत्ताधारियों की संवेदनहीनता और अकर्मण्यता पर भी वार किया है। Show हिंदी कविता में सबसे अधिक संवेदनशील और लोकोन्मुख जनकवि नागार्जुन की विशिष्टता इसी बात में रही है कि उनकी रचनाओं और उनके वास्तविक जीवन में गहरा सामंजस्य है। नागार्जुन ने अपने युगीन यथार्थ और समसामयिक चेतना को अपनी कविता के माध्यम से मुखरित किया है, जिसमें एक ओर तो गरीब किसान, मजदूर शोषण के अनवरत चक्र में पिसते हुए दाने-दाने को मोहताज हैं तो दूसरी ओर नकाबधारी जो भोग-विलास में लुप्त हैं – “जमींदार हैं, साहूकार हैं, बनिया हैं,व्यापारी हैं। बाबा नागार्जुन की कविताओं में सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक विषमता को लेकर जनवादी चेतना का चित्रण हुआ है। इस तरह समाज में व्याप्त सामाजिक विषमता का चित्रण करते हुए उन्होंने ढोंग, आडम्बर का डटकर विरोध किया है। नागार्जुन आम जनता के कवि हैं इसीलिए सामाजिक, राजनीतिक स्थिति के साथ ही साथ समाज में रहने वाले सामान्य, मेहनतकश मजदूरों की आर्थिक विपन्नता का यथार्थपूर्ण चित्रण अपनी कविता में करते हैं। प्रस्तुत है उनकी कुछ यादगार कविताएं - (तीनों बन्दर बापू के) बापू के भी ताऊ निकले तीनों बन्दर बापू के! सर्वोदय के नटवरलाल लम्बी उमर मिली है,
ख़ुश हैं तीनों बन्दर बापू के! बच्चे होंगे मालामाल सेठों का
हित साध रहे हैं तीनों बन्दर बापू के! छील रहे गीता की खाल मूंड रहे दुनिया-जहान को तीनों बन्दर बापू
के! दिल चटकीला, उजले बाल हमें अँगूठा दिखा रहे हैं तीनों बन्दर बापू के! (अकाल और उसके बाद) कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद (शासन की बंदूक) उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक (प्रेत का बयान) "ओ रे प्रेत -" " महाराज ! निकल गया
भाप आवेग का सुनकर दहाड़ (सच न बोलना) मलाबार के खेतिहरों को अन्न चाहिए खाने को, जन-गण-मन अधिनायक जय हो, प्रजा विचित्र तुम्हारी है ख्याल करो मत जनसाधारण की रोज़ी का, रोटी का, ज़मींदार है, साहुकार है, बनिया है, व्योपारी है, छुट्टा घूमें डाकू गुंडे, छुट्टा घूमें हत्यारे, माताओं पर, बहिनों पर, घोड़े दौड़ाए जाते हैं! रोज़ी-रोटी, हक की बातें जो भी मुंह पर लाएगा, सपने में भी सच न बोलना, वर्ना पकड़े जाओगे, (सत्य) सत्य को लकवा मार गया है सत्य को लकवा मार गया है वह लंबे काठ की तरह पड़ा रहता है लेकिन लगेगा नहीं कि उसने आपको पहचान लिया है जी नहीं, सत्य आपको बिल्कुल नहीं पहचानेगा (आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी) आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी, यही हुई है राय जवाहरलाल की रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! आओ शाही बैण्ड बजायें, आओ बन्दनवार सजायें, खुशियों में डूबे उतरायें, आओ तुमको सैर करायें-- उटकमंड की, शिमला-नैनीताल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! तुम मुस्कान लुटाती आओ, तुम वरदान लुटाती जाओ, आओ जी चाँदी के पथ पर, आओ जी कंचन के रथ पर, नज़र बिछी है, एक-एक दिक्पाल की छ्टा दिखाओ गति की लय की ताल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी ! सैनिक तुम्हें सलामी देंगे लोग-बाग बलि-बलि जायेंगे दॄग-दॄग में खुशियां छ्लकेंगी ओसों में दूबें झलकेंगी प्रणति मिलेगी नये राष्ट्र के भाल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! बेबस-बेसुध, सूखे-रुखडे़, हम ठहरे तिनकों के टुकडे़, टहनी हो तुम भारी-भरकम डाल की खोज खबर तो लो अपने भक्तों के खास महाल की! लो कपूर की लपट आरती लो सोने की थाल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! भूखी भारत-माता के सूखे हाथों को चूम लो प्रेसिडेन्ट की लंच-डिनर में स्वाद बदल लो, झूम लो पद्म-भूषणों, भारत-रत्नों से उनके उद्गार लो पार्लमेण्ट के प्रतिनिधियों से आदर लो, सत्कार लो मिनिस्टरों से शेकहैण्ड लो, जनता से जयकार लो दायें-बायें खडे हज़ारी आफ़िसरों से प्यार लो धनकुबेर उत्सुक दिखेंगे, उनको ज़रा दुलार लो होंठों को कम्पित कर लो, रह-रह के कनखी मार लो बिजली की यह दीपमालिका फिर-फिर इसे निहार लो यह तो नयी-नयी दिल्ली है, दिल में इसे उतार लो एक बात कह दूँ मलका, थोडी-सी लाज उधार लो बापू को मत छेडो, अपने पुरखों से उपहार लो जय ब्रिटेन की जय हो इस कलिकाल की! आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! रफ़ू करेंगे फटे-पुराने जाल की यही हुई है राय जवाहरलाल की आओ रानी, हम ढोयेंगे पालकी! आधुनिक युग के कबीर किसे कहा जाता है?नागार्जुन यानी हिंदी कविता के 'आधुनिक कबीर'. जिस तरह कबीर अपने समय की विसंगतियों पर निशाना अपने अक्खड़-फक्खड़ अंदाज में निशाना साधते थे नागार्जुन भी अपने दौर में वही करते हैं. नागार्जुन हिंदी एक ऐसे हिंदी कवि हैं जिनकी कविता का दायरा या रेंज काफी फैला हुआ है.
आधुनिक युग के कवि कौन कहलाते हैं?इनमें मैथिलीशरण गुप्त, रामचरित उपाध्याय, नाथूराम शर्मा शंकर, ला. भगवान दीन, रामनरेश त्रिपाठी, जयशंकर प्रसाद, गोपाल शरण सिंह, माखन लाल चतुर्वेदी, अनूप शर्मा, रामकुमार वर्मा, श्याम नारायण पांडेय, दिनकर, सुभद्रा कुमारी चौहान, महादेवी वर्मा आदि का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
कबीर ने किस प्रकार की कविताएँ लिखी हैं?संत कबीर की कविताओं को दोहा के नाम से जाना जाता है। दोहा को मातृका मीटर के रूप में रचित कविता के रूप में परिभाषित किया गया है। काव्य की यह शैली अपभ्रंश में उभरी और आमतौर पर हिंदी कविता में प्रयोग की जाती है। कबीर के छंद गुरु ग्रंथ साहिब के आदि ग्रंथ में दर्ज हैं।
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