लाल पान की बेगम के लेखक कौन थे? - laal paan kee begam ke lekhak kaun the?

लालपानकीबेगम’ : संघर्षशीलताऔर स्वप्नपूर्तिकीगाथा
- डॉ. आशुतोषशर्मा

लाल पान की बेगम के लेखक कौन थे? - laal paan kee begam ke lekhak kaun the?
शोधसार : फणीश्वरनाथरेणुकारचनासंसारवहमीलकापत्थर हैजोसदैवहिन्दीसाहित्यकोगौरवान्वित करेगा औरहिन्दीसाहित्यकारकोराहदिखाएगा।अपनेकथा-कर्मकेमाध्यम सेउन्होंनेअनेकऐसीघटनाओंकोउठायाजोतत्कालीन समाजकाआईनाथी।उनकीप्रमुखकहानियोंमेंसेएक कहानीहै, ‘लालपानकीबेगमजोस्त्रीप्रधानकहानी हैऔरएकस्त्री, बिरजूकीमाँकेअनेकरूपों कोदर्शातीहै।कहींवहसंघर्षशीलपत्नीहैतोकहीं, पतिकोदिशादिखाती, शक्तिदेतीसहधर्मिणीहै, कहींझगडालु पड़ोसिन, तोकहींममतामयीमाँ।अन्ततःसभीकोसाथलेकर चलनेवालीऐसीशक्तिकेप्रतीकरूपमें सामने आतीहैजहाँवहताशकीगड्डीकीलालपानीकी बेगमबनजातीहै।कहानीज़मीदारीउन्मूलनमेंकिएगए उसकेसंघर्षकोशब्दबद्धकरतीहुईउसकेस्वप्ननाच देखनेजानेकोपूराहोतेहुएदर्शातीहैजहांकितनी हीग्रामीणछवियाँ, उनकीबोली, उसकीखुशबूशब्दोंकेमाध्यम सेसजीवहोउठीहै।रेणुकेद्वाराशब्दोंके माध्यमसेखींचीयेरेखाएँनईऊर्जाकासंचारकर पाठकोंकोगद्-गद्करदेतीहै।

बीजशब्द: संवेदनशील, मूर्त्त, सर्वे - सेटलमेण्ट, उन्मूलन, अन्तर्भेदी, निर्देशक, कलात्मक, ऊहापोह, संघर्षशील।

मूलआलेख :फणीश्वरनाथरेणुहिन्दीसाहित्यकोसमृद्धकरने वालेउनकथाकारोंमेंसेएकहैंजिन्होनेंअपनेकथा साहित्यकेमाध्यमसेभारतीयसंस्कृतिकोजीवितरखा। उनकेकथासाहित्यकोमीलकापत्थरसाबितकरनेवाली कहानियोंमेंसेएकहैलालपानकीबेगम प्रस्तुतकहानीकीमुख्यपात्रस्त्रियाँहैंजोअपने जीवनमेंसंघर्षकरतेहुएभी, जीवनकोरंगीनऔरउत्साहीबनानेवालेनाचकेप्रतिसंवेदनशीलहैं।दूसरी  ओरहैरेणुकीकहानीकलाजोइनस्त्री पात्रोंकोइनकीभाषाकेसाथहमारेसामनेमूर्त्त रूपमेंखड़ाकरदेतीहै।रेणुनेस्त्रीपात्रों केमाध्यमसेग्रामीणजीवनकोसजीवकरदियाहै। इनस्त्रीपात्रोंमेंबिरजूकीमाँ, राधेकेबेटी, मखनीफुआ, चम्पिया, सुनरी, जंगीकीपुतोहूप्रमुखहैं।पुरूष पात्रोंमेंबिरजूऔरबिरजूकेबप्पाहैंऔरउनके द्वाराकिएगएसभीक्रियाकलापभीबिरजूकीमाँके इर्द-गिर्दघूमतेहैं।कहानीकीशुरूआतहीबिरजू कीमाँकेगुस्सेसेहोतीहै।जैसेहीमखनी फुआ, बिरजूकीमाँसेपूछतीहै- ‘क्योंबिरजूकी माँ, नाचदेखनेनहींजायेगीक्या?’’1बसइतनीसी बातसुनतेहीबिरजूकीमाँकागुस्सासाँतवेंआसमान परऔरसारागुस्साउतरताहैबच्चोंपर।बिरजूकी माँकेव्यक्तित्वमेंवेसभीरंगदिखाईदेतेहै जोउसेकुछखासबनातेहैं। 

