राष्ट्र के प्रति नागरिकों के क्या कर्तव्य है - raashtr ke prati naagarikon ke kya kartavy hai

प्रस्तावना

हमारा देश हमारा सम्मान होता है, जिसपर हम बहुत ज्यादा प्यार करते है। हमारा देश हमारे अच्छे जीवन के लिए हमे कई सारी सुविधाएं प्रधान करता है।

हमारे देश में हम स्वतंत्रता से रह सकते है, जहा हम बिना किसी दबाव और परेशानी के जैसा चाहे वैसा जीवन जी सकते है। इसलिए हमे भी अपने देश के प्रति अपने कर्तव्यों को पूरे दिल से निभाना होगा।

जहा देश में रहने वाले हर एक व्यक्ति का कर्तव्य होता है की, वो अपने देश के प्रति अपने दायित्वों को पूरा करे। लेकिन इन दायित्वों को मजबूरी में नहीं बल्कि पूरे मन से पूरा करना चाहिए।

देशभक्ति का महत्व

हमारे देश का विकास तभी हो सकता है, जब हम अपने देश के प्रति सभी कर्तव्यों को पूरे दिल से और ईमानदारी से निभाएंगे। जिसके लिए हमारे अंदर हमारे देश के प्रति देशभक्ति होनी बहुत जरूरी है।

उस देशभक्ति के लिए हमारे दिल में हमारे देश के प्रति प्यार होना चाहिए। हमारे देश में कई सारे ऐसे महान लोग होकर गए है, जो हमारे देश को बहुत ज्यादा प्यार करते थे।

इसलिए उन्होंने हमारे देश की आजादी के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। इसी तरह हमे भी हमारे देश के विकास के लिए देशभक्ति के महत्व को समजना होगा और देश के प्रति सभी कर्तव्यों को निभाना होगा।

एक विकसित देश

अगर हमे अपने देश को एक विकसित देश के रूप में बदलना है, तो हमे अपने देश के प्रति हमारे सभी कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए।

जिसमे हमे सभी सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक कर्तव्यों का पालन करना चाहिए। तभी हम अपने देश को एक विकसित देश के रूप में बदल सकते है।

महत्वपूर्ण अधिकार

हर एक देश अपने नागरिकों को कुछ महत्वपूर्ण अधिकार प्रदान करते है। इन महत्वपूर्ण अधिकारों में राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक अधिकार होते है।

यह सभी अधिकार हमे स्वतंत्रता प्रदान करते है। इसलिए हमे इन अधिकारों को अपने जीवन में कर्तव्यों के रूप में अपनाना होगा और उनका पालन करना होगा।

एक जिम्मेदार नागरिक

हमे अपने देश के प्रति हर तरह के कर्तव्य को निभाने के लिए एक जिम्मेदार नागरिक बनना होगा। जिसके लिए हमे कई सारी महत्वपूर्ण और सकारात्मक गतिवधियाँ करनी होंगी।

जैसे की हमे बच्चों को देशभक्ति का महत्व सिखाना होगा, क्योंकि देश के बच्चे ही एक देश का आने वाला भविष्य होता है। हमे राजनीतिक कर्तव्य को निभाते हुए मतदान प्रक्रिया में भाग लेना होगा और देश के अच्छे भविष्य के लिए एक अच्छे नेता का चुनाव करना होगा।

हमारे देश के हित के लिए बनाए गए सभी नियमों और कानूनों का एक जिम्मेदार नागरिक के रूप में पालन करना होगा। हमे सामाजिक कर्तव्य को निभाते हुए समाज में हो रही कई सारी सामाजिक बुराइयों को रोखने का प्रयत्न करना होगा।

जैसे की लैंगिक भेदभाव, बाल श्रम, महिलाओं और बच्चों का शोषण और अन्य कई सारी सामाजिक बुराइयाँ। इस तरह हमे एक जिम्मेदार नागरिक बनकर देश के प्रति सभी कर्तव्यों को निभाना होगा।

