श्री रामचरित मानस (लंकाकाण्ड) - Ram Charit Manas (Lankakand) in Hindi- Page 2/13 Show
लंका सिखर उपर आगारा। अति बिचित्र तहँ होइ अखारा॥ दोहा : सुनु सर्बग्य सकल उर बासी। बुधि बल तेज धर्म गुन रासी॥ नाच गान का अखाड़ा देख रहे रावण की सारी सभा रावण के छत्र मुकुट और मंदोदरी के कर्णफूल गिरने को क्या मान रही है?भावार्थ:- रावण ने सिर पर मेघडंबर (बादलों के डंबर जैसा विशाल और काला) छत्र धारण कर रखा है। वही मानो बादलों की काली घटा है। मंदोदरी के कानों में जो कर्णफूल हिल रहे हैं, हे प्रभो! वही मानो बिजली चमक रही है॥
लंका के परकोटे के कँगूरों पर बलवान् और रणधीर राक्षस कैसे शोभित हो रहे हैं मानो सुमेरु के शिखरों पर बादल बैठे हों?भावार्थ:-वे परकोटे के कँगूरों पर कैसे शोभित हो रहे हैं, मानो सुमेरु के शिखरों पर बादल बैठे हों। जुझाऊ ढोल और डंके आदि बज रहे हैं, (जिनकी) ध्वनि सुनकर योद्धाओं के मन में (लड़ने का) चाव होता है॥1॥ * बाजहिं भेरि नफीरि अपारा। सुनि कादर उर जाहिं दरारा॥
दिव्य अनुपम और तेज के पुंज तेजोमय रथ किसका था?2॥ भावार्थ:- उस दिव्य अनुपम और तेज के पुंज (तेजोमय) रथ पर कोसलपुरी के राजा श्री रामचंद्रजी हर्षित होकर चढ़े।
लंका जाते समय कुछ वानर आकाश मार्ग से क्यों उड़ने लगे क्योंकि?सेना सहित श्री राम का समुद्र पार उतरना
प्रभु श्री राम की आज्ञा पा कर सेना चली. वानर सेना की विपुलता को कौन कह सकता है? सेतु बंध पर जब भीड़ अधिक हो गई तो कुुछ वानर आकाश मार्ग से उड़ने लगे और कुछ जलचर जीवों के पर चढ़कर पार जा रहे हैं.
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