जीवनी से आप क्या समझते हैं इसकी विशेषताओं पर चर्चा करें? - jeevanee se aap kya samajhate hain isakee visheshataon par charcha karen?

जीवनी की परिभाषा, स्वरूप

जीवनी की परिभाषा- किसी विशिष्ट व्यक्ति के जीवन वृतान्त को जीवनी कहते है। विशिष्ट व्यक्तित्व के सभी लोग नहीं होते है, समाज और देश के कुछ चुने हुऐ लोग ही विशिष्ट होते है। उनकी यह विशिषता उनके विशेष कार्यो पर निर्भर करती है। ऐसे ही विशिष्ट पुरूषों की जीवनी लिखी जाती है। स्वरूप- हिन्दी में जीवनी को जीवन चरित्र और जीवन चरित्र भी कहते है। वैसे ही दोनों में कोई काश अत्तर नहीं है, फिर भी विशिष्ट अर्थ में दोनों मे अंत्तर किया जाता है। जीवनी में जीवन की अस्तूर घटनाओं का और जीवन चरित्र मे नायक के आन्तरिक गुणों का समावेश किया जाता है। सच तो यह है की जीवनी में किसी चरित्र नायक के अंत्तर और बह्य बहरी दोनो प्रकार की जीवन गद्य घटनाओं और गुणो का लेखा- जोखा प्रस्तुत किया जाता है। जीवनी में नायक के संम्पूर्ण जीवन के विशिष्ट क्रियाकलापों की विशेषता रहती है। जीवनी ना तो इतिहास है, ना ही कल्पनिक कथा यह किसी भी पुरूष की आर्दश कार्जो को प्रस्तुत करती है। यह उपन्यास भी नही है, जीवनी लिखने का मुख्य उद्देश्य होता है। की विशिष्ट मनुष्यों को व्यक्ति के रूप में देखा और परखा जाए। क्योकि हर व्यक्ति में कुछ न कुछ अपनी विशेषता रहती है। इसी विशेषता को प्रकट करना ही जीवनी का मुख्य लक्ष्य है। प्रकार- वैसे जीवनी के अनेक भेद किये गये है, जैसे- आत्मनीय जीवनी, लोकप्रिय जीवनी, ऐतिहासिक जीवनी, मनोवैज्ञानिक जीवनी, व्यक्तिगत जीवनी, कलात्मक जीवनी, व्यंजनत्मक जीवनी इत्यादि। ये भेंद यह प्रकार जीवन के शैली गद्य भेद है। यहाँ यह अस्मरण रखना चाहिए की जीवनी में चरित्र नायक के आदर्श कार्जो और उसकी महाक्ता का ही प्रकासन नही होता, बल्कि उसके समान्य व्यक्ति के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है। ताकी वह मनुष्य की तरह सर्वभाविक और सहज प्रतीत हो, वास्तव में जीवनी में मनुष्य की समान्य और विशिष्ट दोनो प्रकार की विशिष्टताऐ होती है। वह ना तो देवता है, ना ही धानव, वह इन दोनो के बीच के प्राणी है। जो मनुष्य कहलाता है। जीवनी कार्य को अपने चरित्र नायक को उसी रूप में प्रस्तुत करना चाहिए, जिस रूप में यह कारक में उसके जीवन का उत्रोकर विकास हुआ हो। जीवनी के आधार तत्व- जीवनी लेखक को किसी मनुष्य की जीवनी लिखने से पहले कुछ आवश्यक तैयारी कर लेनी चाहिए। एक अंग्रेज़ी लेखक कैशल के अनुसार जीवनीकार को उन सभी सम्बंध पुस्तकों को देख लेना चाहिए। जो उसके चरित्र नायक पर पहले लिखी गई, इसके साथ ही उसके पात्रों डयरी आदि की छानबीन कर लेना चाहिए। जिन में जीवन की मुल्यवान समग्री पायी जा सकती है। इसके आतंरिक अन्य लेखकों द्वारा लिखे अस्मरणो का भी अध्ययन कर लेना चाहिए। जिन में नायक के सम्बंध में जीवन की दुर्लभ समाग्री मिल सकती है। अन्त में जीवनी लेखक उन सभी व्यक्तियों को सम्पर्क करना चाहिए। जो नायक से सम्बंध रहे हो, इस प्रकार जीवनी लेखक एक कठिन अनुसंधान का कार्ज है। इसमें श्रमशाध और व्यव्या शाध दोनो है। पश्चिमी देशों में इतिहास और जीवनी लिखने की पुरानी परम्परा पायी जाती है। किन्तु भारत में इसकी परम्परा नहीं मिलती है। कुरानो, महाकाव्यों में महापुरुषों की चर्चा अवश्य हुई है, पर सही अर्थ मे ये जीवनी नही है। आज जीवनी साहित्य की एक महत्वपूर्ण विधा बन गयी है। और पाठकों में लोकप्रिय होती जा रही है। इसके लेखन में वैज्ञानिक दृष्टि और प्रमाणित तथ्यो की जानकारी होनी चाहिए। भाउक्ता की प्रवाह में बहकर जीवनी नहीं लिखनी चाहिए। लेखक की दृष्टि जितनी तथ्य पारक होगी जीवनी उतनी ही प्रमाणित और वैज्ञानिक समझी जाएगी। पश्चिमी प्रभाव के पलस्वरूप जीवनी में भी जीवनी साहित्य की रचना उन्नीस शताब्दी के अन्तिम चरण से होती रही है, इसका साहित्य में इस विधा का भविष्य उज्जवल है।

