आदिवासी का फुल फॉर्म क्या है? - aadivaasee ka phul phorm kya hai?

आधुनिक भारत में आदिवासी शब्द के मायने और निहितार्थ

मानव विकास के क्रम में हर जाति, संप्रदाय, धर्म, एथेनिक वर्ग के लोग किसी न किसी कबीलाई समूह से ही विकसित हुए हैं। यानी सभी जाति, धर्म के लोग आदिवासी जीवन के कार्यकाल से गुजरे हैं। इतिहास साक्षी है कि सबसे पहले आदिवासी से सभ्य नागरिक बनने के प्रमाण सिंधु घाटी सभ्यता (हड़प्पा और मोहनजोदड़ाे) से मिले हैं और यह भी सिद्ध हो चुका है कि सिंधु घाटी सभ्यता यहां के मूल निवासियों और जनजातियों की एक विकसित शहरी सभ्यता थी।

आदिवासी का फुल फॉर्म क्या है? - aadivaasee ka phul phorm kya hai?

आज के तथाकथित सभ्य समाज में जनजातियों को एक अलग नस्ल के रूप में देखा जाता है, जबकि यह दृष्टिकोण सही नहीं है। भले ही इन जनजातियों ने विकास की पहली किरण सबसे पहले देखी। दुनिया को विकसित सभ्यताएं दीं। हजारों वर्षों तक मध्य भारत में सत्ता संभाली। भाषा-संस्कृति के मामले में भी बहुत आगे रहीं। लेकिन, आज भी भारत की जनजातियों (ट्राइब्स) को आदिवासी कहा जाता है। -(कातुलकर 2018)। आज इन जनजातियों (ट्राइब्स) को जिस तरह आदिवासी कहकर अपमानित किया जाता है, वह बहुत ही चिंतनीय विषय है।

भारत का संविधान भी आदिवासी या आदिम जाति शब्द का प्रयोग न करके अनुसूचित जनजाति या ‘शेड‍्यूल्ड ट्राइब्स’ शब्द का प्रयोग करता है। जनजातियों के लिए चाहे जिस भी नाम का प्रयोग किया जाए, पर यह सच है कि ब्रिटिश-काल तक इनकी हालत बहुत दयनीय हो चुकी थी और इनके गौरव और सम्मान पूरी तरह नष्ट हो चुके थे। -(कातुलकर, 2018)

आदिवासी का फुल फॉर्म क्या है? - aadivaasee ka phul phorm kya hai?
समृद्ध रही है अनुसूचित जनजातियों की संस्कृति : पारंपरिक पोशाक में युवा

भारत सरकार ने इन्हें भारत के संविधान की पांचवीं अनुसूची में ‘अनुसूचित जनजाति’ के रूप में मान्यता दी है और अनुसूचित जातियों के साथ ही इन्हें एक ही श्रेणी अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत रखा है, जो कुछ सकारात्मक कार्यवाही के उपायों के लिए पात्र हैं। -(मीनाराम लखन, 2010)

हम जानते हैं कि भारत की जनसंख्या का एक बड़ा हिस्सा जनजातियों का है। जनजातीय कार्य मंत्रालय (भारत सरकार) के मुताबिक, जनजातियों की संख्या, 1961 की जनगणना के अनुसार, 3 करोड़ थी; जो अब बढ़कर 10.5 करोड़ (2011 में हुई जनगणना के अनुसार) हो चुकी है। यानी आज भारत की आबादी के 8.5 प्रतिशत से ज्यादा लोग जनजातीय समुदाय से हैं। -(चन्द्रमौली, 2013)

यह भी पढ़ें : प्रकृति पर केंद्रित हैं असुरों की परंपराएं व गीत

जनजातीय कार्य मंत्रालय का गठन अक्टूबर 1999 में भारतीय समाज के सबसे वंचित वर्ग अनुसूचित जनजाति (अजजा) के एकीकृत, सामाजिक-आर्थिक विकास के समन्वित और योजनाबद्ध उद्देश्य को ध्यान में रखते हुए किया गया था। -(जनजातीय कार्य मंत्रालय, 2018)

