Haryana State Board HBSE 10th Class Hindi Solutions Kshitij Chapter 4 आत्मकथ्य Textbook Exercise Questions and Answers. आत्मकथ्य’ कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class
प्रश्न 1. Class 10 Hindi
Chapter Atmakatha Question Answer HBSE प्रश्न 2. आत्मकथ्य कविता के प्रश्न उत्तर HBSE 10th Class प्रश्न 3. आत्मकथ्य कक्षा 10 प्रश्न उत्तर HBSE प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. “उसकी स्मृति पाथेय बनी है, थके पथिक की पंथा की। स्वर मैत्री के कारण भी भाषा संगीतात्मक बन पड़ी है। चित्रात्मकता भाषा की अन्य प्रमुख विशेषता है। कवि ने इसके द्वारा पाठक के मन पर शब्दचित्र अंकित किए हैं जिससे पाठक के मन पर कविता का प्रभाव देर तक बना रहता है। प्रश्न 7. रचना और अभिव्यक्ति प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. पाठेतर सक्रियता
उत्तर- यह भी जानें प्रगतिशील चेतना की साहित्यिक मासिक पत्रिका हंस प्रेमचंद ने सन् 1930 से 1936 तक निकाली थी। पुनः सन् 1986 से यह साहित्यिक पत्रिका निकल रही है और इसके संपादक राजेंद्र यादव हैं। आत्मकथ्य का एक अन्य रूप यह भी देखें HBSE 10th Class Hindi आत्मकथ्य Important Questions and Answersविषय-वस्तु संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. सदेश/जीवन-मूल्यों संबंधी प्रश्नोत्तर प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. अति लघुत्तरात्मक प्रश्न प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न 8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. बहुविकल्पीय प्रश्नोत्तर प्रश्न 1. प्रश्न 2. प्रश्न 3. प्रश्न 4. प्रश्न 5. प्रश्न 6. प्रश्न 7. प्रश्न
8. प्रश्न 9. प्रश्न 10. प्रश्न 11. प्रश्न 12. प्रश्न 13. प्रश्न 14. प्रश्न 15. प्रश्न 16. प्रश्न 17. प्रश्न 18. प्रश्न 19. प्रश्न 20. आत्मकथ्य पद्यांशों के आधार पर अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर [1] मधुप गुन-गुना कर कह जाता कौन कहानी यह अपनी, शब्दार्थ-मधुप = भौंरा (मन रूपी भौंरा)। घनी = अधिक। अनंत-नीलिमा = अंतहीन विस्तार। असंख्य = जिसकी गिनती न की जा सके। जीवन-इतिहास = जीवन की कहानी। व्यंग्य-मलिन = खराब ढंग से निंदा करना। उपहास = मजाक। दुर्बलता = कमजोरी। गागर = घड़ा। रीती = खाली। प्रश्न- (ङ) पत्तियों का मुरझाना किसे स्पष्ट करता है? (ख) छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित कविता ‘आत्मकथ्य’ से उद्धृत इस काव्यांश में बताया गया है कि उनके जीवन में आत्मकथा में लिखने योग्य कुछ विशेष नहीं है। उनका मत है कि उनके जीवन में ऐसी सुंदर घटनाएँ या उपलब्धियाँ नहीं हैं जिन्हें सुनकर या पढ़कर पाठक सुख या आनंद प्राप्त कर सकें। (ग) कवि कहता है कि उसका मन रूपी यह भ्रमर गुन-गुनाकर कह रहा है कि अपनी ऐसी कौन-सी कहानी है जिसे लिखकर दूसरों को बताया जाए। मेरे जीवन की अनेक पत्तियाँ मुरझाकर गिर रही हैं अर्थात् मैंने जीवन में अनेक दुःखद घटनाएँ देखी हैं, जीवन में अनेक निराशाओं का सामना किया है। मैंने अपने सपनों को मरते देखा है। इस विशाल एवं गहन नीले आकाश पर असंख्य लोगों ने अपने जीवन के इतिहास लिखे हैं। उन्हें पाकर ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो वे स्वयं अपनी बुराइयाँ करके अपने ही जीवन पर कटाक्ष कर रहे हों और अपना ही मजाक उड़ा रहे हों। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहते हैं कि ऐसा जान लेने पर भी तुम मुझसे चाहते हो कि मैं अपने जीवन कि कमजोरियाँ बता दूं। कहीं ऐसा तो नहीं कि तुम्हें मेरे जीवन की खाली गागर देखकर सुख मिलेगा। कवि के कहने का भाव है कि मेरे जीवन में दुःखों व अभावों के अतिरिक्त कुछ नहीं है जिसे मैं दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। (घ) कवि ने मधुप मन को कहा है। ‘मधुप’ का यहाँ प्रतीकात्मक प्रयोग है। मन भौरे के समान इधर-उधर उड़कर कहीं भी पहुँच जाता है। (ङ) पत्तियों का मुरझाना मन में उत्पन्न सुख और आनंद के भावों का मिट जाना है। तरह-तरह के दुःखों व संकटों के कारण कवि के हृदय में उत्पन्न भाव दबकर रह जाते हैं। (च) अनंत-नीलिमा जीवन का अंतहीन विस्तार है। मनुष्य अपने मन में न जाने कौन-कौन से भाव अनुभव करता रहता है। वे भाव सुख व दुःख दोनों से संबंधित होते हैं। ‘असंख्य जीवन इतिहास’ मानव-मन में उत्पन्न विभिन्न विचार हैं जो विभिन्न घटनाओं के घटित होने के कारण बनते हैं। (छ) कवि जानता है कि सच्चा आत्मकथा लेखक अपने जीवन की घटनाओं का सच्चा उल्लेख करता है। जीवन में झाँकने पर कवि को अपनी कमजोरियाँ-ही-कमजोरियाँ दिखाई देती हैं। इसलिए कवि जान-बूझकर अपनी दुर्बलताओं को सबके सामने व्यक्त करके अपना मज़ाक नहीं करवाना चाहता। इसलिए कवि अपनी दुर्बलताओं को व्यक्त नहीं करना चाहता। (ज) कवि की कहानी जानकर कवि को उनकी कहानी लिखने के लिए प्रेरित करने वाले लोगों को लगा कि कवि अपनी आत्मकथा में कुछ ऐसा लिखेगा जिसे पढ़कर उन्हें सुख या आनंद प्राप्त होगा, किंतु कवि ने ऐसा कुछ नहीं लिखा जिसे पढ़कर उन्हें सुख की अनुभूति हुई हो। (झ) ‘गागर रीती’ से तात्पर्य है कि कवि का जीवन सुख और सुविधाओं से रहित है। उसमें अभाव-ही-अभाव है। अतः ‘गागर रीति’ का प्रयोग प्रतीकात्मक और लाक्षणिक है। (ञ) कवि ने इस पद्यांश में अत्यंत मार्मिक शब्दों में अपने जीवन के दुःखों, पीड़ाओं और अभावों की व्यथा भरी कहानी की ओर संकेत किया है। कवि ने स्पष्ट किया है कि किसी की भी दुःख भरी कहानी को सुनकर किसी को खुशी प्राप्त नहीं हो सकती। कवि ने जीवन के सत्य को सरल एवं सच्चे मन से कहा है। (ट)
(ठ) जयशंकर प्रसाद द्वारा रचित इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिन्दी भाषा का प्रयोग किया गया है। प्रसाद जी छायावादी कवि हैं। उन्होंने भाषा को रोचक एवं आकर्षक बनाने हेतु तत्सम शब्दों के साथ-साथ तद्भव शब्दावली का भी सार्थक प्रयोग किया है। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य, प्रसाद आदि तीनों गुण हैं। अनेक स्थलों पर चित्रात्मक भाषा का भी प्रयोग किया गया है। उनकी छंद-योजना, स्वर और लय की मिठास से परिपूर्ण है। भाषा भाव को अभिव्यक्त करने में पूर्णतः सक्षम है। [2] किंतु कहीं ऐसा न हो कि तुम ही खाली करने वाले शब्दार्थ-विडंबना = उपहास का विषय, निराशा। प्रवंचना = धोखा। उज्ज्वल = पवित्र, सुख से भरी हुई। प्रश्न- (ख) प्रस्तुत पद्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धृत है। इस कविता के रचयिता श्री जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में