कानपुर में गणेश शंकर विद्यार्थी ने कौन सा अखबार निकाला? - kaanapur mein ganesh shankar vidyaarthee ne kaun sa akhabaar nikaala?

गणेश शंकर विद्यार्थी की हत्या 41 साल की उम्र में एक दंगे को रोकने के दौरान कर दी गई थी।

आजादी के आंदोलन में अग्रणी भूमिका निभाने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी की शुक्रवार को पुण्यतिथि है। पेशे से पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी को पत्रकारिता का आदर्श माना जाता है। जैसी उनकी शख्सियत थी, मौत भी उन्होंने उसी तरह चुनी थी। आजादी के पहले फैले एक दंगे को रोकते वक्त उनकी जान ले ली गई थी। उनके निधन पर तब महात्मा गांधी ने कहा था कि उन्हें भी वैसी ही मौत मिले।

शुरुआती यात्रा- गणेश शंकर विद्यार्थी का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को यूपी में हुआ था। शुरुआती पढ़ाई उर्दू में हुई। स्कूली पढ़ाई खत्म करके वो इलाहबाद चले गए, लेकिन आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं होने के कारण पढ़ाई के साथ-साथ नौकरी करनी पड़ी। यहीं से उनका झुकाव पत्रकारिता की तरफ हुआ। सबसे पहले उन्होंने साप्ताहिक अखबार कर्मयोगी के संपादन में सहयोग किया। इसके बाद कानपुर के करेंसी ऑफिस में नौकरी की और साथ ही साथ लेख भी लिखते रहे। लिखने के दौरान उन्होंने विद्यार्थी नाम को अपना लिया।

प्रताप की स्थापना: 1913 में गणेश शंकर कानपुर वापस आए। यहां उन्होंने एक पत्रकार के रूप में अपने करियर की शुरुआत की। यहीं से उनका मन स्वतंत्रता आंदोलन की ओर भी तीव्र गति से मुड़ा। प्रताप की स्थापना के बाद उसमें लिखे लेख और उनके विचार ने इन्हें बहुत जल्द पहचान दिला दी और क्रांतिकारियों के लिए प्रताप का ऑफिस शरणगाह भी बन गया। पुलिस की नजर भी इनपर बनी रही लेकिन वो अपना काम बिना डरे करते रहे। पहले बटुकेश्वर दत्त और फिर भगत सिंह के साथ उनका संपर्क हुआ। गांधी के रास्ते चलने वाले गणेश शंकर विद्यार्थी अब क्रांतिकारियों के मार्ग पर भी चलने लगे। हालांकि हिंसा के खिलाफ ही वो रहे। लेकिन क्रांतिकारियों की मदद करते रहे।

पांच बार जेल- अपने लेखों और स्वतंत्रता आंदोलन को लेकर विद्यार्थी जी को पांच बार जेल जाना पड़ा। एक मामले में तो पंडित मोतीलाल नेहरू, जवाहर लाल नेहरू, श्री कृष्ण मेहता जैसे नामी लोगों ने इनके पक्ष में गवाही दी, लेकिन फिर भी अंग्रेजी हुकुमत ने उन्हें जेल में डाल दिया।

दंगों में मौत- यह बात सन् 1931 की है। कानपुर में दंगा फैला हुआ था। दरअसल 23 मार्च को भगत सिंह को फांसी हुई थी, उसी के विरोध में पूरे देश में बंद बुलाया गया था। इसी बंद के दौरान कानपुर में हिंसा भड़क उठी, जिसे रोकने के लिए वो सड़कों पर निकल पड़े। कई जगह वो इसे रोकने में सफल भी रहे, लेकिन एक जगह दोनों ओर से उन्हें दंगाईयों ने घेर लिया। उनके साथ मौजूद लोगों ने उन्हें बचाने के लिए वहां से निकालने की कोशिश की लेकिन वो वहीं डटे रहे। उन्होंने कहा कि एक ना एक दिन तो सबको मरना ही है। इसके बाद भीड़ ने चाकू और कुल्हाडी से मार-मार कर उनकी जान ले ली। दो दिन बाद उनकी लाश मिली तो पहचानना मुश्किल हो गया था।

खुद को जब किया वर्णित- उनका छोटा जीवन उत्पीड़न और अमानवीयता के खिलाफ निरंतर संघर्ष के रूप में बीता। उन्होंने खुद को इन शब्दों में वर्णित किया था- “मैं दमन और अन्याय के खिलाफ एक सेनानी हूं, चाहे वो नौकरशाहों, जमींदारों, पूंजीपतियों या उच्च जाति के लोगों द्वारा किया जाए। मैंने जीवन भर अत्याचार के खिलाफ, अमानवीयता के खिलाफ लड़ाई लड़ी है और ईश्वर मुझे आखिरी तक लड़ने की शक्ति दे”।

क्या बोले बापू- लेखक पीयूष बबेले के अनुसार गांधी जी ने गणेश शंकर विद्यार्थी की शहादत पर कहा कि उनकी मृत्यु एक ऐसे महान उद्देश्य के लिए हुई है कि ऐसी मृत्यु से उन्हें ईर्ष्या होती है। गांधीजी ने कहा कि ऐसी मौत तो बहुत ही फक्र की बात है और उन्हें भी ऐसी ही मौत मिले।