धरती पर सबसे पहले सभ्य होने वाली यही जन-जातियां ही थीं। लेकिन, विडंबना देखिए कि उनके बाद सभ्यता का मुंह देखने वाली जातियां आज उन्हें आदिवासी कहने लगी हैं और अपने आपको सभ्य समाज का लंबरदार समझने लगी हैं। बात केवल यहीं तक सीमित होती, तब भी गनीमत थी। लेकिन, अब खुद ट्राइब्स भी अपने आपको आदिवासी समझते हैं और गर्व से खुद को आदिवासी कहलवाना पसंद करते हैं, जो कि बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है।

वह समाज, जो कभी अपने को गर्व से कोया वंशी या कोयतोड़ या कोइतूर (धरती की कोख से पैदा होने वाला) कहता था; आज दूसरी संस्कृतियों से प्रभावित होकर अपनी पहचान खो चुका है और दूसरों द्वारा थोपे गए अपमानजनक संबाेधन को ढो रहा है। -(कंगाली, 2011)

आदिवासी का फुल फॉर्म क्या है? - aadivaasee ka phul phorm kya hai?
सोहराय कला : अपने घर की दीवारों पर चित्र बनाती महिलाएं

अब जब गुलाम ही अपने आपको गुलाम समझे और गुलामी में ही आनंद की अनुभूति करे, तो उसको गुलामी से मुक्ति दिला पाना संभव नहीं और आज कमोबेश कुछ ऐसा ही भारत की जनजातियों के साथ हो रहा है।

वैसे तो जनजातियों के संबाेधन के लिए बहुत सारे शब्द प्रयोग में लाए जाते हैं, जैसे- मूलनिवासी, देशज, बनवासी, गिरिवासी, गिरिजन, जंगली, आदिम, आदिवासी इत्यादि। लेकिन, इन सबमें आदिवासी शब्द बहुत ही नकारात्मक और अपमानजनक है और इस लेख में इसी शब्द की व्याख्या और भावार्थ पर चर्चा की गई है।

सामान्यत: आदिवासी शब्द ‘प्राचीन-काल से निवास करने वाली जातियों’ के लिए प्रयोग किया जाता है। आदिवासी शब्द आदि और वासी दो शब्दों से मिलकर बना है, जिसका अर्थ अनादि-काल से किसी भौगोलिक स्थान में वास करने वाला व्यक्ति या समूदाय होता है। -(खर्टे, 2018)

भारतीय पौराणिक और धार्मिक ग्रंथों में इन्हें अत्विका और वनवासी भी कहा गया है। महात्मा गांधी ने आदिवासियों को गिरिजन (पहाड़ पर रहने वाले लोग) कहकर पुकारा है। -(मीना, और मीना 2018)

यह भी पढ़ें – महिषासुर विमर्श : गोंड आदिवासी दर्शन और बहुजन संस्कृति

आदिवासी शब्द किसी भी जनजातीय भाषा में नहीं पाया जाता और न ही कभी प्राचीन-काल में प्रयोग हुआ है। किसी भी प्राचीन ग्रंथ- वेद, पुराण, संहिता, उपनिषद, रामायण, महाभारत, कुरआन, बाइबल आदि में कहीं भी आदिवासी शब्द नहीं मिलता। इस शब्द का प्रचलन 20वीं शताब्दी के आरंभ में मिलता है और हिंदी और संस्कृत में सामान रूप से प्रयोग होता है।

फ़ैलन के शब्दकोष में न होने से यह माना जा सकता है कि उस वक्त (1879 में) यह शब्द आम प्रचालन में नहीं आया था। 1936 के आते-आते इस शब्द ने हिंदी चेतना में एक अलग जगह बना ली होगी। तभी रसाल ने इसे अपने शब्दकोष में जगह दी होगी। मालूम होता है कि यह शब्द अंग्रेजी शब्द एबाेरिजिनल का अनुवाद करके बनाया हुआ शब्द है। पिछले कुछ दशकों में इस शब्द को लेकर एक बहस छिड़ी हुई है। सोशल मीडिया के आ जाने से तो इस शब्द का प्रचार-प्रसार कुछ ज्यादा ही होने लगा है।

आदिवासी शब्द न तो संवैधानिक है, न आधिकारिक और न ही सम्मानजनक है। भारतीय संविधान के मुताबिक, इस शब्द का इस्तेमाल किसी भी सरकारी दस्तावेज में नहीं होना चाहिए, लेकिन कुछ प्रादेशिक सरकारें और संगठन जान-बूझकर इस शब्द को बढ़ावा दे रहे हैं और एक बड़ी जनसंख्या को गुमराह कर रहे हैं।