उन्होंने स्पष्ट किया है कि उनके जीवन में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे वे अपनी आत्मकथा में लिखें और पाठक उसे पढ़कर सुख या प्रसन्नता अनुभव कर सकें। कवि ने अति यथार्थ रूप में अपने सरल व सहज विचारों को व्यक्त किया है। (ग) कवि ने प्रस्तुत पद्यावतरण में बताया है कि जो लोग उनके जीवन की दुःखपूर्ण कथा को सुनना चाहते थे, वे यह न समझने लगें कि वही उनके जीवन रूपी गागर को खाली करने वाले थे। वे सब पहले अपने-आपको समझें। वे उनके भावों रूपी रस को लेकर अपने-आपको भरने वाले थे। हे सरल मन वालो! यह उपहास और निराशा का ही विषय था कि मैं उन पर व्यंग्य । कर रहा था, उनकी हँसी उड़ा रहा था। कवि पुनः कहता है कि वह आत्मकथा के नाम पर अपनी व औरों की बातें जग-जाहिर नहीं करना चाहता। उसके जीवन में तो पूर्णतः निराशा और पीड़ा की कालिमा ही नहीं है अपितु उसमें मधुर चाँदनी रातों की मीठी यादें भी हैं। उन मधुर एवं उज्ज्वल गाथाओं का वर्णन कैसे करूँ? वह अपने जीवन की मधुर एवं उज्ज्वल स्मृतियों में सबको भागीदार नहीं बनाना चाहता, वह उन्हें सबके सामने क्यों अभिव्यक्त करे। जब कभी वह अपनों के साथ खिल-खिलाकर हँसा था अथवा मधुर-मधुर बातों के सुख में डूबा हुआ था और उसका हृदय आनंद से भर उठा था। उन मीठी स्मृतियों को वह दूसरों को क्यों बताए। (घ) इस पद्यांश में कवि ने स्पष्ट किया है कि आत्मकथा में जीवन की घटनाओं का सच्चा एवं यथार्थ वर्णन किया जाता है। उसके जीवन में सुख कम और दुःख अधिक हैं। वह अपने और दूसरों के दुःखों को जग-जाहिर नहीं करना चाहता। इसी प्रकार कवि अपनी और दूसरों की भूलों को व्यक्त करके हँसी का पात्र नहीं बनना चाहता। (ङ) कवि ने अपना प्रेम भरा रस लेने की बात कही है। उसके साहित्यिक मित्र ही उसके रस को लेने की बात करते हैं। कवि ने बताया है कि उसके आस-पास भँवरे की भाँति मंडराने वाले मित्र लोग उनके काव्य रस को चूसकर अपने-आपको उन्नत बनाना चाहते हैं। (च) कवि ने अपने उन मित्रों को ही ‘खाली करने वाले’ बताया है जिन्होंने उसे आत्मकथा लिखने के लिए कहा था। कवि के निजी अनुभव बहुत कटु रहे हैं। हो सकता है कि उनके मित्रों ने ही उनकी खुशी में बाधा डाली हो। इस प्रकार उनके जीवन को खुशियों से वंचित कर दिया हो। (छ) कवि अपने जीवन में दुःखों व कष्टों के लिए किसी को दोष नहीं देना चाहता। वह स्वभाव से अत्यंत सरल था। यदि वह अपनी सरलता को कष्टों का कारण मानता है तो यह उसके लिए विडंबना ही होगी। कवि अपनी सरलता के कारण प्रसन्न है यदि उसे अपनी सरलता के कारण कष्ट या दुःख सहन करने पड़ते हैं तो वह इसका बुरा नहीं मानता। (ज) कवि आत्मकथा इसलिए नहीं लिखना चाहता क्योंकि आत्मकथा में जीवन संबंधी घटनाओं, विचारों आदि का सच्चाई पूर्ण वर्णन करना पड़ता है। इसलिए कवि अपने जीवन की सरलता को लोगों की हँसी का कारण नहीं बनाना चाहता। वह अपनी भूलों और दूसरों के छलकपट को जग-ज़ाहिर नहीं करना चाहता। कवि अपने प्रेम के सुखपूर्ण क्षणों को भी दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। ये ऐसी बातें है जिनके कारण कवि अपनी आत्मकथा लिखकर इन्हें लोगों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। (झ) कवि ने अपने जीवन के प्रेम के क्षणों और मधुर स्मृतियों को जीवन की उज्ज्वल गाथाओं की संज्ञा दी है। प्रेम के वे क्षण जो कवि ने खिल-खिलाती हुई रातों में बिताए थे वे आज उसे अपने जीवन की उज्ज्वल गाथाएँ-सी प्रतीत होती हैं। (ञ) खिल-खिलाकर हँसने वाली बातों का अभिप्राय है-प्रेम के अत्यंत मधुर क्षण जो उन्होंने अपनी प्रिया के साथ बिताए थे। (ट)