    सर्वे-सेटलमेण्टकेतहतमिलनेवालीभूमिकेलिएकियागयाउसकासंघर्ष, पतिकासाथदेना, हरपरिस्थितिमेंउसेअड़ेरहने केलिएप्रोत्साहितकरनाऔरगाँवकेएकमात्रमनोरंजन केसाधननाचदेखनेकेलिएभीउतनाहीउत्साह, जिद्दउसकेव्यक्तित्वकोकुछखासबनादेतीहै। बिरजूकीमाँकीहीतरहऔरभीस्त्रीपात्र हैंजोअपनेविशेषअन्दाज़, अपनेबोलनेकेतरीके, अपनी हंसी, आवाज़सेवातावरणकोसजीवबनाएरखतीहैं।मखनी फुआकेपूछनेपरकीनाचदेखनेनहींजाएगीतो बिरजूकीमाँभीगुस्सेमेंभरीबैठीथीऔर नुकीलीबातदेमारीमखनीफुआपर, “बिरजूकीमाँकेआगेनाथऔरपीछेपगहियाहोतब फुआ?’’ बसबिरजूकीमाँकाइतनाकहनाथाकि फुआभीपहुँचगईपानीभरकरलौटतीपनभरनियोंमें बिरजूकीमाँकीकहीगईबातकाइंसाफकरवाने। बिल्कुलयथार्थजीवनकोरेणुनेसाकारकरदिया। सर्वे-सेटलमेण्टकेतहतबिरजूकीमाँऔरबापको जमीनमिली।ज़मीदारीउन्मूलनकेदौरान, किसाननेतास्वामी सहजानन्दसरस्वतीनेआन्दोलनकियाजहाँपिछड़े, भूमिहीनकिसानों कोज़मीदारोंकेसामनेखड़ाकरदियागयाकिइन्हें जमीनमिलनीचाहिए।बहुतसेकिसानोंनेज़मीदारोंके सामनेहथियारडालदिए।उन्हेंविश्वासनहींथाकि यहआन्दोलनउन्हेंज़मीदारोंसेभूमिदिलवासकताहै। रेणुनेकहानीमें, ज़मीदारोंनेइसकेतहतजिनहथकण्डों कोअपनायाउसकाज़िक्रकियाहै, “बिरजूकेबप्पाने तोपहलेहीकुर्माटोलीकेएक-एकआदमीको समझाकेकहाथा - ज़िंदगीभरमजदूरीकरतेरह जाओगे। 