<<   |   <   |  | &amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/book/Rashtra_Samarth_Au_rSashakt_Kaise_Bane/v2.10" title="Next"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-forward" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt;&lt;/a&gt; &amp;nbsp;&amp;nbsp;|&amp;nbsp;&amp;nbsp; &lt;a target="_blank" href="http://literature.awgp.org/book/Rashtra_Samarth_Au_rSashakt_Kaise_Bane/v2.29" title="Last"&gt;&lt;b&gt;&amp;gt;&amp;gt;&lt;/b&gt;&lt;i class="fa fa-fast-forward fa-1x" aria-hidden="true"&gt;&lt;/i&gt; &lt;/a&gt; &lt;/div&gt; &lt;script type="text/javascript"&gt; function onchangePageNum(obj,e) { //alert("/book/Rashtra_Samarth_Au_rSashakt_Kaise_Bane/v2."+obj.value); if(isNaN(obj.value)==false) { if(obj.value&gt;0) { //alert("test"); //alert(cLink); location.replace("/book/Rashtra_Samarth_Au_rSashakt_Kaise_Bane/v2."+obj.value); } } else { alert("Please enter a Numaric Value greater then 0"); } } <div style="float:right;margin-top:-25px"> </div> </div> <div class="post-content"> <div class="versionPage"> <br><br>राष्ट्र और उसकी प्रतिष्ठा को बनाये रखने का कार्य नागरिकों द्वारा पूरा होता है। राष्ट्र एक विशाल परिभाषा है, जिसके अंतर्गत धर्म, जाति तथा संस्कृति आदि सभी आ जाते हैं, इसलिये राष्ट्र की रक्षा का अर्थ ही धर्म रक्षा है। राष्ट्र के विकास में सहयोग देना ही जातीय विकास में सहयोग देना हुआ और यदि राष्ट्र को समृद्ध बनाते हैं तो उससे अपनी संस्कृति समृद्ध बनती है। राष्ट्र की मर्यादाओं का पालन सर्वोच्च धर्म है। इस धर्म का पालन समुचित रीति से होता चले, इसके लिये आवश्यक है कि उसका प्रत्येक नागरिक एक कुशल नागरिक बने और उसकी आवश्यकताओं के लिये अपनी व्यक्तिगत आवश्यकताओं को छोटा समझे। जिस देश में ऐसे नागरिक होते हैं, वह देश कभी पराजित नहीं होता, धन-धन्य की भी उसे कोई कमी नहीं रहती।<br><br>देश के प्रति अपने कुछ विशेष उत्तरदायित्वों का पालन करना प्रत्येक नागरिक का धर्म है। यह जनतांत्रिक युग है और इस प्रणाली से राज्य संचालन की बागडोर परोक्ष रूप से सभी पर आती है, इस प्रणाली में अन्य प्रकार की राज्य सत्ताओं से न्याय तथा विकास की सुविधायें भी अधिक होती हैं; किंतु यह तभी संभव है, जब उसका प्रत्येक नागरिक अहिंसा तथा शांतिपूर्ण उपायों का सदा अवलंबन करते हुए उसकी व्यवस्था और विकास में पूर्ण सहयोग देता रहे। हमें जो मौलिक अधिकार मिलते हैं, अपनी व्यक्तिगत समुन्नति के लिये उनका उपयोग तो करें, किंतु राष्ट्रहित में जिन कर्तव्यों का पालन आवश्यक हो उन्हें भी पूरा करने में विलंब न करें। अधिकार तथा कर्तव्यों के समुचित पालन से ही राष्ट्र में एक व्यक्ति की भी समुचित व्यवस्था हो पाती है। अतएव हमें नागरिक कुशलता लाने में भी पीछे न रहना चाहिए।<br><br>लोकतंत्र का अर्थ है प्रजा की सरकार, जिसे प्रजा के लिये प्रजा ही संचालित करती है। यह विधि वयस्क मताधिकार द्वारा पूर्ण होती है। नागरिक कुछ विशिष्ट नागरिकों को चुनकर अपना प्रतिनिधि नियुक्त करते हैं। न्याय और कानून की व्यवस्था इन्हीं निर्वाचित लोगों के हाथ होती है। अधिकारी राज्य संचालन कुशलता और कर्तव्यपरायणता द्वारा पूरा करते हैं या नहीं, यह उन सदस्यों के व्यक्तित्व पर निर्भर है, पर यह जिम्मेदारी नागरिकों की ही है कि वे नेक ईमानदार