कंचनजंगा की क्या विशेषता है लेखिका इसे क्यों नहीं देख पाई - kanchanajanga kee kya visheshata hai lekhika ise kyon nahin dekh paee

कंचनजंघा की विशेषता क्या है ? लेखिका इसे क्यों न देख पाई ?

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कंचनजंगा की क्या विशेषता है लेखिका इसे क्यों नहीं देख पाई - kanchanajanga kee kya visheshata hai lekhika ise kyon nahin dekh paee

लिखित उत्तर

Solution : गंतोक प्रवास के दौरान लेखिका की कंचनजंघा को देखने की साध पूर्ण न हो सकी। कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। मौसम साफ हो तो गंतोक से यह दिखाई देती है। लेकिन लेखिका के गंतोक-प्रवास के दौरान मौसम अच्छा होने के बावजूद आसमान बादलों से ढंका था, जिस कारण लेखिका कंचनजंघा के दर्शन न कर पाई।

 Jharkhand Board Class 10 Hindi Notes | साना-साना हाथ जोड़ि ― मधु कांकरिया  Solutions Chapter 3

प्रश्न 1. झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका को

किस तरह सम्मोहित कर रहा था ?                   [JAC 2009 (A)]

उत्तर―झिलमिलाते सितारों की रोशनी में नहाया गंतोक लेखिका के मन में

सम्मोहन जगा रहा था। इस सुंदरता ने उस पर ऐसा जादू-सा कर दिया था कि

उसे सब कुछ ठहरा हुआ-सा और अर्थहीन-सा लग रहा था। उसके भीतर-बाहर

जैसे एक शून्य-सा व्याप्त हो गया था।

प्रश्न 2. गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का शहर क्यों कहा गया ?

                  [JAC 2011 (A); 2014 (A); 2017 (A); 2018 (A)]

उत्तर―'मेहनतकश' का अर्थ है-कड़ी मेहनत करने वाले । 'बादशाह' का अर्थ

है-मन की मर्जी के मालिक । गंतोक एक पर्वतीय स्थल है। पर्वतीय क्षेत्र होने के

नाते यहाँ स्थितियाँ बड़ी कठिन हैं। अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए लोगों को कड़ी

मेहनत करनी पड़ती है। यहाँ के लोग इस मेहनत से घबराते नहीं और ऐसी

कठिनाइयों के बीच भी मस्त रहते हैं। इसलिए गंतोक को 'मेहनतकश बादशाहों का

शहर' कहा गया है।

प्रश्न 3. कभी श्वेत तो कभी रंगीन पताकाओं का फहराना किन अलग-अलग

अवसरों की ओर संकेत करता है?            [JAC 2015 (A); 2018 (A)]

उत्तर―श्वेत पताकाएँ किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु पर फहराई जाती हैं। किसी

युद्धिस्ट की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए नगर से बाहर किसी

विरान स्थान पर मंत्र लिखी एक सौ आठ पताकाएँ फहराई जाती हैं, जिन्हें उतारा

नहीं जाता। वे धीरे-धीरे अपने-आप नष्ट हो जाती हैं।

            किसी शुभ कार्य को आरंभ करने पर रंगीन पताकाएं फहराई जाती हैं।

प्रश्न 4 लोंग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका को पूरे भारत

की आत्मा एक-सी क्यों दिखाई दी? [JAC Sample Paper 2009]

उत्तर―लॉग स्टॉक में घूमते हुए चक्र को देखकर लेखिका ने उसके बारे में

पूछा तो पता चला कि यह धर्म-चक्र है। इसे घुमाने पर सारे पाप धुल जाते हैं।

जितने की यह बात सुनकर लेखिका को ध्यान आया कि पूरे भारत की आत्मा एक

ही है। मैदानी क्षेत्रों में गंगा के विषय में भी ऐसी ही धारणा है। उसे लगा कि

पूरे भारत की आत्मा एक-सी है। सारी वैज्ञानिक प्रगति के बावजूद उनकी आस्थाएँ,

विश्वास, अंध-विश्वास और पाप-पुण्य की अवधारणाएँ एक-सी हैं।

प्रश्न 5. रात्रि में गंतोक के सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में करें।      [JAC 2012(A)]

उत्तर―गंतोक रात के समय भी खुबसूरत लगता है। यदि किसी ऊँचे स्थान

से गंतोक शहर को देखें तो ऐसा लगता है मानो आसमान उलटा पड़ा हो और तारे

विखरकर टिमटिमा रहे हों। किसी ढलान पर रोशनियाँ सितारों के गुच्छों-सी और

सड़क के किनारे की रोशनियाँ सितारों की झालर-सी लगती हैं। गंतोक का यह

रात्रिकालीन सौंदर्य देखने वाले पर सम्मोहक प्रभाव छोड़ता है।

प्रश्न 6. गंतोक प्रवास के दौरान लेखिका की कौन-सी इच्छा पूर्ण न हो

पाई और क्यों?

अथवा, कंचनजंघा की विशेषता क्या है ? लेखिका इसे क्यों न देख पाई ?

उत्तर―गंतोक प्रवास के दौरान लेखिका की कंचनजंघा को देखने की साध

पूर्ण न हो सकी। कंचनजंघा हिमालय की तीसरी सबसे ऊँची चोटी है। मौसम साफ

हो तो गंतोक से यह दिखाई देती है। लेकिन लेखिका के गंतोक-प्रवास के दौरान

मौसम अच्छा होने के बावजूद आसमान बादलों से ढंका था, जिस कारण लेखिका

कंचनजंघा के दर्शन न कर पाई।

प्रश्न 7. पताकाएँ बौद्ध संस्कृति का अंग किस प्रकार है ?

