कैसे इस्कॉन मंदिर में शामिल होने के - kaise iskon mandir mein shaamil hone ke

अमेरिका पहुंचता है इस्कॉन का चढ़ावा, क्या है पूरा सच?

क्या है इस्कॉन के मंदिरों को मिलने वाले चढ़ावे का सच? शंकराचार्य ने क्यों किया है इस संस्था का विरोध? आइए जानते हैं तस्वीरों से...

  • News18India.comLast Updated :February 13, 2016, 11:20 IST

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कैसे इस्कॉन मंदिर में शामिल होने के - kaise iskon mandir mein shaamil hone ke

शंकराचार्य स्वरूपानंद ने इस्कॉन मंदिरों को कमाई का अड्डा बताया है। उन्होंने कहा है कि इस्कॉन के मंदिरों से चढ़ावे की राशि अमेरिका भेजी जा रही है, क्योंकि इस्कॉन भारत में नहीं बल्कि अमेरिका में पंजीकृत संस्था है। आइए जानने की कोशिश करते हैं, क्या है इस्कॉन की कहानी...

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कैसे इस्कॉन मंदिर में शामिल होने के - kaise iskon mandir mein shaamil hone ke

इस्कॉन का पूरा नाम International Society for Krishna Consciousness है जिसे हिंदी में अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ या इस्कॉन कहते हैं।

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इस्कॉन मंदिर की स्थापना श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपाद ने सन् 1966 में न्यूयॉर्क सिटी में की थी।

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भगवान कृष्ण के संदेश स्वामी प्रभुपाद नें पूरे विश्व में भगवान कृष्ण के संदेश को पहुंचाने के लिए इस मंदिर की स्थापना की थी। उन्होंने मात्र 55 बरस की उम्र में संन्यास लेकर पूरे विश्व में स्वामी प्रभुपाद ने हरे रामा हरे कृष्णा का प्रचार किया।

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स्वामी प्रभुपाद की कोशिशों के कारण मात्र दस वर्ष के अल्प समय में ही समूचे विश्व में 108 मंदिरों का निर्माण हो चुका था। इस समय पूरे विश्व में करीब  400 इस्कॉन मंदिर हैं।

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इस्कॉन मंदिर में 4 नियम हैं, जिनका पालन सभी को करना होता है। इसमें पहला नियम है: उन्हें तामसिक भोजन त्यागना होगा (तामसिक भोजन के तहत उन्हें प्याज, लहसुन, मांस, मदिरा आदि से दूर रहना होगा)।

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इस्कॉन मंदिर का दूसरा नियम है: अनैतिक आचरण से दूर रहना (इसके तहत जुआ, पब, वेश्यालय जैसे स्थानों पर जाना वर्जित है)।

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इस्कॉन मंदिर का तीसरा नियम है: एक घंटा शास्त्राध्ययन (इसमें गीता और भारतीय धर्म-इतिहास से जुड़े शास्त्रों का अध्ययन करना होता है)।

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यहां के अनुयायी चार चीजों को धर्म मानते हैं- -दया -तपस्या -सत्य -शुद्दता मतलब मन की शुद्धता।

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इस्कॉन ने पश्चिमी देशों में अनेक भव्य मन्दिर और विद्यालय बनवाये हैं। धर्म एवं संस्कृति इस्कॉन के अनुयायी विश्व में गीता एवं हिन्दू धर्म एवं संस्कृति का प्रचार-प्रसार करते हैं।

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बैंगलोर का इस्कॉन मंदिर दुनिया का सबसे बड़ा इस्कॉन मंदिर हैं। ये मंदिर 1997 में बना था। जिस पहाड़ी पर ये मंदिर बना है इसे हरे कृष्णा हिल कहते हैं। भारत में सबसे पहले इस्कॉन मंदिर वृंदावन में बना था। इस मंदिर को कृष्ण बलराम मंदिर भी कहा जाता है।

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इन सबके बीच द्वारिका और ज्योतिष पीठ के शंकराचार्य स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती ने इस्कॉन मंदिरों को लेकर सवाल उठाए हैं। उन्होंने इस्कॉन मंदिरों को अमेरिका की साजिश बताया और कहा कि जहां इन मंदिरों में कृष्ण भक्ति की आड़ में धर्मांतरण कराया जाता है तो वहीं करोड़ों रूपये हर साल विदेश भेजे जाते हैं।