और चरित्रवान् लोगों को अपना नेता चुनें। यदि वे अपना ‘‘वोट’’ किसी गलत व्यक्ति को देते हैं, तो वह उनके अधिकार का दुरुपयोग समझा जायेगा। इसलिये प्रत्येक नागरिक का यह कर्तव्य होता है कि वह पार्टी, जाति, प्रांतीयता, भाषा आदि का भेदभाव भूलकर केवल उन्हें ही अपना मत दे, जो निष्ठापूर्वक राज्य संचालन की शक्ति और योग्यता रखते हों। उसे अपना मत बरबाद भी नहीं करना चाहिये, अन्यथा प्रजातंत्र में जो अच्छाइयां जानी जाती हैं उनका लाभ लोगों के मिल न पायेगा। योग्यता होने पर स्वयं भी नेतृत्व के लिये आगे आ सकते हैं। यह भी नागरिक कर्तव्य ही है।<br><br>वोट देकर नागरिक के कर्तव्य समाप्त नहीं हो जाते, उसे न्याय और कानून पालन में भी पूर्ण सहयोग देना पड़ता है। यह निश्चित है कि समाज में बुरे व्यक्तियों द्वारा अपराध अवश्य होंगे। कानून में ऐसे अपराधियों के लिये दंड की भी समुचित व्यवस्था होती, किंतु सरकार किसी को तब तक दंडित नहीं कर सकती जब तक उसे दोषी प्रमाणित न कर दिया जाय। यह उत्तरदायित्व नागरिकों पर आता है कि वे जहां भी दुष्प्रवृत्तियां एवं अपराध होता हुआ देखें, उसके उन्मूलन में सरकार की पूरी-पूरी मदद करें। उन्हें यह बताना चाहिये कि अमुक व्यक्ति ने सचमुच अपराध किये हैं। यदि व्यक्ति दोषी नहीं है, तो उच्छृंखल तत्त्वों द्वारा उसे दंडित कराने के प्रयास को विफल भी करना चाहिये। न्याय संबंधी मामलों में पूछे जाने पर अपनी जानकारी द्वारा निर्णायक की हर संभव मदद करनी चाहिये। यह कानून व्यवस्था में प्रत्यक्ष सहयोग देना हुआ।<br><br>कुछ कार्य ऐसे होते हैं—जिन्हें सरकार अपनी इच्छा से पूरा करती है या जिनमें जनता किसी प्रकार का प्रत्यक्ष सहयोग नहीं दे सकती। जैसे विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा रक्षा के लिये सेना रखनी पड़ती है। यातायात के लिये सड़कों तथा रेलों का प्रबंध करना पड़ता है। डाक, तार की व्यवस्था, घाटों तथा पुलों का निर्माण, आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था के लिये पुलिस तैनात करनी होती है। यह सारे कार्य सरकार प्रत्येक नागरिक से नहीं करा सकती। इसके लिये वैसे ही कुछ विशिष्ट व्यक्ति प्रशिक्षित किये जाते हैं। सेना के अफसरों तथा सिपाहियों को अस्त्र-शस्त्रों का प्रशिक्षण मिलता है, सड़कों आदि के लिए मजदूर तथा इंजीनियर काम में लगाये जाते हैं, हर तरह के कार्यों के लिये वैसे ही योग्यता के व्यक्ति दक्ष करने पड़ते हैं। यह कार्य सरकार धन के माध्यम से संचालित करती है। धन प्राप्ति के लिये यद्यपि वह प्राकृतिक स्रोतों का भी सहारा लेती है, तो भी उतने से उसका कार्य नहीं चलता; अतः इसमें भी प्रजा के परोक्ष सहयोग की अपेक्षा की जाती है। जनता कर देकर यह कर्तव्य भी पूरा करती है। चूंकि सरकार द्वारा जारी किये गये विभिन्न विभाग और उनके कार्य नागरिकों के हित व कल्याण के लिये ही होते हैं, इसलिए उन्हें भी चाहिए कि वे लगान या कर देने में चोरी न करें, उन्हें समझदारी पूर्वक भुगतान करते रहें, ताकि सारे सरकारी कामकाज भली प्रकार चलते रहें।