प्राथमिकता वाले समूह का क्या अर्थ है? - praathamikata vaale samooh ka kya arth hai?

प्राथमिक समूह का अर्थ– प्राथमिक समूहों का तात्पर्य ऐसे समूहों से है जिनके सदस्यों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध तथा सहयोग की भावना होती है। सर्वप्रथम कूलें ने अपनी पुस्तक Social Organization में प्राथमिक समूह का उल्लेख किया है। उनके अनुसार, “प्राथमिक समूहों से हमारा तात्पर्य उन समूहों से है, जिनमें सदस्यों के बीच आमने-सामने घनिष्ठ सम्बन्ध एवं पारस्परिक सहयोग की विशेषता होती है। ऐसे समूह अनेक अर्थों में प्राथमिक होते हैं लेकिन विशेष रूप से इस अर्थ में कि ये व्यक्ति के सामाजिक स्वभाव और विचार के निर्माण में बुनियादी योगदान देते हैं।”

चार्ल्स कूले ने प्राथमिक समूहों को “मानव स्वभाव की पोषिका ” कहा है। कूले ने कुछ समूहों को “प्राथमिक” इसलिए कहा है क्योंकि महत्व के दृष्टिकोण से इनका स्थान प्रथम और प्रभाव प्राथमिक है।

लुण्डवर्ग ने प्राथमिक समूह को परिभाषित करते हुए कहा है, “प्राथमिक समूह का तात्पर्य दो या दो से अधिक ऐसे व्यक्तियों से है जो घनिष्ठ, सहभागी और वैयक्तिक ढंग से एक-दूसरे से व्यवहार करते हैं।”

कूले ने आरम्भ में परिवार, क्रीड़ा-समूह और पड़ोस के लिए “प्राथमिक समूह” का प्रयोग किया था। जीवन के आरम्भिक काल में परिवार व्यक्ति के लिए सबसे महत्वपूर्ण इकाई

होती है जिसे कूले ने प्राथमिक समूह का सबसे अच्छा उदाहरण माना है। प्राथमिक समूह में, जैसा कि फेयरचाइल्ड का विचार है, सामान्यत: 3-4 व्यक्तियों से लेकर 50-60 व्यक्ति तक पाये जाते हैं। ऐसे समूहों में विचार-विनिमाय प्रत्यक्ष रूप से होता है। किसी माध्यम के द्वारा नहीं होता। इसका अर्थ यह नहीं है कि प्राथमिक समूह में कभी संघर्ष अथवा मतभेद की स्थिति उत्पन्न ही नहीं होती बल्कि वास्तविकता यह है कि प्राथमिक समूह में कोई मतभेद स्थायी नहीं होते। व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से इसका कोई हल शीघ्र ही ढूंढ निकाला जाता है।

प्राथमिक समूह की विशेषताएँ

Table of Contents

  • प्राथमिक समूह की विशेषताएँ
    • (क) भौतिक विशेषताएँ
      • (1) शारीरिक समीपता (Physical Proximity)
      • (2) सदस्यों की कम संख्या (Small Number of Persons )
      • (3) सामान्य-चरित्र (General Character)
      • (4) तुलनात्मक स्थिरता (Relative Permanence)
    • (ख) मानसिक विशेषताएँ
      • (1) उद्देश्यों की समानता (Identity of Ends)
      • (2) सम्बन्ध स्वयं साध्य होता है (Relationship is an End in ltself)
      • (3) सम्बन्धों में पूर्णता ( Inclusive Relatioship)
      • (4) सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं (Personal Relationship)
  • प्राथमिक समूह का समाजशास्त्रीय महत्व
    • 1. व्यक्ति का समाजीकरण
    • 2. संस्कृति की शिक्षा
    • 3. क्षमता और रुचि का विकास
    • 4. भावनात्मक सुरक्षा
    • 5. मानवीय गुणों का विकास

(क) भौतिक विशेषताएँ

(1) शारीरिक समीपता (Physical Proximity)

प्राथमिक समूह एक घनिष्ठ समूह है और शारीरिक समीपता सदैव ही घनिष्ठ सम्बन्धों को विकसित करती है।

(2) सदस्यों की कम संख्या (Small Number of Persons )

प्राथमिक समूह आकार में भी छोटे होते हैं। कुछ सीमित संख्या के लोग ही इसके सदस्य होते हैं।

(3) सामान्य-चरित्र (General Character)

प्राथमिक समूह के अन्दर सभी सदस्यों के दायित्व और कर्तव्य असीमित होते हैं। इन समूहों में व्यक्ति की प्रारम्भिक आवश्यकताओं की पूर्ति होती है और इसलिए ऐसे समूहों में प्रत्येक व्यक्ति प्रत्येक कार्य को करना अपना दायित्व मानता है।

(4) तुलनात्मक स्थिरता (Relative Permanence)

किंग्सले डेविस के अनुसार “समूह में जितनी अधिक स्थिरता होती है, अन्य अनेक बातें समान होने पर सदस्यों के सम्बन्धों में भी उतनी अधिक घनिष्ठता उत्पन्न हो जाती है।”

(ख) मानसिक विशेषताएँ

(1) उद्देश्यों की समानता (Identity of Ends)

प्राथमिक समूह के विचारों का स्वतन्त्रता से आदान-प्रदान होने के कारण सदस्यों में समान उद्देश्यों तथा समान हितों का विकास होता है।