अगर आदिवासी शब्द के शाब्दिक अर्थ पर जाएंगे, तो आपको कुछ भी गलत नहीं लगेगा। लेकिन, जैसे ही आप इस शब्द के भावार्थ और इससे जुड़ी हुई व्याख्याओं को देखेंगे, तब आप पाएंगे कि यह शब्द अपने साथ बहुत ही विकृत मानसिकता और घृणा का भाव लिए हुए है। जब कोई किसी को आदिवासी बोलता है, तो उसके दिमाग में एक बर्बर, असभ्य, नंग-धड़ंग, जंगली, अनपढ़-गंवार, काले-कलूटे व्यक्ति की छ्वि उभरती है। आदिवासी शब्द से नहीं उसके साथ उभरने वाली इस विकृत छवि से पीड़ा होती है। दुख होता है और असह्य वेदना का बोध होता है; और यह महसूस होता है कि क्या जनजातियाें के लाेग किसी अन्य ग्रह से आए हुए कोई असामान्य प्राणी हैं। …और क्या इन्हें सामान्य इंसान की तरह से सम्मान और इज्जत नहीं मिल सकती?

यह भी पढ़ें : जयपाल सिंह मुंडा : हॉकी चैंपियन और बेजुबानों की जुबान भी

आज हम आदिवासी का प्रतिबिंबित दृश्य चोर, लुटेरा, गंवार, अनपढ़, अर्धनग्न मनुष्य की तरह लेते हैं। क्योंकि टेलीविजन, मीडिया चैनलों, साहित्यों और फिल्मों में हमें ऐसे ही जान-बूझकर दर्शाया जाता है। -(खर्टे, 2018)। आज भी उत्तर और मध्य भारत में आदिवासी शब्द गाली के रूप में प्रयोग होता है।

आदिवासी शब्द को लेकर साहित्यकारों, इतिहासकारों और यहां तक कि सामान्य नागरिकों ने भी जिस तरह का चित्र उकेरा है, वह बहुत ही खतरनाक और शर्मनाक है तथा खूबसूरत जनजातियों की गौरवशाली सभ्यता पर काला धब्बा है। दुःख तो इस बात का है कि खुद जनजातीय या ट्राइब्स लोग भी इस शब्द से चिपके रहना चाहते हैं। वह भी यह जानते हुए कि यह शब्द अपमानजनक या नकारात्मक भाव लिए हुए है।

अब प्रश्न उठता है कि अगर यह शब्द इतना घृणित, अपमानजनक और नकारात्मक है, तो फिर लोग इस शब्द का इस्तेमाल क्यों करते हैं? यह जानते हुए भी कि आदिवासी शब्द प्रयोग करना उचित नहीं है। फिर भी लोग इस शब्द को क्यों नहीं छोड़ पाते? एक सामान्य अध्ययन के दौरान मैंने इस शब्द को त्याग न कर पाने के कारणों को जब जानना चाहा, तो बहुत ही आश्चर्यचकित कर देने वाली जानकारी सामने आई।

फ़ेसबुक, व्हाट्सअप, ऑनलाइन वेबसाइट और सोसायटीज एक्ट के तहत पंजीकृत संगठनों, जिनमें आदिवासी शब्द जुड़ा हुआ है; ऐसे कुल 156 संगठनों से संपर्क किया गया और पूछा गया कि क्या आप आदिवासी शब्द के नकारात्मक भाव से परिचित हैं, तो 80 प्रतिशत से अधिक लोगों ने ‘हां’ कहा। उनका कहना था कि यह शब्द गलत है और हमें नीचा दिखाने के लिए प्रयोग किया जाता है। जब उनसे आगे पूछा गया कि आप इस शब्द को हटा क्यों नहीं देते? तो लोगों ने ऐसे कारण बताए, जो बहुत ही बचकाने और हास्यास्पद हैं। आदिवासी शब्द को न छोड़ पाने के कारण, जो लोगों और संगठनों ने दिए, वो इस प्रकार हैं –