उत्तर―जब किसी बुद्धिस्ट की मृत्यु होती है तो उसकी आत्मा की शान्ति के

लिए मंत्र-लिखी एक सौ आठ पताकाएँ नगर से बाहर किसी निर्जन स्थान पर लगा

दी जाती हैं। उन्हें कभी उतारा नहीं जाता। किसी शुभ कार्य के आरंभ में रंगीन

पताकाएँ फहराई जाती हैं। इस प्रकार पताकाएँ बौद्ध संस्कृति की एक पहचान है,

उसका अभिन्न अंग हैं।

प्रश्न 8. 'धर्मचक्र' का संबंध किस धर्म से है? इनके साथ क्या मान्यता

जुड़ी है।

उत्तर―'धर्मचक्र' या 'प्रेअर व्हील' का संबंध बौद्ध धर्म से है। इनके साथ

यह मान्यता जुड़ी है कि इन्हें हाथ से घुमाने से घुमाने वाले की प्रार्थना स्वीकार

होती है और उसके पाप नष्ट हो जाते हैं।

प्रश्न 9. 'चित्रलिखित' का अर्थ स्पष्ट करते हुए बताएँ कि लेखिका ने

'माया' और 'छाया' का अनूठा खेल किसे कहा है ?

उत्तर―चित्रलिखित' का अभिप्राय है-चित्र की भाँति जड़ । प्रकृति के अद्भुत

रूप को देखकर लेखिका ठगी-सी खड़ी रह गई। अपनी उसी स्थिति को लेखिका

ने 'चित्रलिखित' कहा है। 'माया' का अर्थ है-यह संसार और 'छाया' का अर्थ

है छवि या सौंदर्य । माया और छाया का अनूठा खेल ही यह संसार है, जहाँ प्रकृति

पल-पल अपना रूप बदलती है।

प्रश्न 10. लेखिका को पलामू तथा गुमला के जंगलों तथा यूमथांग के

पवर्तीय अंचल के जनजीवन में क्या समानता दिखाई दी?

उत्तर―लेखिका ने पलामू तथा गुमला के जंगलों में आदिवासी युवतियों को

अपनी पीठ पर बच्चों को बाँधे जंगल-जंगल तेंदु पत्तों की तलाश में भटकते देखा

था। यूमथांग के पर्वतीय अंचल में भी उसने देखा कि पहाड़ी महिलाएँ-पीठ पर

बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने शिशुओं को संभाले पत्थर तोड़ रही थीं। इस

प्रकार दोनों अंचलों में महिलाएं मातृत्व और श्रम-साधना को साथ-साथ निभाती

हैं।

प्रश्न 11. पर्वतीय क्षेत्रों के बच्चों का जीवन किस प्रकार है ?

उत्तर―वयस्कों की भाँति पर्वतीय क्षेत्र में बच्चों का जीवन भी कठिनाइयों से

भय है। उन्हें विद्यालय जाने के लिए कई-कई किलोमीटर की चढ़ाई चढ़नी पड़ती

है। स्कूल-बस' जैसी कोई सुविधा वहाँ नहीं है। उसके अतिरिक्त इन बच्चों को

मवेशी चराना, पानी भरना, लकड़ी ढोने तथा जंगलों से लकड़ी बीनकर लाने जैसे

काम भी करने पड़ते हैं।

प्रश्न 12. चाय-बागान के किस दृश्य को देखकर लेखिका खुशी से चीख

पड़ी?

उत्तर―ढलते सूरज की रोशनी में लेखिका की जीप चाय-बागानों में से निकल

रही थी। लेखिका ने देखा कि कई यूवतियाँ बोकू (सिक्किमी परिधान) पहने चाय

की पचियाँ तोड़ रही थी। उन युवतियों के सुन्दर चेहरे श्रम की आभा से दमक

रहे थे। एक युवती ने चटक (गहरे) लाल रंग का बोकू पहन रखा था। सघन

हरियाली के बीच चटक लाल रंग डूबते सूरज की स्वर्णिम आभा बीच ऐसी

इंद्रधनुषी छटा बिखेर रहा था कि लेखिका मंत्र मुग्ध होकर चीख-सी पड़ी। इतना

सौंदर्य उससे सहा नहीं जा रहा था।

प्रश्न 13. तिस्ता नदी की धारा ने लेखिका के मन में क्या भाव जाग्रत

किए?

उत्तर―तिस्ता नदी के किनारे बिखरे पत्थरों पर बैठे हुए लेखिका के मन में

जैसे एक नया बोध जाग्रत हो रहा था। उसे लग रहा था कि सुख-शांति और

सकून वहीं है, जहाँ अखंडिता संपूर्णता है। पेड़, पौधे पश और आदमी-सबकी अपनी

एक लय और गति है। यह लय और गति अपने मूल और स्वभाव में बनी रहे, इसी

में सबकी भलाई है। हमारी आज की पीढ़ी ने प्रकृति की इस लय और गति के साथ

खिलवाड़ करके अक्षम्य अपराध किया है।

प्रश्न 14. लायुंग के विषय में संक्षिप्त जानकारी देते हुए बताएँ कि

आजकल यहाँ हिमपात कम होने का क्या कारण है?