    सर्वेकासमयरहाहै।लाठी कड़ीकरोतोदो-चारबीघेजमीनहासिलकरसकते हो।सोगांवकीकिसीपुतखौकीकाभतारसर्वेके समयबाबूसाहेबकेखिलाफखाँसाभीनहीं।... बिरजू केबप्पाकोकमसहनापड़ाहै।बाबूसाहेबगुस्से सेसरकसनाचकेबाघकीतरहहुमड़तेरहगये। उनकाबड़ाबेटाघरमेंआगलगानेकीधमकीदेकर गया।... आखिरबाबूसाहेबनेअपनेसबसेछोटेलड़के कोभेजा।बिरजूकीमाँकोमौसीकहकेपुकार - यहजमीनबाबूजीनेमेरेनामसेखरीदीथी।मेरी पढ़ाई - लिखाईइसीज़मीनकीउपजसेचलतीहै। - “और भीकितनीबाते।2लेकिनफिरभीबिरजूकीमाँ ज़मीनलेनेकेलिएअड़ीरही..., “बिरजूकीमाँ दिन-रातमंझादेतीरहतीतोलेचुकेथे जमीन।रोजआकरमाथापकड़केबैठजायेँ - मुझेजमीन नहींलेनीहैबिरजूकीमाँ, मंजूरीहींअच्छी।जवाब देतीथीबिरजूकीमाँखूबसोच-समझके - छोड़ दो, जबतुम्हाराकलेजाहीथिरनहींहोताहैतोक्याहोगा? जोरूज़मीनजोरके, नहींतोकिसीऔर के।... ”3रेणुनेज़मीदारीउन्मूलनकीउसघटनाके तहतकिसानोंकीज़िन्दगीनेक्या-क्यामोड़लिए, उन्हें किन संघर्षों केतहतदो-तीनबीघेज़मीनमिलीउसका यथार्थचित्रणकिया।इसआन्दोलननेरंगदिखायाजमीनकिसकी, जोतेउसकीजैसेनारोंनेकिसानोंमेंउत्साहभरा, और जोकिसानमोर्चालिएअड़ेरहे, वेविजयीहुएऔरउन्हेंज़मीनमिली।बिरजूकेबप्पाऔरउसकीमाँभी उन्हींखुशकिस्मतकिसानोंमेंसेथेजिन्हेंतीनबीघे ज़मीनमिलीऔरवेतीनबीघेज़मीनकेमालिकहो गए।ज़मीनमेंफसलहुईतोबैलभीखरीदलिए औरउसीदिनसेबिरजूकीमाँकीआँखोंमें एकसपनाभीसजादिया, “बिरजूकीमाँइसबार बैल-गाड़ीपरचढ़करजायेगीनाचदेखने।4अपनीबैलगाड़ी परबैठकरनाचदेखनेजानेकीचाहमें कहीं--कहींशक्तिप्रदर्शनभीदिखताहै।सुरेन्द्र चौधरीलिखतेहैं, “ज़मीनकीबंदोबस्तीनेकुछगरीबकृषिदासों कोस्वतंत्रकिसानकीहैसियतदीहै।इसहैसियतका प्रदर्शनचाहेविडम्बनाहो, परकहींकहीं वर्ग-प्रभावकाएकअनिवार्यहिस्साभीहै।’’5 

