भूगोल एवं सामाजिक विज्ञान में कैसे संबंध है? - bhoogol evan saamaajik vigyaan mein kaise sambandh hai?

Que : 8. सहसम्बन्ध से आप क्या समझते हैं? इतिहास, नागरिकशास्त्र तथा भूगोल के साथ सामाजिक अध्ययन का सहसम्बन्ध आप कैसे स्थापित करेंगे?

अथवा

सामाजिक अध्ययन शिक्षण में सह-सम्बन्ध की अवधारणा क्या है? आप सामाजिक अध्ययन का नागरिकशास्त्र व इतिहास के साथ सह-सम्बन्ध कैसे स्थापित कीजिएगा? 

Answer:  सहसम्बन्ध का अर्थ- सहसम्बन्ध का अर्थ है- दो या अधिक वस्तुओं, घटनाओं व विचारों के सम्बन्ध स्थापित करना। शिक्षा में सहसम्बन्ध या समवाय का अर्थ है- विभिन्न विषयों का इस प्रकार से शिक्षण करना कि उनसे प्राप्त ज्ञान में सम्बन्ध हो। उन्हें एक दूसरे से सम्बन्धित करके पढाया जाये। एक विषय को पढ़ाते समय कभी-कभी ऐसे सन्दर्भ आ जाते हैं, जो दूसरे विषयों से सम्बन्धित होते हैं। इन सन्दर्भो को दूसरे विषयों के साथ सम्बन्धित कर देना शिक्षा में समन्वय कहलाता है।

शिक्षा में सहसम्वन्ध का सर्वप्रथम प्रयोग हरबर्ट ने किया। शिक्षा के क्षेत्र में सहसम्बन्ध के सम्बन्ध में अपने विचार प्रकट करते हए हरबर्ट ने कहा कि शिक्षा मंे सहसम्बन्ध होना चाहिए एक विषय पढाते समय यदि उसका सम्बन्ध अन्य विषय से स्थापित कर दिया जाये तो विषय अधिक रोचक तथा आकर्षक बन जाता है। हरबर्ट ने किसी एक विषय का ज्ञान इस प्रकार प्रदान करने को कहा कि वह ज्ञान अन्य विषयों के ज्ञान प्राप्त करने में सहायक हो। विभिन्न विषयों की विषयवस्तु इस प्रकार व्यवस्थित करनी चाहिए कि उनसे प्राप्त ज्ञान में एकता तथा अखण्डता हो। हरबर्ट ने जिस समय सहसम्बन्ध का यह सिद्धान्त प्रस्तुत किया तब से लेकर अब तक सहसम्बन्ध के क्षेत्र में अनेक विकास हो चुके हैं। अब शिक्षाशास्त्री न केवल विभिन्न विषयों में सहसम्बन्ध स्थापित करने की सोचते हैं वरन् वे एक ही विषय के विभिन्न अंगों में भी सहसम्बन्ध स्थापित करने की चेष्टा करते हैं।

टी. रेमान्ट के अनुसार, “कोई भी विषय भली प्रकार नहीं समझा जा सकता और न कोई कला बुद्धिमत्ता से अभ्यस्त की जा सकती है। यदि वह प्रकाश जो अन्य विषय एक विषय पर फेंकते हैं, जानबूझकर उसे बन्द कर दिया जाता है।"

स्कूल स्तर पर कोई ऐसा विषय नहीं कोई ऐसा कार्य क्षेत्र नहीं जिसका सामाजिक अध्ययन के साथ सम्बन्ध न हो। वस्तुतः सामाजिक परिप्रेक्ष्य में मानव का अध्ययन करना 'सामाजिक अध्ययन' का मुख्य उद्देश्य है और सभी विषय किसी न किसी रूप में मानवीय जीवन से सम्बन्धित हैं। इसलिए सभी विषयों के साथ सामाजिक अध्ययन का सम्बन्ध स्वत सिद्ध है। स्कूल स्तर के विषय-अर्थशास्त्र, इतिहास, भूगोल, भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान, जीव विज्ञान, भाषाएं कला, गणित आदि के साथ सामाजिक अध्ययन का गहरा सम्बन्ध है।