कहानी- साहित्य की सभी विधाओं में कहानी सबसे पुरानी विधा है, जनजीवन में यह सबसे अधिक लोकप्रिय है। प्राचीन कालों मे कहानियों को कथा, आख्यायिका, गल्प आदि कहा जाता है। आधुनिक काल मे कहानी ही अधिक प्रचलित है। साहित्य में यह अब अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान बना चुकी है। पहले कहानी का उद्देश्य उपदेश देना और मनोरंजन करना माना जाता है। आज इसका लक्ष्य मानव- जीवन की विभिन्न समस्याओं और संवेदनाओं को व्यक्त करना है। यही कारण है कि प्रचीन कथा से आधुनिक हिन्दी कहानी बिल्कुल भिन्न हो गई उसकी आत्मा बदली है और शैली भी। कहानी के तत्व- मुख्यतः कहानी के छ तत्व माने गये है। [1] कथावस्तु [2] चरित्र-चित्रण [3] संवाद [4] देशकाल या वातावरण [5] उद्देश्य [6] शैली [1] कथावस्तु- कथावस्तु के बिना कहानी की कल्पना ही नहीं की जा सकती। यह उसका अनिवार्य अंग है । कथावस्तु जीवन की भिन्न- मिन्न दिशाओं और क्षेत्रों से ग्रहण की जाती है । इसके विभिन्न स्रोत है, पुराण, इतिहास, राजनीतिक, समाज आदि। कहानीकार इनमे से किसी भी क्षेत्र से कथावस्तु का चुनाव करना है और उसके आधार पर कथानक की अट्टालिका खड़ी करता है। कथावस्तु में घटनाओं की अधिकत

भाषाओं का वर्गीकरण विभिन्न भाषाओं को साधारण दृष्टि से देखने से इस बात का अनुभव होता है कि उनमें परस्पर कुछ बातों में समानता और कुछ में विभिन्नता होती है। समानता दो तरह की हो सकती है-- एक पदरचना की और दूसरा अर्थतत्वों की। उदाहरण के लिए--करना, जाना, खाना, पीना, में समानता इस बात की है की सब में ना प्रत्यय लगा हुआ है जो एक ही संबंधतत्व का बोध कराता है। दूसरी और करना,करता, करेगा, करा, करें, आदि में संबंधतत्व की विभिन्नता है पर अर्थतत्व की समानता है। केवल पदरचना अर्थात संबंधतत्व की समानता पर निर्भर भाषाओं का वर्गीकरण आकृति मूलक वर्गीकरण कहलाता है, दूसरा जिसमें आकृति मूलक समानता के अलावा अर्थतत्व की भी समानता रहती है इतिहासिक या पारिवारिक वर्गीकरण कहा जाता है।                  आकृतिमूलक वर्गीकरण आकृति मूलक वर्गीकरण के हिसाब से, पहले भाषाएं दो वर्गों में बांटी जाती है-- अयोगात्मक और योगात्मक । योगात्मक भाषा उसे कहते हैं, जिसमें हर शब्द अलग- अलग अपनी सत्ता रखता है, उसमे दूसरे शब्दों के कारण कोई विकार या परिवर्तन नहीं होता। प्रत्येक शब्द की अलग-अलग संबंधतत्व या अर्थतत्व को व्यक्त कर