    रेणुनेजहाँसर्वे-सेटलमेण्टकेमाध्यमसेकिसानी जीवनकेसंघर्षकोवाणीदीवहींग्रामीणलोगोंके जीवनकेउत्सवकोभीवाणीदीवहीं, वहाँ नाच-गानेहीउनकीपरम्पराऔरसंस्कृतिहै, जिन्हेंवे भरपूरउत्साहऔरमनोयोगकेसाथमनातेहैं।नाच-रंग उनकेजीवनकीखुशीऔरउत्साहकोदोगुनाकरदेता हैऔरसंघर्ष, दुःखकोपीछेछोड़खुशीकोआंचल मेंसमेटे, मिलकरएक-साथआगेबढ़ादेताहै।रेणु कीकहानीकेविषयमेंधनंजयवर्माकाकथनहै, “ग्रामजीवनकेप्रतिआत्मीयताऔरतादात्म्यहै।वेगहरे उतरकरउसजीवनकीसमस्याओंऔरउसकेसम्पूर्णऔर समग्रव्यक्तित्वहैं...  उनमेंअनुभूतिकीवास्तविकताकाताप है, उनमेंजीवनकीवास्तविकप्रक्रियाकीस्वरलिपियाँहैं। उनकीकहानीमेंउद्दामजिजीविषाऔरगहरीमानवीयताहै - जनजीवनकेगहरेआत्मीयसंघर्षऔरउसजीवनकी व्याकुलअकुलाहट।’’6 ‘लालपानकीबेगममेंभीबिरजू कीमाँकीएकहीइच्छाहैकिकिनारीवाली लालसाड़ीपहन, वहअपनीबैलगाड़ीमेंबैठनाचदेखने जाएऔरबिरजूकाबप्पाअभीतकबैलगाड़ीलेकरनहीं आया, इसलिएवहबहुतगुस्सेमेंहैकिकलपानी भरनेजाएगीतोसभीउसकीहँसीकरेंगी।यहींसेकहानी कीशुरूआतहोतीहैजहाँबिरजूकीमाँकीखीझ साफदिखाईदेतीहै।गाँवकीसभीस्त्रियाँबिरजूकी माँसेजलतीहै, क्योंकिवहीएकहैजिसकेपास अपनीज़मीनहैजिसकापतिउसकीसुनताहैऔरबातों हीबातोंमेंवेयेभीतयकरलेतीहैंकिकिसप्रकारबिरजूकीमाँनेज़मीनहासिलकी होगी, “चम्पियाकीमाँआँगनमेंरात-रातभर बिजली-बत्तीभुकभुकातीथी।चम्पियाकीमाँकेआंगनमें, नाकवालेजूतेकीछापघोड़ेकीटापकीतरह! जलो! जलो! औरजलो! चम्पियाकीमाँकेआँगनमेंचाँदी जैसेपाटसूखतेदेखकरजलनेवालीसबऔरतें।7रेणु नेबड़ीहीसरलताकेसाथएक-दूसरेको जली-कटीसुनानेवालीऔरतोंकीसोचकोशब्दबद्ध कियाहै।पात्रोंकेसंवादकहींकहींपात्रको आकारदेनेकाकामकरतेहैं।विद्यासिन्हाकहतीहै, “इसकहानीकीभाषाअपनीमुद्रामेंतमामअन्तर्विरोधों केसाथपात्रोंऔरपरिवेशकेभीतरी - बाहरीसंबंधों सेबनीज़िन्दगीऔरउसकेभीतरीआशयकोधारणकरती हैxxx जंगीकीपुतोहूकेवाक्यपात्रकोभी आकारदेनेमेंसक्षमहै।’’8जंगीकीपुतोहूजोतीनमहीनेपहलेहीगौनाहोकरआईहै।बिरजूकी माँसेनहींडरती।हमेशादेखने-सुननेमेंआताहै किमहिलाओंकेमण्डलमेंएकदिलेरमहिलामुँहफट होतीहैजोसभीकीबोलतीबंदकरदेतीहै। जंगीकीपुतोहूनई-नईहै, गर्मखूनहै, हम किसीसेकमनहींकासाक्षात्रूप, सभीझगडालूसासों सेमोर्चालेनेवाली।वहभीमनहीमनबिरजू कीमाँसेडाहरखतीहोगी, इसलिएगलाखोलकरजवाबदेतीहै, “फुआ - ! सरबेसित्तलमिंटी (सर्वेसेटलमेंट) केहाकिम केबासापरफूलछापकिनारीवालीसाड़ीपहनकेयदि तूभीभेंटीकीभेंटचढ़ातीतोतुम्हारेनामसे भीदू-तीनबीघाधनहरजमीनकापर्चाकटजाता। फिरतुम्हारेघरभीआजदसमनसोनाबंगपाट होता, जोड़ाबैलखरीदती।फिरआगेनाथऔरपीछेसैकड़ो पगहियाँझूलती।9बिरजूकीमाँकेआंगनमेंजंगी कीपतोहूकीगलाखोलबोलीगुलेलकीगोलियोंकी तरहदनदनातीहुईआईxxx बिरजूकेबापपरबहुत तेजीसेगुस्साचढ़ताहै।चढ़ताजाताहै। ........... बिरजूकीमाँकाभागहीखराबहैजोऐसागोबरगनेश घरवालाउसेमिला।कौन-सासौख-मौजदियाहैउसके मर्दने।’’ विद्यासिन्हालिखतीहैं, “लगताहैजैसेघटनाएँ किसीरंगमंचपरमुद्राधारणकिएहुएघटितहोरही हैं।पात्रोंकाआत्मचिंतनभीसंवादकेरूपमें सामनेआताहै।’’10 