उत्तर―लायुंग सिक्किम का एक छोटा-सा पहाड़ी कस्बा है। यह गंतोक से

यूमथांग के बीच पड़ाव है। जहाँ अधिकतर लोगों की जीविका का साधन पहाड़ी

आलू, धान की खेती और दारु का व्यापार है । यद्यपि यह 14000 फीट की ऊँचाई

पर है, लेकिन यहाँ प्रायः हिमपात कम ही होता है। इसका कारण पर्वतीय क्षेत्रों

में बढ़ता प्रदूषण है।

प्रश्न 15. कटाओ भारत का स्विट्जरलैंड है।' इस कथन पर लेखिका

की सहयात्री मणि को क्या आपत्ति थी।

उत्तर―कटाओ सिक्किम का एक अनजान-सा, किन्तु बेहद खूबसूरत स्थान

है। गाइड जितेन ने कहा कि-कटाओ भारत का स्विट्जरलैंड है, तो लेखिका की

सहयात्री मणि ने इस पर आपत्ति की, क्योंकि वह स्विट्जरलैंड घूम चुकी थी । उसने

प्रतिवाद करते हुए कहा कि एक तो स्विट्जरलैंड इतनी ऊंचाई पर नहीं है और दूसरे

वह इतना खूबसूरत नहीं है, जितना कि कटाओ।

प्रश्न 16. क्या कारण था कि लायुंग से कटाओ के बीच सभी यात्री इतने

खामोश हो गए थे कि केवल उनकी साँस लेने की आवाजें ही सुनाई पड़ रही

थीं?

उत्तर―लायुग से कटाओ के बीच का मार्ग इतना दुष्कर, कठिन और घुमावदार

है कि वाहन-चालक को एक-एक इंच का हिसाब रखना पड़ता है। जब लेखिका

और उसके साथी इस रास्ते पर आगे बढ़े तो धुंध हुई थी और हलकी-हलकी बारिश

भी हो रही थी। रास्ते में खतरे के अहसास ने सभी को खामोश कर दिया था।

जितेन लगभग अनुमान से गाड़ी चला रहा था। उस फिसलन और धुंध भरे रास्ते

पर कभी भी कुछ भी घट सकता था। इसलिए सैलानी सारी मस्ती भूलकर दम

साधे खामोश बैठे थे।

प्रश्न 17. कटाओ के अनुपम सौंदर्य से अभिभूत लेखिका क्या सोच रही

थी?

उत्तर―कटाओ का सौंदर्य जादू-जैसा असर कर रहा था । लेखिका को लगा

कि वह प्रकृति को अपनी संपूर्णता में देख रही है। वह एक संपूर्णता को अपने

भीतर भी अनुभव कर रही थी। उसे लगा कि विभोर कर देने वाली उस दिव्यता

के बीच ही हमारे ऋषियों ने वेदों की रचना की होगी। जीवन के सत्यों को खोजा

होगा।' सर्वे सन्तु सुखिनः' का महामंत्र पाया होगा।

प्रश्न 18. “जाने कितना ऋण है हम पर नदियों का, हिम शिखरों

का।"-मणि के इस कथन का क्या भाव है और इससे हमें क्या प्रेरणा मिलती

है?

उत्तर―मणि का यह कथन जीवनदात्री प्रकृति को प्रणाम के समान है। प्रकृति

ने हिम-शिखरों से जल-धारा के रूप में उतरकर नदियों के रूप में हमारी प्यास

बुझाने का प्रबंध किया है। उसका यह उपकार है हम पर । इस कथन से हमें यह

प्रेरणा मिलती है कि हमें प्रकृति के प्रति कृतज्ञता का भाव रखते हुए उसके साथ

छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए और नदियों तथा पर्वतीय अंचलों के प्रति श्रद्धा का भाव

रखते हुए यहाँ प्रदूषण फैलाने से बचना चाहिए।

प्रश्न 19. 'पर्वतीय क्षेत्र के लोगों की आस्था, पर्यावरण-संरक्षण का एक

उपाय है।'-इस कधन पर विचार रखें।

उत्तर―ड्राईवर-कम-गाइड जितेन नार्गे ने बताया कि वे लोग पहाड़, नदी,

झरने......इनकी पूजा करते हैं। उनके अनुसार इनमें देवताओं का वास है। अगर

वे इसे गंदा करेंगे तो मर जाएँगे। यह आस्था वास्तव में पर्यावरण-संरक्षण का एक

उपाय है। यदि पर्वतीय प्रदेशों को लोग पर्वत, नदी या झरनों के प्रति आस्था का

भाव न रखते हुए, यहाँ गंदगी फैलाने लगें तो जल स्रोतों के अपने उद्गम पर ही

प्रदूषित हो जाने के कारण बड़ा खतरा पैदा हो जाएगा।

प्रश्न 20, सिक्किम की राजधानी का सही नाम, इसका अर्थ तथा प्रचलित

नाम बताएँ।

उत्तर―सिक्किम की राजधानी का नाम है-गंतोक । गतीक का स्थानीय भाषा

में अर्थ है-पहाड़ा अंग्रेजी भाषा के प्रभाव के कारण इसे गंगटोंक कहा जाता है। यद्यपि

लेखिका ने पूरे अध्याय में इसी शब्द का प्रयोग किया है। लेकिन यह सही नहीं है।

प्रश्न 21. जितेन नार्गे ने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, वहाँ की

भौगोलिक स्थिति एवं जनजीवन के बारे में क्या महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दी,

लिखिए।                                            [JAC 2017 (A); 2018 (A)]