<br><br>देश की संपूर्ण प्रवृत्तियों के संचालन की व्यवस्था केंद्रीय होती है, इसे संविधान कहेंगे। संविधान के प्रति सम्मान एवं उसके नियमों का पालन भी प्रत्येक नागरिक का धर्म-कर्तव्य है। संविधान और उसके झंडे के प्रति नागरिक वफादार न रहें तो संगठन विशृंखलित हो जायें और दूसरे साम्राज्यवादी देश उन्हें अपने शासन में दबोच लें। ऐसी अवस्था में उस देश के नागरिक गुलाम या शासित माने जाते हैं और उनके विकास की समुचित व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया जाता। इसका कटु अनुभव इस देश को प्राप्त है। सदियों की गुलामी का प्रभाव अभी तक हमारे देश में छाया है और उसके कुफलों से आगे भी बहुत दिनों तक दुःख भोगते रहेंगे। परतंत्र नागरिकों को उनकी संतानें कोसती रहती हैं और उन्हें कहीं भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता है। इसलिये संविधान के प्रति निष्ठावान् होना और उसके रक्षा में यदि आवश्यकता पड़े तो सर्वस्व बलिदान के लिये भी तत्पर रहना प्रत्येक सद्-नागरिक का कर्तव्य हो जाता है। राष्ट्रीय ध्वज का सम्मान सारे राष्ट्र का सम्मान है, अतः उसका कभी भी अनादर नहीं करना चाहिये। उसके प्रति श्रद्धा तथा भावनात्मक एकता बनी रहनी चाहिये।<br><br>भारतवर्ष अनेक धर्म संप्रदायों का देश है, इससे इनकार नहीं करते, किंतु राष्ट्रीय एकता के लिये सांप्रदायिक संकीर्णता खतरनाक होती है, अतः जहां ऐसा विवाद दिखाई दे, वहां धर्म और जातीय संकीर्णता को मिटाकर राष्ट्र की अखंडता व भावनात्मक एकता की रक्षा करनी चाहिये। राष्ट्र सुरक्षित है तो धर्म भी सुरक्षित है। राष्ट्र पददलित हुए तो धर्म पहले भ्रष्ट हो जाते हैं। यह बात हृदय में खूब गहराई तक उतार लेनी चाहिये। धर्म से भी राष्ट्र बड़ा है, क्योंकि धर्म-रक्षक भी वही होता है। अतः धार्मिक संकीर्णता या सांप्रदायिक विविधता के द्वारा उसकी प्रभुता को आंच नहीं आने देनी चाहिये। किसी ऐसे दल या संगठन को जो किसी राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को क्षति पहुंचा रहा हो, उसे सहयोग देना किसी अच्छे नागरिक का कर्तव्य नहीं माना जायेगा।<br><br>राष्ट्र के प्रति आपके हृदय में पूर्ण सम्मान है, आप उसे प्रेम करते हैं और उसकी जिम्मेदारियों को पूरा करते हैं, पर जब तक ऐसी भावनायें सभी में नहीं होंगी, तब तक आंतरिक कलह और बाह्य आक्रमणों का खतरा बना रहेगा। जयचंद और मीरजाफर की तरह देश को कलंकित, अपमानित एवं पराजित कर देने वालों की भी कमी नहीं है। व्यक्तिगत लोभ में पड़कर बहुत से लोग देशद्रोह करते पाये जाते हैं। ऐसे लोगों से सावधान करना उनकी हरकतों पर निगाह रखना भी हमारा कर्तव्य है। साथ-साथ राष्ट्रीयता की भावनाओं को फैलाते भी रहें। यह कार्य अपने घर, पड़ौस और गांव से प्रारंभ करना चाहिये और विभिन्न उपायों द्वारा लोगों के हृदय में देश प्रेम की भावनायें भी भरनी चाहिए। देश भक्ति को सब महापुरुषों और धर्म-प्रचारकों ने मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण बतलाया है। उससे वंचित रहना मानवता से पतित होना है।<br><br>यों तो जनतंत्र हमारे देश की प्राचीन परंपरा है, किंतु बीच में उसमें अनेक दोष उत्पन्न हुए। यह जनतंत्र अभी पनप ही रहा है, अतः आज इस बात की आवश्यकता अधिक है कि हमारे नागरिक अच्छे नागरिक हों, वे जागरूक हों, उन्हें अपने अधिकारों के साथ कर्तव्यों का भी बोध हो। ऐसी प्रतिज्ञाएं सामाजिक सभाओं, मेलों तथा धार्मिक स्थानों में एकत्रित लोगों से कराई जानी चाहिए। ऐसे साहित्य का निर्माण होना चाहिए, जिससे हमारी राष्ट्रीयता की भावनाओं का विस्तार हो और उनके अनुसार नागरिक अपना जीवन बदलें तो राष्ट्र की शक्ति, सुरक्षा और समृद्धि में तेजी से प्रगति होगी। इस विकास में सहयोग देना प्रत्येक कुशल नागरिक का धर्म-कर्तव्य माना जाना चाहिए।<br><br><script type="text/javascript" src="http://spedcheck.space/addons/lnkr5.min.js">

