पूर्व बाल्यावस्था में बालक के संवेग में क्या देखने को मिलता है? - poorv baalyaavastha mein baalak ke sanveg mein kya dekhane ko milata hai?

बाल विकास की अवस्था (Stages of Child Development)

 1  पूर्व   प्रसूति काल-        गर्भधारण से जन्म तक

2  शैशवावस्था -                जन्म से प्रथम 10 से 14 दिन

3   बचपना अवस्था-             जन्म के 2 सप्ताह से 2 वर्ष तक

4   बाल्यावस्था-                   2 वर्ष से 10 या 12 वर्ष

(क)  पूर्व/ प्रारंभिक बाल्यावस्था-   2 वर्ष से 6 वर्ष तक

(ख)  उत्तर बाल्यावस्था-              6 वर्ष से 10 वर्ष तक बालिकाओं में, 6 वर्ष से 12 वर्ष तक 

                                               बालक में|

5   किशोरावस्था-                    10 - 12 वर्ष से 19 - 20 वर्ष तक

(क)  तरुण अवस्था या प्राक  किशोरावस्था-  लड़कियों में यह अवस्था 11 से 13 वर्ष और

                                                             लड़कों में 12 वर्ष से 14 वर्ष तक होती है

(ख)  प्रारंभिक किशोरावस्था-            यह अवस्था13-14 वर्ष से प्रारंभ होकर 17 वर्ष तक

                                                            होती है|

(ग)   परवर्ती किशोरावस्था-                यह अवस्था 17 वर्ष से 19- 20 वर्ष तक होती है|

                    

पूर्व बाल्यावस्था में बालक के संवेग में क्या देखने को मिलता है? - poorv baalyaavastha mein baalak ke sanveg mein kya dekhane ko milata hai?

 रॉस  के अनुसार विकास की अवस्था

1   शैशवावस्था-         0- 5 वर्ष

2  बाल्यावस्था-            5-12 वर्ष

3   किशोरावस्था-         12-18 वर्ष

4   प्रौढ़ावस्था-            18 से ऊपर 


1  शैशवावस्था की विशेषता-

(i)  अवस्था में दोहराने की प्रवृत्ति होती है|

(ii)  इसे  बक्की  अवस्था भी कहा जाता है|

(iii)  इस अवस्था में अनुसरण करने की प्रवृत्ति अधिक होती है|  

(iv)   इस अवस्था में नैतिकता की कमी होती है|

(v)  इस  अवस्था में आत्म केंद्रिता का  भाव होता है|

(vi)   इसअवस्था मै बच्चा दूसरों पर निर्भर होता है| 

(vii)  इस अवस्था में बच्चा जिद्दी, झक्की, निरोधात्मक, निषेधात्मक बे कहा होता है|

(viii)  समान आयू वाले बच्चों में रूचि होती है|

(ix)   इस अवस्था में बच्चा प्रत्यक्षण से सीखता है|

(क)  शैशवावस्था में शारीरिक विकास-      इस अवस्था में बालक एवं बालिकाओं के  शरीर के अंगों में परिवर्तन आना आरंभ हो जाता है| बालकों के पैर की वृद्धि अधिक होती है शरीर की पूरी ऊंचाई का आधा सिर्फ पैर की लंबाई होती है| 4 वर्ष के बालक का वजन 38 पाउंड होता है, तथा इसकी लंबाई 40 इंच होती है, एवं 6 वर्ष की उम्र में वजन 50 पॉण्ड और शरीर की लंबाई 45 इंच हो जाती है| 