(ठ) भाषा प्रसादगुण संपन्न है। उसमें तत्सम शब्दावली का प्रयोग किया गया है। भाषा पूर्णतः भावानुकूल है। भाषा में भावों की अभिव्यक्ति करने की पूर्ण क्षमता है। [3] मिला कहाँ वह सुख जिसका मैं स्वप्न देखकर जाग
गया। शब्दार्थ-स्वप्न = सपना। आलिंगन में = बाँहों में। मुसक्या = मुस्कराकर, हँसकर। अरुण-कपोल = लाल गाल। मतवाली = हँसी से भरी हुई। अनुरागिनी = प्रेम में लीन। उषा = प्रातः। निज = अपना। सुहाग = सुगंध, इत्र। मधुमाया = मधुर मोहकता। पाथेय = रास्ते का भोजन। पथिक = यात्री। पंथा = रास्ता। सीवन = सिया हुआ। उधेड़कर = फाड़कर। कंथा = गुदड़ी, अंतर्मन।। प्रश्न- (छ) कवि ने किसको पाथेय माना है? (ख) प्रस्तुत काव्यांश हिंदी की पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से उद्धत है। इस कविता के रचयिता छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद हैं। कवि ने अपने जीवन की दुःखभरी कहानी को कभी किसी को न बताने का निश्चय किया था। उन्हें ऐसा लगता था कि उनके जीवन में कुछ भी सुखद नहीं था जिसे सुनकर या पढ़कर कोई सुखी हो सके। उसके जीवन में कष्ट और अभाव ही थे जिन्हें वह किसी को बताना नहीं चाहता था। (ग) कवि ने बताया है कि उसको जीवन में कभी सुख की प्राप्ति नहीं हुई। उसने स्वप्न में भी जिस सुख को देखा था, नींद से जागने पर उसे वह सुख प्राप्त नहीं हो सका। वह सुख देने वाला स्वप्न भी उसकी बाँहों में आते-आते मुस्कराकर भाग गया अर्थात् कवि को कभी स्वप्न में भी सुख प्राप्त नहीं हुआ। सपने में जो सुख का आधार बना था वह अपार सुंदर और मोहक था। उसकी लाल-गुलाबी गालों की मस्ती भरी छाया में प्रेम भरी भोर अपने सुहाग की मिठास भरी मनोहरता को लेकर प्रकट हुई थी। कवि के कहने का तात्पर्य है कि. उसकी गालों में प्रातःकालीन लाली और शोभा विद्यमान थी। जीवन की लंबी डगर पर चलते हुए, थके हुए कवि रूपी यात्री की स्मृतियों में केवल वही सहारा बनी। उसकी यादें ही थके हुए पथिक की थकान कम करने में सहायक बनी थीं। कवि नहीं चाहता कि उसके जीवन की मधुर यादों के विषय में कोई दूसरा जाने। कवि अपने उन मित्रों से पूछता है जो उसे आत्मकथा लिखने के लिए प्रेरित कर रहे थे कि क्या आप मेरी अंतर्मन रूपी गुदड़ी की सिलाई को उधेड़कर उसमें छिपे हुए उसके रहस्यों को देखना चाहते हो? कवि के कहने का तात्पर्य है कि वह अपने जीवन के रहस्यों को अपने तक ही सीमित रखना चाहता है उन्हें दूसरों के सामने व्यक्त नहीं करना चाहता। (घ) कवि उस स्वप्न को देखकर जाग गया जिसके सुख को वह प्राप्त नहीं कर सका। (ङ) वह कवि की पत्नी अथवा प्रेमिका हो सकती है जो कवि के आलिंगन में आते-आते उसे छोड़कर चली गई। कवि ने तीन बार विवाह किया। एक के बाद एक पत्नी चल बसी। कवि उन्हीं पत्नियों को याद कर रहा है जिन्हें वह ठीक से अपना भी न सका कि वे सदा के लिए उससे दूर चली गईं। . (च) कवि की प्रेमिका के कपोल ऐसे लाल-लाल व मतवाले थे कि स्वयं ऊषा की लालिमा भी उनसे लालिमा उधार लेती