उत्तर―जितेन नार्गे उस वाहन (जीप) का गाइड-कम-ड्राईवर था, जिसके द्वारा

लेखिका सिक्किम को यात्रा कर रही थीं। जितेन एक समझदार और मानवीय

संवेदनाओं से युक्त व्यक्ति था। उसने लेखिका को सिक्किम की प्रकृति, भौगोलिक

स्थिति तथा जन-जीवन के विषय में अनेक महत्त्वपूर्ण जानकारियाँ दी। उसने बताया

कि सिक्किम बहुत ही खूबसूरत प्रदेश है और गंतोक से यूमथांग की 149 किलोमीटर

की यात्रा में हिमालय की गहनतम पाटियाँ और फूलों से लदी वादियाँ देखने को

मिलती हैं। सिक्किम प्रदेश चीन की सीमा से सटा है। पहले यहाँ राजशाही थी।

अब यह भारत का एक अंग है।

            सिक्किम के लोग अधिकतर बौद्ध धर्म को मानते हैं और यदि किसी बुद्धिस्ट

की मृत्यु हो जाए तो उसकी आत्मा की शांति के लिए एक सौ आठ पताकाएँ फहराई

जाती है। किसी शुभ अवसर पर रंगीन पताकाएँ फहराई जाती हैं। यहाँ लोग बड़े

मेहनती हैं। वे अपनी पीठ पर बंधी डोको (बड़ी टोकरी) में कई बार अपने बच्चे

को भी साथ रखती हैं। यहाँ की स्त्रियाँ चटक रंग के कपड़े पहनना पसंद करती

हैं और उनका परंपरागत परिधान 'बोकू' है।

प्रश्न 22. जितेन नागें की गाइड की भूमिका के बारे में विचार करते हुए

लिखिए कि एक कुशल गाइड में क्या गुण होते हैं ? [JAC 2014 (A); 2017 (A)]

उत्तर―जितेन नार्गे एक कुशल गाइड है। वैसे तो पर्यटक वाहनों में ड्राईवर

अलग और गाइड अलग होते हैं। लेकिन जितेन ड्राईवर-कम-गाइड है। अतः हम

कह सकते हैं कि एक कुशल गाइड को वाहन चलाने में भी कुशल होना चाहिए।

ताकि आवश्यकता पड़े तो वह ड्राईवर की भूमिका भी निभा सके।

        एक कुशल गाइड को अपने क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति तथा विभिन्न स्थानों

के महत्त्व तथा उनसे जुड़ी रोचक जानकारियों का ज्ञान भी होना चाहिए, जैसे कि

जितेन को पता है कि देवानंद अभिनीत 'गाइड' फिल्म (यह अपने समय की अति

लोकप्रिय फिल्म थी) की शूटिंग लोंग स्टाक में हुई थी। इससे पर्यटकों को मनोरंजन

भी होता है और उनकी स्थान में रुचि भी बढ़ जाती है।

    जितेन यद्यपि नेपाली है, लेकिन उसे सिक्किम के जन-जीवन, संस्कृति तथा 

धार्मिक मान्यताओं का पूरा ज्ञान है। वहाँ की कठोर जीवन-स्थितियों से भी वह

भली-भाँति परिचित है। यह किसी कुशल गाइड का आवश्यक गुण है।

     जितेन का सबसे अच्छा गुण है-मानवीय संवेदनाओं की समझ तथा परिष्कृत

संवाद शैली। वह सिक्किम की सुंदरता का गुणगान ही नहीं करता, वहाँ के लोगों

के दुख-दर्द के बारे में लेखिका से बातचीत करता है। उसकी भाषा बड़ी परिष्कृत

और संवाद का ढंग अपनत्व से पूर्ण है, जो किसी गाइड का आवश्यक गुण है।

प्रश्न 23. पठित यात्रा 'यात्रा-वृत्तांत' में लेखिका ने हिमालय के जिन-जिन

रूपों का चित्रण किया गया है, उन्हें अपने शब्दों में लिखिए।

                                                         [JAC 2013 (A); 2015 (A)]

उत्तर―इस यात्रा-वृत्तांत में लेखिका ने हिमालय के पल-पल परिवर्तित होते रूप

को देखा । ज्यों-ज्यों ऊंचाई पर चढ़ते जाएँ हिमालय विशाल से विशालतर होता चला

जाता है। छोटी-छोटी पहाड़ियाँ विशाल पर्वतों में बदलने लगती हैं। वादियाँ चौड़ी

होने लगती हैं, जिनके बीच रंग-बिरंगे फूल मुसकुराते हुए नजर आते हैं। चारों और

प्राकृतिक सुषमा बिखरी नजर आती है । जल प्रपात जलधारा बनकर पत्थरों के बीच

बलखाती-सी निकलती है तो मन को मोह लेती है। हिमालय कहीं हरियाली के

कारण चटक हरे रंग की मोटी चादर-सा नजर आता है, कहीं पीलापन लिए नजर

आता है। कहीं पलास्टर उखड़ी दीवार की तरह पथरीला नजर आता है।

प्रश्न 24. प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर लेखिका

को कैसी अनुभूति होती है?

उत्तर―हिमालय का स्वरूप पल-पल बदलता है। प्रकृति उसे अपना परिचय दे

रही है। वह उसे और सयानी (बुद्धिमान) बनाने के लिए अपने रहस्यों का उद्घाटन

कर रही है। प्रकृति के उस अनंत और विराट स्वरूप को देखकर उसे अनेक

अनुभूतियाँ होती हैं। उसे लगता है जीवन की सार्थकता झरनों और फूलों की भाँति

स्वयं को दे देने में अर्थात् परोपकार में ही है। झरनों की भाँति निरंतर चलायमान रहना

और फूलों की भाँति अपनी महक लुटाना ही जीवन का सच्चा स्वरूप है।

प्रश्न 25. प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को

कौन-कौन से दृश्य झकझोर गए?        [JAC Sample Paper 2009]

उत्तर―प्राकृतिक सौंदर्य के अलौकिक आनंद में डूबी लेखिका को सड़क बनाने

के लिए पत्थर तोड़ती, सुंदर कोमलांगी पहाड़ी औरतों का दृश्य झकझोर गया। उसने

देखा कि उस अद्वितीय सौंदर्य से निरपेक्ष कुछ पहाड़ी औरतें पत्थरों पर बैठी पत्थर

तोड़ रही थीं। उनके हाथों में कुदाल और हथौड़े थे और कइयों की पीठ पर डोको

(बड़ी टोकरी) में उनके बच्चे भी बंधे थे। यह विचार उसके मन को बार-बार

झकझोर रहा था कि नदी, फूलों, वादियों और झरनों के ऐसे स्वर्गिक सौंदर्य के बीच

भूख, मौत, दैन्य और जिजीविषा के बीच जंग जारी है।

प्रश्न 26. सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छटा का अनुभव करवाने