  1. जब संस्था, संगठन और ग्रुप के नाम रखे थे, तब आदिवासी शब्द की जानकारी नहीं थी। चूंकि अब संगठन/संस्था/ग्रुप इस नाम से प्रसिध्द हो गया है, तो अब उसे कैसे बदलें?
  2. नाम बदलना तो चाहते हैं, लेकिन रजिस्ट्रेशन आॅफिस के पचड़े में पड़ने के डर से ऐसा नहीं कर पा रहे हैं।
  3. हमारी एक पहचान बन गयी है आदिवासी शब्द से, और अब उससे निकलना मुश्किल हो रहा है।
  4. जनजातियां कई जातियों, जैसे- भील, गोंड, उरांव, मुंडा, संथाल, कोरकू, सहरिया, मीना इत्यादि में बंटी हुई हैं। इन्हें एक साथ लाने लिए यह शब्द ठीक है।
  5. बाबा-दादा के जमाने से सुनते आए हैं, तो लगता है कि सही ही होगा।
  6. कभी किसी ने बताया नहीं कि आदिवासी शब्द इतना खराब है।
  7. सब लोग कहते हैं, तो हम भी मान लेते हैं कि हम आदिवासी हैं।
  8. और कोई बात नहीं यह शब्द जरा आसान है और बोलने में कोई परेशानी नहीं होती। जनजाति या देशज या ट्राइब बोलने में थोड़ी मुश्किल होती है और कुछ खास नहीं।

राजनीतिक दलों और संगठनों की परेशानी कुछ अलग ही तरह की है। उन्हें बस भीड़ चाहिए। उन्हें जनजातियों के सम्मान और अस्मिता से कुछ लेना-देना नहीं। वे पूरे जनजातीय समुदाय को बस एक वोट बैंक के रूप में देखते हैं। आदिवासी के नाम पर ही उन्होंने अब तक जनजातियों को इकट्ठा किया हुआ है और बड़े-बड़े सपने दिखा रखे हैं। राजनीतिक दलों और व्यक्तियों का मानना है कि आदिवासी शब्द सभी को एक साथ जोड़ता है। अगर ऐसा है, तो क्या जनजाति या ट्राइब्स शब्द इन सबको अलग करते हैं? जब उनसे पूछ जाता है कि जनजातियों को ट्राइबल या शेड्यूल कास्ट या जनजाति के रूप में भी तो इकट्ठा किया जा सकता है, तो वे बगलें झांकने लगते हैं और बेबुनियाद बहाने बनाने लगते हैं।

क्या जनजातियों को लेकर इस देश के किसी वर्ग विशेष को कोई दुर्भावना या कोई परेशानी है? जनजातीय लोगों को ये तथाकथित सभ्य समाज सम्मान क्यों नहीं देना चाहता? उन्हें आज भी बर्बर, अनपढ़, गंवार, कुरूप, जंगली बनाने पर क्यों तुला हुआ है? ऐसा करने पर उन्हें क्या हासिल हो सकता है? यह प्रश्न समाज के सामने बार-बार उठंगे और तब तक उठते रहेंगे, जब तक हम उन्हें समाज में सम्मान और बराबरी की नजर से नहीं देखेंगे।

आइए, अब इस बात को एक दूसरे उदाहरण से समझने की कोशिश करते हैं। आप खदानों से अयस्क को निकालते हैं, फिर उसको संशोधित करते हैं फिर लोहा बनता है और फिर पुनः संशोधित करके स्टील बनाते हैं और फिर उससे स्टील से पाइप या उससे निर्मित अन्य वस्तुएं बनाते हैं। क्या कभी उस स्टील की वस्तु को अयस्क या लोहे की बनी हुई चीज कहते हैं? नहीं आप उसे स्टील ही कहते हैं। लेकिन, आज जनजातीय व्यक्ति चाहे कितना भी शिक्षित, सुसंस्कृत, खूबसूरत या अच्छे कपड़े पहने हो, उसे आज भी यह लोग आदिवासी ही कहते हैं। ऐसा क्यों? आइये, देखते हैं आदिवासी और जनजाति में क्या फर्क है:-