    ईर्ष्या, डाह, जलनकासजीव वर्णन, जहाँअपनापनभीहैऔरसमयपरएक-दूसरेकोज़हरभरेबाणमारनेकीपहलभी, जोस्त्रियोचित्त स्वभावकीसच्चाईहै।लेकिनग्रामीणअंचलकी नोक-झोंककेबीचपनपता  प्रेम, स्नेहभीवहाँ दिखाईदेताहै।जबबिरजूकाबापबैलगाड़ीलेकर देरसेपहुँचताहैतोबिरजूकीमाँकागुस्सा सातवेंआसमानपर, किन्तुअपनेखेतकीधानकीबालियों कोदेखतेहीगुस्सागायबऔरधानीरंगउसकीआंखों मेंउतरआताहै।रेणुनेकितनेकरीबसेकिसानों कीज़िन्दगीकोमहसूसकरशब्दोंकाजामापहनायाहै। किसानकेलिएसबसेसुकुन-भराक्षणवहीहोताहै जबवहअपनीमेहनतकोखेतमेंलहलहातेदेखताहै, जबउनअनाजकीबालियोंकोछूताहैतोउसका रोम-रोमखिलउठताहै, उसकीइसीखिलखिलाहटकोबिरजू कीमाँमेंदेखाजासकताहै।किसानीजीवनकी ईश्वरकेप्रतिआस्थाऔरविश्वासकहानीमेंदिखाई देताहैजबबिरजूद्वाराधानकेमुंहमेडाल लेनेपरउसेडांटतीहै, क्योंकिन्वान्नकेपहलेनए धानकोमुँहमेंनहींडालना।इसीतरहजबसर्वे सेटलमेण्टकीबातथीतोकितनीहीमनौतियाँउसने मांगीथीईश्वरसे।येसबबातेंउसवातावरणको सजीवकरदेतीहैंजहाँकिसानअपनाजीवनव्यतीतकर रहाहै।  इसस्तरपरडॉ. सुवासकुमारसे हमएकमतहोजातेहैं, “इसबातमेंसंदेहकी कोईगुंजाइशनहींकिप्रेमचंदकेबादगाँवकाजैसा सहज, स्वाभाविक, यथार्थऔरमार्मिकचित्रणरेणुनेकिया, वैसा किसीदूसरेलेखकनेनहीं।’’11 

    कथाआगेबढ़ती हैऔरबिरजूकीमाँतैयारहोनेलगतीहै, नाच देखनेजानेकेलिए, लेकिनपीछेसेकोईघरमें भीतोहोनाचाहिएऔरवहमीठीरोटीपकानाभी नहींजानतीजोरास्तेकेलिएलेजानीहै। कहा-सुनी, कितनीभीहोलेकिनफुआभीआवाज़मारते हीआनेकेलिएतैयारबैठीहैऔरबिरजूकी माँभीहाथखोल-करपूरीरातकेलिएतंबाकू रखदेतीहैकिफुआरात-भरआरामसेतंबाकू पीतीरहे।जोआपसकेप्रेमकोदर्शाताहै।बिरजू कीमाँतैयारहैनाचदेखनेजानेकेलिए।आज उसकास्वप्नपूराहोनेजारहाहै, उसनेअपनेजीवन मेबहुतसंघर्षकियाहैजीनेकेलिए।खेतमें मजदूरीकिऔरअड़ेरहेअपनीज़मीनपानेकेलिए। आजआँखोंमेंबसेवोसपनेपूरेहोनेजारहे थे, जहाँवोसजी-धजीअपनीबैलगाड़ीमेंबैठनाचदेखनेजानेकेलिएतैयारहै।पति-पत्नीकेबीच काप्रेमतबऔरऊर्जाग्रहणकरताहैजबबीते संघर्षोंकीकठोरज़मीनसफलताकीनमीमेंबदलजाती है, वैसीहीगुदगुदाहटआजगाड़ीमेंबैठकरबिरजूकी माँमहसूसकररहीहै।लेकिनअपनीसाथियोंकोवह भूलीनहींहै, चलते-चलतेबिरजूसेकहतीहैकि, “जराजंगीसेपूछो, उसकीपुतोहूनाचदेखनेचली गयीक्या?’’12औरजबपताचलाकिअभीनहीं गईहैतोउसेभीगाड़ीमेंबैठनेकानिमंत्रण देतीहै, बगलकेझोपड़ेसेराधेकीबेटीसुनरी औरलरेनाकीबीवीसभीखुशी-खुशीबैलगाड़ीमेंबैठ चलपड़तेहैनाचदेखनेकेलिए।सभीकेहृदय मेंउमंगहै, खुशीहै - सपनोंकेपूरेहोनेकीऔरस्मृतिमेंहोजातीहैंकुछयादें, “जंगीकी पुतोहूकागौनातीनहीमासपहलेहुआहै।गौने कीरंगीनसाड़ीसेकड़वेतेलऔरलठवा - सिंदूरकी गंधरहीहै।बिरजूकीमाँकोअपनेगौने कीयादआयी।13 