(2) सम्बन्ध स्वयं साध्य होता है (Relationship is an End in ltself)

सम्बन्ध स्वयं साध्य होता है का तात्पर्य यह है कि प्राथमिक समूहों में सम्बन्ध किसी विशेष उद्देश्य की पूर्ति या स्वार्थ सिद्धि के लिए स्थापित नहीं किये जाते।

(3) सम्बन्धों में पूर्णता ( Inclusive Relatioship)

प्राथमिक सम्बन्ध सारी संकीर्णताओं से दूर, औपचारिकता से ऊपर और स्वयं में पूर्ण होते हैं। प्राथमिक समूह का सदस्य व्यक्ति किसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए नहीं बनता बल्कि इसके अन्तर्गत जीवन की सभी आवश्यकताएँ पूरी की जा सकती हैं।

(4) सम्बन्ध वैयक्तिक होते हैं (Personal Relationship)

प्राथमिक समूह में हर सदस्य दूसरे सदस्य को व्यक्तिगत आधार पर पहचानता है। दूसरे शब्दों में हम कह सकते हैं कि प्राथमिक समूहों में सदस्यों का आपसी सम्बन्ध समाचार पत्रों, रेडियो, टेलीफोन जैसे अप्रत्यक्ष साधनों के माध्यम द्वारा स्थापित नहीं होता।

प्राथमिक समूह का समाजशास्त्रीय महत्व

1. व्यक्ति का समाजीकरण

प्राथमिक समूह व्यक्ति की इन समाज विरोधी मनोवृत्तियों पर नियंत्रण लगाये रखते हैं और व्यक्ति को सामाजिक नियमों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। इसके फलस्वरूप व्यक्ति सरलतापूर्वक अपनी सामाजिक दशाओं से अनुकूलन कर लेता है।

2. संस्कृति की शिक्षा

प्राथमिक समूहों का एक प्रमुख कार्य व्यक्ति को अपनी संस्कृति और आदर्श नियमों से परिचित कराना है।

3. क्षमता और रुचि का विकास

प्राथमिक समूह अपने सदस्यों से उनकी क्षमता और रुचि के अनुसार ही कार्य लेते हैं। इसके फलस्वरूप प्राथमिक समूह के सदस्यों को अपनी कुशलता और रुचि में वृद्धि करने का ही अवसर नहीं मिलता बल्कि उनमें आत्मविश्वास की भावना का भी विकास होता है।

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4. भावनात्मक सुरक्षा

केवल प्राथमिक समूह ही एक ऐसा वातावरण बनाते हैं जिसमें व्यक्ति अपने आपको मानसिक रूप से सुरक्षित महसूस करता है।

5. मानवीय गुणों का विकास

मैरिल का कथन है कि प्राथमिक समूहों का सबसे महत्वपूर्ण कार्य व्यक्तित्व का विकास करना है। प्राथमिक समूह व्यक्ति में सहानुभूति, दया, त्याग, प्रेम, सहनशीलत और सहयोग के गुण उत्पन्न करते हैं। इन्हीं गुणों की सहायता से व्यक्ति समाज से अपना अनुकूलन कर पाता है।

प्राथमिक समूह का क्या अर्थ है?

उदाहरण के लिए प्राथमिक समूह (primary group) छोटे आकार का वह समूह है जिसके सदस्य आपस में निकट, वैयक्तिक, चिरस्थायी सम्बन्ध रखते हैं। (जैसे- परिवार, बचपन के मित्र) । इसके विपरीत द्वितीयक समूह (secondary group) वे समूह हैं जिनके सदस्यों के बीच अन्तःक्रियाएँ अधिक अवैयक्तिक होती हैं और वे साझे हित पर आधारित होते हैं।

प्राथमिक समूह को प्राथमिक क्यों माना जाता है?

मानव जब जन्म लेता है तो उसका रूप पूर्णतः जैविक होता है । सर्वप्रथम वह परिवार के सम्पर्क में आता है तथा परिवार उसे सामाजिक प्राणी बनाता है। चूँकि परिवार मनुष्य के जीवन में प्रथम या प्राथमिक है, इसलिए इसे प्राथमिक समूह कहा जाता है।

प्राथमिक समूह क्या है इसकी विशेषता बताइए?

कूले के अनुसार प्रथामिक समूह से तात्पर्य ऐसे समूह से हैं जिसकी विशेषता घनिष्ठ आमने-सामने समाने के संबंध और सहयोग हैं। कूले द्वारा वर्णित इन मौलिक विशेषताओं से ही प्राथमिक समूह की प्रकृति बहुत कुछ स्पष्ट हो जाती हैं। इसमे कोई संदेह नही है कि प्राथमिक समूह का आधार है आमने-सामने का संबंध, संबंधों मे घनिष्ठता और सहयोग।

प्राथमिक समूह का क्या महत्व है?

1. व्यक्ति का समाजीकरण प्राथमिक समूह व्यक्ति की इन समाज विरोधी मनोवृत्तियों पर नियंत्रण लगाये रखते हैं और व्यक्ति को सामाजिक नियमों का पालन करने की प्रेरणा देते हैं। इसके फलस्वरूप व्यक्ति सरलतापूर्वक अपनी सामाजिक दशाओं से अनुकूलन कर लेता है।