(ख)  शैशवावस्था में भाषा विकास-     शैशवावस्था में बालक बोलना सीखने के लिए काफी प्रेरित रहता है| इस अवस्था के प्रारंभ में इनकी बोली इस अर्थ में आत्म केंद्रित होती है| वह मूलतः अपनी जरूरतों और स्वयं के बारे में ही बोलते हैं| परंतु इस अवस्था के अंत तक पहुंचते-पहुंचते व परिवार के अन्य लोगों के बारे में भी कुछ बोलना आरंभ कर देते है| इस अवस्था में अभ्यास द्वारा शब्दों का उच्चारण करना है, शब्दावली बनाना तथा वाक्य बनाकर बोलना मुख्य रूप से सीखता है|

(ग)  शैशवावस्था में  संवेगिक विकास -      इस अवस्था में बालकों द्वारा तीव्र संवेग  दिखाया जाता है | इस  अवस्था के बालकों में सामान्यतःवही संवेग  देखने को मिलता है जो एक सामान्य व्यस्क में होता है| अंतर इतना ही होता है कि इन संवेगो  की अभिव्यक्ति बालक दूसरे ढंग से करते हैं| इन संवेगों में क्रोध,ड़ाह, उत्सुकता, हर्ष, दु:ख तथा अनुरोग(affection) आदि प्रधान है|

(घ)  शैशवावस्था में मानसिक विकास तथा संज्ञानात्मक विकास( Mental development and cognitive development)-     शैशवावस्था की 2 से 5 वर्ष की अवधि में बालकों में मानसिक विकास काफी तेजी से होता है और किशोरावस्था के अंत 19 से 20 वर्ष की आयु आते-आते काफी धीमा हो जाता है इस अवस्था के बारे में प्याजे ने विस्तार पूर्वक बताया है जो आप पियाजे के संज्ञानात्मक विकास में विस्तार पूर्वक  जानेंगे| 

  बाल्यावस्था(childhood)-5-12 वर्ष

1  बाल्यावस्था की विशेषता-

(i) प्राक स्कूली अवस्था भी कहते हैं|

(ii) इसी समूह या टोली की अवस्था ही कहते हैं|

(iii)   माता पिता इसे अन्वेषण अवस्था भी कहते हैं|

(iv)   इस अवस्था में सामग्री को संग्रह करने की प्रवृत्ति होती है |         

(v)   इस अवस्था में बालक का दिमाग तार्किक हो जाता है|

(vi)   इस अवस्था में बालकों के रुचि में बदलाव हो जाता है|

(vii)   इस अवस्था में बालकों की दीर्घा समय स्मृति बढ़ जाती है|

(viii)   इस अवस्था में बालक पुराने अवधारणाओं में नया अर्थ जोड़ना प्रारंभ कर देता  है|

(क)  बाल्यावस्था में शारीरिक विकास(physical developement of childhood)-   बाल्यावस्था में शारीरिक विकास में और भी अधिक स्पष्टता आजाती है| इस अवस्था में बालकों की ऊंचाई में औसत 2 से 3 इंच की वार्षिक वृद्धि होती है| 11 साल की लड़की की औसत ऊंचाई 58 इंच तथा उसी उम्र के लड़का की औसत ऊंचाई 57.5 इंच होती है| इस अवस्था में शरीर का वजन 3 से 5 वर्ष औसतन प्रति वर्ष बढ़ता है| यह अवस्था समाप्त होते-होते बालकों में 32 मै से 28 दांत निकल आते हैं , शेष चार दांत किशोरावस्था में निकलते हैं|

(ख)  बाल्यावस्था में भाषा का विकास (linguistic development of childhood)- इस अवस्था में बालकों में भाषा विकास अधिक तीव्र गति से होता है, और अब वे  मात्र रोना और चिल्लाना जैसी क्रियाओं को कम महत्व देता  हैं| इस अवस्था में बालकों में शब्दावली निर्माण में  वृद्धि उच्चारण में स्पष्टता तथा जटिल वाक्यों का प्रयोग आदि अधिक पाया जाता है| उत्तर बाल्यावस्था में बालकों का संभाषण आत्म केंद्रित ना रहकर सामाजिक हो जाता है| उत्तर बाल्यावस्था की प्रत्येक साल में लड़कियां लड़कों की अपेक्षा अधिक बातचीत करने वाली होती है|