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शंकराचार्य ने प्रेस कांफ्रेंस कर केंद्र सरकार से इस्कॉन मंदिरों की जांच कराए जाने की मांग की और सनातन धर्म के लोगों को इस्कॉन मंदिरों के बजाय भारतीयों द्वारा स्थापित कृष्ण मंदिर में ही पूजा-अर्चना करने की नसीहत भी दी।

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कैसे इस्कॉन मंदिर में शामिल होने के - kaise iskon mandir mein shaamil hone ke

शंकराचार्य ने सवाल उठाते हुए कहा है कि इस्कॉन मंदिर झारखंड, असम और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों के बजाय सिर्फ उत्तर भारत में ही क्यों बनाए जा रहे हैं? उनके मुताबिक़ जिन राज्यों में ईसाई या दूसरे गैर हिन्दू धर्मों के लोग ज़्यादा हैं, वहां इस्कॉन मंदिर नहीं बनते, जबकि वृन्दावन जहां कि हर गली-मोहल्ले में भगवान कृष्ण के मंदिर पहले से ही मौजूद हैं, वहीं इस्कॉन मंदिर क्यों बनाए जा रहे हैं?

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शंकराचार्य ने आरोप लगाया कि इस्कॉन मंदिरों की आड़ में हिन्दुओं का धर्मांतरण किया जा रहा है और भारतीयों की गाढ़ी कमाई का बड़ा हिस्सा हर साल अमेरिका भेजा जा रहा है।

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इस बारे में कुछ बातें सोशल मीडिया में भी तैर रही हैं। कुछ लोगों ने अनाम सूत्रों के हवाले से लिखा है कि ये एक अमेरिकन संस्था है जिसने अनेक देश में कृष्ण भगवान के मंदिर खोले हुए है और ये मँदिर अमेरिका की कमाई के सबसे बड़े साधन है। क्योँकि इन मंदिर पर इनकम टैक्स भी नही है।

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मंदिर की संस्था की आलोचना करने वालों का एक दावा ये भी है कि इसमें नजदीक से आरती का अवसर उन्हीं श्रद्धालुओं को दिया जाता है जो चढ़ावा देते हैं...

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आपको जानकर आश्चर्य होगा कि अमेरिका की कोलगेट कंपनी एक साल में जितना जितना शुद्ध लाभ अमेरिका भेजती है उससे 3 गुना ज्यादा अकेले बैंगलोर का ISKCON मंदिर भारत का पैसा अमेरिका भेज देता है। आईबीएनखबर इन दावों की पुष्टि नहीं करता है।

First Published: February 13, 2016, 11:09 IST

इस्कॉन मंदिर से कैसे जुड़े?

इस्कॉन का सन्यासी बनने के लिए ज्यादा कुछ तपस्या की आवश्यकता नहीं है। सिर्फ शास्त्रों में लिखित कुछ नियमों का कटाक्ष जे पालन करना पड़ता है । सन्यासी बनने से पहले आपको कुछ साल इस्कॉन के मंदिर में ब्रह्मचारी होकर रहना होगा। इस काल मे आपको आपका मार्गदर्शन एक सन्यासी करेंगे वही आपके शिक्षा गुरु होंगे।

इस्कॉन संस्था क्या है?

इस्कॉन का मतलब इंटरनेशनल सोसायटी फॉर कृष्णा कांशसनेस है। ये संगठन दुनिया भर में कृष्ण भक्ति को प्रचारित और प्रसारित करता है। इस्कॉन मंदिर की स्थापना श्रीमूर्ति श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने न्यूयॉर्क सिटी में 1966 में की थी।

दिल्ली में इस्कॉन मंदिर कितने हैं?

दिल्ली के इस्कॉन मंदिर की वास्तुकला – Iskcon Temple Delhi Architecture In Hindi. दिल्ली में स्थित इस इस्कॉन मंदिर परिसर में तीन मंदिर देखने को मिलते हैं। यह तीनों मंदिर अलग-अलग देवी-देवताओं के रूपों को समर्पित हैं। एक मंदिर राधा-कृष्णा, दूसरा मंदिर राम सीता और तीसरा मंदिर गुआरा-निताई को समर्पित है।

इस्कॉन की स्थापना कैसे हुई?

इस्कॉन मंदिर की स्थापना श्री अभयचरणारविन्द भक्तिवेदांत स्वामी प्रभुपादजी ने सन् 1966 में न्यूयॉर्क सिटी में की थी। इस्कॉन का पूरा नाम अंतर्राष्ट्रीय कृष्णभावनामृत संघ है। स्वामी प्रभुपादजी ने पूरे संसार में भगवान श्रीकृष्ण के संदेश को पहुँचाने के लिए इस मंदिर की स्थापना की थी।