तालिका 1 : आदिवासी और अनुसूचित जनजाति/ट्राइब्स में मूलभूत अंतर

क्रं संविशेषताएंआदिवासीअनुसूचित जनजाति/ट्राइब्स
1.         शाब्दिक अर्थ आदिकाल से निवास करने वाली जातियां अनुसूचित क्षेत्रों सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़ी जातियां
2.         समानार्थी शब्द असुर, राक्षस, पिशाच, आदिम, जंगली, वनवासी, गिरिजन मूलनिवासी, देशज
3.         जनमानस में छवि असभ्य और बर्बर सभ्य शिक्षित और सौम्य नागरिक
4.         धर्म अविकसित प्रकृति पूजक विकसित धर्म जैसे कोया पुनेम
5.         दर्शन किसी खास दर्शन का विकास नहीं कोयपुनेमी दर्शन (मूंद-शूल-सर्री का सिद्धांत)
6.         भाषा कोई लिखित या विशेष भाषा नहीं केवल इशारों से या हू लाला...... झिंगा लाला ......... जैसे शब्दों का प्रयोग पूर्ण विकसित, परिष्कृत और विशिष्ट भाषाओं के स्वामी (गोंडी, भीली, संथाली, बोड़ो, कुड़ुक, मुंडारी इत्यादि)
7.         निवास स्थान जंगलों, बीहड़ों, कंदराओं और गुफाओं में अपने निवास क्षेत्रों, गांव और शहरों में स्वनिर्मित भवनों घरों और बस्तियों में
8.         शिक्षा अशिक्षित और विद्यालयों से दूर अनौपचारिक ज्ञान और विवेक रखने वाले तथा विद्यालयों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों में पढे-लिखे,

गोटुल का महान दर्शन मानने वाले

9.         राजनीतिक  चेतना लगभग शून्य,  मुख्य धारा से कटा हुआ राजनीतिक रूप से समृद्ध और एक विकसित राजनीतिक चेतना के प्रवर्तक और वाहक
10.     पहनावा नंग्न, अर्धनग्न या पत्ते लपेटने वाले या जानवरों की खाल और पेड़ों की छाल से तन ढकने वाले अपनी अपनी सांस्कृतिक और सामाजिक व्यवस्था के अनुरूप सुंदर वेषभूषा, पारंपरिक वस्त्र और आभूषण धारण करने वाले
11.     खान-पान कंद-मूल, फल-फूल, पत्तियां और कच्चा मांस खाने वाले सामान्य रूप से उपलब्ध सभी प्रकार के भोज्य पदार्थों को पकाकर या कच्चा खाने वाले, विकसित भोजन प्रणाली
12.     साहित्य कोई विकसित साहित्य नहीं किताबों, पुस्तकों, पत्र-पत्रिकाओं में अपनी भाषा और सामाजिक चेतनाओं को व्यक्त करने वाले, बेहतरीन लिखित और अलिखित साहित्य संपदा के मालिक
13.     संगीत अविकसित बेढंगे ढंग से चिल्लाना और नाचना विशेषरूप से समृद्ध नृत्य, गीत, वादन शैली
14.     कला गुफाओं और कंदराओं में लकीरें और चित्र बनाकर विश्व प्रसिद्ध चित्र कलाओं के जनक
15.     इतिहास कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं मौखिक और लिखित विकसित ऐतिहासिक गाथाएं
16.     निर्माण कला गुफाओं और पेड़ों पर मचान बनाने तक सीमित हवेली, किले, महल, बड़े-बड़े भवनों के स्वामी
17.     वैज्ञानिक समझ अल्प विकसित जीवन के लिए हर महत्वपूर्ण वैज्ञानिक विधियों के जनक और वैज्ञानिक सोच वाले
18.     देश निर्माण में योगदान कुछ खास नहीं राष्ट्र के विकास के हर एक कदम में बराबर के सहभागी

उपरोक्त तालिका में दिए गए अंतरों को देखकर अब आप खुद ही तय कर लीजिए कि आप क्या हैं? अपने सुनहरे भविष्य को सजाने के लिए जनजातियों को अपने गौरवशाली अतीत को देखना पड़ेगा और अपनी अस्मिता, सम्मान, भाषा और इतिहास पर गर्व करना होगा। दूसरों द्वारा दी गई फटी-मैली चादर त्यागकर अपने खूबसूरत वस्त्र पहनने होंगे।


अब वक्त आ गया है, जब पूरा जनजातीय समाज एक होकर संवैधानिक शब्द का प्रयोग करे और उसी के तत्वावधान में संगठित हो और संघर्ष करे। अगर पूरा समाज तय कर ले कि हम आदिवासी शब्द का इस्तेमाल नहीं करेंगे और इस शब्द को बोलने या प्रयोग करने वाले पर मानहानि का मुकदमा ठोकेंगे, तो यह शब्द हमारे आंगन से अपने आप ही गायब हो जाएगा।

संदर्भ :

1. कंगाली, मोती रावण. 2011. गोंडवाना का सांस्कृतिक इतिहास. 3rd ed. Vol. 1. 1 vols. तिरुमाय चंद्रलेखा कंगाली, जयतला रोड नागपूर -4400022.