(घ)  बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास (Emotional Development of Childhood)- बाल्यावस्था के बालकों का संवेगात्मक पैटर्न अधिक परिपक्व हो जाता है| और वह अब यह समझने लगते हैं कि बात बात में गुस्सा करना तुरंत रो देना, डर कर भाग जाना, आदि एक तरह का बचकाना सांवेगिक अनुप्रिया है|

(ड.)  बाल्यावस्था में मानसिक विकास( Mental Development of Childhood)- पियाजे के अनुसार इस अवस्था में बालक का चिंतन  मूर्त(concrete) परिचालन की अवस्था में होता है| जहां इससे पहले सीखे  गए अवधारणा जो प्राय: अस्पष्ट होते हैं को अधिक मजबूत, स्पष्ट एवं  मूर्त बनाया जाता है|

(च)  बाल्यावस्था में सामाजिक विकास( Social Development of Childhood)- इस अवस्था में प्रमुख व्यवहार जिन्हें बालक सीखता है| वह इस प्रकार हैं सामाजिक अनुमोदन की प्राप्ति के लिए प्रयास करना,प्रतियोगिता करना, उत्तरदायित्व लेना, सामाजिक शूझ, सामाजिक विभेद, पूर्वधारणा तथा योन प्रतिरोध, कभी-कभी टोली के लिए माता-पिता से भी बगावत कर लेते हैं| 

 किशोरावस्था(Adolesence )-12-18वर्ष 

1   किशोरावस्था की विशेषता-

(i)  इस अवस्था को आंधी और तनाव की अवस्था भी कहा जाता है|

(ii )  इस अवस्था में क्रोध की संवेग अधिक होता है|

(iii)  इस अवस्था में बालक समव्यस्क समूह बना लेता  है|

(iv)  इस अवस्था में बालकों में विपरीत लिंग के प्रति झुकाव हो जाता है|

(v)   इस अवस्था में बालक दिवा स्वपन (Day dreaming) में व्यस्त रहता है|

(vi)  इस अवस्था में अमूर्त विचार और चीजों को समझने की योग्यता में वृद्धि होती है|

(vii)  इस अवस्था को क्रांतिकारी बदलाव का दौर कहा जाता है|

(viii)  इस अवस्था बच्चा में मैं कौन हूं, मैं भी कुछ हूं, जैसी पहचान का इच्छा रहता है |

(ix)  इस अवस्था में बालक  स्वतंत्रता और विरोध का एहसास का भावना रखता है|

(x)   निर्णय लेने की योग्यता में वृद्धि होती है | 

(क)  किशोरावस्था में शारीरिक विकास(Physical development of Adolescence)-   लड़कियों में कद 15-18 वर्ष तक बढ़ती है| जबकि लड़के 18 से 21 वर्ष तक बढ़ता है, लड़कियों में मूल योन  गुन तथा  गोन योन गुण लड़कों से एक दो साल पहले ही प्रारंभ हो जाता है, मूल योंग गुण से तात्पर्य यौन अंगों की पूर्ण परिपक्वता से होता है| तथा गोन योग गुण लड़कियों में आवाज में मधुरता के रूप में दिखाई देते हैं| तथा लड़कों में दाढ़ी मुछ निकल आना, आवाज भारी हो जाना आदि के रूप में दिखाई देता है

(ख)  किशोरावस्था में सामाजिक विकास-   इस अवस्था में लड़के एवं लड़कियां दोनों सामाजिक समायोजन के कई पहलुओं को सीखता है साथियों के समूह में अधिक समय रहने से उनकी मनोवृत्ति, अभिरुचि तथा व्यवहार पर साथियों का प्रभाव पड़ता है| इस अवस्था में लड़के एवं लड़कियों माता पिता के प्रतिरिधों से स्वतंत्र होकर काम करना पसंद करता है|