थी। (छ) कवि ने अपने जीवन के उन सुखद क्षणों को पाथेय माना है जो स्वप्न की भाँति उसके जीवन में आए और क्षण भर में ही मिट गए। (ज) सीवन उधेड़ने से कवि का तात्पर्य जीवन की परतों को खोलना है जिन पर समय के साथ गर्द जम चुकी थी, जिनमें व्यथा के अतिरिक्त और कुछ बहुत कम था। (झ) कवि ने भोर को प्रेम एवं लालिमा से युक्त बताया है। (ञ) ‘कथा’ का शाब्दिक अर्थ गुदड़ी है जिसे कवि ने अपने अंतर्मन के लिए प्रयुक्त किया है। (ट) कवि ने इस पद्यांश में बताया है कि उसका जीवन सदा दुःखों से घिरा रहा है। कवि के हृदय में निश्चय ही कोई टीस छिपी हुई है जिसको वह प्रकट नहीं करना चाहता। कवि ने अपने जीवन में सुख को स्वप्न की भाँति बताया है। सुख की उन स्मृतियों को ही अपने जीवन रूपी पथ में सहारा बताया है। कवि ने इन सब भावों को कलात्मकतापूर्ण अभिव्यंजित किया है। (ठ)
(ड) प्रस्तुत काव्य में कवि ने संस्कृतनिष्ठ भाषा का प्रयोग किया है। विभिन्न प्राकृतिक उपमानों के प्रयोग से भाषा एवं वर्ण्य विषय में रोचकता का विकास हुआ है। [4] छोटे से जीवन की कैसे बड़ी कथाएँ आज कहूँ? शब्दार्थ-कथाएँ = कहानियाँ । मौन = चुप । भोली आत्मकथा = सीधी-सादी जीवन कहानी। मौन व्यथा = वह पीड़ा जिसको कभी व्यक्त नहीं किया गया। प्रश्न- (ख) प्रस्तुत कवितांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘क्षितिज’ भाग 2 में संकलित ‘आत्मकथ्य’ नामक कविता से लिया गया है। इसके रचयिता जयशंकर प्रसाद हैं। इस कविता में कवि ने कहा है कि उसके जीवन में दुःख का पलड़ा भारी रहा है। कवि अपने जीवन के सुख की स्मृतियों को आधार बनाकर जीना चाहता है। किंतु कवि अपनी आत्मकथा लिखकर अपने दुःख रूपी जख्मों को पुनः हरा नहीं करना चाहता। (ग) कवि अपने उन मित्रों, जो उससे आत्मकथा लिखने का आग्रह करते थे, को संबोधित करता हुआ कहता है कि यदि मेरे जीवन की परतों को खोलकर देखोगे तो तुम्हें उसमें कोई बड़ी कहानी नहीं मिलेगी। मेरा छोटा-सा जीवन है। मेरे लिए यही उचित है कि मैं औरों की कथाएँ सुनता रहूँ तथा अपनी व्यथा न ही कहूँ तो अच्छा है। मेरी आत्मकथा सुनकर भला तुम्हें क्या मिलेगा। मेरी कथा सुनने का अभी समय नहीं है। मेरी मौन व्यथा अभी मेरे मन में सोई पड़ी है। इसलिए उसे न ही जगाओ तो अच्छा है। (घ) कवि ने अपने जीवन को अत्यंत छोटा माना है। इसमें कोई बड़ी कथा नहीं है। (ङ) कवि का जीवन अत्यंत लघु जीवन है। कवि स्वभाव से अत्यंत विनम्र तथा साहित्य-सेवी है। इसलिए सरल, सहज एवं विनम्र होने के कारण उनके जीवन में बड़ी-बड़ी व्यथाएँ या बड़ी कथाएँ बनाने वाली घटनाएँ भी नहीं घटीं। (च) कवि को मौन रहकर दूसरों की आत्म-कथाएँ अथवा कथाएँ सुनना अच्छा लगता है। (छ) कवि ने अपने जीवन की कथा को अत्यंत सरल, सीधी-सादी और भोली माना है। (ज) कवि के हृदय में मौन व्यथा सुसुप्त (सोई हुई) रूप में थी। (झ) कवि अपनी जीवन कथा को दूसरों के सामने व्यक्त करने योग्य नहीं समझता क्योंकि उनके विचार से उनके जीवन में ऐसा कुछ महत्त्वपूर्ण नहीं जो दूसरों को अच्छा लगे। इसलिए कवि चाहता है कि मौन रहकर दूसरों की जीवनकथा सुनना ही उसके लिए उचित है। उसके जीवन में तो व्यथा-ही-व्यथा है। अतः उन्हें कवि अपने मन में छुपाए रखना चाहता है। इन भावों को कवि ने अत्यंत कलात्मक ढंग से व्यक्त किया है।. (ञ)