सामाजिक अध्ययन और इतिहास- प्राचीन काल में इतिहास शिक्षण का उद्देश्य मस्तिष्क की विभिन्न शक्तियों यथा-स्मरण, तर्क, कल्पना आदि को अनुशासित करना था। परन्तु वर्तमान युग में विशेषकर सामाजिक अध्ययन शिक्षण के सन्दर्भ में इतिहास शिक्षण का उद्देश्य वर्तमान को भली प्रकार समझना है। सामाजिक अध्ययन विषय में इतिहास, भूगोल, नागरिकशास्त्र व अर्थशास्त्र को सहसम्बन्धित कर शिक्षार्थी को अपने पर्यावरण को समझने व स्वयं को समायोजित करने में सहायक होता है।

इतिहास शिक्षण का अपना एक विशिष्ट उद्देश्य होता है-भूतकाल के प्रकाश में वर्तमान को समझना। सामाजिक अध्ययन शिक्षण का उद्देश्य भी वर्तमान पर्यावरण को समझना व उससे समायोजन स्थापित करना है। अतः स्पष्ट है कि इतिहास व सामाजिक अध्ययन शिक्षण का घनिष्ठ सम्बन्ध है। “इतिहास भूतकाल का दर्पण है।" जिसके द्वारा भूतकालीन घटनाओं को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में रखकर देखा जा सकता है। उदाहरणार्थ वर्तमान ग्राम पंचायतों एवं स्वायत्तशासी संस्थाओं का निर्माण ऐतिहासिक विकास का परिणाम है जिसे इतिहास से सह-सम्बन्धित कर विद्यार्थियों को इन संस्थाओं में भाग लेने हेतु वांछित कुशलताओं एवं अभिवत्तियों का विकास किया जा सकता है। इसी प्रकार भारत का दासता को बेड़ियों में आबद्ध होना भारतीय नागरिकों विशेषत: शासकों की फूट का परिणाम था। इस बिन्दु को दृष्टिगत रखते हुए सामाजिक अध्ययन शिक्षण द्वारा छात्रों में देश प्रेम, आपसी सहयोग आदि की भावना का विकास किया जा सकता है। इस प्रकार सामाजिक अध्ययन शिक्षण का प्रमुख उद्देश्य विद्यार्थियों को वर्तमान पर्यावरण में समायोजित कर उन्हें सुनागरिक बनाना है ताकि वे भूतकालीन भूलों को सुधार कर सामाजिक कुशलता प्राप्त कर सकें।

सामाजिक अध्ययन और भूगोल- भूगोल के द्वारा पृथ्वी का अध्ययन किया जाता है। भूगोल विश्व की प्राकृतिक दशाओं का विवेचन करता है। वर्तमान विचारधारा के अनुसार भूगोल मानव का अध्ययन करता है। मानव प्राकृतिक वातावरण से अध्ययन करता है, उससे कुछ न कुछ सीखता है। यह सत्य है कि निरन्तर प्रयास एवं ज्ञान के माध्यम से यह प्राकृतिक वातावरण को अपना दास बनाने का प्रयास करता रहता है, किन्तु फिर भी उसे प्राकृतिक वातावरण पर निर्भर तो रहना ही पड़ता है। मानव जो भी सीखता है, वह समाज तथा प्रकृति के माध्यम से ही सीखता है। दूसरे शब्दों में सामाजिक तथा प्राकृतिक वातावरण से प्राप्त अनुभव मानव समाज की भलाई में कहाँ तक सहायक है-इसका विवेचन करता है।

प्रत्येक राष्ट्र की भौगोलिक स्थिति का उस राष्ट्र को आर्थिक सम्पन्नता पर प्रभाव पड़ता है। आर्थिक सम्पन्नता एवं विपन्नता की स्थिति ही इतिहास का निर्माण करती है। भारत की आर्थिक सम्पन्नता के कारण ही यहाँ के निवासियों ने विश्व को सत्य, अहिंसा एवं शान्ति का संदेश दिया। इसके ठीक विपरीत भारत पर अरबों के आक्रमण उनकी भौगोलिक स्थिति का परिणाम ही था। आर्थिक स्थितियों के कारण ही उन्होंने भारत पर बार-बार आक्रमण किए। अत: स्पष्ट है कि भूगोल तथा सामाजिक अध्ययन में पारस्परिक सहयोग है और इनका सहसम्बन्ध सरलतापूर्वक स्थापित कर छात्र को व्यावहारिक जीवन में लाभप्रद सिद्ध हो सकता है।