2. कातुलकर, रत्नेश. 2018. बाबा साहेब डॉ. आंबेडकर और आदिवासी प्रश्न? प्रथम. Vol. 1. सम्यक प्रकाशन 32/3 पश्चिम पूरी, नई दिल्ली -110063.

3. खर्टे, अजय. 2018. आदिवासी कौन हैं!!” Dr. Ajay Kharte (Jay Kharte). 2018. https://jaykharte.blogspot.com/2018/03/blog-post.html.

4.चंद्रमौली, सी. 2013. “Scheduled Tribes in India : As Revealed in Census 2011,” 50.

5.जनजातीय कार्य मंत्रालय. 2018. होम | जनजातीय कार्य मंत्रालय, भारत सरकार.2018. https://tribal.nic.in/hindi/indexh.aspx.

6.मीना, जनक सिंह, and मीनाकुलदीप सिंह. 2018. Bharat Ke Aadiwasi : Chunautiyan Evam Sambhavnayen. Vol. First Edition. Vani Prakashan.

7.मीना, राम लखन. 2010. नेतृत्व विहीन आदिवासी.प्रो. आरएल मीना, दिल्ली विश्वविद्यालय (blog). 2010. http://prof-rlmeena.blogspot.com/2010/07/blog-post_13.html.

(कॉपी संपादन : प्रेम बरेलवी/एफपी डेस्क)


फारवर्ड प्रेस वेब पोर्टल के अतिरिक्‍त बहुजन मुद्दों की पुस्‍तकों का प्रकाशक भी है। हमारी किताबें बहुजन (दलित, ओबीसी, आदिवासी, घुमंतु, पसमांदा समुदाय) तबकों के साहित्‍य, संस्कृति, सामाज व राजनीति की व्‍यापक समस्‍याओं के सूक्ष्म पहलुओं को गहराई से उजागर करती हैं। पुस्तक-सूची जानने अथवा किताबें मंगवाने के लिए संपर्क करें। मोबाइल : +917827427311, ईमेल : 

फारवर्ड प्रेस की किताबें किंडल पर प्रिंट की तुलना में सस्ते दामों पर उपलब्ध हैं। कृपया इन लिंकों पर देखें 

आदिवासी का फुल फॉर्म क्या है? - aadivaasee ka phul phorm kya hai?

दलित पैंथर्स : एन ऑथरेटिव हिस्ट्री : लेखक : जेवी पवार 

महिषासुर एक जननायक

महिषासुर : मिथक व परंपराए

जाति के प्रश्न पर कबीर

चिंतन के जन सरोकार

आदिवासी शब्द का अर्थ क्या है?

आदिवासी शब्द दो शब्दों 'आदि' और 'वासी' से मिल कर बना है और इसका अर्थ मूल निवासी होता है।

आदिवासियों का गुरु कौन है?

गोविंद गुरु ने आदिवासियों (Tribals) को संगठित करने का कार्य भी किया।

आदिवासियों का राजा कौन है?

राजा भंजदेव ने आदिवासियों के हक के लिए संघर्ष किया। वे आजाद भारत से बहुत उम्मीद रखने वाले रौशनख्याल राजा थे। उन्हें लगता था कि आजाद भारत में आदिवासियों का शोषण अंग्रेजों की तरह नहीं होगा। वे मानते थे कि आदिवासियों को उनकी जमीन पर बहाल करना अब आसान होगा।

सबसे ज्यादा आदिवासी कौन से राज्य में है?

भारत में सर्वाधिक आदिवासी आबादी वाला राज्य - मध्य प्रदेश।.
मध्य प्रदेश में सबसे अधिक जनजातीय आबादी है। ... .
मध्य प्रदेश में सबसे अधिक जनसंख्या भील जनजाति की है।.
दूसरी सबसे ज्यादा आदिवासी आबादी उड़ीसा की है।.
2001 की जनगणना में मिजोरम की जनसंख्या 888,573 थी।.