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जीवन मंत्र डेस्क. रविवार, 29 मार्च को चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी है। इस दिन निषादराज गुह की जयंती मनाई जाती है। रामायण के अनुसार निषादराज श्रीराम के प्रिय मित्र थे। वनवास के समय निषादराज ने श्रीराम की मदद की थी। जानिए ये प्रसंग... भगवान श्रीराम को गंगा पार करवाना (Nishad Raj in Ramayan in Hindi)जब भगवान श्रीराम को आर्य सुमंत रथ में श्रृंगवेरपुर नगर (Shringverpur Nagar Ramayan) में लेकर पहुंचे तो वहां निषादराज ने उनका स्वागत किया (Nishad Raj role in Ramayana in Hindi)। उन्होंने भगवान श्रीराम को अपनी नगरी का राजा बनाने का अनुरोध किया किंतु प्रभु श्री राम ने उनका राज्य लेने से मना कर दिया (King of Nishadha kingdom)। इसके बाद निषादराज गुह ने वही गंगा किनारे उनके रात्रि विश्राम का प्रबंध किया (Nishad Guha in Ramayana)। अगले दिन भगवान राम को गंगा पार करके प्रयागराज पहुंचना था इसलिये निषादराज ने एक केवट (Kevat in Ramayan) को बुलाकर उनको उस पार छोड़ने को कहा। वे स्वयं भी नाव में साथ बैठकर उनके साथ गए। भगवान श्रीराम ने उन्हें लौट जाने को कहा किंतु निषादराज ने उनसे कहा कि आगे रास्ता पार करवाने में वे उनकी सहायता करेंगे व जब भी श्रीराम उन्हें लौट जाने को कहेंगे तो वे लौट जायेंगे (Guha in Ramayana in Hindi)। चित्रकूट जाने में सहायता करना (Guha in Ramayana in Hindi)इसके बाद भगवान श्रीराम ने अपने स्थायी निवास के लिए ऋषि भारद्वाज से भेंट की जिन्होंने यमुना पार चित्रकूट को उनके स्थायी निवास के लिए उचित बताया। इसके बाद निषादराज ने यमुना को पार करने के लिए एक बांस की नाव बनायीं जिसमे बैठकर श्रीराम, लक्ष्मण व माता सीता यमुना को पार कर सकते थे। तत्पश्चात श्रीराम ने निषादराज को वहां से वापस श्रृंगवेरपुर नगरी लौटकर अपना राज्य सँभालने को कहा। भगवान श्रीराम से मिले आदेश के अनुसार निषादराज वही से अपनी नगरी लौट गए। अयोध्या वापस लौटते समय मिलन (Ayodhya wapsi and Nishad Raj Guha)जब श्रीराम अपने 14 वर्षों का वनवास समाप्त करके पुष्पक विमान से वापस अयोध्या लौट रहे थे तब वे निषादराज की नगरी में उससे मिलने भी आये। निषादराज भी उनके साथ अयोध्या उनका राज्याभिषेक देखने आये। भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के बाद वे पुनः अपनी नगरी लौट गए। अश्वमेघ यज्ञ में मिलन (Ashwamedh Yagya in Ramayan)अपने राज्याभिषेक के कुछ वर्षों के पश्चात भगवान श्रीराम ने अश्वमेघ यज्ञ क आयोजन करवाया जिसमे उन्होंने चारों दिशाओं के राजाओं को भी आमंत्रित किया था। इसमें उन्होंने अपने मित्र निषादराज (King Guha) को भी बुलावा भेजा था। इसी यज्ञ में उनकी पुनः भेंट हुई थी। निषादराज निषादों के राजा का उपनाम है। वे ऋंगवेरपुर के राजा थे, उनका नाम गुह था। वे निषाद समाज के थे और उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण को गंगा पार करवाया था। वा [राम] के बाल सखा थे व [निषाद राज गुह] ने एक ही गुरुकुल में रहकर शिक्षा प्राप्त की। कहार भील निषाद समाज आज भी इनकी पूजा करते है। निषादराज ने प्रभु श्रीराम को गंगा पार कराया। वह श्रंगपेगपुर (गोरखपुर,उप्र) के राजा थे। वनबास के बाद श्रीराम ने अपनी पहली रात अपने मित्र निषादराज के यहां बिताई। लोगों ने किसे निषादराज कहा और क्यों?जिस प्रकार श्रीराम को निषादराज ने गंगा पार कराई थी, उसी प्रकार रघुनाथ काका ने गाँधी जी को महि सागर नदी पार कराई थी। इसलिए सत्याग्रहियों ने उन्हें निषादराज कहना शुरू कर दिया।
रामायण में निषाद कौन थे?निषादराज निषादों के राजा का उपनाम है। वे ऋंगवेरपुर के राजा थे, उनका नाम गुह था। वे निषाद समाज के थे और उन्होंने ही वनवासकाल में राम, सीता तथा लक्ष्मण को गंगा पार करवाया था।
निषादराज की क्या शर्त थी?निषादराज ने शर्त रखी कि सत्यवती का पुत्र राजा बनेगा, देवव्रत नहीं। शान्तनु ने शर्त नहीं मानी और वे बीमार रहने लगे। भीष्म ने निषादराज से सत्यवती का विवाह अपने पिता से करने का अनुरोध किया। इन्होंने आजीवन ब्रह्मचारी रहने की प्रतिज्ञा की।
निषाद का जन्म कैसे हुआ?सुनीथा ने पुत्र का शव सुरक्षित रखा, जिसकी दाहिनी जंघा का मंथन करके ऋषियों ने एक नाटा, काला और छोटा मुखवाला पुरुष उत्पन्न किया। उसने ब्राह्मणों से पूछा, कि मैं क्या करूं?” ब्राह्मणों ने “निषीद” (बैठ) कहा। इसलिए उसका नाम निषाद पड़ा। उस निषाद द्वारा वेन के सारे पाप कट गये।
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