में किन-किन लोगों का योगदान होता है, उल्लेख करें।

                                    [JAC 2011 (A); 2016 (A); 2018 (A)]

उत्तर―सैलानियों को प्रकृति की अलौकिक छय का अनुभव कराने में अनेक

प्रकार के लोगों का योगदान रहता है। सबसे पहले इस दृश्य में उस ट्रेवल की

भूमिका रहती है, जो सैलानियों के लिए स्थान के अनुसार वाहन तथा उनके ठहरने

संबंधी व्यवस्थाएँ करता है। इसके बाद उनके वाहन का चालक तथा परिचालक

भूमिका निभाते हैं, जो उन्हें गंतव्य तक पहुंचाते हैं। फिर उनके गाइड (मार्गदर्शक)

की भूमिका शुरू होती है जो पर्यटन स्थल की जानकारी देता है। पर्वतीय स्थलों

पर कई बार सैलानियों को अपना बड़ा वाहन (बस) छोड़कर जीप जैसा छोटा वाहन

है। प्रायः इन छोटे वाहनों के चालक जितेन नोर्गे की भाँति ड्राईवर-कम-गाइड

होते हैं। इसके अतिरिक्त उनके ठहरने व खाने-पीने की व्यवस्था करने वाले होटल

के कर्मचारी तथा पर्यटक स्थल पर छोटी-छोटी अन्य सुविधाएँ-जैसे बर्फ पर चलने

के लिए लंबे बूट व अन्य जरूरी सामान किराए पर देने वाले दुकानदार तथा

हस्तशिल्प व कलाकृतियाँ बेचने वाले व फोटोग्राफर जैसे लोगों की भूमिका भी

महत्त्वपूर्ण होती है।

प्रश्न 27. “कितना काम लेकर ये समाज को कितना अधिक वापस लौटा

देती हैं।" इस कथन के आधार पर स्पष्ट करें कि आम जनता की देश की

आर्थिक प्रगति में क्या भूमिका है ?

उत्तर―लेखिका ने यह कथन उन पहाड़ी श्रमिक महिलाओं के विषय में कहा

है, जो पीठ पर बँधी डोको (बड़ी टोकरी) में अपने बच्चों को संभालते हुए कठोर

श्रम करती हैं। ऐसा ही दृश्य वह पलामू और गुमला के जंगलों में भी देख चुकी

थी, जहाँ बच्चे को पीठ पर बाँधे पत्तों (तेंदु के) की तलाश में आदिवासी औरतें

वन-वन डोलती फिरती हैं। उसे लगता है कि ये श्रम-सुंदरियाँ 'वैस्ट एट रिपेईंग'

हैं; अर्थात् ये कितना कम लेकर समाज को कितना अधिक लौटा देती हैं। वास्तव

में यह एक सत्य है कि हमारे ग्रामीण समाज में महिलाएँ बहुत कम लेकर समाज

को बहुत अधिक लौटाती हैं। वे घर-बार भी संभालती हैं, बच्चों की देखभाल भी

करती हैं और श्रम करके धनोपार्जन भी करती हैं। यह बात हमारे देश की आम

जनता पर भी लागू होती है। जो श्रमिक कठोर परिश्रम करके सड़कों, पुलों, रेलवे

लाइनों का निर्माण करते हैं या खेतों में कड़ी मेहनत करके अन्न उपजाते हैं; उन्हें

बदले में बहुत कम मजदूरी या लाभ मिलता है। लेकिन उनका श्रम देश की प्रगति

में बड़ा सहायक होता है। हमारे देश की आम जनता बहुत कम पाकर भी देश

की प्रगति में अहम भूमिका निभाती है।

प्रश्न 28. आज की पीढ़ी द्वारा प्रकृति के साथ किस तरह का खिलवाड़

किया जा रहा है। इसे रोकने में आपकी क्या भूमिका होनी चाहिए।

उत्तर―आज की पीढ़ी पहाड़ी स्थलों को अपना विहार-स्थल बना रही है।

वहाँ भोग के नए-नए साधन पैदा किए जा रहे हैं। इसलिए जहाँ एक ओर गंदगी

बढ़ रही है, वहीं दूसरी ओर तापमान में वृद्धि हो रही है। परिणामस्वरूप पर्वत अपनी

स्वाभाविक सुंदरता खो रहे हैं।

इसे रोकने में हमें सचेत होना चाहिए। हमें ऐसा कोई कार्य नहीं करना चाहिए जिससे

पहाड़ों का प्राकृतिक सौंदर्य नष्ट हो, गंदगी फैले और तापमान में वृद्धि हो।

प्रश्न 29. प्रदूषण के कारण स्नोफॉल में कमी का जिक्र किया गया है ?