(ट) इन काव्य पंक्तियों में शुद्ध साहित्यिक हिंदी भाषा का प्रयोग किया गया है। तत्सम शब्दों का प्रयोग किया गया है इसलिए कहीं-कहीं भाषा में जटिलता का समावेश हो गया है। स्वर मैत्री के कारण भाषा में सौंदर्य-वृद्धि हुई है। चित्रात्मक भाषा के प्रयोग से विषय रोचक बन पड़ा है। आत्मकथ्य Summary in Hindiआत्मकथ्य कवि-परिचय प्रश्न- 2. प्रमुख रचनाएँ-जयशंकर प्रसाद की प्रमुख रचनाएँ निम्नलिखित हैं(क) काव्य-ग्रंथ ‘लहर’, ‘झरना’, ‘आँसू’, ‘कानन कुसुम’, ‘प्रेम पथिक’, ‘महाराणा का महत्त्व’, ‘करुणालय’, ‘चित्राधार’,
‘कामायनी’ । (ख) उपन्यास-‘कंकाल’, ‘तितली’, ‘इरावती’ (अपूर्ण)। (ग) कहानी-संग्रह ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘आँधी’ और ‘इंद्रजाल’ (कुल 69 कहानियाँ)। (घ) निबंध-संग्रह ‘काव्य और कला तथा अन्य निबंध। 3. काव्यगत विशेषताएँ-प्रसाद जी एक प्रतिभासंपन्न साहित्यकार थे। वे छायावाद के प्रवर्तक तथा सर्वश्रेष्ठ कवि थे। अतीत के प्रति उनका मोह था, लेकिन वर्तमान
के प्रति भी वे जागरूक थे। उनके काव्य की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार से हैं (ii) वेदना की अभिव्यक्ति–प्रसाद जी के काव्य में ऐसे अनेक स्थल हैं जो पाठक के हृदय को छू लेते हैं। उनका ‘आँसू’ काव्य कवि के हृदय की वेदना को व्यक्त करता है। इसी प्रकार से ‘लहर’ काव्य-ग्रंथ की ‘प्रलय की छाया’ कविता भी मार्मिक है। ‘कामायनी’ में भी इस प्रकार के स्थलों की कमी नहीं है जो पाठक के हृदय को आत्मविभोर न कर देते हों। (iii) प्रकृति-वर्णन-प्रसाद जी के काव्य में अनेक स्थलों पर प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। ‘लहर’ की अनेक कविताएँ प्रकृति-वर्णन से संबंधित हैं। प्राकृतिक पदार्थों पर मानवीय भावों का आरोप करना उनके प्रकृति-चित्रण की अनूठी विशेषता है; जैसे- (iv) रहस्य भावना-छायावादी कवि जयशंकर प्रसाद सर्वात्मवाद से सर्वाधिक प्रभावित हैं। वे अज्ञात सत्ता के प्रेम-निरूपण में अधिक तल्लीन रहे हैं। उनकी इस प्रवृत्ति को रहस्यवाद
की संज्ञा दी जाती है। कवि बार-बार प्रश्न करता है कि वह अज्ञात सत्ता कौन है और क्या है? प्रसाद जी के काव्य में रहस्य-भावना का सुष्ठु रूप देखने को मिलता है। रहस्यसाधक कवि प्रकृति के अनंत सौंदर्य को देखकर उस विराट् सत्ता के प्रति जिज्ञासा प्रकट करता है। तदंतर अपनी प्रिया का अधिकाधिक परिचय प्राप्त करने के लिए आतुरता व्यक्त करता है, उसके विरह में तड़पता है और प्रियतमा के परिचय की अनुभूति का ‘गूंगे के गुड़’ की भाँति आस्वादन करता है। प्रसाद जी के काव्य में रहस्य भावना का रूप निम्नलिखित उदाहरण में देखा
जा सकता है (v) नारी भावना-छायावादी कवि होने के कारण प्रसाद जी ने नारी को अशरीरी सौंदर्य प्रदान करके उसे लोक की मानवी न बनाकर परलोक की ऐसी काल्पनिक देवी बना दिया जिसमें प्रेम, सौंदर्य, यौवन और उच्च भावनाएँ हैं, लेकिन ऐसे गुण मृत्युलोक की नारी में देखने को नहीं मिलते। ‘कामायनी’ की श्रद्धा इसी प्रकार की नारी है। वह काल्पनिक जगत् की अशरीरी सौंदर्यसंपन्न अलौकिक देवी है जो नित्य छवि से दीप्त है, विश्व की करुण-कामना मूर्ति है और कानन-कुसुम अंचल में मंद पवन से प्रेरित सौरभ की साकार प्रतिमा है। प्रसाद जी की यह नारी भावना छायावादी काव्य के सर्वथा