    शायदबिरजूकीमाँजानती हैकिजबसपनेपूरेनहींहोतेतोकैसालगता है, वहगुस्साकिस-किसकोअपनाशिकारबनासकताहै।बड़े-छोटेकालिहाज़छोड़सबएक-हीलाठी सेहांकेजातेहैं, इसलिएवहकिसीकेसपनोंकोटूटनेनहींदेनाचाहती।जंगीकीपुतोहूअभीबच्चीहै। उसेआपसीप्रेमकीसमझनहींहै।इसलिएमोर्चालेने केलिएतैयारहै, किंतुबिरजूकीमाँमेंक्रोधहैतोप्रेमकाठहरावभीजोसमयआनेपर सभीपरउडेलतीहै।गाड़ीकीलीकधनखेतोंकेबीच होकरगयीहै।चारोंओरगौनेकीसाड़ीकीखसखसाहट जैसीआवाजहोतीहै।... बिरजूकीमाँकेमाथेपर मंगटिक्केपरचांदनीछिटकतीहै।14लठवा-सिंदूरकीगंध, साड़ीकीखसखसाहट, पहिएँकीचूँ-चूँभरीघरघराहटने नाचदेखनेजानेकेचित्रकोसजीवकरदिया है।  रेणुबड़ेसफलकथाकारहैजहाँउनकासृजनात्मक रूपशब्दोंकेमाध्यमसेसाफरेखाएँखींचदेताहै औरपाठकभीउसलठवा-सिंदूरकीगंधसेसराबोर होजाताहै।ताशकीगड्डीके52पत्तोंमें बिरजूकीमाँलालपानीकीबेगमहै।जंगीकी पुतोहूनेव्यंग्यमेंकहाथा, क्योंकिउसकेपासज़मीन है, उसकीअपनी।इसलिएशायदकिसीकोकुछभीकहेगी, लेकिनआजलालकिनारीवालीसाड़ीपहनेमाथेपर मँगटिक्कासजाएअपनेस्वप्नोंकीपूर्तिहोनेकीखुशी मेंचमकतीआँखोंनेउसेसचमुचलालपानीकीबेगम बनादियाथा।वहसोचतीहै, “ठीकहीतोकहा हैउसने! बिरजूकीमाँबेगमहै, लालपानकी बेगमहै।यहतोकोईबुरीबातनहीं।हाँ, वह सचमुचलालपानीकीबेगमहै।बिरजूकीमाँने अपनीनाकपरदोनोंआँखोंकोकेन्द्रितकरनेकी चेष्टाकरकेअपनेरूपकीझाँकीली, लालसाड़ीकीझिलमिलकिनारी,मँगटिक्कापरचांद।...’’ 15गर्वितहैवहअपनी अभिलाषाकेपूर्णहोनेपर।

