बाबा नंद और यशोदा पूर्व जन्म में कौन थे? - baaba nand aur yashoda poorv janm mein kaun the?

श्री कृष्ण के माता पिता कौन थे ? श्री कृष्ण भगवान सारे संसार का पालन पोषण करते हैं परंतु उनके पालन पोषण का सौभाग्य माँ यशोदा और  नंद बाबा को मिला. इसके पीछे उनके पूर्व जन्म की कहानी है . 


   नंद बाबा जो अपने पूर्व जन्म मे राजा द्रोण ओर माँ यशोदा उनकी पत्नी धरा ने कई हजारों सालों तक भगवान की तपस्या की. वह दोनों उनके बाल रुप के दर्शन करना चाहते थे. उन्होंने अपनी तपस्या के दौरान खाना- पीना छोड़ दिया.

उनकी तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा जी ने उन्हें दर्शन दिए और उन्हें वर मांगने को कहा.



दोनों बोले , " भगवान विष्णु के बाल रुप के दर्शन करने है, उनकी लीला देखनी है . "

ब्रह्मा जी ने उन्हें यह वरदान दे दिया.

ब्रह्मा जी के इस वरदान को सत्य करने के लिए विष्णु जी ने जब कृष्ण रुप में अवतार लेना था तो उन्होंने नंद बाबा और वसुदेव जी को सम्बंधी बना दिया. और योग माया को माँ यशोदा के यहाँ जन्म लेने भेज दिया. 


कंस के भय से वसुदेव जी श्री कृष्ण को टोकरी में रखकर नंद बाबा के घर चले गए. एक नंद बाबा ही थे जो वसुदेव जी के लिए अपने बच्चे का त्याग कर सकते थे. वसुदेव कृष्ण जी को नंद बाबा को दे आए और उनकी पुत्री योग माया को ले आए. 



धरा और द्रोण के वरदान के कारण  अगले जन्म में राजा नंद और माँ यशोदा भगवान के बाल रुप को देख सके और उनकी बाल लीलाओं का आनंद ले सके. 

भगवान कृष्ण ने अपनी बाल्य अवस्था के 11 वर्ष 6 महीने उनके आंगन में बिताए.


बाबा नंद और यशोदा पूर्व जन्म में कौन थे? - baaba nand aur yashoda poorv janm mein kaun the?

                        



उन्होंने माँ यशोदा को माखन खिलाने का अवसर दिया.

उन्होंने ने मिट्टी खाकर उन्हें ब्रह्मांड दिखाया.

कालिया नाग की बुराई का दमन किया. 

माँ यशोदा का भगवान कृष्ण को ओखली से बांधने और गोपियों का आकर माँ को उलाहना देना, यह सभी बाल लीलाएं माँ को दिखाई.



लेकिन जब अक्रूर जी श्री कृष्ण को  रंग महल ले जाने आए तो माँ यशोदा उन्हें भेजने को तैयार नहीं थी.

श्री कृष्ण ने माँ को बहुत समझाया. योग माया ने भी अपनी माया से माँ यशोदा को भ्रमित करने कोशिश की. लेकिन वह सफल ना हो पाई.  श्री कृष्ण के बिना माँ यशोदा की हालत बुरी सी हो गई थी. उनके मन को शांति तब मिली जब श्री कृष्ण महाभारत युद्ध के पश्चात माँ यशोदा से मिले.

                    

धन्य थी माँ यशोदा और नंद बाबा का तप जो ठाकुर जी सारी दुनिया का पालन करते हैं, उन्होंने भगवान श्री कृष्ण के पालन- पोषण का अवसर मिला.

अनेक शास्त्रों में नन्द को राजा नन्द (नन्द राय) के रूप में व्यक्त किया गया है।[7][8] नन्द राजा वसुदेव के संबंधी व चचेरे भाई थे[9]

भागवत पुराण के अनुसार, गोकुल राज्य के राजा नन्द, राजा वसुदेव के चचेरे भाई थे।[10]

राजा वसुदेव का विवाह मथुरा के राजा उग्रसेन के भाई देवक की पुत्री देवकी से हुआ था। देवकी कंस की चचेरी बहन थीं | कंस ने अपने पिता उग्रसेन को कारागार मे डाल कर मथुरा का राज्य स्वयं हड़प लिया था। देवकी के आठवें पुत्र द्वारा कंस के वध की आकाशवाणी के प्रभाव मे कंस ने देवकी सभी पुत्रो को जन्म के समय ही मार देने की योजना बनाई थी।[7] इस प्रकार देवकी के छः पुत्रों का वध कर दिया गया। परंतु सातवें पुत्र के गर्भ को योगमाया द्वारा रोहिणी के गर्भ मे स्थापित कर दिया गया,[11] रोहिणी वसुदेव की पहली पत्नी थीं जो राजा नन्द के संरक्षण में रह रही थी, उनके बलराम नामक पुत्र उत्पन्न हुआ तथा कृष्ण को स्वयं वसुदेव ने नन्द के हाथों में सौंपा था। कृष्ण व बलराम दोनों को गोप नरेश नन्द व उनकी पत्नी यशोदा ने पाल- पोस कर बड़ा किया।[12][13]

