जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre) को 100 साल से ज़्यादा हो चुके हैं, लेकिन अभी भी भारतीयों के ज़ेहन में इसकी यादें ताज़ा हैं. इस हत्याकांड के लिए ब्रिटेन के कई नेता 'Sorry Feel' कर चुके हैं, लेकिन ये निर्मम हत्याकांड हमेशा भारत की बुरी यादों में से एक रहेगा. इतिहास में घटी इस घटना के बारे में हम में से ज़्यादातर लोग जानते हैं, लेकिन इस घटना से आहत एक क्रांतिकारी के लंदन जाकर बदला लेने की कहानी शायद कम ही लोग ही जानते हैं. ये कहानी है क्रांतिकारी उधम सिंह की, जिन्होंने जलियांवाला बाग हत्याकांड का बदला लिया. indiatimes जलियांवाला बाग नरसंहार में लगभग 1000 लोगों पर अंग्रेज़ी सेना ने निर्दयता से गोली चला दी. इस घटना के गवाह उधम सिंह ने उसी समय बदला लेने का फ़ैसला कर लिया था. वो इस नरसंहार के लिए General Reginald Dyer को मारने के लिए भारत से लंदन तक गए और वहां उसे मारने के बाद ही दम लिया. माता-पिता और भाई की मृत्यु के बाद उधम सामाजिक कार्यों में लगे रहते थे. इसीलिए वह बैसाखी के दिन 13 अप्रैल, 1919 को वहां आए लोगों पानी पिला रहे थे. तभी अचानक जलियांवाला बाग में अंग्रेज़ अफ़सर और कई सारे अन्य सैनिक आ गए. उन्होंंने वहां मौजूद दरवाज़े बंद किये और अंधाधुंध फ़ायरिंग करनी शुरू कर दी, जिसमें हज़ारों मासूमों की जान चली गई.
उधम सिंह ने बदला लेने की कसम खाई (Who Was Udham Singh)Wikipediaउधम सिंह इस हत्याकांड से बचने में तो कामयाब हो गए, लेकिन उस दिन उन्होंने इसका बदला लेने
की कसम खा ली थी. जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद से ही उधम सिंह क्रांतिकारी गतिविधियों से जुड़ गए. इसी कड़ी में उन्होंने गदर पार्टी जॉइन की. बता दें, गदर उस समय का एक सक्रिय क्रांतिकारी संगठन था, जो अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ मोर्चा खोले हुए था. इसके अलावा, ये संगठन देश के युवाओं में देशप्रेम की भावना को जागृत कर रहा था. अंग्रज़ों के ख़िलाफ़ लड़ाई करने के लिए इन संगठनों को पैसों की ज़रूरत होती थी. लिहाज़ा, इससे जुड़े लोग देश-विदेश जाकर पैसे जुटाने का काम करते थे. इसके लिए वह अंग्रेज़ों के ख़ज़ाने को भी अपना निशाना बनाते थे. उधम भी यही करते रहते थे जिसकी वजह से अंग्रेज़ों की नज़र में आ गए थे. इसके अलावा, वह दो-एक बार जेल भी जा चुके थे. उधम अपने गिरफ़्तार होने के डर से यहां-वहां छिप रहे थे. इस दौरान, वह पंजाब से गायब होकर कश्मीर पहुंचे और वहीं उन्हें ख़बर मिली कि ‘डायर’ लदंन में है. उधम के अनुसार डायर जलियांवाला कांड का ज़िम्मेदार मानते थे और उन्होंने तय किया कि वो लंदन जाकर उसे मार कर इस हत्याकांड का बदला लेंगे. डायर को मारने की बनाई योजना (Udham Singh Killed General Dyer)उधम ने इसके लिए पूरी योजना बनाई और लंदन पहुंचने में कामयाब हुए. वहां वे गुप्त रूप से सक्रिय हो गए. अपनी बारीकी से जांच-परख और जानकारी जमा करने के के बाद उन्होंने एक बंदूक का इंतज़ाम किया. जिसके बाद, उन्हें ‘डायर’ के एक समारोह में भाग लेने की ख़बर लगी. लिहाज़ा, वह पहले से ही कैक्सटन हॉल में जाकर आम लोगों के साथ बैठ गए. तभी ईस्ट