सामाजिक अध्ययन और अर्थशास्त्र- अर्थशास्त्र के द्वारा मानव को आर्थिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है। इसके द्वारा समाज में धन की उत्पत्ति, वितरण,उपयोग तथा विनिमय सम्बन्धी क्रियाओं का वर्णन किया जाता है। अर्थ ही किसी समाज की उन्नति का मूलाधार है। मानव की समस्त क्रियाएं अर्थ के इर्द-गिर्द चक्कर काटती हैं। सामाजिक अध्ययन नागरिक शास्त्र के माध्यम से सुखद सामाजिक जीवन की कला तथा सुनागरिकता का ज्ञान प्रदान करता हैं। इस प्रकार अर्थशास्त्र एवं सामाजिक अध्ययन दोनों ही विषयों के माध्यम से मानव का अध्ययन किया जाता है, परन्तु दोनों के क्षेत्रों में भिन्नता है।

अर्थशास्त्र का क्षेत्र केवल मनुष्य के अर्थ सम्बन्धी क्रिया-कलापों की व्याख्या करना तथा सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र, समाज के उत्थान पतन का ज्ञान प्राप्त करना है। अर्थशास्त्र का सीधा प्रभाव मानव पर पड़ता है, परिणामतः इतिहास का निर्माण होता है। इतिहास ही यह बतलाता है कि धन का असमान वितरण क्रान्ति का जनक है। इस प्रकार अर्थशास्त्र एवं सामाजिक अध्ययन एक दूसरे के पूरक विषय हैं। दोनों का क्षेत्र भिन्न-भिन्न होते हुए भी अन्तत: ये मानव का ही अध्ययन करते हैं।

सामाजिक अध्ययन एवं भाषा- भाषा विचारों को ग्रहण करने और अभिव्यक्त करने का सशक्त साधन है। भाषा साहित्य का माध्यम हे साहित्य समाज का प्रतिबिम्ब हैं। भाषा की पाठयपुस्तक में प्रकाशित निबन्ध, कहानियाँ, कविताये आदि समाज के विविध पहलुओं को ही प्रकट करती हैं। भाषा के बिना अध्यापक के लिए सामाजिक अध्ययन की शिक्षा देना असम्भव है। वह बोलकर या प्रश्नोत्तर माध्यम से विद्यार्थियों को समाज की रचना तथा उसकी परिवर्तन प्रक्रिया का ज्ञान प्रदान करता है। भाषा द्वारा विद्यार्थी सामाजिक अध्ययन के विभिन्न प्रकरणों का ज्ञान प्राप्त करते है और भाषा के माध्यम से वे सामाजिक प्रश्नों पर चिन्तन करके उन पर अपने विचार प्रकट करते है। भाषा के अध्यापक को केवल व्याकरण का ज्ञान ही नही देना होता बल्कि उन सांस्कृतिक और सामाजिक स्थितियों का भी ज्ञान देना होता है जिन्होंने महान कवियों. विचारकों तथा साहित्यकारों को जन्म दिया। इस प्रकार सामाजिक अध्ययन के शिक्षक को अपनी विषय सामग्री उन लेखकों से भी लेनी पड़ती है जिनकी साहित्यिक क्षेत्र में ख्याति है। अतः भाषा और सामाजिक अध्ययन अन्योन्याश्रित हैं।

सामाजिक अध्ययन एवं विज्ञान- आज का मनुष्य विज्ञान और टेक्नोलॉजी के युग में रहता है। उसे आधुनिक युग के विभिन्न कार्य क्षेत्रों को समझने तथा उसके विकास में सहयोगात्मक भूमिका निभाने के योग्य बनाने के लिए उसे विज्ञान की शिक्षा देना आवश्यक है। यही कारण है कि शिक्षा विशारद तथा सामाजिक नेता प्राथमिक स्तर के विज्ञान की शिक्षा देने पर जोर देते हैं परन्त विज्ञान की शिक्षा केवल विज्ञान के लिए नहीं दी जाती अपित् मानवीय तत्त्वों को सामने रखकर इसकी शिक्षा दी जाती है। विद्यार्थियों को केवल विज्ञान के विभिन्न सिद्धान्तों, सूत्रों तथा अनुसन्धानों का ही ज्ञान प्रदान नहीं किया जाता बल्कि उन्हें यह भी समझाया जाता है कि विज्ञान मानवता के लिए कितना उपयोगी है और कितना हानिकारक ?