नन्द गोप एक बार शुक्लतीर्थ की यात्रा पर गए। रास्ते में उन्होने कोटेश्वर शिव की आराधना नित्य दस करोड़ ताजपुष्पों से की। कुछ समय पश्चात शिव प्रसन्न हुये व उन्हे अपने "गणों" में शामिल किया और इस प्रकार नन्द गोपेश्वर कहलाए।[14]

नंदगाँव मे लठमार होली के समय का दृश्य

ब्रज मे बरसाना के निकट नंदगाँव एक धार्मिक स्थल है। यह अधीनस्थ सामंत नन्द बाबा की राजधानी था जहां वह अपने अनुयायियों व ग्वालों (गोपो )[15][16]साथ निवास करते थे।[17]

नन्द भवन (चौरासी खंबा मंदिर)[संपादित करें]

नन्द के निवास स्थल को नन्द भवन कहा जाता है, जहाँ कृष्ण बड़े हुये व अपने बाल्यकाल के कुछ वर्ष बिताए वहाँ महाबन का प्रमुख प्रसिद्ध मंदिर है। पीले रंग की इस इमारत के अंदर चौरासी खंभे हैं जिन पर कृष्ण के बाल्यकाल की अनेकों आकृतियाँ चित्रित हैं। ऐसा माना जाता है कि इस भौतिक जगत मे 84000 प्रकार के जीव जन्तु हैं और प्रत्येक खंभा ब्रह्मांड मे निवास करने वाली 1000 योनियों का प्रतीक है।[18]

नन्द घाट पवित्र नदी यमुना के तट पर स्थित है। यह घाट इस घटना से संबन्धित बताया जाता है जबकि एक बार नन्द को यमुना नदी में स्नान करते समय बरुण भगवान के अनुयायियों ने बंदी बना लिया था और कृष्ण ने उन्हे छुड़ाया था। [19]

भारत के प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में बालक कृष्ण की लीलाओं के अनेक वर्णन मिलते हैं। जिनमें यशोदा को ब्रह्मांड के दर्शन, माखनचोरी और उसके आरोप में ओखल से बांध देने की घटनाओं का सूरदास ने सजीव वर्णन किया है। यशोदा ने बलराम के पालन पोषण की भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई जो रोहिणी के पुत्र और सुभद्रा के भाई थे। उनकी एक पुत्री का भी वर्णन मिलता है जिसका नाम एकांगा था।

वसुश्रेष्ठ द्रोण और उनकी पत्नी धरा ने ब्रह्माजी से यह प्रार्थना की - 'देव! जब हम पृथ्वी पर जन्म लें तो भगवान श्री कृष्ण में हमारी अविचल भक्ति हो।' ब्रह्माजी ने 'तथास्तु' कहकर उन्हें वर दिया। इसी वर के प्रभाव से ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से धरा का जन्म यशोदा के रूप में हुआ। और उनका विवाह नंद से हुआ। नंद पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे। भगवान श्री कृष्ण इन्हीं नंद-यशोदा के पुत्र बने।

पुत्र जन्म :- श्री यशोदा जी चुपचाप शांत होकर सोई थीं। रोहिणी जी की आंखें भी बंद थीं। जब वसुदेव ने यशोदा की पुत्री को उठाकर कान्हा को यशोदा के पास सुलाया तो अचानक सूतिका गृह अभिनव प्रकाश से भर गया। सर्वप्रथम रोहिणी माता की आंख खुली। वे जान गई कि यशोदा ने जन्म दिया है।

रोहिणी जी दासियों से बोल उठीं- 'अरी! तुम सब क्या देखती ही रहोगी? कोई दौड़कर नंद को सूचना दे दो।' फिर क्या था, दूसरे ही क्षण सूतिकागार आनंद और खुशियों के कोलाहल में डूब गया। एक नंद को सूचना देने के लिए दौड़ी। एक दाई को बुलाने के लिए गई। एक शहनाई वाले के यहां गई। चारों ओर आनंद का साम्राज्य छा गया।