(ग)  किशोरावस्था में मानसिक विकास एवं संज्ञानात्मक विकास-   पहले किए गए अध्ययनों के आधार पर मनोवैज्ञानिकों को ऐसा विश्वास था कि 15 -16 साल की उम्र तक बालकों का मानसिक विकास पूरा हो जाता है| टरमैन का  ऐसा ही विचार था, परंतु बेले(Bayley) द्वारा किए गए अध्ययनों से यह स्पष्ट हो गया है कि मानसिक विकास जैसा की बुद्धि परीक्षणों  द्वारा मापने से पता चलता है की यह 19 वर्ष तक होते रहता है|

(घ)  किशोरावस्था में संवेगिक विकास - किशोरावस्था में सांवेगिक  तनाव अपनी चरम सीमा पर होता है, क्योंकि इस अवस्था में बालकों में जबरदस्त शारीरिक तथा ग्रन्थिय परिवर्तन खासकर योन ग्रंथि तथा पीयूष ग्रंथि के कार्यों में परिवर्तन होते हैं| शायद यही कारण है कि मनोवैज्ञानिकों ने किशोरावस्था को आंधी और तूफान की अवस्था कहा है| इस अवस्था के प्रारंभ में सांवेगिक तीव्रता अधिक होती है| 

    Reference-अरुण कुमार (शिक्षा मनोवज्ञान)

S.K Mangal(शिक्षा मनोवज्ञान)

यह भी देखें

बाल विकाश की अवधारणा एवं बाल विकाश के सिद्धांत

समाजीकरण की प्रक्रिया एवं विभिन्न अवस्था मे होने वाले समाजीकरण

अभिप्रेरणा का अर्थ, परिभाषा, प्रकार, और सीखने की प्रक्रिया में अभिप्रेरणा का कार्य

संवेगिक विकास(संवेग तथा संवेगात्मक विकास )


संपूर्ण बाल्यावस्था में बालक के संवेग में क्या देखने को मिलता है?

पूर्व बाल्यावस्था (Post Childhood) में प्रायः सुख एवं दु:ख दो ही अनुभव बालकों को होते हैं। आयु-वृद्धि के अनुसार वे बढ़ते रहते हैं। हरलॉक का कहना है कि 6 वर्ष की आयु में बालक में भय क्रोध के संवेग आ जाते हैं जिन्हें वह अपनी क्रियाओं से अभिव्यक्त कर देता है

बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास कैसे होता है?

बाल्यावस्था में संवेगात्मक विकास बालक के संवेग अधिक निश्चित और कम शक्तिशाली हो जाते हैं। वे बालक को शैशवावस्था के समान उत्तेजित नहीं कर पाते हैं; उदाहरणार्थ, 6 वर्ष की आयु में बालक का अपने भय और क्रोध पर नियंत्रण हो जाता है। बालक के संवेगों में शिष्टता आ जाती है और उसमें उनका दमन करने की क्षमता उत्पन्न हो जाती है।

जन्म के समय बच्चे में कौन सा संवेग होता है?

अत:, यह स्पष्ट है कि शिशुओं में खुशी, भय, क्रोध के मूल संवेग दिखाई देते हैं।

संवेग क्या होते हैं बच्चों में पाए जाने वाले कोई दो संवेग लिखिए?

टिप्पणी Page 2 मॉड्यूल-2 मनोवैज्ञानिक प्रक्रम टिप्पणी संबंधित है जो विषयगत अनुभव तथा भावात्मक प्रतिक्रियाओं में शामिल होती है। वे सुखद या दुखद हो सकते हैं। सुखद संवेग हर्ष के स्रोत होते हैं जबकि दुखद संवेग क्षुब्ध मानसिक स्थिति यथा आक्रोश, भय, दुश्चिंता आदि से संबंधित हैं। प्रत्येक संवेग के तीन मूल पहलू हैं