इंडिया एसोसिएशन और रॉयल सेंट्रल एशियन सोसायटी की बैठक शुरू हुई. जिसमें तमाम अधिकारियों के साथ ‘डायर’ भी मौजूद था. बैठक के बाद जैसे ही ‘डायर’ सभी को संबोधित करने के लिए मंच पर आया, उधम ने उनपर बंदूक से हमला कर दिया और वह मर गया. इस हमले के बाद उधम सिंह वहां से भागे नहीं, बल्कि वहीं खड़े रहे. इसके बाद अंग्रेज़ अफ़सरों ने उन्हें गिरफ़्तार किया और जेल भेज दिया. उन्हें वहां फांसी की सज़ा सुनाई गई और 31 जुलाई 1940 में उधम सिंह ने फांसी को गले लगा लिया. इन्हीं उधम के जीवन पर विक्की कौशल की फ़िल्म भी आ चुकी है. जलियांगवाला बाग हत्याकांड के 100 साल पूरे हो गए. इस हत्याकांड के सबसे बड़े गुनहगार थे ब्रिगेडियर जनरल रेजीनॉल्ड डायर और लेफ़्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर. 1927 में बीमारी की वजह से रेजीनॉल्ड डायर की मौत हो गई. मगर माइकल डायर ज़िंदा था और ब्रिटेन लौट चुका था, लेकिन एक नौजवान लगातार उसका पीछा कर रहा था. आखिरकार 21 साल बाद उस नौजवान ने एक भरे हॉल में माइकल डायर को गोली मार कर जलियांवाला बाग का बदला ले लिया. वो नौजवान था उधम सिंह. 1919 में जब जलियांवाला बाग कांड हुआ था, तब शहीद उधम सिंह की उम्र 20 साल थी और अपनी जवानी में ही उधम सिंह ने कसम खा ली थी कि वो जलियांवाला बाग कांड के लिए जिम्मेदार पंजाब के गवर्नर माइकल ओ डायर और गोली चलाने वाले जरनल रेगीनॉल्ड डायर से बदला लेंगे. जनरल डायर को तो उसके कर्मों की सजा उपरवाले ने दे दी और वो 1927 में तड़प-तड़प कर अपनी मौत खुद मर गया, लेकिन माइकल ओ डायर अब तक जिंदा था. वो रिटायर होने के बाद हिंदुस्तान छोड़कर लंदन में बस गया था. इस बात से अंजान कि उसकी मौत उसके पीछे-पीछे आ रही है. माइकल ओ डायर से बदला लेने के लिए शहीद उधम सिंह 1934 में लंदन पहुंचे. वहां उन्होंने एक कार और एक रिवाल्वर खरीदी तथा सही मौके का इंतजार करने लगे और ये मौका आया 13 मार्च 1940 को. उस दिन उधम सिंह एक किताब में रिवॉल्वर छुपा कर कॉक्सटन हॉल के अंदर घुसने में कामयाब हो गए, जहां माइकल ओ डायर भाषण दे रहा था. उसने कहा कि अगर आज भी उसे दूसरा जलियांवाला बाग कांड करने का मौका मिले तो वो इसे फिर से दोहराएगा. उधम सिंह ने बीच भाषण में ही जलियांवाला बाग कांड के इस गुनहगार को ढेर कर दिया. अपनी 21 साल पुरानी कसम पूरी करने के बाद उधम सिंह ने भागने की कोई कोशिश नहीं की. उधम सिंह को अंग्रेज पुलिस गिऱफ्तार करके ले जा रही है. आज़ादी का ये मतवाला मुस्कुरा रहा है.. लंदन की अदालत में भी शहीद उधम सिंह ने भारत माता का पूरा मान रखा और सर तान कर कहा, 'मैंने माइकल ओ डायर को इसलिए मारा क्योंकि वो इसी लायक था. वो मेरे वतन के हजारों लोगों की मौत का दोषी था. वो हमारे लोगों को कुचलना चाहता था और मैंने उसे ही कुचल दिया. पूरे 21 साल से मैं इस दिन का इंतज़ार कर रहा था. मैंने जो किया मुझे उस पर गर्व है. मुझे मौत का कोई खौफ नहीं क्योंकि मैं अपने वतन के लिए बलिदान दे रहा हूं. 31 जुलाई 1940 को पेंटविले जेल में उधम सिंह को हंसते-हंसते फांसी को चूम लिया. जब तक हिंदुस्तान रहेगा अमर शहीद उधम सिंह की इस वीरगाथा को कभी नहीं भुलाया जा सकेगा. |