विधिवत जातकर्म संस्कार संपन्न हुआ। नंद ने इतना दान दिया कि याचकों को और कहीं मांगने की आवश्यकता ही समाप्त हो गई। संपूर्ण ब्रज ही मानो प्रेमानंद में डूब गया। माता यशोदा बड़ी ललक से हाथ बढ़ाती हैं और अपने हृदयधन को उठा लेती हैं तथा शिशु के अधरों को खोलकर अपना स्तन उसके मुख में देती हैं। भगवान शिशुरूप में मां के इस वात्सल्य का बड़े ही प्रेम से पान करने लगते हैं।

कंस के द्वारा भेजी हुई पूतना अपने स्तनों में कालकूट विष लगाकर गोपी-वेश में यशोदा नंदन श्री कृष्ण को मारने के लिए आई। उसने अपना स्तन श्री कृष्ण के मुख में दे दिया। श्री कृष्ण दूध के साथ उसके प्राणों को भी पी गए। शरीर छोड़ते समय श्री कृष्ण को लेकर पूतना मथुरा की ओर दौड़ी। उस समय यशोदा के प्राण भी श्री कृष्ण के साथ चले गए। उनके जीवन में चेतना का संचार तब हुआ, जब गोप-सुंदरियों ने श्री कृष्ण को लाकर उनकी गोद में डाल दिया।

शकटासुर का अंत :- यशोदानंदन श्री कृष्ण क्रमश: बढ़ने लगे। मैया का आनंद भी उसी क्रम में बढ़ रहा था। जननी का प्यार पाकर श्री कृष्णचंद्र इक्यासी दिनों के हो गए। मैया आज अपने सलोने श्री कृष्ण को नीचे पालने में सुला आई थीं। कंस-प्रेरित उत्कच नामक दैत्य आया और शकट में प्रविष्ट हो गया। वह शकट को गिराकर श्री कृष्ण को पीस डालना चाहता था। इसके पूर्व ही श्री कृष्ण ने शकट को उलट दिया और शकटासुर का अंत हो गया।

कृष्ण का मथुरा जाना :- भगवान श्री कृष्ण ने माखन लीला, ऊखल बंधन, कालिया उद्धार, गोचारण, धेनुक वध, दावाग्नि पान, गोवर्धन धारण, रासलीला आदि अनेक लीलाओं से यशोदा मैया को अपार सुख प्रदान किया। इस प्रकार ग्यारह वर्ष छ: महीने तक माता यशोदा का महल श्री कृष्ण की किलकारियों से गूंजता रहा। आखिर श्री कृष्ण को मथुरा पुरी ले जाने के लिए अक्रूर आ ही गए। अक्रूर ने आकर यशोदा के हृदय पर मानो अत्यंत क्रूर वज्र का प्रहार किया। पूरी रात श्री नंद जी श्री यशोदा को समझाते रहे, पर किसी भी कीमत पर वे अपने प्राणप्रिय पुत्र को कंस की रंगशाला में भेजने के लिए तैयार नहीं हो रही थीं।

आखिर योगमाया ने अपनी माया का प्रभाव फैलाया। यशोदा जी ने फिर भी अनुमति नहीं दी, केवल विरोध छोड़कर वे अपने आंसुओं से पृथ्वी को भिगोने लगीं। श्री कृष्ण चले गए और यशोदा विक्षिप्त-सी हो गईं उनका हृदय तो तब शीतल हुआ, जब वे कुरुक्षेत्र में श्री कृष्ण से मिलीं। राम-श्याम को पुन: अपनी गोद में बिठाकर माता यशोदा ने नवजीवन पाया। अपनी लीला समेटने से पहले ही भगवान ने माता यशोदा को गोलोक भेज दिया।

यशोदा और नंद बाबा पूर्व जन्म में कौन थे?

इसी वर के प्रभाव से ब्रजमंडल में सुमुख नामक गोप की पत्नी पाटला के गर्भ से धरा का जन्म यशोदा के रूप में हुआ। और उनका विवाह नंद से हुआ। नंद पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे। भगवान श्री कृष्ण इन्हीं नंद-यशोदा के पुत्र बने।

नंदबाबा पिछले जन्म में कौन थे?

नन्द पूर्व जन्म के द्रोण नामक वसु थे। भगवान श्री कृष्ण इन्हीं नन्द-यशोदा के पुत्र बने।

रोहिणी नंद बाबा की कौन थी?

नंद बाबा ने वसुदेव की पहली पत्नी रोहिणी को अपने घर में शरण दी और उनकी सुरक्षा की थी । वसुदेव और रोहिणी के पुत्र बलराम का भी जन्म नंद बाबा के घर में हुआ था । भगवान श्री कृष्णा का पालन पोषण नंद बाबा और यशोदा ने किया जबकि वसुदेव और देवकी उनके माता पिता थे ।