अणुबम बनाना विज्ञान का विषय है, परन्तु इस बम के प्रयोग के विनाशकारी परिणाम सामाजिक अध्ययन का विषय है। विज्ञान ने मशीन बनाई और विश्व को औद्योगीकरण की ओर अग्रसर कर दिया, परन्तु इस औद्योगीकरण से मानव समाज को कितना लाभ हुआ और किन विकट समस्याओं का सामना करना पड़ा-यह 'सामाजिक अध्ययन' का विषय है। रेडियो, फिल्म दरदर्शन कम्प्यूटर प्रेस आदि विज्ञान के चमत्कारी आविष्कार हे परन्तु इनका मानव समाज पर क्या प्रभाव पड़ा-इस प्रश्न का उत्तर विज्ञान को सामाजिक अध्ययन के निकट ले आता है। अतः इसमें तनिक भी सन्देह नहीं कि विज्ञान और सामाजिक अध्ययन का परस्पर गहरा सम्बन्ध है।

सामाजिक अध्ययन एवं गणित- वैज्ञानिक विषयों के साथ-साथ गणित की शिक्षा भी प्राथमिक कक्षाओं से आरम्भ हो जाती है। यह समाज में गणित के अत्यन्त महत्त्वपूर्ण स्थान का द्योतक है। जीवन का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहाँ गणित को आवश्यकता न हो। अत: गणित को केवल गणित के लिए नहीं पढ़ाया जाता बल्कि उसकी सामाजिक उपयोगिता को दृष्टि में रखकर उसका शिक्षण दिया जाता है। जीवन की विभिन्न स्थितियों के साथ गणित को सम्बन्धित करके पढ़ाने से विद्यार्थियों को समाज का उपयोगी सदस्य बनाने में सहायता मिलती है। साधारण विचार डाकखाने में बचत खाता, बैंकिंग आदि प्रकरण घरेलू बजट बनाने में बहुत सहायक सिद्ध होते हैं। घरेल बजट बनाने का शिक्षण प्राप्त करके व्यक्ति धीरे-धीरे न्यायपालिका, राज्य तथा देश की बजट प्रक्रिया को समझने लगता है। समाज की विभिन्न समस्याओं को समझने, उनका विश्लेषण करने तथा उनका उचित समाधान ढूँढने में गणित का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।

सामाजिक अध्ययन एवं कलाएं- स्कूल पाठयक्रम में विभिन्न प्रकार का कलाओं का भी महत्त्वपूर्ण स्थान हैं। ड्राइंग, पेंटिंग, संगीत तथा अन्य ललित कलाओं का विद्यार्थियों को शिक्षण प्रदान किया जाता है, परन्तु कलाओं का अध्ययन केवल कलाओं के लिए नहीं किया जाता है अपितु उनके माध्यम से विद्यार्थियों में निर्माणात्मक प्रवृत्तियों को विकसित किया जाता है, उनके सौन्दर्यात्मक बोध को उन्नत किया जाता है, उसके मन का उदात्तीकरण किया जाता है, उसकी भावनाओं में उदारता का समावेश किया जाता है और उसे समाज का एक उपयोगी सदस्य बनने में सहायता प्रदान की जाती है। कल शिक्षण के यह सभी उद्देश्य सामाजिक अध्ययन के उद्देश्य से मेल खाते हैं। कलाएं एवं सामाजिक अध्ययन दोनों मानव विकास के लक्ष्य पर केन्द्रित है।