अनुकूल है लेकिन यह नारी भावना आधुनिक युगबोध से मेल नहीं खाती। (vi) नवीन जीवन-दर्शन-कविवर प्रसाद शैव दर्शन के अनुयायी थे। अतः उनके दार्शनिक विचारों पर शैव दर्शन का स्पष्ट प्रभाव है। वे कामायनी के माध्यम से समरसता और आनंदवाद की स्थापना करना चाहते हैं। उनकी रचनाओं, विशेषकर, ‘कामायनी’ में दार्शनिकता और कवित्व का सुंदर समन्वय हुआ है। वे समरसताजन्य आनंदवाद को ही जीवन का परम लक्ष्य स्वीकार करते हैं। ‘कामायनी’ की यात्रा ‘चिंता’ सर्ग से प्रारंभ होकर ‘आनंद’ सर्ग में ही समाप्त होती है। (vii) राष्ट्रीय भावना-प्रसाद सांस्कृतिक और दार्शनिक चेतना के कवि हैं। यह सांस्कृतिक चेतना उनके राष्ट्रीय भावों की प्रेरक है। उनके
नाटकों में कवि का देशानुराग अथवा राष्ट्र-प्रेम अधिक मुखरित हुआ है। उनकी काव्य-रचनाओं में यह राष्ट्र-प्रेम संस्कृति प्रेम के रूप में संकेतित हुआ है। । अरुण यह मधुमय देश हमारा। (viii) मानवतावादी दृष्टिकोण-मानवतावाद छायावादी कवियों की उल्लेखनीय प्रवृत्ति है। अनेक स्थलों पर कवि राष्ट्रीयता की भाव-भूमि से ऊपर उठकर मानव-कल्याण की चर्चा करता हुआ दिखाई देता है। प्रसाद जी के काव्य में शाश्वत मानवीय भावों और मानवतावाद को प्रचुर बल मिला है। ‘कामायनी’ में कवि ने मनु, श्रद्धा और इड़ा के प्रतीकों के माध्यम से मानवता के विकास की कहानी कही है और इच्छा, क्रिया एवं ज्ञान के समन्वय पर बल दिया है। समष्टि के लिए व्यक्ति का उत्सर्ग ‘कामायनी’ का संदेश है। श्रद्धा इस बात पर बल देती हुई कहती है औरों को हँसते देखो मनु हँसो और सुख पाओ। ‘आनंद’ सर्ग में कवि ने ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की चर्चा करके विश्व-बंधुत्व की भावना का संदेश दिया है। कवि बार-बार मानव-प्रेम पर बल देता है और मानवतावादी दृष्टिकोण को अभिव्यक्त करता है। 4. भाषा-शैली–प्रसाद जी ने प्रबंध और गीति इन दो काव्य-रूपों को ही अपनाया है। प्रेम पथिक’ और ‘महाराणा का महत्त्व’ दोनों उनकी प्रबंधात्मक रचनाएँ हैं। ‘कामायनी’ उनका प्रसिद्ध महाकाव्य है। ‘लहर’, ‘झरना’ और ‘आँसू’ गीतिकाव्य हैं। उनके काव्य में भावात्मकता, संगीतात्मकता, आत्माभिव्यक्ति, संक्षिप्तता, कोमलकांत पदावली आदि सभी विशेषताएँ देखी जा सकती हैं। प्रसाद जी की भाषा साहित्यिक हिंदी है। फिर भी इसे संस्कृतनिष्ठ, तत्सम प्रधान हिंदी भाषा कहना अधिक उचित होगा। प्रसाद जी की भाषा में ओज, माधुर्य और प्रसाद तीनों गुण विद्यमान हैं। उनकी भाषा प्रवाहपूर्ण, प्रांजल, संगीतात्मक और भावानुकूल है। उनकी भाषा की प्रथम विशेषता है लाक्षणिकता। लाक्षणिक प्रयोगों में कवि ने विरोधाभास, मानवीकरण, विशेषण-विपर्यय, प्रतीक आदि उपकरणों के प्रयोग से भाषा में सौंदर्य उत्पन्न कर दिया है। उनकी भाषा की दूसरी विशेषता है- प्रतीकात्मकता। कवि ने प्रकृति के विभिन्न उपादानों को प्रतीक के रूप में प्रयुक्त किया है। उनके सभी प्रतीक प्रभावपूर्ण हैं। कवि ने कुछ स्थलों पर चित्रात्मकता और ध्वन्यात्मकता का भी सफल प्रयोग किया है। . प्रसाद जी की अलंकार योजना उच्चकोटि की है। शब्दालंकारों की अपेक्षा अर्थालंकारों में उनकी दृष्टि अधिक रमी है। उपमा, रूपक, उत्प्रेक्षा, रूपकातिशयोक्ति, अर्थान्तरन्यास आदि प्रसाद जी के प्रिय अलंकार हैं। प्रसाद जी की छंद योजना