धर्म क्या है भारतीय समाज में धर्म की क्या भूमिका है? - dharm kya hai bhaarateey samaaj mein dharm kee kya bhoomika hai?

धर्म संस्कृति का एक हिस्सा है। धर्म मानवीय जीवन से संबंधित अनेक अनेक कार्यों की पूर्ति करता है, इसी मानवीय लगाव के कारण आदि काल से लेकर वर्तमान काल तक सभी समाजों में धर्म ही दिखाई देता है। धर्म जीवन के मूल्यों का महत्वपूर्ण अर्थ स्पष्ट करता है।

सदाचार की भावना से मनुष्य में आत्म नियंत्रण की शक्ति का उदय होता है। अतएव सामाजिक तथा मानवीय दोनों ही दृष्टि से धार्मिक संस्थाओं का बहुत ही महत्व है।

भारतीय समाज में धर्म की भूमिका

धर्म क्या है भारतीय समाज में धर्म की क्या भूमिका है? - dharm kya hai bhaarateey samaaj mein dharm kee kya bhoomika hai?
भारतीय समाज में धर्म की भूमिका

भारतीय समाज में धर्म की सकारात्मक भूमिका

  1. आर्थिक विकास में सहायक – धार्मिक प्रभाव के कारण समाज की अर्थव्यवस्था में भी परिवर्तन होता है, मैक्स वेबर ने इस बात को स्पष्ट किया है कि प्रोटेस्टेंट धर्म में पूंजीवाद का विकास किया।
  2. सामाजिक संगठन का आधार – सामाजिक संगठन का उत्तरदायित्व तभी पूर्ण होगा। जब समाज के सदस्य सामाजिक संगठन द्वारा बनाए गए सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों का पालन करें। इसके साथ ही समाज के सदस्य अपने कर्तव्य का पालन भी करें। धर्म का योगदान इन सभी परिस्थितियों को उत्पन्न करने में रहा है।
  3. सामाजिक नियंत्रण का प्रभावपूर्ण साधन- आदिम समाजों में जब राज्य कानून आदि औपचारिक व्यवस्थाएं नहीं थी। तब धर्म ही अपने सदस्यों के तौर-तरीके पर अंकुश लगाकर समाज में अपना नियंत्रण स्थापित किए रहता था। आज मनुष्य राज्य के कानून को तो तोड़ सकता है किंतु धार्मिक नियमों की अवहेलना कर ईश्वरी दंड का भागी नहीं बनना चाहता है।
  4. व्यक्तित्व के विकास में सहायक – धर्म समाज तथा व्यक्ति दोनों को संगठित करता है तथा व्यक्ति के व्यक्तित्व में सहायक होता है।
  5. भावनात्मक सुरक्षा – धर्म में मानव अपनी परिस्थितियों के चारों ओर सेे घिरा रहता है। व्यक्ति विज्ञान सिद्धांतों का पालन करके जीवित नहीं रह सकता क्योंकि मनुष्य के जीवन के लिए अनुभव शील तथा व्यवहारिक दोनों बातों का महत्व होता हैै। इन बातों का समावेश धर्म में ही होता है।

धर्म क्या है भारतीय समाज में धर्म की क्या भूमिका है? - dharm kya hai bhaarateey samaaj mein dharm kee kya bhoomika hai?
भारतीय समाज में धर्म की भूमिका