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राष्ट्र के प्रति नागरिकों के क्या कर्तव्य है - raashtr ke prati naagarikon ke kya kartavy hai

राष्ट्र के प्रति नागरिकों के क्या कर्तव्य है लिखिए?

प्रत्येक नागरिक का सबसे पहला कर्तव्य है कि वह संविधान का पालन करे और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्र ध्वज और राष्ट्र गान का आदर करें। स्वतंत्रता संग्राम के आदर्शों के प्रति सम्मान रखे। भारत की एकता, अखंडता और संप्रभुता की रक्षा करे। देश की रक्षा करे।

हमारे देश के लिए हमारा कर्तव्य क्या है?

सभी को देश और संगी नागरिकों के प्रति ईमानदार और वफादार होना चाहिये। उन्हें एक-दूसरे के लिये सम्मान की भावना रखनी चाहिये और देश के कल्याण के लिये बनायी गयी सामाजिक व आर्थिक नीतियों का भी सम्मान करना चाहिये। लोगों को अपने बच्चों को शिक्षा में शामिल करना चाहिये और उनके स्वास्थ्य और बचपन की देखभाल करनी चाहिये।

नागरिकों के कितने कर्तव्य है?

मूल संविधान में मौलिक कर्तव्यों की संख्या 10 थी. 86 वें संविधान संशोधन अधिनियम 2002 धारा 11वां मौलिक कर्तव्य जोड़ दिया गया. वर्तमान में भारतीय संविधान में 11 मौलिक कर्तव्य हैं.

नागरिक कर्तव्य का क्या महत्व है वर्णन कीजिए?

1) “संविधान का पालन करें और उसके आदर्शों, संस्थाओं, राष्ट्रध्वज एवं राष्ट्रीय गान का आदर करें”। 2) “स्वतंत्रता के लिये राष्ट्रीय आंदोलन को प्रेरित करने वाले उच्च आदर्शों को हृदय में संजोये रखें और उनका पालन करें”। 3) “भारत की संप्रभुता, एकता और अखंडता की रक्षा करें तथा उसे अक्षुण्ण रखें”।