प्रदूषण के और कौन-कौन से दुष्परिणाम सामने आए हैं, लिखें।

                                                      [JAC Sample Paper 2009]

उत्तर―लेखिका को उम्मीद थी कि उसे लायूंग में बर्फ देखने को मिल जाएगी,

लेकिन एक सिक्कमी युवक ने बताया कि प्रदूषण के कारण स्नोफॉल कम हो गया

है; अत: उन्हें 500 मीटर ऊपर 'कटाओ' में ही बर्फ देखने को मिल सकेगी।

      प्रदूषण के कारण पर्यावरण में अनेक परिवर्तन आ रहे हैं। स्नोफॉल की कमी

के कारण नदियों में जल-प्रवाह की मात्रा कम होती जा रही है। परिणामस्वरूप

पीने योग्य जल की कमी सामने आ रही है। प्रदूषण के कारण ही वायु प्रदूषित हो

रही है। महानगरों में साँस लेने के लिए ताजा हवा का मिलना भी मुश्किल हो रहा

है। साँस संबंधी रोगों के साथ-साथ कैंसर तथा उच्च रक्तचाप की बीमारियाँ बढ़

रही है। ध्वनि प्रदूषण मानसिक अस्थिरता, बहरेपन तथा अनिद्रा जैसे रोगों का

कारण बन रहा है।

प्रश्न 30. 'कटाओ' पर किसी भी दुकान का न होना उसके लिए वरदान है।

इस कथन के पक्ष में अपनी राय व्यक्त कीजिए? [JAC 2012 (C); 2016 (A)]

उत्तर―कटाओ सिक्किम की एक खुबसूरत किंतु अनजान-सी जगह है, जहाँ

प्रकृति अपने पूरे वैभव के साथ दृष्टिगोचर होती है। यहाँ पर लेखक को बर्फ का

आनंद लेने के लिए घुटनों तक के लंबे बूटों की आवश्यकता अनुभव हुई तो उसने

देखा कि वहाँ पर झांगु की तरह ऐसी चीजें किराए पर मुहैया करवाने वाली दुकानों

की कतारें तो क्या, एक दुकान भी न थी। लेखिका को लगा कि कटाओ में किसी

दुकान का न होना भी वहाँ के लिए वरदान है । क्योंकि अगर वहाँ दुकानों की कतार

लग गई तो कटाओ का नैसर्गिक सौंदर्य तो दवेगा ही, स्थानीय आबादी भी बढ़ेगी

और पर्यटकों की भीड़ भी। अंततः वहाँ भी प्रदूषण अपने पाँव पसारेगा । ऐसे में

कटाओ में दुकानों का न होना एक वरदान ही है।

प्रश्न 31. प्रकृति ने जल संचय की व्यवस्था किस प्रकार की है? [JAC 2018 (A)]

उत्तर―प्रकृति ने जल-संचय की बड़ी अद्भुत व्यवस्था की है। प्रकृति सर्दियों

में पर्वत शिखरों पर बर्फ के रूप में गिरकर जल का भंडारण करती है। हिम-मंडित

पर्वत-शिखर एक प्रकार के जल-स्तंभ हैं, जो गर्मियों में जलधारा बनकर करोड़ों

कंठों की प्यास बुझाते हैं। नदियों के रूप में बहती यह जल धारा अपने किनारे बसे

नगर-गाँवों में जल-संसाधन के रूप में तथा नहरों के द्वारा एक विस्तृत क्षेत्र में

सिंचाई करती हैं और अंततः सागर में जाकर मिल जाती हैं। सागर से जलवाष्प

बादल के रूप में उड़ते हैं, जो मैदानी क्षेत्रों में वर्षा तथा पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ के

रूप में बरसते हैं। इस प्रकार 'जल-चक्र' द्वारा प्रकृति ने जल-संचयन तथा वितरण

की व्यवस्था की है।

प्रश्न 32. देश की सीमा पर बैठे फौजी किस तरह की कठिनाइयों से जूझते

हैं ? उनके प्रति हमारा क्या उत्तरदायित्व होना चाहिए?

उत्तर―देश की सीमा पर बैठे फौजी प्रकृति के प्रकोप को सहन करते हैं। जाड़ों

में हाड़ कँपा देने वाली सर्दी में जब तापमान शून्य से 20-25 सैल्सियस नीचे चला

जाता है तो भी वे सीमा पर डटे रहते हैं। देशवासी चैन की नींद सो सकें, इसलिए

वे रात-रात भर जागते हैं। तपते रेगिस्तान में धूल-भरे तूफानों के बीच वे

भूखे-प्यासे अपने कर्तव्यों की पूर्ति करते हैं। आवश्यकता पड़े तो वे सीने पर शत्रु

की गोली भी खाते हैं।

       देश के रक्षक फौजियों के प्रति हमारा दायित्व है कि हम उनके प्रति स्नेह तथा

सम्मान का भाव रखते हुए उन्हें हर प्रकार की सहायता दें। उनके परिवारों को किसी

प्रकार का कष्ट या अभाव न हो, उनके बच्चों की शिक्षा भली-भाँति हो सके, इस

बात का ध्यान रखना हमारा ही उत्तरदायित्व है।

प्रश्न 33. हिमालय के अभिभूत कर देने वाले सौंदर्य का सैलानियों की

मनःस्थिति पर क्या प्रभाव पड़ा? लेखिका की स्थिति अन्य सैलानियों से किस

प्रकार भिन्न थी?

उत्तर―हिमालय की गहरी घाटियों और चौड़ी वादियों के बीच विखरी सुंदरता

को निहारते हुए सैलानी पुलकित होकर गाने लगे थे-"सुहाना सफर और ये मौसम

हँसी।" इस सुंदरता ने लेखिका को भी अभिभूत कर दिया था। लेकिन वह पुलकित

होकर गाने की अपेक्षा मौन थी। किसी ऋषि की भांति शांत । उसके मन के भीतर

कुछ बूँद-बूँद पिघलने लगा था। वह उस असीम सुंदरता को हमेशा के लिए अपने

मन में बसा लेना चाहती थी। कभी वह आसमान छूते पर्वत-शिखरों को देखती

और कभी तिस्ता नदी को, जिसका सौंदर्य अपनी पराकाष्ठा के साथ इसके समक्ष

था। वह इतनी खूबसूरत नदा पहली बार ही देख रही थी। मन के भीतर रोमांच

भी था और पुलकन भा, लेकिन वह मौन थी। अन्य सैलानी 'सेवन सिस्टर्स वॉटर

फॉल' की तसवीरें उतारने में मशगूल थे, लेकिन लेखिका नीचे जलधारा में बिखरे

पड़े भारी-भरकम पत्थरों पर बैठकर ऊँचाई से गिरते झरने के संगीत के साथ आत्मा

के संगीत को सन रही थी। उसे लग रहा था कि यह झरना जीवन की अनंतता

का प्रतीक है। उन अद्भुत अनूठे क्षणों में उसे अपने भीतर जीवन की शक्ति का

अहसास हो रहा था। उसे लग रहा था उसके मन की सारी कलुषता, सारी

तामसिकता उस पावन जल धारा के साथ बह गई है।

प्रश्न 34. कटाओ की सुंदरता का चित्र अपने शब्दों में खींचते हुए बताएँ

कि सैलानियों ने वहाँ कैसे आनंद लिया?