स्वर और लय की मिठास से अणुप्राणित है। कुछ स्थलों पर कवि ने अतुकांत और मुक्तक छंदों का भी प्रयोग किया है। इस प्रकार भाव और भाषा दोनों ही दृष्टियों से उनका काव्य उच्चकोटि का है। आत्मकथ्य कविता का सार प्रश्न- इस कविता में कवि ने बताया है कि यह संपूर्ण संसार नश्वर है। हर जीवन एक दिन मुरझाई पत्ती-सा झड़कर गिर जाता है। इस नीले आकाश के नीचे न जाने कितने जीवनों के इतिहास रचे जाते हैं, किंतु ये व्यंग्य से भरे होने के कारण पीड़ा को प्रकट करते हैं। क्या इन्हें सुनकर किसी को सुख मिला है। मेरा जीवन तो खाली गागर के समान व्यर्थ तथा अभावग्रस्त है। इस दुनिया में मानव स्वार्थ से पूर्ण जीवन जीते हैं। इस संसार में लोग दूसरों के सुखों को छीनकर स्वयं सुखी जीवन जीने की इच्छा रखते हैं। यही जीवन की विडंबना है। कवि दूसरों के धोखे और अपनी पीड़ा की कहानी सुनाने का इच्छुक नहीं है। कवि के पास दूसरों को सुनाने के लिए जीवन की मीठी व मधुर यादें भी नहीं हैं। उसे अपने जीवन में सुख प्रदान करने वाली मधुर बातें दिखाई नहीं देतीं। उसके जीवन में अधूरे सुख थे जो जीवन के आधे मार्ग में ही समाप्त हो गए। उसका जीवन तो थके हुए यात्री के समान है जिसमें कहीं भी सुख नहीं है। उनके जीवन में जो दुःख से पूर्ण यादें हैं, उन्हें भला कोई क्यों सुनना चाहेगा। उसके इस लघु जीवन में बड़ी-बड़ी उपलब्धियाँ भी नहीं हैं जिन्हें वह दूसरों को सुना सके। अतः कवि इस आत्मकथ्य के नाम पर चुप रहना ही उचित समझता है। उसे अपनी आत्मकथा अत्यंत सरल एवं साधारण प्रतीत होती है। उसके हृदय की पीड़ाएँ मौन रूप में सोई हुई हैं जिन्हें वह जगाना उचित नहीं समझता। कवि नहीं चाहता कि कोई उसके जीवन के कष्टों को जाने। वह अपने जीवन के कष्टों को स्वयं ही जीना चाहता है। कवि ने अपनी आत्मकथा को कैसे बताया है?कवि ने अपनी आत्मकथा को भोली भाली एवं सीधी-सादी सरल माना है। कवि जयशंकर प्रसाद अपनी आत्मकथा 'आत्मकथ्य' को भोली-भाली और सीधी-सरल मानते हैं। वह कविता की इन पंक्तियों के माध्यम से कहते हैं कि... इन पंक्तियों के माध्यम से जयशंकर प्रसाद अपनी आत्मकथा को भोली-भाली, सीध- सरल मानने का संदेश देते हैं।
कवि ने अपनी आत्मकथा को बोली क्यों कहा?कवि का जीवन सीधा-सादा और विनम्रता से भरा हुआ था। उसे नहीं लगता था कि उसकी कथा में किसी को कुछ विशेष देने की क्षमता थी। उससे किसी प्रकार की वाहवाही भी प्राप्त नहीं की जा सकती थी। इसलिए कवि ने अपनी कथा को भोली कहा है।
कवि आत्मकथा लिखने से क्या पूछना चाहता है?Solution : कवि आत्मकथ्य लिखने से इसलिए बचना चाहते है क्योंकि उन्हें ऐसा नहीं लगता कि <br> उनके जीवन में कोई आनदित घटना हुई है जिसे वे लोगों को बता सकें। उन्हें लगता है कि <br> उनका जीवन केवल कष्टों से भरा हुआ है अतः वे अपने कष्टों को लोगों में बाटना नहीं चाहते <br> तथा उन्हें अपने तक ही सीमित रखना चाहते हैं।
भोली आत्मकथा के माध्यम से कवि क्या कहना चाहता है?उत्तर-कवि 'भोली आत्मकथा' के माध्यम से यह कहना चाहता है कि उसने पूरा जीवन सरलता और भोलेपन में जिया है। उसके जीवन में छल-कपट, चतुराई और धूर्तता नहीं है। अतः उसके जीवन में संतुष्टि तो है, लेकिन किसी को कुछ सीख देने की शक्ति नहीं है।
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