सामाजिक अध्ययन का शिक्षण प्रदान करते समय अध्यापव, उन संगीतज्ञों, मूर्तिकारों, चित्रकारों, शिल्पकारों आदि विभिन्न कलाकारों की उपेक्षा नहीं कर सकता जिन्होंने मानवीय सभ्यता और संस्कृति के विकास में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई हैं। विभिन्न स्थानों से प्राप्त कलाकतियों के खण्डहर विभिन्न यगों की विशेषताओं को समझने में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण भूमिकाए निभाते हैं। सामाजिक अध्ययन का कशल अध्यापक इन खण्डहरों के माध्यम से सामाजिक अध्ययन की शिक्षा को विद्यार्थियों के लिए सबोध एवं प्रभावपर्ण बनाता है। कलाए सामाजिक अध्ययन के शिक्षण को सरलता सरसता तथा सन्दरता प्रदान करती है। क्रियात्मक दृष्टिकोण स भी कलाओं का सामाजिक अध्ययन से घनिष्ठ सम्बन्ध है। सामाजिक अध्ययन पढ़त समय विद्यार्थी केवल पाठय पस्तक तथा मौखिक शिक्षण तक ही सीमित नहीं रहते बल्कि उन्ह कई प्रकार के चित्र, मॉडल, मानचित्र आदि भी बनाने होते हैं और इन सबका सम्बन्ध कलाओं के साथ है। सामाजिक अध्ययन तथा कलाओं का परस्पर आदान-प्रदान इस बात को सिद्ध करता है कि दोनों में गहरा सम्बन्ध है।

निष्कर्ष- उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि सामाजिक अध्ययन का क्षेत्र अत्यनत विस्तृत एवं व्यापक है जिसमें मानव जीवन के समस्त पक्ष सम्मिलित हैं। सामाजिक अध्ययन इन विषयों से सम्बन्धित समस्त मानव पक्षों पर प्रकाश डालता है। अतः इस विषय का समस्त विद्यालयी विषयों के साथ सहसम्बन्ध स्थापित किया जाना अपेक्षित है.इस प्रकार सामाजिक अध्ययन विषय का सम्बन्ध विद्यालयी विषयों से है।

भूगोल एवं सामाजिक विज्ञान का क्या संबंध है?

जिस प्रकार भूगोल प्राक्रतिक विज्ञानों अथवा प्राकृतिक विज्ञान के सभी विषयों से सम्बंधित है उसी प्रकार भूगोल का सामाजिक विज्ञान के विषयों से भी गहरा संबंध है। मानव भूगोल की शाखाओं का इतिहास, राजनीतिशास्त्र, समाजशास्त्र, दर्शनशास्त्र, मानवशास्त्र, अर्थशास्त्र, जनांकिकी आदि सामाजिक विज्ञानों के साथ निकट का संबंध है।

भूगोल एक सामाजिक विज्ञान है कैसे?

भूगोल प्राकृतिक व सामाजिक दोनों ही विज्ञान है, जो कि मानव व पर्यावरण दोनों का ही अध्ययन करता है। यह भौतिक व सांस्कृतिक विश्व को जोड़ता है। भौतिक भूगोल पृथ्वी की व्यवस्था से उत्पन्न प्राकृतिक पर्यावरण का अध्ययन करता है। मानव भूगोल राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और जनांकिकीय प्रक्रियाओं से सम्बंधित है ।

सामाजिक भूगोल का मानव भूगोल से क्या संबंध है?

सामाजिक भूगोल (अंग्रेज़ी: Social Geography) मानव भूगोल की एक शाखा है। यह शाखा सामाजिक सिद्धांत और समाजशास्त्रीय संकल्पना से संबंधित है तथा समाज के विविध तत्वों एवं प्रक्रियाओं का स्थानिक अध्ययन करती है।

सामाजिक विज्ञान में भूगोल क्यों?

भूगोल इसी अंतर्प्रक्रियात्मक संबंध का अध्ययन करता है। परिवहन एवं संचार के साधनों के जाल तथा पदानुक्रमिक केंद्रों के माध्यम से क्षेत्र समाकलित और संगठित हो गये । एक सामाजिक विज्ञान के रूप में भूगोल इसी क्षेत्रीय समाकलन एवं संगठन का अध्ययन करता है।