उत्तर―कटाओ में बर्फ ताजा-ताजा गिरी थी। दूर से ऐसे लग रहा था मानो

किसी ने पहाड़ों पर पाउडर छिड़क दिया हो । कहीं-कहीं यह पाउडर बची रह गई

थी और कहीं धूप में बह गई थी। बर्फ से ढके पहाड़ और आसमान एक हो

रहे थे। सैलानी कटाओ पहुंचे तो हलकी-हलकी बर्फ गिरने लगी। एकदम

महीन-महीन । इस हिमपात का आनंद लेने के उद्देश्य से ही वे इतना कठिन रास्ता

तय करके यहाँ तक आए थे। खुशी के मारे वे कूदने से लगे । वे बर्फ पर लेट-लेट

कर इन हसीन लम्हों को कैमरों में कैद करने लगे।

    लेखिका का मन बर्फ पर लेटकर उस जन्नत का आनंद लेने को कर रहा था,

लेकिन ऊँचे जूते न होने के कारण उसे अपनी इच्छा को दबाना पड़ा। उसे यह

क्षण किसी संपूर्णता का क्षण लग रहा था। विभोर कर देने वाली उस दिव्यता के

बीच, वह यही सोच रही थी कि इसी दिव्यता के बीच हमारे ऋषियों ने 'सर्वे सन्तु

निरामया' की कामना की होगी। सचमुच वह पावन सौंदर्य बड़े-से-बड़े अपराधी

को भी करुणा का अवतार बनाने की क्षमता रखता है।

प्रश्न 35. 'एवर वंडर्ड टू डिफाइंड डेथ टू बिल्ड दीज रोड्स' (आप

ताज्जुब करेंगे पर इन रास्तों को बनाने में लोगों ने मौत को झुठलाया

है।)―इस कथन के आलोक में पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क निर्माण में आने वाली

बाधाओं पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर―पर्वतीय क्षेत्रों में सड़क-निर्माण का कार्य बड़ा कठिन है। यह