  1. सामाजिक नियमों एवं नैतिकता की पुष्टि – प्रत्येक समाज में कुछ सामाजिक नियम होते हैं जो होते तो अलिखित है। परंतु समाज के दृष्टिकोण से अति महत्वपूर्ण होते हैं और इन नियमों का पालन करना मनुष्य का कर्तव्य होता है। अनेक सामाजिक नियमों को धार्मिक भावनाओं से जोड़ दिया जाता हैै। जिसके परिणाम स्वरूप इन नियमों का महत्व और बढ़ जाता है।
  2. सामाजिक परिवर्तन का नियंत्रण – औद्योगिकरण तथा नगरीकरण के कारण आधुनिक समाज तेजी से परिवर्तन हो रहा है। समाज के लिए परिवर्तन लाभदायक तथा हानिकारक दोनों हो सकते हैं। लेकिन समस्या इस बात की है कि परिवर्तन होने के कारण मानव अपने आप को परिवर्तित नहीं कर पाता है।जबकि समाज में विघटन की स्थिति उत्पन्न होती है ऐसे समय में धर्म परिवर्तन को प्रोत्साहित करता है तथा मनुष्य में आत्मबल पैदा करता है कि ईश्वर जो कुछ करता है वहां अच्छा करता है।
  3. कर्तव्य का निर्धारण – धर्म केवल अलौकिक शक्ति में ही विश्वास नहीं करता बल्कि मानव नैतिक कर्तव्य तथा उनका पालन करना भी सुनिश्चित करता है। जैसा कि गीता में कहा गया है “कर्म करो फल की चिंता मत करो”।
  4. सद्गुणों का विकास – यद्यपि समाज में सभी वर्गों के लोग मंदिरों तथा तीर्थ स्थलों में नहीं जातेे। फिर भी धर्म का प्रभाव समाज के सदस्यों पर किसी न किसी रूप में अवश्य दिखाई पड़ता है। जाने कितने व्यक्तियों का व्यक्तित्व तथा चरित्र धार्मिक आस्थाओं के कारण ही परिवर्तित हो जाता है। अतः धर्म मनुष्य के नैतिक तथा आध्यात्मिक दोनों ही जीवन में समाहित है। (भारतीय समाज में धर्म की भूमिका)
  5. मनोरंजन प्रदान करता है – यदि धर्म मानव को केवल धर्म ही करने पर बल दे, तो मनुष्य एक मशीन की तरह हो जाएगा तथा उसमें स्थिरता आ जाएगी। विभिन्न उत्सवों और त्यौहारों तथा विभिन्न विद्वानों के अवसरों पर धर्म मानव को मनोरंजन प्रदान करता हैै। इन्हीं अवसरों के माध्यम से मानव को मानव से संपर्क कर आता है। भावनात्मक एकता बढ़ाता है तथा सहयोग की भावना का विकास करता हैै।
  6. सामाजिक एकता में सहायक – धर्म समाज में एकता की भावना पैदा करता है। समाज के कल्याण को प्रमुख स्थान देकर समाज के एकीकरण में बढ़ोतरी करता है तथा साथ ही सामाजिक मूल्य के महत्व को भी स्पष्ट करता है। दुखीराम का मानना है जो लोग धर्म में विश्वास करते हैं उन सभी लोगों को धर्म एकता के एक सूत्र में पिरोता हैै।
  7. पवित्रता की भावना को जन्म देता है – धर्म मानव को दो भागों में बांटा है – साधारण तथा पवित्र धर्म ही व्यक्तियों को अपवित्र कार्यों से दूर रखकर पवित्र कार्यों की ओर प्रेरित करता है। क्योंकि पवित्र जीवन यापन करना ही धार्मिक जीवन का एक अहम पहलू है। (भारतीय समाज में धर्म की भूमिका)

धर्म क्या है भारतीय समाज में धर्म की क्या भूमिका है? - dharm kya hai bhaarateey samaaj mein dharm kee kya bhoomika hai?
भारतीय समाज में धर्म की भूमिका

