एक जंगल है तेरी आँखों में Show तू किसी रेल सी गुज़रती है हर तरफ़ ए'तिराज़ होता है एक बाज़ू उखड़ गया जब से मैं तुझे भूलने की कोशिश में कौन ये फ़ासला निभाएगा
कहाँ तो तय था चराग़ाँ हर एक घर के लिए यहाँ दरख़्तों के साए में धूप लगती है न हो क़मीज़ तो पाँव से पेट ढक लेंगे ख़ुदा नहीं न सही आदमी का ख़्वाब सही वो मुतमइन हैं कि पत्थर पिघल नहीं सकता जिएँ तो अपने बग़ैचा में गुलमुहर के तले - Dushyant Kumar
Tap to upload audio or browse to choose a file Charagh ShayariOur suggestion based on your choice More by Dushyant KumarAs you were reading Shayari by Dushyant Kumar Similar Writersour suggestion based on Dushyant Kumar Similar MoodsAs you were reading Charagh Shayari
कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, प्रसंग: प्रस्तुत पक्तियां दुष्यंत कुमार की गजल ‘साये में धूप’ से अवतरित हैं। राजनीति और समाज में जो कुछ चल रहा है उसे खारिज करने और विकल्प की तलाश इस गजल का केन्द्रीय भाव है। व्याख्या-कवि राजनीतिज्ञों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि राजनीतिज्ञ लोगों को बड़े-बड़े लुभावने सपने दिखाते हैं। उन्होंने यह तय किया था कि प्रत्येक घर के लिए एक चिराग होगा अर्थात् हर घर को रोशनी प्रदान की जाएगी। इन घरों में रहने वालों के जीवन में खुशहाली आएगी। पर उनका आश्वासन थोथा होकर रह गया। यथार्थ स्थिति यह है कि पूरे शहर के लिए भी एक चिराग नहीं है। यह है कथनी और करनी का अंतर। पूरा शहर अंधकार में डूबा है अर्थात् अभावों में रह रहा है। इस बनावटी समाज की दुनिया बड़ी विचित्र है। यहाँ तो पेड़ों की छाया में भी धूप लगती है अर्थात् यहाँ लोगों को शांति नहीं मिल पाती। यहाँ से कहीं दूर चल देना चाहिए। यह जाना कुछ देर के लिए न होकर पूरी उम्र भर के लिए होना चाहिए। इस समाज में रहना ठीक नहीं है। विशेष- 1. राजनीतिज्ञों की कथनी-करनी का अंतर दर्शाया गया है। 2. दरख्तों के साये में धूप लगना ‘विरोधाभासी स्थिति है, अत: विरोधाभास अलंकार का प्रयोग है। 3. उर्दू-शब्दों का भरपूर प्रयोग किया गया है, जो गजल विधा के लिए उपयुक्त भी है। 9727 Views पहले शेर में ‘चिराग’ शब्द एक बार बहुवचन में आया है और दूसरी बार एकवचन में। अर्थ एवं काव्य-सौंदर्य की दृष्टि से इसका क्या महत्त्व है? पहले शेर में ‘चिराग, शब्द बहुवचन ‘चिरागाँ’ के रूप में आया है; दूसरी बार एकवचन के अर्थ में ‘चिराग’ आया है। पहली बार ‘चिरागाँ’ में सामान्य लोगों के लिए आजादी की रोशनी देने की बात कही गई है। दूसरी बार में ‘चिराग’ शब्द एक सीमित साधन के रूप में प्रयुक्त हुआ है। सारे शहर के लिए केवल एक चिराग का होना-यही बताता है। 935 Views आशय स्पष्ट करें: इन पंक्तियों का आशय यह है कि शासक वर्ग अपनी शक्ति का गलत प्रयोग करके अभिव्यक्ति पर पाबंदी लगा देता है। यह सर्वथा अनुचित है। शायर को गजल लिखने में इस प्रकार की सावधानी बरतने की जरूरत होती है। उसकी अभिव्यक्ति की आजादी कायम रहनी चाहिए। 731 Views दुष्यंत की इस गज़ल का मिज़ाज बदलाव के पक्ष में है। इस कथन पर विचार करें। दुष्यंत की इस गजल का मिजाज बदलाव के पक्ष में है। वह राजनीतिक और सामाजिक व्यवस्था में बदलाव चाहता है, तभी तो वह दरख्त के नीचे साये में भी धूप लगने की बात करता है और वहाँ से उम्र भर के लिए कहीं और चलने को कहता है। वह तो पत्थर दिल लोगों को पिघलाने में विश्वास रखता है। वह अपनी शर्तों पर जिंदा रहना चाहता है। यह सब तभी संभव है जब परिस्थिति में बदलाव आए। 538 Views आखिरी शेर में ‘गुलमोहर’ की चर्चा हुई है। क्या उसका आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से है या उसमें कोई सांकेतिक अर्थ निहित है? समझाकर लिखें। गुलमोहर से आशय एक खास तरह के फूलदार वृक्ष से तो है ही, साथ ही इसका सांकेतिक अर्थ भी है। गुलमोहर शांति और सुंदरता का प्रतीक है। इसके नीचे व्यक्ति को आजादी का अहसास होता है। 3924 Views गज़ल के तीसरे शेर को गौर से पढ़ें। यहाँ दुष्यंत का इशारा किस तरह के लोगों की ओर है? इस शेर में दुष्यंत का इशारा उन लोगों की ओर है जो समयानुसार स्वयं को ढाल लेते हैं। इनकी आवश्यकताएँ सीमित होती हैं। ये लोग जीवन का सफर आसानी से तय कर लेते हैं। 624 Views हर एक घर के लिए क्या तय था?और अधिकदुष्यंत कुमार
कहाँ तो तय था चिराग़ाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग़ मयस्सर नहीं शहर के लिए। चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। ये लोग कितने मुनासिब हैं, इस सफ़र के लिए।
कहाँ तो तय था कविता की व्याख्या?व्याख्या:- प्रस्तुत पंक्ति में कवि दुष्यंत जी ने राजनीति पर व्यंग करते हुए कहते हैं कि राजनीति लोगों को बड़े- बड़े लुभाने सपने दिखाते है उन्होंने यह तय किया था कि पति घर के लिए एक चिराग़ होगा अर्थात् हर घर की रोशनी प्रधान की जाएगी। इन घरों में रहने वालों के जीवन में खुशहाली आएगी।
कहाँ तो तय था चिरागा गजल?कहाँ तो तय था चिरागाँ हरेक घर के लिए, कहाँ चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए। यहाँ दरख्तों के साये में धूप लगती है, चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए। न हो कमीज़ तो पाँवों से पेट ढँक लेंगे, ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए। खुदा नहीं, न सही, आदमी का ख्वाब सही, कोई हसीन नज़ारा तो है नज़र के लिए।
चिराग मयस्सर नहीं शहर के लिए का क्या अर्थ है *?Answer: कवि राजनीतिज्ञों के झूठे वायदों पर व्यंग्य करता है कि वे हर घर में चिराग उपलब्ध कराने का वायदा करते हैं, पंरतु यहाँ तो पूरे शहर में भी एक चिराग नहीं है। कवि को पेड़ों के साये में धूप लगती है अर्थात् आश्रयदाताओं के यहाँ भी कष्ट मिलते हैं।
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