    पति-पत्नीकेसंबंधों कोरेणुनेबहुतसुंदरढंगसेसंजोयाहै।कहानी केप्रारम्भमेंबिरजूकीमाँउसकेबप्पापरगुस्सा है, किंतुअंतमेंखुशहैऔरबिरजूकाबप्पा भीउसेकिनारीवालीलालसाड़ीमेंदेखकरबसदेखता जारहाहै।डॉ. अंजलितिवारी, “पति-पत्नीकेसंबंधों परगौरकियाजाएतोमालूमहोगाकिलेखकने इनसंबंधोंकोएकविशेषदूरीकेबीचउनकीजटिलता मेंरूपायिततोकियाहै, किन्तुउनकासमापनएककोमल बिंदुपरहीहोताहै - चाहेवहकोमलतासमझौतेकी हो, चाहेमिलनकेसुखकीहो।जैसेलालपान कीबेगममेंबिरजूकीमाँकोगाँवकीऔरतों कीअनेकटिप्पणियोंकेद्वाराउभरनेवालेविविधसंदर्भों केबीचउपस्थितकियागया।बिरजूकीमाँअपनी बैलगाड़ीमेंबैठकरनाचदेखनेजानेवालीहैxxx पति केप्रतिरूठीहुईबिरजूकीमाँकामनखुलने लगताहैxxx धीरे-धीरेएकअदभुतप्यारऔरप्रसन्नता केवातावरणकीसृष्टिहोतीहै।’’16

    रेणुने यहाँबिरजूकीमाँकेचरित्रकोखोलकररखदिया है।वहअपनेस्त्रीत्वरूपमेंगर्वकीअधिकारिणी है।कुशलनिर्देशकहै, ममतामयीमाँहै, नरमहृदयीपड़ोसन, सभीकाध्यानरखनेवाली।जिसकेसभीरूपआकर्षकऔर शिक्षादेतेहुएउसक्षेत्रविशेषकोसजीवकरदेते है,जहाँभिन्नटोलोंमेंबंटाजीवनभीकितना सुन्दरऔरप्रेरणादायकहै।रेणुकीअन्तर्भेदीदृष्टिने सबकुछदेखलियाथाऔरउसेएककलात्मकरूप देकरहमेंदिखाभीदिया।

निष्कर्ष :लालपानकी बेगममूलतःउसस्त्रीशक्तिकोदर्शातीहैजहाँ वहसंघर्षसेघबरातीनहीं, ज़मीदारोंकीधमकीउसेपीछे नहींधकेलती, बल्किपतिकोकहावतकासहारालेकरजोरू-जमीनजोरकेनहींतोकिसीऔरकेमोर्चे परखड़ेरहनेकेलिएताकतदेतीहैऔरउस संघर्षमेंउसेसफलताभीमिलतीहै।केवलवहसंघर्ष केलिएहीतत्परनहींहै, बल्किकुछस्त्रियोंचित्तइच्छा कोभीमनमेंपालेहुएहैजहाँवहअपनी बैलगाड़ीमेंबैठनाचदेखनेजानाचाहतीहै।इसमें भीसौअड़चनेंहै, बैलतोहैलेकिनगाड़ीकहाँ? वहभीकिसीदूसरेटोलेसेमांगनीहैमिलेगीया नहीं, नहींजापाईतोकलसभीस्त्रि़योंकेबीचमजाककापात्रवहीहोगी।इसीऊहापोहमेंबच्चोंकोपीटतेजंगीकोपुतोहूकोसुनते-सुनातेदिनबीतताहै औररातस्वप्नपूराकरतीहै, तबएकममतामयी, सहृदया केरूपमेंबिरजूकीमाँकेदर्शनहोतेहै। जहाँवहकेवलअपनेनहीं, सभीस्त्रियोंकेस्वप्नको पूराकरतीहै।ईर्ष्या, डाह, क्रोधकेमैलकोधो चांदकीचांदनीमेंधुलीपवित्राबिरजूकीमाँलाल पानकीबेगमकीतरहखुबसूरत, गर्विताबनकरउससंघर्षशील दिनकाअन्तमुस्कुरातेहुएकरतीहैं।