इस महान क्रांतिकारी पत्रकार की ‘मौत का राज’ जानकर कांप उठेगी रूह

गौरव शुक्ला, अमर उजाला, कानपुर Updated Mon, 27 Mar 2017 01:40 PM IST

उस महान क्रांतिकारी ने ‘प्रताप’ जैसा जानदार अखबार निकाल कर क्रान्ति को प्राण फूंक दिए थे। उसकी कलम जब चलती थी तो अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें तक हिल जाती थीं। भगत सिंह, बासकृष्ण शर्मा नवीन, सोहन लाल द्विवेदी, सनेही, प्रताप नारायण मिश्र जैसे तमाम देशभक्तों ने जिस ‘प्रताप प्रेस’ के माध्यम से राष्ट्रप्रेम को घर-घर तक पहुंचा दिया।  आज हम उसी पत्रकार की मौत से जुड़ा एक ऐसा रहस्य बताने जा रहे हैं जिसको जानकर आपके रोंगटे खड़े हो जाएंगे। हम बात कर रहे हैं महान क्रांतिकारी और पत्रकार गणेश शंकर विद्यार्थी की। विद्यार्थी को कानपुर शहर में सांप्रदायिक दंगों की वजह से 25 मार्च 1931 को अपने प्राण गवाने पड़े थे। लेकिन केवल दंगा ही उनकी मौत का कारण नहीं था। 

गणेश शंकर विद्यार्थी एक निडर और निष्पक्ष पत्रकार, समाज-सेवी और स्वतंत्रता सेनानी थे। भारत के स्वतंत्रता आन्दोलन के इतिहास में उनका नाम अजर-अमर है। गणेशशंकर विद्यार्थी एक ऐसे पत्रकार थे, जिन्होंने अपनी लेखनी की ताकत से भारत में अंग्रेज़ी शासन की नींद उड़ा दी थी।

इस महान स्वतंत्रता सेनानी ने कलम और वाणी के साथ-साथ महात्मा गांधी के अहिंसावादी विचारों और क्रांतिकारियों को समान रूप से समर्थन और सहयोग दिया। अपने छोटे जीवन-काल में उन्होंने उत्पीड़न क्रूर व्यवस्था के खिलाफ आवाज़ उठाई। उन्होंने उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ में हमेशा आवाज़ बुलंद किया चाहे वो  नौकरशाह, जमींदार, पूंजीपति या उच्च जाति का कोई इंसान हो।

गणेशशंकर ‘विद्यार्थी’ का जन्म 26 अक्टूबर 1890 को इलाहाबाद के अतरसुइया मुहल्ले में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम जयनारायण था जो हथगाँव, (फतेहपुर, उत्तर प्रदेश) के निवासी थे। उनके पिता एक गरीब और धार्मिक प्रवित्ति पर अपने उसूलों के पक्के इंसान थे। वे ग्वालियर रियासत में मुंगावली के एक स्कूल में हेडमास्टर थे। गणेश का बाल्यकाल वहीं बीता तथा प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा भी हुई। उनकी पढ़ाई की शुरुआत उर्दू से हुई और 1905 ई. में उन्होंने भेलसा से अंग्रेजी मिडिल परीक्षा पास की। 1907 में प्राइवेट परीक्षार्थी के रूप में एंट्रेंस परीक्षा पास की और आगे की पढ़ाई के लिए इलाहाबाद के कायस्थ पाठशाला में दाखिला लिया।

लगभग इसी समय से उनका झुकाव पत्रकारिता की ओर झुकाव हुआ और प्रसिद्द लेखक पंडित सुन्दर लाल के साथ उनके हिंदी साप्ताहिक ‘कर्मयोगी’ के संपादन में सहायता करने लगे। आर्थिक स्थिति ठीक न होने के कारण लगभग एक वर्ष तक अध्ययन के बाद सन 1908 में उन्होंने कानपुर के करेंसी आफिस में 30 रु. महीने की नौकरी की पर एक अंग्रेज अधिकारी से कहा-सुनी हो जाने के कारण नौकरी छोड़ कानपुर के पृथ्वीनाथ हाई स्कूल में सन 1910 तक अध्यापन का कार्य किया। इसी दौरान उन्होंने सरस्वती, कर्मयोगी, स्वराज्य (उर्दू) तथा हितवार्ता जैसे प्रकाशनों में लेख लिखे।

गणेश शंकर विद्यार्थी के अखबार का क्या नाम था?

साप्ताहिक "प्रताप" के प्रकाशन के 7 वर्ष बाद 1920 ई. में विद्यार्थी जी ने उसे दैनिक कर दिया और "प्रभा" नाम की एक साहित्यिक तथा राजनीतिक मासिक पत्रिका भी अपने प्रेस से निकाली।

गणेश शंकर विद्यार्थी ने साप्ताहिक अखबार प्रताप कौन से सन में निकालना शुरू किया था?

1913 में विद्यार्थी कानपुर पहुंच गए और एक क्रांतिकारी पत्रकार और स्वाधीनता कर्मी के तौर पर 'प्रताप' पत्रिका निकालकर उत्पीड़न और अन्याय के खिलाफ आवाज बुलंद करना शुरू कर दिया. प्रताप के माध्यम से वह पीड़ितों, किसानों, मिल-मजदूरों और दबे-कुचले गरीबों का दुख उजागर करने लगे, जिसका नतीजा भी उन्हें भुगतना पड़ा.

गणेश शंकर ने शिक्षा कहाँ प्राप्त की?

उनकी शिक्षा मध्य प्रदेश के मुंगावली से हुई थी। जिस प्राथमिक विद्यालय में वह पढे थे उसका वह उपस्थिति रजिस्टर आज भी संभाल कर रखा हुआ है जिसमें उनका नाम दर्ज था। वहाँ उनके नाम से शासकीय गणेश शंकर विद्यार्थी कॉलेज भी ।

प्रताप समाचार पत्र के संपादक कौन थे?

प्रताप पत्रिका के पहले संपादक गणेश शंकर विद्यार्थी थे। गणेश शंकर विद्यार्थी एक भारतीय पत्रकार थे