सीधे-सीधे मौत को चुनौती देने के समान है। लेकिन फिर भी जिंदगी और मौत

के इस संघर्ष में जीत जिंदगी की होती है। इसी बात की गवाही वे बोर्ड देते हैं,

जिन पर लिखा है-'एवर वंडर्ड टू डिफाइंड डैथ टू बिल्ड दीज रोड्स' अर्थात्

आपको जानकर हैरानी होगी कि इन सड़कों को बनाने में लोगों ने मौत को

हराया है।

      पर्वतों की सीधी चढ़ाई पर आदमी के लिए चढ़ना ही मुश्किल है तो वहाँ किसी

वाहन का जा पाना तो असंभव ही है लेकिन आदमी की अदम्य लगनशीलता पहाड़ों

में भी रास्ता बनाती है। पहाड़ों में रास्ता बनाने के लिए पहले डायनामाइट लगा

कर विस्फोट से चट्टानों को उड़ा दिया जाता है। फिर बड़े-बड़े पत्थरों को

तोड़-मरोड़कर एक आकार के छोटे-छोटे पत्थरों में बदला जाता है; ये पत्थर वर्षा

या मौसमी बदलाव के कारण सड़कों पर न आ गिरें और दुर्घटना का कारण न

बनें, इसके लिए इन पर लोहे की जाली बिछाकर इन्हें लंबी पट्टी का आकार दिया

जाता है। जो काटे गए रास्तों पर बाड़े की तरह बिछी रहती हैं। यह बड़ा ही कठिन

कार्य है। यहाँ पल-पल सावधानी बरतनी होती है। जरा-सी चूक होते ही व्यक्ति की

सीधे पाताल-समाधि हो सकती है। इसके अतिरिक्त मौसम की भीषणता और

विस्फोटों से होने वाले स्खलन भी सिर पर खतरे की तरह मैंडराते रहते हैं । डायनामाइट

से विस्फोट होने के बाद धक्के से बाहर आते पत्थरों की चोट या संकरे रास्तों के

किनारे पाँव फिसलने से कई बार मजदूरों की जान चली जाती है, पर फिर भी मौत

को झुठलाकर आदमी आगे बढ़ता ही रहता है। यह अलग बात है कि इन रास्तों को

बनाने में कितने ही जीवन अपनी मियाद से पहले ही खत्म हो जाते हैं।

प्रश्न 36. 'मेरे लिए यह यात्रा एक खोज-यात्रा थी'-लेखिका के इस

कधन की तथ्यात्मक विवेचना कीजिए।

उत्तर―गंतोक से यूमथांग और आगे कटाओ तक की यात्रा लेखिका के लिए

एक खोज-यात्रा थी। खोज-यात्रा वैसे तो उसे कहा जाता है, जिस यात्रा में व्यक्ति

नए-नए अपरिचित स्थलों, या यापुओं की खोज करता है। लेकिन लेखिका ने

मानसिक धरातल पर अनेक ऐसे स्थलों की खोज की जिनसे वह सर्वदा अपरिचित

थी। प्रकृति के ऐसे अद्भुत सौंदर्य और उसकी सम्मोहक शक्ति को तो लेखिका

ने पहली बार अनुभव किया ही; इसी यात्रा में लेखिका को पर्वतीय क्षेत्र में लोगों

की जिजीविषा (संघर्षपूर्ण जीवन) से भी साक्षात्कार हुआ। उसने देखा कि डोको

'बड़ी टोकरी) में अपने बच्चे को पीठ पर संभाले किस प्रकार पहाड़िन उन रास्तों को

बनाने के लिए पत्थर तोड़ रही थी; जिन रास्तों से होकर वह हिमशिखरों का सौंदर्य

निहारने जा रही थी। इन रास्तों को बनाने में कितने ही जीवन अपनी मियाद से पहले

ही पूर्ण हो गए थे। किस प्रकार उस भीषण ठंड में हमारे फौजी दिन-रात देशका

रक्षा में तैनात थे। इन रक्षकों ने अपना वर्तमान देशवासियों के उज्ज्वल भविष्य के लिए

कुर्बान कर दिया है।

    पर्वतों की नीरवता और सौंदर्य ने लेखक को हमारे ऋषियों की उस मन:स्थिति

से भी अवगत करवाया था। जिस मनःस्थिति में उन्होंने प्रकृति की अखंडता का

साक्षात्कार करते हुए 'सर्वे भवन्तु सुखिन:' का महाजाप किया था। प्रकृति का संदेश

ही है-कल्याणार्थ स्वयं को दे दो। निरंतर बहते झरने; खिलते फूल, हिममंडित पर्वत

शिखर पल-पल यही संदेश देते हैं कि जीवन की सार्थकता स्वयं को दे देने में है।

      इन तथ्यों, सत्यों और अनुभूतियों से अवगत होने के कारण ही लेखिका की

दृष्टि में उसकी यह यात्रा एक खोज-यात्रा थी।

प्रश्न 37.आशय स्पष्ट कीजिए―

(क) जीवन का आनंद है यही चलायमान सौंदर्य ।

उत्तर―गंतोक से यूमथांग की चढ़ाई चढ़ते हुए लेखिका ने प्रकृति की अनुपम

छवियों को देखा । हिमालय का रूप पल-पल बदल रहा था। नजरों की छोर तक

सुंदरता ही सुंदरता बिखरी पड़ी थी। सामने सतत प्रवाहमान झरने थे। नीचे घाटी

में वेग से बहती तिस्ता नदी । सिर पर मंडराते बादल, आँखों के आगे कभी मद्धिम

तो कभी गहरी होती धुंध और इनके बीच लहलहाते फूल । ये सब आनंद की अनुभूति

करवा रहे थे तो इसलिए कि इनमें एक गति थी। इनकी गति ही आनंद का स्रोत

थी। यदि यह गति न हो तो बदलाव भी नहीं होगा। सब कुछ जैसे ठहर-सा जाएगा;

ऐसे में आनंद कहाँ होगा?

(ख) मातृत्व और श्रम-साधना साथ-साथ ।

उत्तर―पर्वतों के अनंत सौंदर्य के बीच लेखिका ने देखा कि कुछ स्त्रियाँ

सड़क-निर्माण के कार्य के लिए पत्थर तोड़ रही थीं। उनमें से कुछ की पीठ पर

बंधी डोको (बड़ी टोकरी) में उनके शिशु भी थे। वे पूरी तन्मयता से पत्थरों पर

कुदाल अथवा हथौड़े चला रही थीं। इस प्रकार वे जीविका हेतु श्रम-साधना भी

कर रही थीं और साथ में माँ के कर्तव्य का निर्वाह भी कर रही थी।

(ग) वह सारा खंडहर ताजमहल बन गया

उत्तर―स्वर्गिक सौंदर्य के बीच उन सम्मोहक दृश्यों से निरपेक्ष पर्वतीय महिलाएँ

अपने जीवन-संघर्ष में जुटी पत्थर तोड़ रही थीं। उन्हें भूख और दैन्य से इस प्रकार

लड़ते देख लेखिका की संवेदना जाग गई । उनका मन भर-सा आया; लेकिन तभी

वे युवतियाँ किसी बात पर खिलखिलाकर हँस पड़ी । लेखिका को लगा कि जैसे

वह सारा खंडहर ताजमहल बन गया हो अर्थात् दुख-दर्द, दैन्य, भूख अभाव और

संघर्षों के बीच भी इनकी हँसी जीवित है। यह हंसी ही ताजमहल है जो खंडहर

रूपी अभावों से पूर्ण उनके जीवन में शेष है। यह हँसी ही उनके सारे अभावों

के बावजूद उन्हें ऐसा सौंदर्य प्रदान करती है । हजार खंडहरों के बावजूद ताजमहत

पर हम गर्व कर सकते हैं तो उन श्रम-साधिकाओं की हँसी भी गर्व आनंद प्रदान

करती है।

(घ) प्रकृति जैसे मुझे सयानी बनाने के लिए जीवन रहस्यों का उद्घाटन

करने पर तुली थी।

उत्तर―हिमालय का पल-पल परिवर्तित होता सौन्दर्य और लेखिका को

विमोहित कर रहा था, दूसरी और उसे अनेक जानकारियाँ भी मिल रही थीं। प्रकृति

के अनेक ऐसे रहस्य उसके सामने खुलते जा रहे थे, जिनसे वह अब तक अनजान

थी। इससे पहले जो बातें उसे आश्यर्च में डालती थीं, आज उसके समक्ष उनका

भेद उजागर हो रहा था। उसे यही लग रहा था कि प्रकृति उस पर मेहरबान होकर

उसे रहस्यों से परिचत करवा रही है।

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