सन्दर्भ :
1. भारतयायावर (सम्पा.) : फणीश्वरनाथरेणुचुनीहुईरचनाएं, वाणी प्रकाशन,नयीदिल्ली,1990, पृ. 107
2. वही, पृ. 111
3. वही, पृ. 112
4. वही, पृ. 112
5. सुरेन्द्रचौधरी : भारतीयसाहित्यके निर्माता : फणीश्वरनाथरेणु, साहित्यअकादमीप्रकाशन,1987, पृ. 40
6. फणीश्वरनाथ रेणुकासाहित्य: डॉअंजलितिवारी, दिग्दर्शनचरणजैनप्रकाशन, नईदिल्ली,1983, पृ. 108
7. भारतयायावर (सम्पा.) : फणीश्वरनाथरेणु चुनीहुईरचनाएं, वाणीप्रकाशन, नयीदिल्ली,1990, पृ. 109
8. स्वातन्त्रयोतरकहानीकापरिदृश्यऔरफणीश्वरनाथरेणुकीकहानियां: विद्यासिन्हा, वाणीप्रकाशन, नयीदिल्ली, 2007, पृ. 65
9. भारत यायावर (सम्पा.) : फणीश्वरनाथरेणुचुनीहुईरचनाएं, वाणीप्रकाशन, नयीदिल्ली,1990, पृ. 108
10. स्वातन्त्रयोतरकहानीकापरिदृश्यऔर फणीश्वरनाथरेणुकीकहानियां: विद्यासिन्हा, वाणीप्रकाशन, नयीदिल्ली,2007, पृ. 65
11. आंचलिकयथार्थवादऔरफणीश्वरनाथरेणु: डॉसुवास कुमार, साहित्यसंस्कारप्रकाशन, दिल्ली,1998, पृ. 86
12. भारतयायावर (सम्पा.) : फणीश्वरनाथरेणुचुनीहुईरचनाएं, वाणीप्रकाशन, नयीदिल्ली,1998, पृ. 116
13. वही, पृ. 117
14. वही, पृ. 117
15. वही, पृ. 118
16. अंजलितिवारी : फणीश्वरनाथरेणुकासाहित्य, दिग्दर्शन चरणजैनप्रकाशन, नईदिल्ली,1983, पृ. 108
 

डॉ. आशुतोषशर्मा
सहायकआचार्य, मोतीलालनेहरूमहाविद्यालय (सांध्य), दिल्ली, दिल्लीविश्वविद्यालय
, 9953934409

अपनी माटी (ISSN 2322-0724 Apni Maati)  फणीश्वरनाथ रेणु विशेषांकअंक-42, जून 2022, UGC Care Listed Issue

अतिथि सम्पादक : मनीष रंजन

सम्पादन सहयोग प्रवीण कुमार जोशी, मोहम्मद हुसैन डायर, मैना शर्मा और अभिनव सरोवा चित्रांकन : मीनाक्षी झा बनर्जी(पटना)

लाल पान की बेगम का लेखक कौन है?

'क्यों बिरजू की मां, नाच देखने नहीं जाएगी क्या?

लाल पान की बेगम गद्य की कौन सी विधा है?

फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित 'लाल पान की बेगम' कहानी एक आंचलिक और मनोवैज्ञानिक कहानी है। इसमें ग्रामीण परिवेश की गंध छिपी हुई है।

लाल पान की बेगम क्या है?

लाल पान की बेगम कहानी नारी सशक्तिकरण को केंद्र में रखकर लिखी गयी है। इस कहानी के माध्यम से रेणु जी ने नारी के स्वाभिमान और आत्मसम्मान के चाह को जग-जाहिर किया है। गाँव में महिलाओं के मध्य होने वाले मखौल का जीवंत चित्रण मिलता है। पति-पत्नी के रिश्तों के मध्य खट्टी-मीठी नोंक-झोंक रूठना और पल में मान जाना।

लाल पान की बेगम कहानी कब प्रकाशित हुई?

ठुमरी संग्रह में संकलित लालपान की बेगम 1956 की कहानी है। यह इलाहाबाद से प्रकाशित 'कहानी' पत्रिका के जनवरी 1957 के अंक में प्रकाशित हुई थी।