भाषा विज्ञान में भाषा या भाषाओं का वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। और भाषा जीवन का प्रमुख अंग है। क्योंकि भाषा के बिना जीवन और जगत का कोई भी कार्य नहीं हो सकता है। भाषा मानव जीवन की समस्त गतिविधियों की मूल आधार होती है। भाषा से ही हम परस्पर एक दूसरे के विचारों से अवगत होते हैं। अपनी इच्छा वह अभिलाषा व्यक्त करते हैं। और लोग व्यवहार में प्रभावित होते हैं। तथा दूसरों को प्रभावित करने की प्रेरणा प्रदान करते हैं। भाषा ही हमें ज्ञान विज्ञान के अनुसंधानों में सहायता प्रदान करती है। और भाषा से हम प्रगति के पथ पर अग्रसर होकर प्रकृति के विविध रहस्य का उद्घाटन करने में सहमत होते हैं। जब भाषा हमारे जीवन जगत ज्ञान विज्ञान आदि के सभी क्षेत्रों में अपना अधिकार रखती है। तब भाषा का वैज्ञानिक अध्ययन करने वाले भाषा विज्ञान का समान्य ज्ञान विज्ञान कि अन्य शाखा एंव परशाखाओं के प्रतिपादक  विविध शास्त्रों से होना स्वाभाविक है। वैसे भी भाषा ज्ञान विज्ञान की सभी शाखाओं से सहायता प्राप्त करके अपने क्षेत्रों मे परमपरि होता है। और विविध शास्त्रों से उपयोगी सामग्री लेकर भाषा की वैज्ञानिक व्याख्या करता है। इसके अ

जीवनी की विशेषताएं क्या है?

जीवनी की विशेषताएँ अब साहित्य में आम आदमी द्वारा आम आदमी के लिए लिखने पर बल है। नए युग में उन लोगों की जीवनी भी लिखी जाती है, जो ख्यातनाम नहीं हैं। 2) जीवनी का उद्देश्य तभी पूरा होगा जब तथ्य और घटनाक्रम प्रामाणिक हो। अन्यथा वह कथा साहित्य होगा, जिसमें आदर्श चरित्र या कथानायक की सृष्टि की जाती है।

जीवनी से आप क्या समझते हो?

किसी व्यक्ति के जीवन का चरित्र चित्रण करना अर्थात किसी व्यक्ति विशेष के सम्पूर्ण जीवन वृतांत को जीवनी कहते है। जीवनी का अंग्रेजी अर्थ “बायोग्राफी” है। जीवनी में व्यक्ति विशेष के जीवन में घटित घटनाओं का कलात्मक और सौन्दर्यता के साथ चित्रण होता है। जीवनी इतिहास, साहित्य और नायक की त्रिवेणी होती है।

जीवनी का उद्देश्य क्या है?

जीवनी का उद्देश्य किसी महान व्यक्ति के चरित्र को स्थापित करना होता है जबकि आत्मकथा का लक्ष्य यथार्थ जीवन के द्वारा मानवीय प्रतिष्ठा करना रहता है।

जीवनी कितने प्रकार के होते हैं?

प्रकार- वैसे जीवनी के अनेक भेद किये गये है, जैसे- आत्मनीय जीवनी, लोकप्रिय जीवनी, ऐतिहासिक जीवनी, मनोवैज्ञानिक जीवनी, व्यक्तिगत जीवनी, कलात्मक जीवनी, व्यंजनत्मक जीवनी इत्यादि। ये भेंद यह प्रकार जीवन के शैली गद्य भेद है।