लेखिका के व्यक्तित्व पर किन-किन व्यक्तियों का किस रूप में प्रभाव पड़ा? Show
लेखिका के जीवन पर दो लोगों का विशेष प्रभाव पड़ा: 646 Views इस आत्मकथ्य में लेखिका के पिता ने रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर क्यों संबोधित किया है?लेखिका के पिता का मानना था, कि रसोई के काम में लग जाने के कारण लड़कियों की क्षमता और प्रतिभा नष्ट हो जाती है। वे पकाने – खाने तक ही सीमित रह जाती हैं और अपनी सही प्रतिभा का उपयोग नहीं कर पातीं। इस प्रकार प्रतिभा को भट्टी में झोंकने वाली जगह होने के कारण ही वे रसोई को ‘भटियारखाना’ कहकर संबोधित करते थे। 372 Views इस आत्मकथ्य के आधार पर स्वाधीनता आंदोलन के परिदृश्य का चित्रण करते हुए उसमें मन्नू जी की भूमिका को रेखांकित कीजिए? सन् 1946-47 ई. में समूचे देश में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ पूरे उफ़ान पर था। हर तरफ़ हड़तालें , प्रभात – फ़ेरियाँ, ज़ुलूस और नारेबाज़ी हो रही थी। घर में पिता और उनके साथियों के साथ होनेवाली गोष्ठियों और गतिविधियों ने लेखिका को भी जागरूक कर दिया था। प्राध्यापिका शीला अग्रवाल ने लेखिका को स्वतंत्रता – आंदोलन में सक्रिय रूप से जोड़ दिया। जब देश में नियम – कानून और मर्यादाएँ टूटने लगीं, तब पिता की नाराज़गी के बाद भी वे पूरे उत्साह के साथ आंदोलन में कूद पड़ीं। उनका उत्साह , संगठन-क्षमता और विरोध करने का तरीक़ा देखते ही बनता था। वे चौराहों पर बेझिझक भाषण, नारेबाज़ी और हड़तालें करने लगीं। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि स्वतंत्रता आंदोलन में उनकी भी सक्रिय भूमिका थी। 206 Views वह कौन-सी घटना थी जिसके बारे में सुनने पर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हो पाया और न अपने कानों पर? जब पहली बार लेखिका के कॉलेज से उनके पिता के पास शिकायत आई तो लेखिका बहुत डरी हुई थी। उनका अनुमान था कि उनके पिता गुस्से में उनका बुरा हाल करेंगे। लेकिन ठीक इसके उलट उनके पिता ने उन्हें शाबाशी दी। यह सुनकर लेखिका को न अपनी आँखों पर विश्वास हुआ और न अपने कानों पर। 252 Views लेखिका की अपने पिता से वैचारिक टकराहट को अपने शब्दों में लिखिए? लेखिका के अपने पिता के साथ अक्सर वैचारिक टकराहट हुआ करती थी – 282 Views इस आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर क्यों संबोधित किया है ?(00 : 00) लिखित उत्तर Solution : भटियारखाने के दो अर्थ हैं-(1) जहाँ हमेशा भट्ठी जलती रहती है, अर्थात् चूल्हा चढ़ा रहता है। (2) जहाँ बहुत शोर-गुल रहता है। भटियारे का घर । कमीने और असभ्य लोगों का जमघट । पाठ के संदर्भ में यह शब्द पहले अर्थ में प्रयुक्त हुआ है। रसोईघर में हमेशा खाना पकाना चलता रहता है। पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे-चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। वे उन्हें जागरूक नागरिक बनाना चाहते थे। इसलिए उन्होंने रसाईघर की उपेक्षा करते हुए भटियारखाना अर्थात् प्रतिभा को नष्ट करने वाला कह दिया है।
Register now for special offers +91 Home > Hindi > कक्षा 10 > Hindi > Chapter > वार्षिक परीक्षा में पूछे गए प्रश्न उनके आदर्श उतर > इस आत्म कथ्य (पाठ) में लेखिका ... इस आत्म कथ्य (पाठ) में लेखिका के पिता ने रसोई को भटियार खाना कहकर क्यों सम्बोधित किया है?(00 : 00) लिखित उत्तर Solution : भटियार खाने का अर्थ होता है, जहाँ असभ्य लोगों का जमघट रहता है। इस पाठ में भटियार खाना .रसोईघर. के लिए प्रयुक्त हुआ है। लेखिका के पिताजी अपने बच्चों को घर-गृहस्थी या चूल्हे चौके तक सीमित नहीं रखना चाहते थे। लेखिका के पिता अपने बाल-बच्चों को रसोई घर में लगाना नहीं चाहते थे। Follow Us: Popular Chapters by Class: लेखिका के पिता रसोईघर को क्या कहते थे?लेखिका के पिता ने रसोई को भटियारखाना इसलिए कहा है ,क्योंकि उनका विश्वास था कि भटियारखाना यानी रसोई घर में जहां हमेशा भट्टी तपती रहती है ,वहां पर मनुष्य की प्रतिभा का विकास न होकर केवल दमन ही होता है अर्थात व्यक्ति की क्षमता भट्टी में झोंक दी जाती है ।
लेखिका के पिता ने रसोई को भटियारखाना क्यों कहा है?उनके पिता का मानना था कि चूल्हे के संपर्क में आकर उनकी बेटी की प्रतिभा नष्ट हो जाएगी। रोटी पकाने से उसे देश तथा समाज की समझ विकसित नहीं होगी। वह वहाँ जाकर अपनी योग्यता को नष्ट कर देगी। सम्भवत: इसलिए लेखिका के पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर संबोधित किया होगा।
एक कहानी यह भी आत्मकथा में लेखिका के पिता ने रसोई को क्या संज्ञा दी और क्यों?पिता ने रसोई को 'भटियारखाना' कहकर इसलिए संबोधित किया है क्योंकि उनका मानना था की वहाँ काम करके आप अपनी क्षमता एवं प्रतिभा पर ध्यान नहीं दे सकते है। वहाँ आप बस पूरा दिन भट्टी की तरह सुलगते रहते हैं अर्थात वहाँ हर समय कुछ न कुछ काम चलता रहता है और अपनी प्रतिभा और शिक्षा के लिए व्यक्ति समय नहीं दे पाता।
लेखिका की माँ तथा पिता में क्या अंतर था?उनकी माँ अनपढ़ थीं लेकिन घर की जिम्मेदारियों को बहुत अच्छी तरह से निभाती थीं। अजमेर आने से पहले लेखिका के पिता इंदौर में प्रतिष्ठित और सम्मानित व्यक्ति के रूप में कांग्रेस और समाज-सुधार के कार्यों में जुटे हुए थे। वे न केवल शिक्षा का उपदेश देते थे बल्कि विद्यार्थियों को घर बुलाकर पढ़ाते भी थे।
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