भारतीय समाज में धर्म की नकारात्मक भूमिका

  1. तनाव, भेदभाव एवं संघर्ष के लिए उत्तरदाई – विभिन्न धर्मों के मानने वाले अपने अपने धर्म को श्रेष्ठ समझते हैं तथा एक दूसरे के धर्म को तुच्छ समझते तथा आपस में लड़ते रहते है।
  2. विज्ञान विरोधी – धर्म अलौकिक शक्ति पर विश्वास करता है जबकि विज्ञान निरीक्षण एवं प्रयोग पर। धर्म हमको विज्ञान से दूर ले जाता है। जबकि विज्ञान आविष्कारों के तर्क के आधार पर धार्मिक विचार धाराओं की अपेक्षा गलत ठहराता है।
  3. धर्म समाज के लिए अफीम है – मार्क्स के मतानुसार ईश्वर पाप पुण्य स्वर्ग नरक कर्म फल एवं पुनर्जन्म आदि धारणाएं लोगों को सांसारिक कष्टों के प्रति निष्क्रिय बना देती हैं। धार्मिक व्यक्ति ईश्वर की इच्छा समझकर सभी कष्टों को स्वीकार कर लेता है। (भारतीय समाज में धर्म की भूमिका)
  4. धर्म सामाजिक प्रगति में बाधक – धर्म आज तक अपने अनुयायियों को हजारों साल पुरानी मान्यताओं कर्मकांड विधि विधान ओं को मनवाता रहा है तथा धर्म नई विचारधाराओं तथा सिद्धांतों का भी विरोधी है। अतः धर्म व्यक्ति को आगे की ओर नहीं बल्कि पीछे की ओर ही धकेलता है।
  5. सामाजिक समस्याओं में वृद्धि – सरकार ने बाल विवाह दहेज प्रथा आदि समस्याओं के निराकरण के लिए कानून बनाए हैं। फिर भी अंधविश्वासी लोग सरकारी कानूनों की अवहेलना करना ही उचित समझते हैं। (भारतीय समाज में धर्म की भूमिका)
  6. समय के साथ परिवर्तन में अक्षम – धर्म, समाज में जिस तरह से परिवर्तित हो रहा है। उसके अनुसार बदलती हुई परिस्थितियों के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने में असमर्थ है। इसीलिए धर्म हमारे जीवन में दीर्घकाल तक स्थिर नहीं रह पाता है।
  7. अकर्मण्यता को जन्म देता है – धर्म से व्यक्ति अकर्मण्य भी बन जाता है। एक तरफ बिना परिश्रम के पंडे पुजारी ईश्वर के नाम पर अपना भरण-पोषण करते हैं। जबकि दूसरी तरफ यह मान्यता है कि जिसने सोचती है वह चुका भी देगा। अतः इस प्रकार की विचारों से मनुष्य कर्तव्यपरायण नहीं हो पाता है तथा वह निष्क्रिय हो जाता है। कुछ व्यक्ति धार्मिक क्रियाकलापों के माध्यम से ही बिना कार्य किए धन की प्राप्ति में लिप्त रहते हैं। (भारतीय समाज में धर्म की भूमिका)
निर्धनता अर्थ एवं परिभाषा भारत में निर्धनता के कारण निर्धनता का सामाजिक प्रभाव
जाति अर्थ परिभाषा लक्षण धर्म में आधुनिक प्रवृत्तियां लैंगिक असमानता
भारतीय समाज में धर्म की भूमिका धर्म परिभाषा लक्षण धार्मिक असामंजस्यता
अल्पसंख्यक अर्थ प्रकार समस्याएं अल्पसंख्यक कल्याण कार्यक्रम पिछड़ा वर्ग समस्या समाधान सुझाव
दलित समस्या समाधान घरेलू हिंसा दहेज प्रथा
मानवाधिकार मानवाधिकार आयोग तलाक
संघर्ष अर्थ व विशेषताएं भारत में वृद्धो की समस्याएं भारत में वृद्धो की समस्याएं
जातीय संघर्ष भारतीय समाज में नारी वृद्धों की योजनाएं

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समाज में धर्म की क्या भूमिका है?

धर्म संस्कृति का एक हिस्सा है। धर्म मानवीय जीवन से संबंधित अनेक अनेक कार्यों की पूर्ति करता है, इसी मानवीय लगाव के कारण आदि काल से लेकर वर्तमान काल तक सभी समाजों में धर्म ही दिखाई देता है। धर्म जीवन के मूल्यों का महत्वपूर्ण अर्थ स्पष्ट करता है। सदाचार की भावना से मनुष्य में आत्म नियंत्रण की शक्ति का उदय होता है।

धर्म की सही परिभाषा क्या है?

साधारण शब्दों में धर्म के बहुत से अर्थ हैं जिनमें से कुछ ये हैं- कर्तव्य, अहिंसा, न्याय, सदाचरण, सद्-गुण आदि। धर्म का शाब्दिक अर्थ होता है, 'धारण करने योग्य' सबसे उचित धारणा, अर्थात जिसे सबको धारण करना चाहिए, यह मानवधर्म हैं। "धर्म" एक परम्परा के मानने वालों का समूह है। ऐसा माना जाता है कि धर्म मानव को मानव बनाता है।

भारतीय जीवन में धर्म का महत्व क्या है?

धर्म मनुष्य मे जीवन के महत्व को स्पष्ट करता है, पवित्र भावनाओं को पैदा करता है एवं मानसिक तनाव व चिन्ताओं से दूर रखकर गलत, समाज विरोधी व धर्म विरोधी कार्यों के प्रति घृणा को पैदा करता है। इस तरह धर्म व्यक्ति के व्यक्तित्व का विकास करता है एवं उसे सुख समृद्धि हेतु धार्मिक नियमों के अनुरूप आचरण के लिए प्रेरित करता है।

धर्म का क्या अर्थ है धर्म के महत्व का वर्णन कीजिये?

प) धर्म विश्वासों और व्यवहारों का समूह होता है जिसमें लोगों के समुदाय की भागीदारी होती है जिसे जीवन और मृत्यु आदि के समय में प्रत्यक्ष रूप से देखा जा सकता है। धर्म स्थायी रूप से अलौकिक शक्ति से जुड़ा होता है जो हमेशा दैनिक जीवन से अलग होता है। दरर्वाइम इसे पवित्र मानते हैं।